बाल कहानी – जीतू और पेड़ बाबा
उपासना बेहार
एक गाँव में एक
लड़का जीतू रहता था। एक बार उसके माता और पिता एक शादी समारोह में शामिल होने के
लिए दूसरे गाँव जा रहे थे,
उन्होनें जीतू से
भी शादी में चलने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया. आज जीतू का मन
मां और पिताजी को छोड़ते समय बहुत उदास हो गया था। ऐसा नही है कि वह पहली बार
अकेले रह रहा है। उसे अपना घर छोड़ कर कही जाना अच्छा नही लगता है। उदासी को झटकते
हुए उसने सोचा ‘अब तो वही इस घर
का राजा है। जब मन करेगा तब खायेगा, जब मन करेगा खेलने जायेगा।’
जीतू शाम को अपने
दोस्तों के साथ खेलने चला गया। कुछ देर में ही एक लड़का दौड़ते हुए आया ‘जीतू भईया जल्दी
चलिये आपके घर में कुछ लोग आये हैं वो आपको बुला रहे हैं।’ वह उस लड़के के
साथ हो लिया।
उसने देखा कि
उसके घर में बहुत भीड़ जमा हैं और गाँव के महिला और पुरुष घर के पास जमा हैं। उसे
समझ नही आया कि इतने सारे लोग यहा क्या कर रहे हैं। वह जैसे ही घर पहुचा पड़ोस के
चाचा ने उसे गले से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगे ‘ जीतू बेटा तेरे
मां और पिता जी अब इस दुनिया में नही रहे। वे जिस बस से जा रहे थे उसका एक्सीडेंट
हो गया और उसमें सवार सभी यात्रीयों की मौत हो गई है।’ जीतू यह सुन कर
सदमें में आ गया। उसे समझ नही आया कि वह क्या करे। परिवार के नाम पर वह और उसकी
बुढ़ी बीमार दादी ही थी, दिनभर रोता रहा और मां, पिता के पास जाने की जिदद् करता रहा। पड़ोस के
चाचा चाची उसे अपने घर ले गये। इस घटना के बाद से वह उदास रहने लगा। किसी से बात
नही करता था। स्कूल जाने और पढ़ाई करने में भी मन नही लगता था।
एक दिन उसे अपने
माता और पिता की बहुत याद आ रही थी लेकिन यह दुख किससे कहें, दादी से बोलने पर
वो तो ओर दुखी हो जायेगीं। उसे अपने एक खास दोस्त की याद आयी। वह तुरंत खेत की ओर
चल पड़ा. वहाँ लगे आम के पेड़ के तने से लिपट कर खूब रोया। यह पेड़ ही उसका खास दोस्त
था। जब भी वह अपने पिता के साथ खेत आता था तो इसी के छाया में बैठ कर सभी लोग खाना
खाते थे। फिर पिताजी तो खेत के काम में लग जाते थे लेकिन जीतू खटिया बिछा कर यहा सो
जाता था। धीरे धीरे उसकी दोस्त आम के पेड़ से हो गई। जब भी जीतू अपने पिता के साथ
उसके छाया में आता था, पेड़ बाबा जानबूझ
कर कुछ आम उसके खाने के लिए गिरा देते थे। जिसे वह बड़े चाव से खाता और फिर प्यार
से उसके तने से लिपट जाता था।
आज जीतू को रोता
देख आम का पेड़ भी बहुत उदास हो गया। उसे जीतू के साथ घटी घटना के बारे में
मजदूरों के आपसी बातचीत से पता चल चुका था। वह कितना हताश और दुखी है। पेड़ बाबा
को लगा कि जीतू को सहारे की बहुत जरुरत है। उससे बात करना जरुरी है। ‘जीतू बेटा’.
‘कौन’ उसने आसपास देखा लेकिन दूर तक कोई दिखायी नही दिया।
वह घबरा गया ‘कौन हो तुम सामने
क्यों नही आते’.
‘जीतू बेटा मैं तुम्हारा दोस्त पेड़ बाबा हू।’
‘क्या आप सच में
पेड़ बाबा है’,
‘हा, बेटा आज से
पहले कभी तुमसे बात करने की जरुरत ही महसूस नही हुई लेकिन आज तुम्हे उदास देख कर
लगा कि मुझे तुमसे बात करनी चाहिए।’
जीतू दौड कर फिर
से पेड़ बाबा से लिपट गया,
पेड बाबा की
टहनियों और शाखाओं ने उसे प्यार से अपनी बाहों में ले लिया। ‘पेड़ बाबा मैं
बहुत अकेला हो गया हू। बाबा आपको पता नही है मेरे साथ क्या अनहोनी घट गई है।’ ‘मुझे सब पता है
बेटा परन्तु तुम अकेले नही हो, मैं तुम्हारे साथ हू और हमेशा साथ रहूगा। तुम्हें जब भी मन करे मेरे पास आ
जाया करना, हम दोनो मिल कर खूब
सारी बातें करेगें।’
‘बाबा कुछ भी करने
का मन नही करता है। स्कूल जाने का मन भी नही होता है।’
‘बेटा याद है एक
दिन जब तुम अपने पिता के साथ यही मेरी छाया में बैठे थे तब उन्होनें कहा था कि वो
तो ज्यादा पढ़ नही पाये लेकिन उनका सपना है कि तुम खुब पढ़ो और नाम कमाओ। जीतू शिक्षा
ही जीवन का सार है, इस कठिन समय में अपने को संभालो और अपने पिता के सपने को पूरा
करो और खूब मन लगा कर पढ़ो।’
‘पेड़ बाबा आपसे
बात कर मन बहुत हल्का हो गया। बाबा मैं अब रोज आपसे बात करने आऊॅगा।’
‘बिलकुल आना लेकिन
मेरी दो शर्त है।’ ‘क्या बाबा?’
‘पहली शर्त है कि
तुम बहुत मन लगा कर पढ़ोगे’.
‘बाबा मैं आपसे वादा करता हू कि रोज स्कूल
जाऊॅगा और खूब मन लगा कर पढ़ुगा और पिता जी के सपने को पूरा करुगा।’
‘दूसरी शर्त है,
मैं तुम्हें रोज ढेर सारे फल दूगा जिसमें से आधे तुम बाजार में बेच देना लेकिन आधे
फल के बीज को इन्ही खेतों में लगा देना।’
‘जी बाबा ऐसा ही होगा लेकिन ऐसा क्यों करना होगा?’. ‘इसका कारण तुम्हे
कुछ सालों बात बताऊॅगा’.
उस दिन के बाद से
जीतू रोज पेड़ बाबा के पास आने लगा और दोनो मिल कर खूब बाते करतें। जीतू उन्हें
स्कूल और पढ़ाई के बारे में बताता। कभी कोई समस्या आती तो सलाह मांगता। बात खत्म
होने के बाद पेड़ बाबा अपनी टहनियों को हिलाते और खूब सारा फल गिरा देते। जीतू
उन्हें घर ले आता और शर्त के मुताबिक आधे फलों को बेचता और आधे फलों को खेतों में
बो देता।
इस तरह जीतू और
पेड़ बाब के बीच संवाद कई सालों तक चलता रहा। अब पेड़ बाबा बुढे हो चले थे। उन पर
फल लगने बंद हो गये। जीतू भी अब बच्चे से नौजवान बन गया था। उस दिन जब वह पेड़
बाबा के पास आया ‘बेटा अब तुम बड़े
हो गये हो और मैं बुढ़ा हो चला हू। अब तुम्हे मेरी आवश्यकता नही है। मुझ पर फल भी
नही लगते। आज मेरा फर्ज पूरा हुआ। अब तुम्हे यहा आने की जरुरत नही है। मैं तुम्हे
अब कुछ नही दे पाऊॅगा।’ पेड बाबा ने बड़े
उदास लहजे में बोला। आज स्थिति बिलकुल उल्टी हो गई थी। अब वह अकेला और बुढ़ा हो
गया है।
‘मैं भी यही कहने
आया था बाबा’.
यह सुन कर पेड़
बाबा दुखी हो गये, मन ही मन सोचा ‘देखो यह भी कितना
स्वार्थी है। जबतक मैं फल देता रहा तबतक मेरे पास आता रहा और आज कह रहा है कि नही
आयेगा। अब जबकि मैं बुढा हो गया हू और मुझे इसकी जरुरत है तो यह मेरा साथ छेाड़
रहा है। वाकई मनुष्य बहुत स्वार्थी होता है।’ यह सोच कर उसके आँख से आंसू आ गये।’
‘बाबा मैं आपसे यह
कहने आया था कि भले आप मुझे फल नही दे पायेगें,लेकिन मैं फिर भी आपसे बात करने आया करुगा। मुझे आज समझ में
आ गया कि आपने क्यों आम के आधे फल के बीज इस खेत में वापस लगाने की शर्त रखी थी।
बाबा देखो आज हमारा खेत आम के पेड़ो से भरा है। आपकी बुद्मता से मैं आम का सबसे बड़ा
व्यापारी हो गया हू। अभी तब आपने अपना फर्ज पूरा किया है। अब मेरी बारी है। मुझे अपना फर्ज पूरा करना है। अब तक आप मेरी देखभाल करते थे
लेकिन आज से मैं आपकी देखभाल
करुगा और आपकी बातों, अनुभवों को सुनने
आया करुगा। बाबा हमारा साथ कभी नही छुटेगा। आप मेरे लिए और मैं आपके लिए हमेशा
रहेगें।’ यह सुन पेड़ बाबा खुश हो गये और प्यार से अपनी
कुछ बची हुई टहनियों और शाखाओं ने जीतू को गले लगा लिया।
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