संघ के वफादार का व्यापम

एल.एस. हरदेनिया


सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 9 जुलाई को दिए गए निर्णय से भारतीय जनता पार्टी, मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की प्रतिष्ठा पूरी तरह से धूल धूसरित हो गई है। व्यापम और उससे जुड़े तमाम मामलों में सबसे ज्यादा हानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिष्ठा की हुई है। शिवराज सिंह चैहान स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वफादार सिपहसालार रहे हैं। वे विद्यार्थी जीवन से ही संघ से जुड़े हैं। एक स्कूल के छात्र रहते हुए आपातकाल में उन्हें जेल की सजा भुगतनी पड़ी। इतनी उत्कृष्ट वफादारी के बावजूद आज उनकी बदनामी देश के सर्वाधिक भ्रष्ट मुख्यमंत्री के रूप में हो चुकी है। जिस मुख्यमंत्री के रहते हुए व्यापम जैसा देश का सबसे बड़ा घोटाला हुआ। देश का यह सबसे बड़ा घोटाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तथाकथित आदर्शों और सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। आरएसएस भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है। यदि मध्यप्रदेश सरकार हिंदू राष्ट्र का एक उदाहरण है तो क्या जब वास्तव में हिंदू राष्ट्र बनेगा तो उसमें क्या इसी तरह के घोटाले होंगे?

चैहान की संघ के प्रति कितनी वफादारी है यह इससे ही पता लगता है कि उन्होंने 2006 में प्रदेश के शासकीय कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में भाग लेने की इजाजत दे दी थी।
संघ की प्रतिष्ठा को इसलिए भी चोंट लगी है क्यूँकि यह बात भी सामने आई है कि व्यापम के घोटाले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सर्वोच्च नेतृत्व भी शामिल है। यह बात किसी ओर ने नहीं बल्कि स्वयं संघ के एक स्वयंसेवक ने स्वीकार की है। इस स्वयंसेवक का नाम है मिहिर कुमार। कुमार वर्षों तक तत्कालीन संघ प्रमुख सुदर्शन के सेवादार रहे। कुमार ने बताया कि सुदर्शन की सिफारिश से मेरी फूड इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति हो गई थी। कुमार ने यह भी बताया कि मेरी नियुक्ति की सिफारिश संघ के एक और प्रमुख पदाधिकारी सुरेश सोनी ने की थी। कुमार ने बताया कि मुझे व्यापमं के पदाधिकारियों की तरफ से यह कहा गया था कि मैं उन्हीं प्रश्नों का उत्तर दे दूं जिनके बारे में मुझे ज्ञान है और बाकी को छोड़ दूं। मेरा चयन हर हालत में हो जाएगा। यदि अंततः यह बात सही साबित होती है तो इसके घेरे में स्वर्गीय सुदर्शन और स्वयं सोनी भी आ जायेंगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने जैसा कि स्पष्ट है यह आदेश दिया है कि व्यापमं से संबंधित सभी मामले जिनमें वे मौतें भी शामिल हैं जिनके ऊपर अभी तक रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है सीबीआई को सौंप दी जाएं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के दो दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान यह कहते रहे कि किसी भी हालत में जांच सीबीआई को नहीं सौंपी जाएगी। उनका दावा था कि वर्तमान जांच एजेंसी सही ढंग से काम कर रही है और उनके हाथ से इस जांच को ले लेने का कोई कारण नजर नहीं आता है।

शिवराज सिंह चैहान का हमेशा यह दावा रहा है कि वे एक अत्यधिक पाकसाफ नेता हैं। पूर्व में भी उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। परंतु लोकायुक्त ने उन्हें दोषमुक्त घोषित किया, विशेषकर डंपर कांड में। परंतु व्यापमं ने उनकी प्रतिष्ठा पर बहुत गंभीर दाग लगाया है। मुख्यमंत्री यह भी दावा करते रहे हैं कि एक समय था जब मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य समझा जाता था। अब वह बीमारू राज्य नहीं है और पूरे प्रदेश में विकास की गंगा बह रही है। भारतीय जनता पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण नेता लालकृष्ण आडवाणी ने चैहान को बार-बार विकास पुरूष का प्रमाण पत्र दिया है। आडवाणी ने तो यहां तक कहा कि यदि मोदी ने गुजरात का विकास किया है तो वह उतनी महत्वपूर्ण सफलता नहीं है क्योंकि गुजरात तो पहले से ही विकसित राज्य था। परंतु शिवराज सिंह चैहान के मुख्यमंत्रित्वकाल में जो मध्यप्रदेश का विकास हुआ है वह अदभुत है। और इसलिए उन्होंने चैहान की बार-बार प्रशंसा की और अनेक अवसरों पर प्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दिया कि प्रधानमंत्री के पद के लिए शिवराज सिंह चैहान नरेन्द्र मोदी से भी बेहतर उम्मीदवार हैं।

मध्यप्रदेश का व्यापमं घोटाला न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश का सबसे बड़ा घोटाला साबित हो चुका है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में इसकी चर्चा जोरों पर है। भारत के इतिहास में प्रतिपक्ष ने दो महत्वपूर्ण घोटालों को उजागर करने का प्रयास किया है। पहला था बोफोर्स और दूसरा टूजी स्पेक्ट्रम। परंतु इन दोनों घोटालों ने पूरी व्यवस्था को नहीं झकझोरा था। बोफोर्स का संबंध तो सिर्फ सेना से था और टूजी स्पेक्ट्रम का संचार के साधनों से। बाद में बोफोर्स मामले में कुछ भी सामने नहीं आया। जहां तक टूजी का सवाल है, सच पूछा जाए तो इस बारे में जो नीति अपनाई गई थी उसके कारण आज भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां की सबसे बड़ी जनसंख्या मोबाईल का उपयोग करती है और वह भी अत्यधिक सस्ते दामों में। शायद शीघ्र ही ऐसा समय आ जायेगा जब हम दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल का उपयोग करने वाले राष्ट्र हो जायेंगे। परंतु इन दोनों घोटालों ने विश्व के पैमाने पर हमारी इतनी बदनामी नहीं की थी जितनी की व्यापम के कारण हो रही है। व्यापम ने मध्यप्रदेश के पूरे समाज को झकझोर दिया है। इससे शासन के सभी विभाग प्रभावित हुए हैं। बड़े पैमाने पर की गई रिश्वतखोरी के कारण मेडीकल कालेज, डेंटल कालेज, पुलिस, वन विभाग, पशुचिकित्सा विभाग, खाद्यान विभाग ऐसा कोई शासन का विभाग नहीं जिसमें अयोग्य लोगों की रिश्वत लेकर भर्ती नहीं की गई हो। जिन्होंने ऐसा किया उनमें डाक्टर, पुलिस अधिकारी, राजनेता, आईएएस अधिकारी यहां तक कि कुछ न्यायपालिका के सदस्य भी शामिल हैं। 

इस घोटाले को बीबीसी कई दिनों से सतत अपने समाचार बुलेटिनों में शामिल कर रही है। दुनिया के सर्वाधिक बिकने वाले अखबारों में भी इस घपले के बारे में टिप्पणियां की गई हैं। उदाहरणार्थ न्यूयार्क टाईम्समें दिनांक 9 जुलाई के संस्करण में लिखा ‘‘आज कोई नहीं मरा। कम से कम जब हम अखबार छाप रहे थे तब तक। यह उन करोड़ों भारतीयों के लिए अहम है जो व्यापम में भ्रष्टाचार के सिस्टम के खुलासे से मकसद रखते हैं। इस केस में दर्जनों मारे गये हैं। एक्टिविस्ट यह आंकड़ा 150 बता रहा है।’’ अमरीका के दूसरे बड़े बिकने वाले अखबार वाशिंगटन पोस्टने लिखा है ‘‘कोई नहीं जानता कि कब और क्यों व्यापम से जुड़े गवाह और दलाल संदेहास्पद परिस्थितियों में मारे जाने लगे। भारत में वैसे तो घोटाले रूटीन में हैं लेकिन घूसखोरी के इस सबसे बड़े मामले की कहानी डरावनी होती जा रही है। यह खून से सना घोटाला है।’’ एक और अमरीकी अखबार दि टाईम्सने लिखा है ‘‘यह घोटाला 2013 में उजागर हुआ तबसे 2000 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। 40 से ज्यादा की रहस्यमय मौतें हो चुकी हैं। इसे कवर करने वाले पत्रकार भी सुरक्षित नहीं है। छानबीन करने आए एक पत्रकार की संदिग्ध हालत में मौत हो चुकी है।’’ अमरीका के डेली टेलीग्राफके अनुसार ‘‘मध्यप्रदेश में हजारों छात्रों ने घूस देकर नौकरी और मेडिकल की डिग्री हासिल की है। रहस्यमय मौतों से हर कोई हैरान है। यहां प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी सत्ता में है। विपक्ष कह रहा है कि मोदी ओरापियों को बचा रहे हैं।’’ इतनी बड़ी बदनामी भारत के इतिहास में कभी नहीं हुई वह भी ऐसे व्यक्तित्व के प्रधानमंत्रित्वकाल में जिसने चुनाव के दौरान यह वादा किया था कि न तो मैं खाउंगा और ना ही किसी और को खाने दूंगा। परंतु इस समय भारतीय जनता पार्टी के तीन मुख्यमंत्रियों के ऊपर सनसनीखेज आरोप हैं। चैहान के अतिरिक्त वे हैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह और राजस्थान की मुख्यमंत्री बसुंधरा राजे। छत्तसीगढ़ के मुख्यमंत्री के ऊपर 36000 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा है।


व्यापम घोटाले को सबसे ज्यादा जोरदार ढंग से कांग्रेस ने उठाया है। और कांग्रेस में भी मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने। सर्वोच्च न्यायालय में उन्हीं ने सीबीआई की जांच की मांग करते हुए याचिका लगाई थी। देखना यह है कि अब कांग्रेस इस घोटाले से कितना लाभ ले पाती है। इस बीच कांग्रेस ने 16 जुलाई को मध्यप्रदेश बंद का आव्हान किया है। अन्य बातों के अतिरिक्त कांग्रेस की यह भी मांग है कि व्यापम घोटाले की सीबीआई से होने वाली जांच भी सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में हो। इसके अतिरिक्त उनकी दूसरी मांग है मुख्यमंत्री चैहान का त्यागपत्र। यद्यपि मुख्यमंत्री बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि मैंने ही सबसे पहले व्यापमं घोटाले की जांच प्रारंभ की थी। और मैंने सर्वोच्च न्यायालय में सीबीआई को सौंपे जाने की मांग की थी। परंतु ये दोनों दावे बेबुनियाद हैं। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के दो दिन पूर्व ही चैहान ने जोरदार शब्दों से यह कहा था कि वर्तमान में जांच ठीक से चल रही है और सीबीआई जांच की कोई आवश्यकता नहीं है।

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