ब्रिटेन में अनूठी संभावना
के. विक्रम राव
Jeremy Corbyn - Caricature by DonkeyHotey |
सोचिए, अगर आगामी संसदीय चुनाव में ब्रिटेन का प्रधानमंत्री एक गांधीभक्त
सत्याग्रही, उपनिवेशवाद-विरोधी, शाकाहारी
और तंबाकू तथा शराब से सख्त परहेजी कोई श्रमजीवी व्यक्ति बन जाए तो? आज यही खौफ सता रहा है सत्तासीन कंजरवेटिव-लिबरल गठबंधन को। लेबर
पार्टी के राष्ट्रीय नेता का संगठनात्मक चुनाव बारह सितंबर को होगा। नेता-पद रिक्त
हुआ था जब एड मिलबैंड ने पिछले संसदीय निर्वाचन में पार्टी की शर्मनाक पराजय के
बाद त्यागपत्र दिया था। मिलबैंड राहुल गांधी के सखा हैं। क्या संयोग है कि दोनों
अपने संसदीय चुनाव बुरी तरह हारे। यों इस्तीफा तो राहुल गांधी ने भी दिया मगर
स्वीकार नहीं किया गया था। ताजा जनमत सर्वेक्षण के मुताबिक साठ प्रतिशत से ऊपर
लेबर सदस्य आक्रामक वामपंथी जेरेमी कार्बिन के पक्षधर हैं। कार्बिन पूर्व
प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की ‘न्यू लेबर’ नीतियों को चुनावी पराजय का प्रमुख कारण मानते हैं। पार्टी नेताओं को
वे मिलावटी समाजवाद के बनावटी प्रचारक कहते हैं। वर्ग संघर्ष तज कर वे सब समरसवादी
हो गए। जवाब में टोनी ब्लेयर ने कहा कि इस उग्र वामपंथी का जुनून लेबर पार्टी को
दफन कर देगा। जब कुछ समीक्षकों ने टिप्पणी की कि लेबर पार्टी के आम सदस्यों का
हुजूम कार्बिन को वोट देगा क्योंकि वे अपनी इंकलाबी सोच के कारण उन सबके दिल में
बस गए हैं, तो टोनी ब्लेयर का सुझाव था, ‘तो वे सब अपना हृदय प्रत्यारोपित करा लें।’ लेबर
पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कार्बिन की सुनामी से घबराया हुआ है, क्योंकि आम सदस्य कार्बिन में देखता है कि ‘वे
मामूली आदमी की भांति जमीनी बातें बोलते हैं।’ भारतीय
दृष्टि से देखें तो कार्बिन मूर्तिभंजक लोहिया की याद दिलाते हैं। छह दशक हुए,
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने अपने ही महासचिव को निष्कासित कर दिया
था क्योंकि लोहिया ने कोचीन में अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री पट्टम थानु पिल्लई
से त्यागपत्र मांगा था। तब निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर समाजवादी सरकार की पुलिस ने
गोली चलाई थी। कार्बिन का नजरिया स्पष्ट है: ‘श्रमजीवी
हमारी पार्टी की जड़ हैं, शाखा भी।’ सात बार लगातार निर्वाचित हुआ यह सांसद अपने सोशलिस्ट साथियों की धूमिल
हो रही जनवादी छवि का मार्जन कर रहा है। पार्टी की नीतियों से समीकरणवादिता खत्म
कर बांकपन लाना चाहता है। मध्यममार्गी विचारों से उनका विरोध है। वे अपने स्वर्गीय
जुझारू अगुआ एन्यूरिन बेविन की उक्ति दुहराते हैं कि ‘जो
बीच रास्ते चलता है, वह दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है।’
आखिर कार्बिन किस मिट््टी के बने हैं? कुछ
पहलू उनके निजी जीवन से। फैशन के लिए मशहूर लंदन में वे सूट पहनते हैं जिस पर
सलवटें दिखती हैं। टाई हमेशा नहीं बांधते। सारे सांसदों में उनके शासकीय खर्च और
भत्ते का बिल सबसे कम है। उनके पास मोटरकार नहीं है। बस या साइकिल से चलते हैं।
उन्होंने रेस्तरां शृंखला मैकडोनल्ड पर मुकदमा ठोका था, क्योंकि
जीव-दया के दर्शन की वह अवमानना करता है। इसीलिए ब्रिटेन द्वारा एशियाई देशों को
कुत्ते के डिब्बाबंद गोश्त के निर्यात के विरुद्ध उन्होंने आंदोलन चलाया था। ‘महात्मा गांधी के प्राणी मात्र से प्यार ने मेरे मर्म को छुआ है’,
वे बोले। वे पशु-अधिकारों की रक्षा के हरावल दस्ते में हैं।
उन्हें गांधी अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार से 2013 में
नवाजा गया था। अहिंसा में उनकी दृढ़ आस्था है। दलितों को कार्बिन दुनिया का
सर्वाधिक पीड़ित समुदाय मानते हैं। आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि गांधी के भारत में
आज भी दलितों का शोषण जारी है। अंतरराष्ट्रीय दलित एकजुटता समिति के वे अध्यक्ष
हैं। पिछले साल नौ जनवरी को सामाजिक न्याय पर उनका उद्बोधन यादगार था। गांधी की
सत्याग्रह तकनीक का उन्होंने भरपूर प्रयोग किया। लंदन स्थित दक्षिण अफ्रीका के
उच्चायोग के सामने 1984 में कार्बिन ने रंगभेद नीति के
विरुद्ध विशाल प्रदर्शन किया था। कैद भी हुए थे। सादगी उन पर इस कदर हावी है कि
उन्होंने अपनी पत्नी क्लाडिया को तलाक दे दिया क्योंकि उसने बेटे का महंगे स्कूल
में दाखिला कराया था। कार्बिन की जिद थी कि बेटा साधारण म्युनिसिपल स्कूल में पढ़े।
कार्बिन के राजनीतिक विचार क्रांतिकारी हैं। इसीलिए पार्टी में उनके विरोधी उन्हें
अतिवादी करार देते हैं।
कार्बिन चाहते हैं कि ब्रिटेन को राजवंश से मुक्ति
मिले, गणतंत्रात्मक शासन हो और भारत
की भांति राष्ट्रपति का पद सृजित किया जाए। इसीलिए जब महारानी के निधन पर सारे
सांसदों ने शोक में काला कोट पहना था, कार्बिन हर्ष का
सूचक लाल कोट पहन कर संसद में आए थे। कार्बिन कहते हैं कि हाउस आॅफ लार्ड्स (उच्च
सदन) को, जहां केवल वंशानुगत और मनोनीत सांसद होते है,
अजायबघर पहुंचा दिया जाए। कार्बिन की वैश्विक नीति के समक्ष अच्छे-खासे
प्रगतिवादी राष्ट्रनायक फीके दिखेंगे। वे एक साम्राज्यवादी अतीत वाले राष्ट्र के
नागरिक हैं जिसके राज में सूरज कभी डूबता नहीं था। मगर कार्बिन का सिद्धांत है कि
एक देश के लोगों का दूसरे देश पर राज करना गुनाह है, पाप
है। इसीलिए अर्जेंटीना ने जब अपने भू-भाग फाकलैंड द्वीप को सदियों से चले आ रहे
ब्रिटिश आधिपत्य से मुक्त करा लिया था तो कार्बिन ने उसका स्वागत किया था। पड़ोसी
आयरलैंड के उत्तरी भू-भाग पर से अपने देश का कब्जा हटा कर वे आयरलैंड को अविभाजित
स्वाधीन गणतंत्र बनाने के पक्षधर हैं। ब्रिटेन के घोर शत्रु और आइरिश सशस्त्र
विद्रोहियों (ब्रिटेन की दृष्टि में आतंकवादी) के नेता गैरी एडम्स को कार्बिन ने
लंदन के संसद परिसर (1984) में दावत दी थी। फिलस्तीन के
शरणार्थियों के वे सशक्त पैरोकार हैं।
जब लेबर प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इराक पर
अमेरिकी हमले का साथ दिया तो कार्बिन ने संसद में और सड़क पर अपनी पार्टी की सरकार
का पुरजोर विरोध किया था। लंदन में दस लाख लोगों के जुलूस का उन्होंने नेतृत्व
किया था। सरकार की मुखालफत में उन्होंने सदन में वोट दिया था, पार्टी-विप को तोड़ा था। कुल
पांच सौ बार पार्टी के निर्देश को मानने से उन्होंने इनकार किया है, निडरता से। वे युद्ध-विरोध, परमाणु
निरस्त्रीकरण, एमनेस्टी इंटरनेशनल के पक्ष में और
एशिया-अफ्रीका में औपनिवेशिक दासता के खिलाफ काफी सक्रिय रहे हैं। आज समूचे
ब्रिटेन में एक ही चर्चा है कि पैंसठ-वर्षीय जेरेमी कार्बिन कितने वोटों से लेबर
पार्टी के राष्ट्रीय नेता चुने जाएंगे। कयास केवल जीत के फासले पर है। पिछली बार
जब उनकी पार्टी संसदीय चुनाव हारी थी, तब भी कार्बिन को
पहले के चुनाव में प्राप्त वोटों से दुगुने वोट मिले थे। अब पार्टी के संगठनात्मक
चुनाव में इससे भी बेहतर रिकार्ड होगा, ऐसा उनके समर्थक
मानते हैं। समर्थकों में चालीस वर्ष से कम आयु के लोग अधिक हैं। महिलाएं बड़ी तादाद
में उनकी हिमायती हैं।
महिला मतदाताओं का कार्बिन का साथ देने का खास कारण
है। लंदन में सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में स्त्रियों की सुरक्षा इस वक्त एक बड़ा
मसला है। कार्बिन ने एलानिया तौर पर कहा है कि वे महिलाओं के लिए बसें और ट्रेनें
चलवाएंगे। इससे महिलाओं में उत्साह तो आया है मगर उनके वादे पर अमल करने की स्थिति
आई तो खर्च भी बढेगा। कार्बिन कला को राष्ट्रीय समाज की धमनियां कहते हैं। उनका
आरोप है कि बचत और मितव्ययिता की आड़ में कंजरवेटिव-लिबरल गठबंधन सरकार ने देश में
कलाओं का नाश कर दिया है।
कार्बिन ने कहा है कि अगर उन्हें सरकार बनाने का
मौका मिला तो वे कला और संस्कृति के संवर्धन के लिए अधिक राशि आबंटित करेंगे। इसी
तरह प्रेस की आजादी के पुरजोर हिमायती कार्बिन ने सरकारी रेडियो बीबीसी पर अंकुश
लगाने से साफ इनकार किया है। स्वायत्त बीबीसी उनकी राय में ब्रिटेन की लोकशाही को
मजबूत बनाता है। बीबीसी को और अधिकार देना उनका लक्ष्य है। अगर जेरेमी कार्बिन की
सरकार बनी तो वह ऐसी पहली सरकार होगी जो राष्ट्रीय कला नीति की रचना करेगी। पड़ोस नीति
की रचना करेगी। पड़ोस के फ्रांस और जर्मनी की माफिक कला को उपयुक्त स्थान मिलेगा।
राज्य और आस्था के रिश्तों पर कार्बिन के विचार स्पष्ट हैं। असली धार्मिक आजादी
वही है जहां राज्य हर धर्म के प्रति उदासीन है। राजसत्ता को लेकर उनकी दृष्टि उदार
है। सत्ता पाना है, पर
उसे तजने के लिए भी तैयार रहें। एक बार फिर टोनी ब्लेयर ने कार्बिन की कुलांचे
भरती जनप्रियता की खिल्ली उड़ाते हुए कहा है कि ‘यह
स्वेच्छाचारी व्यक्ति समांतर राजनीति को रच रहा है।’ यानी
काल्पनिक उड़ान भरना।
ज्यों-ज्यों मतदान का दिन (बारह सितंबर) निकट आ रहा
है, अभियान में तीव्रता बढ़ती जा रही
है। कार्बिन ने श्रमिक कल्याण की नजर से कहा कि पुलिस और अग्निशमन कर्मचारियों की
सेवानिवृत्ति की आयु कम कर दी जाएगी ताकि उनकी क्षमता और फुर्ती बढ़े। लेबर पार्टी
के भीतर ही इसे नकारात्मक प्रयोग बताया गया। कार्बिन के निंदकअपनी टिप्पणियों में
व्यंग्यात्मक और द्विअर्थी होते जा रहे हैं, पर अब
कार्बिन की विजय की संभावना पहले से कहीं अधिक है। कुछ ‘अच्छे
दिन’ नारे की तर्ज पर कार्बिन का चुनावी सूत्र है: ‘ब्रिटेन को काम करने वाली सरकार दी जाएगी।’ उनका
आरोप है कि परस्पर विरोधी (कंजर्वेटिव और लिबरल) पार्टियों की गठबंधन सरकार की
इच्छाशक्ति पंगु हो गई है। कार्बिन के विरोधियों का नारा है कि पार्टी सदस्य किसी
भी प्रत्याशी को वोट दें, बस जेरेमी कार्बिन को न दें।
पूर्व प्रधानमंत्री डेविड केमरन ने कहा है कि ब्रिटिश सियासत में भूकम्पीय
परिवर्तन का अंदेशा है। कार्बिन एक विद्युत इंजीनियर थे। अब लेबर पार्टी और
परंपरावादी ब्रिटेन को जबर्दस्त झटका देने वाले हैं।
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जनसत्ता से साभार
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