मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में महिलाओं की भागीदारी और मीडि़या
उपासना बेहार
मध्यप्रदेश में
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2014-15 संपन्न हो चुके
हैं। पंचायत राज के स्थापना के बाद से स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी को
लेकर सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं। महिलाओं ने चुनौतियों का सामना करते
हुए अपने भागीदारी को लेकर जबरदस्त उत्साह दिखाया है। पिछले दो दशकों में पंचायतों
में महिलाओं की भागीदारी से उनकी स्थिति मजबूत और बेहतर हुई है। पहली बार जब 1994-95 में पंचायतों
में महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिला था तब इसको लेकर कई सवाल खड़े हुए थे और महिलाऐं
भी उतनी आत्मनिर्भर महसूस नही करती थी। अब स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है। इस
दौरान उन्होनें स्थानीय स्वशासन की बारीकियों को सीखा, समझा है और अब
पूरे आत्मविश्वास के साथ उल्लेखनीय काम कर रही हैं और अपनी सशक्त मौजुदगी को दर्ज
करा रही हैं। इस दौरान उन्हें कई रुकावटों से भी संघर्ष करना पड़ा है।
इस बार के चुनाव
में प्रदेश के 51 जिलों में जिला
पंचायत अध्यक्ष पद के कुल 50 सीटों में से 26 सीट, जिला पंचायत
सदस्य के कुल 843 सीटों में से 433 सीट, जनपद पंचायत
अध्यक्ष के 312 सीटों में से 156, जनपद पंचायत
सदस्य के 6741 सीटों में से 3490, ग्राम पंचायत के
सरपंच के 22804 सीटों में से 11800 एवं ग्राम
पंचायत के 360770 सीटों में से 182386 सीटें महिलाओं
के लिए आरक्षित थे। लगभग सभी जिलों में महिलाओं ने सामान्य सीटों से भी अपनी
दावेदारी प्रस्तुत की और तकरीबन सभी जिलों में 5 से 10 महिलाओं ने अनारक्षित सीटों पर जीत दर्ज की है।
मीडि़या लोकतंत्र
का चोथा स्तंभ है और इस बार के चुनावों में महिला उम्मीदवारों और उनसे संबंधित
खबरें मीडि़या में लगातार छायी रही। इन खबरों को समाचार पत्रों, चैनलों, पत्रिकाओं में
बहुत स्थान दिया गया। जहा एक तरफ मीडि़या ने महिला उम्मीदवारों से संबंधित
सकारात्मक खबरें दिखायी और छापी वही दूसरी ओर उम्मीदवारी से रोकना के लिए इन महिला
उम्मीदवारों के प्रति हो रही हिंसा, मारपीट जैसी नकारात्मक खबरों को भी लगातार दिखाया और छापा गया।
त्रिस्तरीय
पंचायत के पहले चरण में चुनाव के दौरान कुछ चुनिंदा समाचार पत्रों का मीडि़या
स्कैन कर यह देखा गया कि महिलाओं और उनके भागीदारी से संबंधित किस तरह की खबरें
समाचार पत्रों में प्रकाषित होती हैं। यह मीडि़या स्कैन दिसंबर 2014 के अंतिम सप्ताह
से लेकर तीसरे चरण का चुनाव होने तक किया गया। जिन समाचार पत्रों का मीडि़या स्कैन
किया गया उनमें भोपाल से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र नवदुनिया, स्टार समाचार, पत्रिका, राज एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, जन जन जागरण, पीपुल समाचार, दबंग दुनिया
हिंदुस्तान टाइम्स शामिल थे।
इन सभी समाचार
पत्रों में प्रकाषित खबरों को अगर वर्गीकृत किया जाये तो इन्हे प्रमुखता से चार
भागों में बांटा जा सकता हैं, सकारात्मक खबरें, नकारात्मक खबरें, हिंसात्मक खबरें और प्रशासनिक प्रमुख थी। पूरे चुनाव के
