हम गुनहगार औरतें न सर झुकाएं, न हाथ जोड़ें-:- किश्वर नाहीद
"ये हम गुनहगार औरतें हैं
जो अहले-जुब्बा की तमकनत से
न रोआब खोएं
न बेचें
न सर झुकाएं
न हाथ जोड़ें
ये हम गुनहगार औरते हैं
जो अहले-जुब्बा की तमकनत से
न रोआब खोएं
न बेचें
न सर झुकाएं
न हाथ जोड़ें
ये हम गुनहगार औरते हैं
के : जिनके जिस्मों की फ़सल बेचें जो लोग
वो सरफ़राज़ ठहरें
नियाबते-इम्तियाज़ ठहरें
वो सरफ़राज़ ठहरें
नियाबते-इम्तियाज़ ठहरें
ये हम गुनहगार औरते हैं
के : सच का परचम उठा के निकलीं
तो झूठ से शहराहें अटी मिली हैं
हरएक दहलीज़ पे
सज़ाओं की दास्तानें रखी मिली हैं
जो बोल सकती थीं, वो ज़बानें कटी मिली हैं
के : अब ताअकुब रात भी आए
तो ये आंखें नहीं बुझेंगी
के : अब जो दीवार गिर चुकी है
उसे उठाने की ज़िद न करना
ये हम गुनहगार औरते हैं
जो अहले जुब्बा की तमकनत से
न रोआब खोएं
न बेचें
न सर झुकाएं, न हाथ जोड़ें."
शब्दार्थ :
(मायने:-अहले जुब्बा = मज़हब के ठेकेदार, सरफ़राज़ = सम्मनित, नियाबते इम्तियाज़ = सही-ग़लत में फ़र्क करनेवाला, ताअकुब = तलाश में, तमकनत = प्रतिष्ठा)
के : सच का परचम उठा के निकलीं
तो झूठ से शहराहें अटी मिली हैं
हरएक दहलीज़ पे
सज़ाओं की दास्तानें रखी मिली हैं
जो बोल सकती थीं, वो ज़बानें कटी मिली हैं
के : अब ताअकुब रात भी आए
तो ये आंखें नहीं बुझेंगी
के : अब जो दीवार गिर चुकी है
उसे उठाने की ज़िद न करना
ये हम गुनहगार औरते हैं
जो अहले जुब्बा की तमकनत से
न रोआब खोएं
न बेचें
न सर झुकाएं, न हाथ जोड़ें."
शब्दार्थ :
(मायने:-अहले जुब्बा = मज़हब के ठेकेदार, सरफ़राज़ = सम्मनित, नियाबते इम्तियाज़ = सही-ग़लत में फ़र्क करनेवाला, ताअकुब = तलाश में, तमकनत = प्रतिष्ठा)
मैं कौन हूँ
मूज़े बेचती जूते बेचती औरत मेरा नाम नहीं
मैं तो वही हूँ जिसको तुम दीवार में चुनकर
मिस्ल-ए-सबा[1] बेख़ौफ़ हुए
यह नहीं जाना
पत्थर से आवाज़ कभी भी दब नहीं सकती
मैं तो वही हूँ जिसको तुम दीवार में चुनकर
मिस्ल-ए-सबा[1] बेख़ौफ़ हुए
यह नहीं जाना
पत्थर से आवाज़ कभी भी दब नहीं सकती
मैं तो वही हूँ
रस्म-ओ-रिवाज के बोझ तले
जिसे तुमने छुपाया
यह नहीं जाना
रौशनी घोर अँधेरों से कभी डर नहीं सकती
मैं तो वही हूँ
गोद से जिसकी फूल चुने
अंगारे और काँटे डाले
यह नहीं जाना
ज़जीरों से फूल की ख़ुशबू छुप नहीं सकती
मैं तो वही हूँ
मेरी हया के नाम पे तुमने
मुझको ख़रीदा मुझको बेचा
यह नहीं जाना
कच्चे घड़े पे तैर के सोहनी मर नहीं सकती
मैं तो वही हूँ
जिसको तुमने डोली बिठा के
अपने सर से बोझ उतारा
यह नहीं जाना
ज़ेहन ग़ुलाम अगर है क़ौम उभर नहीं सकती
पहले तुमने मेरी शर्म-ओ-हया पे ख़ूब तजारत[2] की थी
मेरी ममता, मेरी वफ़ा के नाम पे ख़ूब तजारत की थी
अब गोदों में ज़ेहनों में फूलों के खिलने का मौसम है
पोस्टरों पर नीम बरहना[3]
मूज़े बेचती जूते बेचती औरत मेरा नाम नहीं।
मायने:-
1. हवा की तरह
2. व्यापार, धंधा
3. आधे नंगे
1. हवा की तरह
2. व्यापार, धंधा
3. आधे नंगे
I am not that Woman by Kishwar Naheed
I am not that woman
Selling you socks and shoes!
Remember me, I am the one you hid
In your walls of stone, while you roamed
Free as the breeze, not knowing
That my voice cannot be smothered by stones,
I am the one you crushed
With the weight of custom and tradition
Not knowing
That light cannot be hidden in darkness.
Remember me,
I am the one in whose lap
You picked flowers
And planted thorns and embers
Not knowing
That chains cannot smother my fragrance
I am the woman
Whom you bought and sold
In the name of my own chastity
Not knowing
That I can walk on water
When I am drowning.
I am the one you married off
To get rid of a burden
Not knowing
That a nation of captive minds
Cannot be free.
I am the commodity you traded in,
My chastity, my motherhood, my loyalty.
Now it is time for me to flower free.
The woman on that poster, half-naked, selling socks and shoes-
No, no, I am not that woman!
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