पितृसत्तामकता के पितामह
राम पुनियानी
पिछले माह (फरवरी 2012) के मध्य में, भाजपा-शासित कर्नाटक में लक्ष्मण सवाड़ी व सी. सी. पाटिल नामक दो मंत्री, विधानसभा में बैठकर मोबाईल फोन पर एक अश्लील फिल्म देख रहे थे। मोबाईल एक अन्य मंत्री कृष्णा पालेमार का था। तीनों को अपने पद खोने पड़े व भाजपा ने तुरत-फुरत “चिंतन बैठक“ आयोजित कर “डेमेज कंट्रोल“ का प्रयास शुरू कर दिया। ये तीनों मंत्री, भाजपा के अन्य शीर्ष नेताओं की तरह संघ के प्रशिक्षित कार्यकर्ता हैं या नहीं, यह जानकारी उपलब्ध नहीं है। परंतु ये तीनों “संघ परिवार“ के हिस्से हैं, यह निर्विवाद है और यह भी कि वे विधानसभा के अंदर पोर्न फिल्म का आनंद ले रहे थे।
संघ परिवार के नेताओं का महिलाओं से संबंधित मामलों में बेजा हस्तक्षेप व अति रूचि कोई नई बात नहीं है। प्रमोद मुत्तालिक की श्रीराम सेने द्वारा मंगलौर के पब में लड़कियों पर हमला करने और उन्हें अपमानित करने की घटना बहुत पुरानी नहीं है। मुत्तालिक ने आरएसएस से प्रषिक्षण प्राप्त किया है। वे सन् 1975 में आरएसएस के सदस्य बने और सन् 2004 में उन्हें बजरंग दल का दक्षिण भारत का संयोजक नियुक्त किया गया। उन्होंने भाजपा के चुनाव अभियान में भी भागीदारी की। बाद में वे शिवसेना के सदस्य बन गए और अनंतर उन्होंने स्वयं की “श्रीराम सेने“ बना ली।
वेलेंटाइन डे मना रहे युवाओं पर बजरंग दल, विहिप, शिवसेना, श्रीराम सेने व आरएसएस से जुड़े संगठन पिछले कई वर्षों से हिंसक हमले करते आ रहे हैं।
इनमें से कई तत्व, मात्र इसलिए मुस्लिम लड़कों पर हमले करते हैं क्योकि वे हिन्दू लड़कियों से बातचीत कर रहे थे! गुजरात में मुसलमानों के कत्लेआम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाबू बजरंगी, जिन्होंने तहलका के स्टिंग ऑपरेशन में मुसलमानों के नरसंहार का “वन डे मैच“ खेलने का दंभ भरा था, एक ऐसे संगठन का नेतृत्व करते हैं जो पार्कों आदि में प्रेमी युगलों को डराने-धमकाने का काम करता है। पितृसत्तात्मक मूल्यों, लैंगिक मुद्दों और मुस्लिम-विरोधी दुष्प्रचार के घालमेल का एक जीवंत उदाहरण है “लव जिहाद“ का मिथक। इसका उद्धेष्य था मुस्लिम युवकों, विशेषकर केरल निवासी मुस्लिम युवकों, को कटघरे में खड़ा करना। “लव जेहाद“ के मिथक के प्रचारकों का कहना है कि मुसलमान युवकों को हिन्दू लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए पैसा दिया जा रहा है ताकि मुसलमानों की आबादी में वृद्धि हो।
महिलाओं के अपने जीवनसाथी चुनने के अधिकार का ये तत्व कई तरह से विरोध करते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर अपने प्रेम का इजहार कर रहे युवकों को सलाह दी जाती है कि वे प्रेम विवाह का विचार त्याग दें व अपने माता-पिता द्वारा चुने गए लड़के या लड़की से शादी कर लें। वेलेंटाइन डे का विरोध करने के लिए इस वर्ष इन तत्वों ने एक नया तरीका निकाला। आसाराम बापू ने सलाह दी कि वेलेंटाईन डे को “मातृ-पितृ दिवस“ के रूप में मनाया जाए। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने आसाराम की इस सलाह पर अमल करते हुए छत्तीसगढ़ में 14 फरवरी को मातृ-पितृ दिवस मनाया।
हैदराबाद के पुलिस प्रमुख दिनेश रेड्डी का हालिया बयान, संघ परिवार के मूल्यों के अनुरूप था। उन्होंने फरमाया कि महिलाओं के साथ बलात्कार इसलिए होते हैं क्योंकि वे उत्तेजक वस्त्र पहनती हैं। यह पहली बार नहीं है कि किसी पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति ने यह बेमानी तर्क दिया हो। परंतु जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि जहां देश के लगभग सभी महिला संगठनों ने इस बयान के लिए श्री रेड्डी को लताड़ा वहीं केवल एक महिला संगठन उनके समर्थन में सामने आया। वह था राष्ट्र सेविका समिति जो कि संघ खानदान का हिस्सा है। इसके पहले तक संघ परिवार व उसकी विचारधारा में यकीन रखने वाले संगठनों के बयान व हरकतें उनकी मध्यकालीन सोच और नैतिकता की उनकी विकृत परिभाषा को प्रतिबिंबित करते थे। राष्ट्र सेविका समिति के श्री रेड्डी को समर्थन ने इसमें एक नया आयाम जोड़ा है। अब महिलाओं को ही उनके खिलाफ किए जा रहे अपराधों के लिए दोषी ठहराया जा रहा है।