दौरान अखबारों द्वारा सबसे ज्यादा हिंसा से संबंधित खबरें और सबसे कम सकारात्मक
खबरों को प्रकाशित किया गया है। इस दौरान इन पेपरों में चुनाव को लेकर मुख्य रुप
से कुल 89 खबरें प्रकाशित
हुई जिसमें से केवल 7 खबरें सकारात्मक
खबरें थी जबकि 12 प्रशासनिक खबरें, 34 नकारात्मक खबरे
और 37 हिंसात्मक खबरों
का प्रकाशन हुआ।
क्र
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खबरें
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संख्या
|
1
|
सकारात्मक खबरें
|
6
|
2
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नकारात्मक खबरें
|
34
|
3
|
हिंसात्मक खबरें
|
37
|
4
|
प्रशासनिक खबरें
|
12
|
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कुल
|
89
|
सकारात्मक खबरों
में सबसे ज्यादा खबरें महिला जनप्रतिनिधियों द्वारा गाव और सामाजिक स्तर पर किये
गये अच्छे कामों, उनकी भागीदारी और
सशक्तिकरण को लेकर थीं कि कैसे इन महिला जनप्रतिनिधियों ने अपने अपने क्षेत्रों
में गाॅव के विकास के लिए नये नये तरीकों से काम किया है। साथ ही साथ महिला
जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने क्षेत्रों में किये गये सामाजिक परिवर्तन से संबधित
कार्यो को प्रकाशित किया गया। जैसे दैनिक भास्कर में धार जिले के सगवाल की सरपंच
जानी बाई भुरिया के सरपंच के रुप में किये गये कामों का उल्लेख है। 2010 में जब वह गाॅव
की सरपंच बनीं तो उन्होनें ना केवल अपने पति की बीड़ी छुड़वाई पूरे गाव में भी नशे
पर पाबंदी लगा दी। पहले घर घर जा कर लोगों को समझाया फिर गुटका पाउच भी जब्त किया, सार्वजनिक जगह पर
धूम्रपान करते पकड़े गये पर 200 रु का जुर्माना भी कर दिया और पूरे गाव को नशा मुक्त कर
दिया। इसी प्रकार स्टार समाचार ने ‘‘महिलाऐं निभा रही हैं पारिवारिक जिम्मेदारी के साथ सामाजिक
दायित्व ’’, उपशीर्षक था “गुलाबी
गैंग की तरह काम कर रही हैं सरपंच’’। इस स्टोरी में पूरे प्रदेश में महिला जनप्रतिनिधियों
द्वारा किये जा रहे उल्लेखनीय कार्यो को सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया
जिसमें सरपंच बनने के बाद महिलाओं में से किसी ने छुआछुत कम करने का पहल किया, तो किसी ने बंद
पड़े हैंडपम्प को ठीक करवाया, कोई कुपोषण की समस्या को गाव से खत्म करने में प्रयासरत्
रही, एक सरपंच ने तो
महिला हिंसा के खिलाफ ऐसी आवाज बुलंद की कि गाव की महिलाओं को सम्मानजनक स्थान
दिला दिया। इनमें से कई महिलाओं ने तो कभी पाठषाला का मुह तक नही देखा। लेकिन
उन्होनें वर्तमान में जनप्रतिनिधि के तौर पर गाॅव और तहसील में अपनी पहचान बना ली
है।
मीडि़या में
चुनाव के दौरान नकारात्मक खबरों का प्रकाशन ज्यादा हुआ। ये नकारात्मक खबरें दो तरह
से थी, पहली ऐसी खबरें
जो महिलाओं और उनकी भागीदारी को लेकर नकारात्मक थी वही दूसरी ऐसी खबरें थी जिनमें
स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी को नकारात्मक तरीके से खबर के रुप में पेश
किया गया था। जिसमें मुख्य रुप से निर्विरोध चुनाव, पदों की बोली लगाया जाना, सरपंच पति का चलन
