आस्था के ज्वार में डोलती तार्किकता की नाव
संदर्भ: भगवान सत्यसाईं बाबा का अवसान
राम पुनियानी
श्री सत्यसाईं बाबा के अवसान (24 अप्रैल 2011) ने उनके लाखों अनुयायियों के जीवन में मानों भावनात्मक भूचाल ला दिया है। उनकी मृत्यु से जनित व्यवहारिक समस्याओं से निपटने में भी सैकड़ों लोग व्यस्त हैं। पुट्टपर्थी में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए संबंधित एजेन्सियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। बाबा को श्रद्धांजलि देने पहुंच रहे अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए समुचित इंतजामात करना भी कम चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं है। सत्यसाईं बाबा के देहांत पर शोक व्यक्त करने के लिए देश भर में और विदेषों में भी भजन सभाएं हो रहीं हैं। राजनीति, व्यवसाय, फिल्म व खेल की दुनिया की नामचीन हस्तियाँ, भगवान के निधन पर शोक व्यक्त करने पुट्टपर्थी पहुंच रही हैं।
साईंबाबा के विषाल साम्राज्य का उत्तराधिकारी कौन हो, इस यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजना भी आसान नहीं है। यह साम्राज्य भी साईंबाबा ने शुन्य से पैदा किया था, ठीक वैसे ही जैसे वे भभूत और सोने की चेनें आदि हवा से पैदा किया करते थे। भगवान सत्यसाईं के अनुयायियों, भक्तों और प्रषंसकों की संख्या बहुत बड़ी है। उनसे रईस बाबा शायद ही कोई दूसरा होगा। उनके साम्राज्य की ठीक-ठीक कीमत आंकना बहुत कठिन है।
बाबाओं द्वारा नियंत्रित संपत्ति का बड़ा हिस्सा हमेशा छुपा रहता है। संसार को त्याग चुके इन सन्यासियों की संपत्ति का सोशल आडिट करने के लिए लोकपाल जैसी कोई संस्था गठित करने का प्रस्ताव तक रखने की किसी में हिम्मत नहीं है। इन बाबाओं का जीवन यह बताता है कि यदि आपको संसार को “त्यागने“ का सही तरीका मालूम हो तो धन-संपदा आपके पीछे दौड़ती है। इस धन का कुछ हिस्सा समाजसेवा के कार्यों में खर्च किया जाता है। इन कार्यों का जमकर प्रचार होता है और यह समाजसेवा, बाबाओं के जीवन का सबसे सावर्जनिक पहलू होती है। इसके विपरीत, उनके जीवन के अन्य पहलू, रहस्य के गहरे आवरण में लिपटे रहते हैं।
भगवान श्री सत्यसाईं कई विवादों के केन्द्र में रहे हैं। उन्हें ठीक से समझना एक दुष्कर कार्य है। हवा में से भभूत व सोने की चेनें पैदा करने की कला में वे सिद्धहस्त थे। पहले वे एच.एम.टी. की घड़ियाँ भी हवा में हाथ लहराकर पैदा किया करते थे परंतु यह एहसास होने के बाद कि घड़ियों में उनकी निर्माण तिथि अंकित रहती है, उन्होंने यह काम बंद कर दिया। कई तार्किकतावादियों ने उन्हें चुनौती दी थी। सत्यसाईं के चमत्कारों को कई बार सड़कों पर दोहराया गया। यात्राएं निकाली गईं, जिनका संदेश यह था कि साईंबाबा के चमत्कार केवल हाथ की सफाई हैं और उनका आध्यात्म या ईष्वर से कोई लेना देना नहीं है। इन चमत्कारों को दैवीय बताए जाने को जानेमाने जादूगर पी सी सरकार ने भी चुनौती दी थी। सत्यसाईं बाबा को यह चुनौती भी दी गई थी कि वे हवा से एक बड़ा सा कद्दू पैदा करके दिखलाएं। बाबा ने यह चुनौती स्वीकार नहीं की। शायद हवा से कद्दू पैदा करना उन्हें आता नहीं था। परंतु इस सबसे उनके अनुयायियों को कोई फर्क नहीं पड़ा। उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। उनके चेले, समाज के सभी वर्गों में से थे। अच्छी-खासी संख्या में विदेशी भी उनकी ओर आकर्षित हुए।
सत्यसाईं बाबा ने यह उद्घोषणा की थी कि वे शिर्डी के साईंबाबा के अवतार हैं। शिर्डी के साईंबाबा की जिंदगी अत्यंत सादगीपूर्ण थी। वे पेड़ के नीचे रहते थे। सत्यसाईं बाबा के कारण, शिर्डी के साईंबाबा भी ऐष्वर्य से घिर गए हैं। उनकी मूर्ति अब सोने के सिंहासन पर विराजमान है। षिरडी के साईंबाबा के स्वघोषित अवतार होने के अतिरिक्त, साईंबाबा ने स्वयं को भगवान का दर्जा भी दिया था। उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी कि वे 96 वर्ष की आयु में अपने नष्वर शरीर को त्यागंेगे। दुर्भाग्यवश , उनकी नष्वर देह को केवल 85 वर्ष तक ही सुरक्षित रखा जा सका। भगवान ने अपनी दैवीय शक्ति से न जाने कितनों की जान बचाई होगी परंतु उनकी जान बचाने के लिए उन्हें लंबे समय तक वेंटीलेटर पर रखा जाना पड़ा। इसके बावजूद भी उन्हें, उनकी भविष्यवाणी के अनुरूप, 96 साल तक जीवित नहीं रखा जा सका। भगवान साईं के चमत्कार चाहे असली रहे हों या नकली परंतु विभिन्न विवादो के बावजूद उनके