जमीन पर महिलाओं के अधिकार का सवाल
रोमा
मशहूर लेखिका प्रभा खेतान सीमोन दी बाउर की पुस्तक ‘स्त्री उपेक्षिता’ का अनुवाद करते हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदू को उजागर करते हुए कहती है कि ‘ स्त्री कही झुंड बना कर नही रहती, वह पूरी मानवता का आधा हिस्सा होते हुए भी पूरी एक जाति नही है। गुलाम अपनी गुलामी से और एक काला आदमी अपने रंग से परिचत है, पर स्त्री घरों,अलग-अलग वर्ग व भिन्न-भिन्न जातियों में बिखरी हुई हैं। उसमें क्रांति की चेतना नही है। क्योंकि अपनी स्थिति के वह खुद भी जिम्मेदार है। वह पुरुष की सहअपराधिनी है। इसलिए समाजवाद की स्थापना मात्र स्त्री मुक्ति से नही हो जायेगी। समाजवाद भी पुरुष की सर्वप्रियता की ही विजय बन जायेगी। स्त्री अमीर हो या गरीब,गोरी हो या काली उसे अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी। यह दुनिया पुरुषों ने बनाई पर स्त्री से पूछ कर नही। फ्रांस की क्रांति हो या विश्व युद्व, स्त्री से पुरुष सहारा लेता है और पुनः उसे घर लौट जाने को कहता हैं। वह सदियों से ठगी गई है। उसने स्वतंत्रता हासिल भी की है तो उतनी ही जितनी की पुरुषों ने अपनी सुविधा के लिए उसे देनी चाही।’
इसी सदर्भ में देखें तो हमारे देश में महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति बेहद दयनीय है। फिर महिलाओं का संसाधनों पर अधिकार का मामला एक बेहद ही पेचिदा सामाजिक मामला है। चूंकि संसाधन भी सदियों से एक ही वर्ग के कब्जे में रहे हैं। इसलिए इस लड़ाई को लड़ना भी महिलाओं के लिए उतना ही कठिन है जितना उसको समाज में अपने लिए एक सामाजिक दर्जा पाना।
मौजुदा संदर्भ में अगर देखें तो नक्सलबाड़ी,बोधगया,चिपको आंदोलन,नंदीग्राम का संधर्ष,चेंगेरा (केरल),सोनभद्र(उप्र), रीवा जैसी जगहों पर महिलाओं ने भूमि को लेकर कई आदोंलन किये जो अभी तक जारी है। ये दलित,आदिवासी व अन्य गरीब तबकों की महिलाओं का संधर्ष है। जिनके लिए भूमि सपंति नही जीविका का साधन ,भविष्य की सुरक्षा व सम्मान का प्रतिक है। महिला और भू अधिकारों को समझने के लिए सबसे पहले ये समझना जरुरी है कि महिला का उत्पादन के साधनों और खुद की प्रजनन शक्ति से कैसे अलगाव हुआ।
इस बात को समझने के लिए हमें आदिम काल से महिलाओं की स्थिति को समझना होगा जो पूरे विश्व में लगभग एक जैसी है। आदिकालीन मानव समाज के बारे में जो जानकारयिा मिलती है,उनके आधार पर देखें तो तब भी महिला को केवल बच्चा जनने वाले ‘यत्रं’ के रुप में ही देखा गया था। सृष्टिी के निर्माण की इस सबसे महत्वपूर्ण क्रिया को अंजाम देने के बावजूद उसे सम्मान की दृष्टि से नही देखा गया और न ही इस बात के लिए उसमें स्वाभिमान ही जगा था। पुरुष की यौन इच्छाओं की पूर्ति का साधन भर थी वह। बच्चा जनना और उसका लालन-पालन करना यह दायित्व महिला का ही हिस्सा था। महिला की शक्ति का अधिंकाश हिस्सा इन सब जिम्मेदारियों को वहन करने में खर्च हो जाता था, इसलिए वह शक्तिशाली होते हुए भी कमजोर समझी जाती थी। आज अगर देखा जाये तो हमारे देश में महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति बेहद ही दयनीय है। ऐसे में महिला और भू अधिकार एक बहुत ही चुनौति भरा मुददा है,चूंकि जब तक महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार नही आएगा तबतक महिलाओं के कोई भी अधिकार सुरक्षित नहीं रह पाएंगे।
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आमतौर पर जब भी महिला और भू अधिकारों की बात आती है,तो उसे संपति के अधिकारों,उत्तराधिकार कानून या वारिसाना हक के साथ ही जोड़ कर देखा जाता है, और इस मुददे के दायरे को बहुत ही सीमित कर दिया जाता है। महिलाओं के भूमि व्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और अधिकार भारतीय समाज में दो तरह के कानूनों से परिभाषित होते है,एक तो सामान्य कानूनों से जैसे संपति,परिवार या उत्तराधिकार कानून से या दूसरे भूमि सुधार और प्राकृतिक संसाधनों के कानून से। उदाहरण के तौर पर अगर भूमि संबंधित कानून कही भी महिलाओं के लिए कुछ भी अधिकार प्रदान करते है तो सामान्य कानून के जरिये उनमें महिलाओं को सीमित अधिकार ही हासिल है जो कि काफी भेदभावपूर्ण होते है। जैसे विवाहित स्त्री के लिए सपंति को ग्रहण करना या उत्तराधिकार के जरिये जहां भूमि की खरीद-बिक्री कम है वहां भूमि केवल विरासत से प्राप्त की जा सकती है।
महिलाओं का खेती में श्रम का हिस्सा पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है चूकि महिलाऐ खेती में सिवाए हल चलाने के पंचानवे फीसद योगदान करती है। यह नए भूमि सुधार के एजेन्ड़े जल,जंगल व जमीन को नीजि स्वामित्व,सामंतों और पूंजिपतियों की मिलकियत से निकाल कर उन तबकों में देने की बात करते है,जो कि इन संसाधनों पर अपनी जीविका के लिए निर्भर है। महिला का भूमि से सबंध केवल आर्थिक नही बल्कि सामाजिक,सांस्कृतिक भी है जो कि खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है। गरीब महिलाओं के लिए यह अधिकार बहुत महत्वपूर्ण है।
मौजुदा हालात में जहा भूमि निजि मिलकियत है वहा महिलाओं के हिस्से में भौमिक अधिकार न के बराबर है। ज्यादातर शादी टूट जाने व विधवा हो जाने पर मायके और ससुराल पक्ष दोनो ही महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा से वंचित रखते हैं। ऐसे में देश के संविधान में अनुच्छेद 14 के तहत भी महिला ,पुरुष के समान अधिकारों की बात तो कही गई है, लेकिन महिला के भू अधिकार क्या होगें इसका संविधान में कहीं कोई उल्लेख नही किया गया है। संविधान के अनुसार चूकि भूमि राज्य सरकार के अधीन है इसलिए राज्य स्तर पर जो भी कानून बनाए गए उसमें महिलाओं के प्रति संवैधानिक मंशा को कानूनों में बरकरार नहीं रखा गया।
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