जैसी खबरें शामिल हैं। जैसे दैनिक नईदुनिया में प्रकाशित खबर के अनुसार शुजालपुर
जनपद पंचायत की हन्नूखेड़ी ग्राम पंचायत में
चुनाव में पत्नी सरपंच चुनी गई लेकिन शपथ उसके पति ने ली। सरपंच पति उज्जैन
स्थित आरटीओ कार्यालय में आरक्षक के पद पर पदस्थ है। इस ग्राम पंचायत में सरपंच पद
महिला के लिए आरक्षित होने के चलते गांव की ही महिला लक्ष्मीबाई पति नरेंद्रकुमार 300 से अधिक मत लेकर
विजयी हुई थी लेकिन शपथ समारोह में महिला सरपंच लक्ष्मीबाई के स्थान पर उनके पति
ने शपथ ले ली। इस संबंध में सरपंच लक्ष्मीबाई के ससुर व अन्य परिजनों का कहना है
कि ‘गांववालों के
सामने महिलाएं नहीं आती है। पड़ोसी गांव पगरावदकलां में भी हमारे ही रिश्तेदार की
महिला सरपंच चुनी गई है लेकिन शपथ पुरुषों ने ही ली है और बैंक में चेकबुक पर साइन
भी महिला के बजाए उनके पति ही करते हैं।
पीपुल समाचार में
एक स्टोरी प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था ‘‘पतियों के भरोसे सरपंच बन गई, अब हो रही फजीहत’’। स्टोरी में राज्य सरकार के उस आदेश को
उल्लेखित किया गया है जिसमें यह कहा गया है कि अब महिला जनप्रतिनिधियों के पति
बैठको में हिस्सा नही ले सकते हैं। लेकिन इसी खबर को कुछ इन शब्दों में लिखा गया
है। ‘‘पतियों के भरोसे
सरपंच बन गई महिलाओं की परेशानी को बढ़ा दिया है, अब वे घर के काम धंधे को छोड़ कर बैठकों में
हिस्सा लेने को मजबूर हैं,क्योंकि सरकार ने
अब इसके लिए खुद सरपंचों को ही उपस्थित रहने का आदेष दिया है। इस आदेश से उनकी परेशानी
बढ़ने लगी है।’’ इस स्टोरी में एक
कार्टून भी है जिसमें एक सरपंच महिला अपने पति से कह रही है ‘‘आपके भरोसे मैं
तो सरपंच बन गई पर आप मेरे भरोसे मत रहना...खाना खुद बना लेना....मैं तो चली बैठक
में।’’
इसी तरह से
नवदुनिया में प्रकाशित खबर के अनुसार मुरैना जिले के नावली गांव में सरपंची का
चुनाव हारने वाले लोगों ने वोट ना देने का आरोप लगा कर सरकारी ट्रासंफारर्मर से
गांव के 25 से 30 घरों की बिजली
बंद कर दी। लाइट ना होने से पानी के लिए परेशान लोग जब दूसरे घरों से पानी लाने
लगे तो दंबंगों ने एक ओर फैसला सुना दिया कि जो लोग इनको अपने बोर से पानी देगें
उनका भी कनेक्षन काट दिया जायेगा। जिन लोगों की बिजली काटी गई थी वह कुशवाह समाज
के थे।
इसके अलावा
समाचार पत्रों में हिंसा की खबरें लगातार आती रही। महिला और कमजोर वर्ग के प्रत्याशीयों
का उत्पीड़न, प्रत्याशीयों के
साथ मारपीट, हत्याऐं, बुथ कैपचरिंग, चुनाव परिणाम आने के बाद रंजिश, वोट नही देने पर
हिंसा,जीत के बाद जश्न के
दौरान खूनी संघर्ष जैसी खबरे शामिल थी। सबसे ज्यादा हिंसा की खबरें ग्वालियर, भिंड, मुरैना, सतना, रीवा जिलों की
प्रकाशित हुई। जैसे राज एक्सप्रेस में प्रकाशित समाचार के अनुसार शिवपुरी जिले के
निचरौली ग्राम पंचायत में सरपंच पद की प्रत्याशी अर्चना के परिजनों ने दूसरे सरपंच
पद के प्रत्याशी के पति की गोली मार कर हत्या कर दी। मृतक ब्रजेष यादव की पत्नि
कालीपहाड़ी से सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ रही थी। या इसी पेपर में प्रकाशित खबर कि
छतरपूर जिले के ग्राम बगौता में दबंगों ने एक दलित महिला सरपंच के साथ छेड़छाड़ की
और उसके पति के साथ मारपीट की।
दैनिक भास्कर में
प्रकाशित समाचार के अनुसार जिला शिवपुरी के ग्राम पंचायत कुंअरपुर की दलित वर्ग की
एक नवनिर्वाचित महिला उप सरपंच को कुछ दबंगों ने जबरन गोबर खिलाया और उसके पति और
ससुर के साथ मारपीट भी की। दबगों ने महिला और उसके परिवार को गांव छोड़कर जाने की
धमकी भी दी।
स्टार समाचार में
छपी खबर के अनुसार देवास जिले के ढाबला जागीर ग्राम पंचायत के नवनिर्वाचित दलित सरपंच
ने दबंगों के डर से गाॅव छोड़ दिया और पत्नि और 2 बच्चों के साथ दूसरे गाॅव में शरण लेने को
मजबूर हुआ।
चुनावों के दौरान
इन समाचार पत्रों में सरकार द्वारा जारी की गई जानकारिया जैसे चुनाव की प्रक्रिया, आदेष, मतगणना से
संबंधित खबरें प्रकाशित हुई हैं।
परन्तु इस
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौरान बहुत सारी खबरें ऐसी थी जो समाचार पत्रों में
जगह नही पा सकीं। जैसे पूरे 1992 के 73वें संविधान संषोधन के बाद स्थानीय स्वशासन में महिलाओं का
नेतृत्व सामने आया, अब इसके प्रभाव
और सामाजिक बदलाव को साफतौर पर देख सकते हैं। उन्होंने सदियों से चले आ रहे भ्रम
को भी तोड़ा है कि महिलायें पुरुषों के मुकाबले कमतर होती हैं और वे पुरुषों
द्वारा किये जाने वाले कामों को नहीं कर सकती हैं। अपनी दावेदारी को आत्मविश्वास के
साथ प्रस्तुत कर रही हैं। इसी तरह से पहले ज्यादातर चुनाव प्रचार के दौरान वे अपने
पति या परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों की पहचान के साथ चुनाव लड़ती थीं और पोस्टर,पम्पलेट में
मुख्य रुप से पुरुषों का चेहरा होता था लेकिन इस बार के पंचायत चुनाव में ऐसे
सैकड़ों उदाहरण मिल जायेगें जहा महिलाओं ने अपने चेहरे, पहचान, पूर्व में किये
गये कार्यो के आधार पर चुनाव लड़ी हैं और उनके प्रचार सामग्री में पति या अन्य
पुरुष सदस्य का चेहरा नहीं था। महिलाओं ने लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दों को अपना
चुनावी एजेंडा बनाने का प्रयास किया और उनके ऐजेंडे पर समावेषी विकास, सामाजिक बदलाव और
कमजोर वर्ग के मुद्दे प्रमुखता से रहे। महिलाओं ने अपने भागीदारी और इरादों से
पंचायतों में न सिर्फ विकास के काम किये हैं साथ ही साथ उन्होंने विकास की इस
प्रक्रिया में महिलाओं व गरीब-वंचित समुदायों को जोड़ने का काम को भी अंजाम दिया
है। पंचायतों में उनकी भागेदारी से न केवल उनका निजी, सामाजिक और
राजनीतिक सशक्तिकरण हुआ है,
बल्कि स्वशासन और
राजनीति में भी गुणवत्तापरक एवं परिमाणात्मक सुधार आ रहे हैं।
दुर्भाग्य से ये दास्तानें
मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव के दौरान मीडि़या की सुर्खियाॅ नही बन सकी। ज्यादातर वही
खबरें स्थान पा सकी जिनका झुकाव नकारात्मकता की ओर था। लेकिन मीडि़या को नकारात्मक
खबरों से बचना चाहिए और उसकी कोशिश यह होनी चाहिए कि वो महिला उम्मीदवारों, महिला
जनप्रतिनिधियों के बारे में, उनके काम के बारे में सकारात्मक खबरों को प्रकाशित करे
जिससे इसको पढ़ कर अन्य महिलाओं को राजनीति में आने की प्रेरणा मिले।
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