यद्यपि बाबू बजरंगी और प्रमोद मुत्तालिक आरएसएस से जुड़े हुए हैं तथापि उन्हें अतिवादी मानकर नजरअंदाज किया जा सकता है और अश्लील फिल्में देखने का शौक केवल भाजपा के मंत्रियों तक सीमित नहीं है। परंतु राष्ट्र सेविका समिति ने जो कुछ कहा है वह संघ के महिलाओं के प्रति नज़रिए का स्पष्ट परिचायक है। आरएसएस केवल पुरूषों का संगठन है। सन् 1936 में संघ से जुड़े एक परिवार की महिला सदस्य लक्ष्मीबाई केलकर ने संघ की सदस्य बनने की आज्ञा चाही। तत्कालीन सर संघचालक ने उन्हें सदस्यता देने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि संघ केवल पुरूषों के लिए है। उन्हें राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना करने की सलाह दी गई। दोनों संगठनों के नामकरण में अंतर स्पष्ट व दिलचस्प है। जहां आरएसएस के नाम में “स्वयं“ शब्द शामिल है वहीं महिला संगठन के नाम में “स्वयं“ शब्द के स्थान पर “सेविका“ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। संघ की पुरातनपंथी, महिला-विरोधी सोच का इससे बेहतर उदाहरण कोई नहीं हो सकता।
पितृसत्तात्मक मूल्यों के प्रति संघ का प्रेम समय-समय पर सामने आता रहा है। सन् 1980 के दशक में रूपकुंवर के सती होने के बाद भाजपा की तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विजयाराजे सिंधिया ने सती प्रथा का समर्थन किया था। उन्होंने जोर देकर कहा था कि सती प्रथा भारत की महान हिन्दू परंपरा का अविभाज्य हिस्सा है और यह भी कि सती होना, हिन्दू महिलाओं का एक ऐसा हक है जिसे उनसे छीना नहीं जा सकता। मजे की बात यह है कि श्रीमती सिंधिया ने स्वयं इस हक का इस्तेमाल नहीं किया।
सन् 1994 में अंग्रेजी पत्रिका “सैवी“ को दिए गए एक साक्षात्कार में भाजपा महिला मोर्चा की मृदुला सिन्हा ने दहेज प्रथा और पत्नियों के साथ मारपीट को उचित करार दिया था। उन्होंने कहा था कि जब तक परिवार किसी गंभीर आर्थिक संकट में न फंस जाए तब तक महिलाओं को काम के लिए घर से बाहर नहीं जाना चाहिए। संघ परिवार का वैचारिक नेतृत्व, मनुस्मृति का गुणगान करते नहीं थकता। यह वही मनुस्मृति है जो जाति व्यवस्था को ईश्वर का प्रसाद बतलाती है और महिलाओं को दोयम दर्जा देती है।
सच तो यह है कि साम्प्रदायिक संगठन-चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हों-पितृसत्तात्मक मूल्यों के हामी होते हैं और आरएसएस इसका अपवाद कैसे हो सकता है? कई सिर वाले इस राक्षस के नाम से लेकर उसकी विचारधारा, कथनी और करनी सभी से पितृसत्तामत्कता की बू आती है। कट्टरपंथी संगठन-जिनमें इस्लामिक और ईसाई संगठन भी शामिल हैं-महिलाओं के दमन को धर्म के आधार पर औचित्यपूर्ण बताते हैं। शायद यही कारण है कि समलैंगिक संबंधों के मसले पर सभी धर्मों के कट्टरपंथी संगठनों की एक सी राय है।
सन् 1950 के दशक से लेकर सन् 1970 के दशक तक हमारे देश में जातिगत व लैंगिक भेदभाव में शनैः-शनैः कमी आने की जो प्रक्रिया शुरू हुई थी वह 1980 के दशक में न केवल रूक गई वरन् उसकी दिशा भी पलट गई। सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह बदलाव, हिन्दुत्व की राजनीति के उदय के साथ हुआ। संघ परिवार और भाजपा का लैंगिक मुद्दों पर नजरिया, भाजपाई मंत्रियों के अश्लील फिल्म देखने से कहीं अधिक खतरनाक है। इसके खिलाफ सतत संघर्ष आवश्यक है।
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