भारतीय दलितों की कहानी है ‘जय भीम, कामरेड’
प्रख्यात फिल्मकार आनंद पटवर्धन की भारतीय दलितों पर आधारित फिल्म 'जय भीम, कॉमरेड' चौंकाने वाला आंकड़ा पेश करती है. फिल्म के मुताबिक रोजाना दो दलितों के साथ दुष्कर्म की घटना होती है तो तीन की हत्या होती है.इस ‘जय भीम कॉमरेड’ वृत्तचित्र फिल्म को 1997-2010 के दौरान बनाया गया है जो विलास घोघरे के सार-गर्भित संगीत के साथ-साथ समाज में गहरी व्याप्त असामनताओं से जुड़े अनेक संगीन मुद्दे उठाता है। इस फिल्म की शुरुआत 11 जुलाई, 1997 के उस दिन से होती है, जब अम्बेडकर की प्रतिमा को अपवित्र किए जाने की घटना के विरोध में 10 दलित इकट्ठे होते हैं और मुम्बई पुलिस उन्हें मार गिराती है.
इस हत्याकांड के छह दिन बाद अपने समुदाय के लोगों के दर्द व दुख से आहत दलित गायक, कवि व कार्यकर्ता विलास घोगरे आत्महत्या कर लेते हैं. इसके बाद फिल्म दलितों की अपनी भावप्रवण कविताओं व संगीत के जरिए अनूठे लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने की शैली की विरासत को उजागर करती है. फिल्म, घोगरे व अन्य गायकों और कवियों की कहानी पेश करती है. फिल्म में एक दलित नेता कहता है कि हमारे पास हर घर में एक गायक, एक कवि है. यहां देश के सबसे निचले तबके के शोषितों व अफ्रीकी मूल के अमेरिकीयों के बीच समानता प्रतीत होती है. दोनों की संगीत व काव्य की मजबूत परम्परा रही है, जो उन्हें राहत व मजबूती देती है. साथ ही उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करती है. यही वजह है कि महाराष्ट्र सरकार ने एक मजबूत दलित संगीत समूह (फिल्म में इसे प्रमुखता से दिखाया गया है) कबीर कला मंच (केकेएण) को नक्सली समूह बताकर उसे प्रतिबंधित कर दिया है.
'जय भीम.' उस विडंबना को भी दिखाती है कि कैसे एक दलित नेता डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संविधान लिखा और फिर भी उनका ही समुदाय लगातार पीछे है. फिल्म का मकसद सच्चाई उजागर करना है. पटवर्धन ने कहा कि फिल्म की दृष्टि आलोचनात्मक है. इसमें दलित आंदोलन की भी आलोचनात्मक समीक्षा है लेकिन इसमें इस समुदाय के उन युवाओं की आलोचना नहीं है जिन पर भूमिगत होने के लिए दबाव बनाया जाता है. कुछ फिल्म समारोहों में प्रदर्शन के बाद सोमवार को मुम्बई के बायकुला में बीआईटी चॉल में 800 से ज्यादा लोगों के सामने इसका प्रदर्शन हुआ. सभी ने मंत्रमुग्ध होकर 200 मिनट अवधि की इस फिल्म को बिना ब्रेक के देखा. पटवर्धन को इस फिल्म को बनाने में 14 साल लगे.
‘जय भीम कॉमरेड’ वृत्तचित्र को ‘फिल्म साउथ एशिया’ काठमांडू 2011 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के पुरूस्कार से नवाजा गया। .
इस फिल्म के बारे में पटवर्धन का कहना है कि यह फिल्म निजी कारण से उनके दिल के बहुत करीब है. उन्होंने कहा कि इस फिल्म को बनाने का कारण उनका एक दोस्त था जिसने 97 की उस घटना के बाद खुद को फांसी लगा ली थी. पटवर्धन के मुताबिक फिल्म में घटना के बाद की सारी परिस्थितियों के बारे में दिखाया गया है. इस फिल्म में भारतीय समाज में वर्ण के आधार पर बंटे जाति के बारे में उसकी सच्चाई के बारे में दिखाने की कोशिश की गई है. गौरतलब है कि आनंद पटवर्धन एक ख्याति प्राप्त फिल्मकार हैं. खास कर गंभीर सवाल खड़े करने वाली उनकी फिल्में अक्सर विवादों में घिर जाती है. आडवाणी की रथयात्रा पर उन्होंने राम और नाम नाम की डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी जो तमाम विवादों के बाद प्रदर्शित हो पाई. ऐसे ही 2005 में आई उकी 'जंग और अमन' को भी ढेरों विरोध का सामना करना पड़ा था. फिल्म में परमाणु हथियार और युद्ध के खतरों के बीच उग्रवाद और कट्टरपंथी राष्ट्रवाद के बीच संबंध तलाशने की कोशिश की गई थी.
अधिक जानकारी फिल्म के निर्देशक के वेबसाईट http://www.patwardhan.com/ index.shtml पर प्राप्त कर सकते हैं |
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