भक्तों की संख्या जिस तरह बढ़ती ही गई, वह सचमुच चमत्कारिक था। उन पर बच्चों का यौन षोषण करने का आरोप लगा। कुछ बालिगों ने भी उन पर यौन षोषण संबंधी आरोप लगाये। टाम ब्रुक ने अपनी पुस्तक “अवतार ऑफ द नाईट: हिडन साईड ऑफ साईं बाबा“ (रात का अवतार: साईंबाबा के जीवन का छुपा हुआ पक्ष) में इस सिलसिले में स्वयं के अनुभव का वर्णन किया है। कंुडलिनी जागृत करने के नाम पर नवयुवक भक्तों के यौन षोषण की बातें भी सामने आती रही हैं। र्साइंबाबा के निवास स्थान पर एक कत्ल भी हुआ था, जिसके बाबा स्वयं चष्मदीद थे परंतु इसकी जाँच ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी।
आध्यात्मिक दुनिया में दुनियावी कानूनों की क्या बिसात! भगवान के उच्च पदस्थ भक्तों ने हमेशा उनके हितों की रक्षा की-फिर चाहे वह उनके चमत्कारों की पोल खोलने वाले अभियान हों या उनके घर में कत्ल का। ये सभी मामले नजरअंदाज कर दिए गए और धीरे-धीरे जनता इन्हें भूल गई। सत्य साईंबाबा पहले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने स्वयं को भगवान घोषित किया हो। इसके पहले रजनीश भी ऐसा कर चुके हैं। उन्होंने ईष्वरत्व पाने की यात्रा रजनीश के तौर पर शुरू की थी। बाद में वे आचार्य रजनीश और फिर भगवान रजनीश कहलाने लगे। अंततः उन्होंने ओशो का दर्जा हासिल कर लिया।
सत्य साईंबाबा के अंतिम दर्षनों के लिए बड़ी संख्या में अति विषिष्ट व्यक्ति पुट्टपर्थी पहॅुचे। कोई नहीं जानता कि उनकी ये यात्राएं व्यक्तिगत थी या आधिकारिक और न ही हम विष्वास के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश में इस तरह के विभेदों के लिए कोई जगह बची है। संविधान हमें अपने-अपने धर्मों का पालन करने की इजाजत देता है पंरतु केवल व्यक्तिगत स्तर पर-राजनैतिक या आधिकारिक स्तर पर नहीं। अतः इस प्रकार की यात्राएं सरकारी खर्च पर करने को कतई उचित नहीं कहा जा सकता। हमारा संविधान तार्किक सोच को बढ़ावा देने की बात भी करता है पंरतु इस दिशा में राज्य की ओर से शायद ही कुछ किया जाता हो। भगवान सत्यसाईं के मामले में अब्राहम कोवर व प्रेमानंद जैसे तार्किकतावादियों की बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित होती रहीं हैं। उन्हें अनसुना किया जाता रहा है और उनके द्वारा उठाए गए प्रष्न आज भी अनुत्तरित हैं।
भगवान के दावों पर प्रष्नचिन्ह लगाने वाली कई फिल्में भी हैं, जिनमें से प्रमुख हैं “गुरू बस्टर्स“ व “सीक्रेट स्वामी“। इन बाबाओं से धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को भी मदद मिलती है। हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जब आस्था का ज्वार, तर्कवाद की नाव को डुबोने की भरपूर कोशिश कर रहा है और इस नाव का राज्य-रूपी मल्लाह, अकर्मण्य सिद्ध हो रहा है। आस्था की आँधी इतनी तेज और इतनी षक्तिषाली है कि बाबाओं के मामले में कोई प्रष्न उठाना भी मुहाल हो गया है। यही कारण है कि स्वयं को भगवान बताने वाला एक व्यक्ति, जिसके “चमत्कारों“ को सड़कछाप जादूगर भी आसानी से दोहरा सकते हैं – अकूत संपदा का मालिक बन जाता है। इस संपदा का एक हिस्सा, समाजसेवा का आकर्षक शोपीस बनाकर दुनिया के सामने रख देने मात्र से उसके कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है। यह भी साफ है कि इस युग में अंधश्रद्धा का विरोध करना, धारा के विरूद्ध तैरने जैसा है। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि आधुनिक जीवन की आपाधापी, चूहादौड़ और असुरक्षा के भाव के चलते लोगों को किसी न किसी सहारे की जरूरत पड़ती है। सन् 1970 के दशक में ऐसे लोग एल.एस.डी. का सहारा लेते थे, अब वे बाबाओं की शरण में जा रहे हैं। अपने पुनर्जन्म के बारे में साईंबाबा की भविष्यवाणी भी बहुत दिलचस्प है। उनका कहना था कि सन् 2022 में कर्नाटक के मांड्या जिले में उनका पुनर्जन्म होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि भगवान कैसे फिर से धरती पर आते हैं और उनके अनुयायी उन्हें कैसे पहचानते हैं। तब तक, हम केवल आशा ही कर सकते हैं कि कुकुरमुत्तों की तरह सब तरफ ऊग आये बाबाओं के बारे में हमारा समाज तार्किक ढंग से सोचना शुरू करेगा।
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे, और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
रंगी को नारंगी कहे, जमे दुध को खोया
ReplyDeleteचलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया..