सीरिया के महाकवि निज़ार क़ब्बानी की कविताएँ




निज़ार कब्बानी (1923-1998) केवल सीरिया में बल्कि साहित्य के समूचे अरब जगत में प्रेम , ऐंद्रिकता , दैहिकता और इहलौकिकता के कवि माने जाते हैं ( हालाँकि वे सिर्फ इतना भर ही नहीं हैं !) इस वजह से उनकी प्रशंसा भी हुई है और आलोचना भी किन्तु इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने अपनी कविता के बल पर बहुत लोकप्रियता हासिल की है. तमाम नामचीन गायकों ने उनके काव्य को वाणी दी है. साहित्यिक संस्कारों वाले एक व्यवसायी परिवार में जन्में निज़ार ने दमिश्क विश्वविद्यालय से विधि की उपाधि प्राप्त करने के बाद दुनिया के कई इलाकों में राजनयिक के रूप में अपनी सेवायें दीं जिनसे उनकी दृष्टि को व्यापकता मिली. उनके अंतरंग अनुभव जगत के निर्माण में स्त्रियों की एक खास भूमिका रही है ; चाहे वह बहन की आत्महत्या हो या बम धमाके में पत्नी की मौत. निज़ार कब्बानी की किताबों की एक लंबी सूची है. दुनिया की कई भाषाओं में उनके रचनाकर्म का अनुवाद हुआ है.

  आम तौर पर निजार कब्बानी को प्रेम कवि माना जाता है   है. जबकि अपने बारे में खुद निजार कब्बानी क्या कहते हैं, इसे देखिये
मेरे वतन
तुमने प्रेम और विषाद के कवि का कायांतरण कर डाला 
वैसे कवि में जो 
चाकू से लिखने लगा है.. 

प्रस्तुत हैं सीरिया के महाकवि निज़ार क़ब्बानी   कुछ  कविताएँ 

जब मैंने तुम से कहा था

जब मैंने तुम से कहा था “मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
मैं जानता था
कि मैं एक कबीलाई क़ानून के खिलाफ
 बगावत का नेतृत्व कर रहा हूँ,
 कि मैं बजा रहा था बदनामियों की घंटियाँ.

मैं सत्ता हथियाना चाहता था
 ताकि जंगलों में पत्तियों की तादाद बढ़ा सकूं
 मैं सागर को बनाना चाहता था और अधिक नीला
 बच्चों को और अधिक निष्कपट
 मैं बर्बर युग का खात्मा करना चाहता था
 और क़त्ल करना आख़िरी खलीफा का.
 जब मैंने तुम्हें प्यार किया
 मेरी मंशा यह थी कि हरम के दरवाजों को तहसनहस कर डालूँ
 स्त्रियों के स्तनों की रक्षा कर सकूं
 ताकि उनके कुचाग्र
 हवा में खुश हो कर नाच सकें.

 जब मैंने तुम से कहा था “मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
 मैं जानता था आदिम लोग मेरा पीछा करेंगे
 ज़हरीले भालों के साथ
 धनुष-बाणों के साथ.
 हर दीवार पर चस्पां कर दी जाएगी मेरी तस्वीर
 मेरी उँगलियों के निशान बाँट दिए जाएंगे तमाम पुलिस-स्टेशनों में
 बड़ा इनाम दिया जाएगा उसे जो उन तक मेरा सिर पहुँचायेगा
 जिसे वे शहर के प्रवेशद्वार पर टाँगेंगे
 जैसे वह कोई फिलीस्तीनी संतरा हो.

 जब तुम्हारा नाम लिखा था मैंने गुलाबों की बयाजों में
 सारे अनपढोंसारे बीमारों और नपुंसकों ने उठ खड़ा होना था मेरे खिलाफ
 जब मैंने तय किया आख़िरी खलीफा का क़त्ल करना
 ताकि मोहब्बत की सल्तनत की स्थापना करने की घोषणा कर सकूं
 जिसकी मलिका का ताज मैंने तुम्हें पहनाया
 मैं जानता था
 सिर्फ चिडियाँ गाएंगी मेरे साथ
 क्रान्ति के बारे में.



गुलाम देश से आई एक गोपनीय रपट


साथियों !
क्या है कविता गर नहीं करती यह एलान बगावत का ?
गर उखाड़ नहीं फेंकती यह निरंकुश सत्ता को
क्या है कविता गर यह नहीं भड़काती ज्वालामुखियों को वहां 
जहां हमें उनकी जरूरत है ?
और क्या मतलब है कविता का आखिर 
गर यह नोच नहीं लेती दुनिया के ताकतवर बादशाहों के सर से ताज ?





लालटेन से ज़्यादा ज़रूरी होती है रोशनी


लालटेन से ज़्यादा ज़रूरी होती है रोशनी
कविता ज़्यादा ज़रूरी नोटबुक से
और चुम्बन ज़्यादा ज़रूरी होंठों से.
तुम्हें लिखे मेरे ख़त
हम दोनों से बड़े और ज़्यादा ज़रूरी हैं
सिर्फ़ वही हैं वे दस्तावेज़
जिनमें लोग खोजेंगे
तुम्हारी खूबसूरती
और मेरा पागलपन.




(चित्र-पौल गोगाँ की पेंटिंग)



http://kabaadkhaana.blogspot.in से कॉपी पेस्ट 


No comments: