वयंग्य -चमचा महिमा
-उपासना बेहार
आईये हम आपको बेहद हसीन ‘‘चम्मच वादियों’’ में ले चलें। जहां जाने के बाद आपका मन वापस लौटने को ‘‘नही’’ करेगा। आपका मन इतना ज्यादा मुतासिर हो जायेगा कि आपके होंठ खुदबखुद ये गुनगुनाने लगेंगे-‘‘ गर फिरदौस जमी अस्त हमी ( चम्मचलैंड़ ) अस्त हमी अस्त।’’ वैसे तो चमचों के बारे में ऐसी कोई बात नही होगी, जिसके बारे में आप न जानते हो, पर यदि चमचा शब्द पर गौर फरमाया जाए तो लगेगा कि ये जीव तो हमेशा आसपास ही साक्षात ‘चलता-फिरता’, ‘उठता-बैठता’’, दौड़ता-भागता’’, खाता-पीता’’ दृष्टिगोचर हो जाता है।
वैसे हम आपके सामान्य ज्ञान में थोड़ा और इजाफा करने की हिमाकत करें तो चमचे दो तरह के होते हैं, एक वो जो वस्तु के रुप में होता है, दूसरे टाइप के चमच का गुणगान करना तो यू है, जैसे ‘सूरज को दीया दिखाना’।
देखा जाये तो दोनो प्रकार के चमचों में आपस में दूर-दूर तक कोई समानता दिखाई नही देती है, लेकिन अगर गौर फरमायेगें तो आप पायेगें कि अनेक मामलों में दोनो के कुछ गुण ‘मिलते-जुलते’ नजर आते हैं। इजाजत हो तो हम इन गुणों का बखान करना शुरु करें।
सबसे पहले आकार की बात हो जाए। जनाब, चमच ‘बड़े’ और ‘छोटे’ दो साइज के होते है। उसी प्रकार हमारे दूसरे ‘टाइप’ के चमच द्विआकारीय होते है। वे ‘चमच’ जो बड़े- बड़े नेताओं व बड़े- बड़े गुंड़े ( वही जो आगे चलकर इस देश के नीति निर्माणकर्ता बनते हैं ) के आस-पास भिनभिनाते रहते है। उन्हें हम बड़े ‘चमच’ के प्रकार में शामिल करते हैं और वे जो ‘उभरते हुए’, ‘टुटपुंजिए’ नेताओं के चारों ओर मंडराते रहते है वे ‘छोटे’ कैटेगिरी के चमच है। ये ‘चमच’ बिरादरी प्रतिकूल परिस्थिति में अपने छत्ते के लोगों को डंक मार, दूसरे के छत्ते में घुसने में भी देर नहीं करते हैं। वहीं डंक खाने वाला जब तक दर्द से निजात पाये उससे पहले ही अगर अनुकूल परिस्थिति बनने लगे तो बेशर्म बन अपने छत्ते में वापस आने में भी देर नहीं करतें।
अच्छा अब इनके गुणगान की थोड़ी और चर्चा हो जाए। अगर आप ने कभी गुलाब जामुन बिना चम्मच के खाया हो तो मान कर चलिये कि कपड़े गए काम से। उसी प्रकार कभी आपने अपने आप को तीसमारखा समझ कर अपने बलबूते पर कोई कार्य कराने की सोची तो वो कार्य ‘‘एक ख्वाब’’ बन कर रह जायेगा किंतु आपने इन भिनाभिनाते हुए चमचों को एक बार, सिर्फ एक बार प्यार से, नजाकत से उठाया ( खर्चा-पानी दिया ) तो फिर पूछिये मत, इधर आपने आंख झपकाई नहीं कि उधर आपका काम हो गया।
गुणों की खदानों वाले इन चमचों के व्यवहार पर गौर फरमाईयेगा - अजी यहां भी ये बड़े- बडे अभिनेताओं के कान काटते है। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कलाकार भी इनके सामने पानी भरते हैं। अगर हम चम्मच को गरम करते हैं तो वो हाथ को जला देता है, उसी प्रकार ये ‘स्टैर्डड आई.एस.आई. मार्क वाले चमच भी कम नहीं हैं। अगर आपने उनका मेहनताना उनके आशा के मुताबिक दे दिया तब -तो बल्ले-बल्ले और कहीं भूल से भी आपने इसमें कमी कर दी तो फिर देखिए इनकी ,शिष्टचार का रौद्व रुप कि अगर ‘भगवान’ भी आपकी सिफारिश करने आ जाए तो वो भी केवल यहीं कहेंगे कि ‘बड्रे बेआबरु हो कर चमचों के कुचे से हम निकले’।
वैसे इस तरह के महान गुणों से लैस रहना भी कठिन कार्य है। जो हर किसी के बस की बात नहीं है। जनाब ‘चमच’ बनना और वो भी ‘हिट चमच’ बनना एक महान कला है। हमारा प्रस्ताव है कि इस महान कला का विकास होना चाहिए और वैसे भी जिस तरह से हमारे देश में कुकुरमुत्तों की तरह ‘यहां-वहां, जहां-तहां मत पूछो कहां-कहा’ नेता उगते चले जा रहे हैं, उस हिसाब से ‘चमचों की सप्लाई’ कम है। अगर इसी तरह चलता रहा था तो हमारे देश में ‘चमचों ’ का ‘आकाल’ पड़ जायेगा।
अतः हमारी शिक्षामंत्री जी से गुजारिश है कि वो हर कॉलेज में एक नया विषय शरू करें , जिसका नाम हो ‘चमचोलॉजी’ और अगर सरकार इस दिशा में कोई प्रयास नही कर पाती तो मेरा आहवान है कि ‘हे, मेरे देश के सपूतों जागों और तुरंत मिलकर एक ऐसी संस्था की नींव डालो जिसमें इस महान और अद्भूत कला की ट्रेनिग दी जा सकें, जिससे हमारे देश को उच्च कोटी के चमचों की प्राप्ति हो सके तथा जो सिर्फ गरीब जनता ( गरीब जनता की परिभाषा में केवल उनका अपना ही परिवार आता है) का विकास पूर्णतः तन-मन-धन से करें ( अर्थात अपने परिवार को एक छोटी झोपड़ी से बड़े- बडे महलों तक ऊपर उठायें।)
हम आशा करते हैं कि बहुत जल्दी ही इस कला को बढ़ावा देने वाली संस्था का उदघाटन करते हुए किसी मंत्री का फोटो अखबारों व टी.वी. चैनलों में देखने का सुअवसर प्राप्त होगा। आमीन
A good satire.
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