गीता प्रेस:- धर्म धन्धे और शोषण का धर्मशास्त्र
स्वदेश कुमार
सिन्हा
गीताप्रेस
गोरखपुर के भव्य प्रवेश द्वार से अन्दर प्रवेश करते ही आप द्वार की भव्यता देखकर
दंग रह जाते हैं । दक्षिण भारतीय मन्दिरो की गोपुरम शैली में बने इस द्वार के
सौन्दर्य को हिन्दू, बौद्ध, जैन स्थापत्य कला
का समावेश बढ़ाता है। आप को यह एहसास होता है कि आप किसी भव्य मन्दिर में प्रवेश
कर रहे हैं । परन्तु भीतर प्रवेश करते ही सारा दृश्य बदल जाता है। अन्दर का दृश्य
किसी सैनिक छावनी जैसा है। चारो ओर वाकी टाकी ले कर घूमते हुए सेना के भूतपूर्व
जवान आप पर कड़ी निगरानी करते रहते हैं । चारों ओर लगे सी0सी0टी0 कैमरे किसी कर्मचारी
से मिलने के लिए लम्बी पूछताछ फिर उससे टेलीफोन सम्पर्क आपको मिलने के लिए विजिटर
रूम में कुछ ही समय दिया जाता है जिस में
भी सी0सी0टी0वीव कैमरे लगे हुए हैं । परिसर में पत्रकारो का घुसना अथवा किसी कर्मचारी से बातचीत करना प्रतिबन्धित
है। यह सब उस माहौल में जब अभी अभी प्रेस के कर्मचारियों ने बिना शर्त अपनी अड़तीस
दिन पुराना आन्दोलन समाप्त कर दिया है। प्रबन्ध तंत्र का कहना था कि कर्मचारी अपना
आन्दोलन समाप्त करके सौहार्द पूर्ण वातावरण बनाये तभी उनकी मांगों पर विचार किया जा सकता है। परन्तु प्रेस के अन्दर प्रबन्ध तंत्र का कर्मचारियों से
ब्यवहार से कही भी सौहार्दपूर्ण वातावरण नही बनता दिखता है।
गीताप्रेस के
कर्मचारियों के संघर्ष की पडताल करने पर
यह पता लगा कि इतिहास में इसकी जड़े कई दशक गहरी हैं । कोलकाता के गोविन्द भवन
ट्रस्ट से संचालन किया जाता है। इस ट्रस्ट की ओर से ऋषिकेश में गीता भवन के नाम से
कुछ फर्म जैसे सत्संग केन्द्र ,आयुर्वेदिक दवाओ की दुकान तथा कपड़े की एक दुकान चलायी जाती
है। कर्मचारी नेता कहते हैं कि इन फर्मो
के कर्मचारियों को पूरे वेतन के दस
प्रतिशत वृद्धि सौ रूपये की विशेष वृद्धि और दस प्रतिशत मकान किराया भत्ता अलग से
मिलता है। मगर गोरखपुर में इस तरह की कोई
भी सहूलियत कर्मचारियों को नही दी जाती। कर्मचारियों की मांग है कि प्रदेश सरकार की ओर से जारी न्यूनतम वेतन
जी0ओ0 को लागू करने के
साथ वार्षिक वेतन वृद्धि आवास भत्ता गीता प्रेस के सभी यूनिटो पर बिना भेद भाव के
तथा समान रूप से लागू किया जाये। इसके अलावा गीता प्रेस गोरखपुर में कैन्टीन की भी
मांग कर्मचारियों ने रखी थी।
गीता प्रेस में
करीब 200 से ज्यादा स्थाई
और 400 से ज्यादा अस्थई
कर्मचारी हैं । कर्मचारियों के अनुसार प्रबन्धन प्रदेश सरकार की ओर से जारी हर
पुनीरिक्षित न्यूनतम वेतन राजाज्ञा जी0ओ0 को चुनौती इस
आधार पर देता रहा है कि यह एक धार्मिक संस्थन है यहाँ पर राज्य सरकार द्वारा लागू वेतनमान नही
लागू हो सकता है। इस संबंध में 31मई 1992 को जारी जी0ओ0 को गीताप्रेस की
ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी
गई। इसकी सुनवाई 19 वर्षो तक चली।
इस मामले में 23 दिसम्बर 1910 को निर्णय देते
हुए हाईकोर्ट ने गीता प्रेस की याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने 31 मई 1992 को जारी जी0ओ0 को पूरी तरह
वैद्य ठहराया था। इस निर्णय के आने के बाद भी प्रबन्धन ने इसे लागू करने में कोई
रूचि नही दिखलाई। इसके बाद सितम्बर 1911 को कर्मचारियों की मांग पर उप श्रम आयुक्त गोरखपुर ने गीताप्रेस की
स्थलीय जाॅच कर मामले की रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में प्रबन्धन को न्यूनतम वेतन देने
के नियम का उलंघन करने का दोषी ठहराया गया। बीते वर्ष 3 दिसम्बर को
कर्मचारियों का गुस्सा एक बार फिर फूट पड़ा। कर्मचारियों ने शहर के कुछ दूसरे
संगठनो के साथ मिलकर जुलूस निकाल कर जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन किया।
कर्मचारियों के अनुसार इसके विरोध में 16 दिसम्बर को
प्रबन्धन ने गीताप्रेस के तीन कर्मचारियों को बर्खास्त करते हुए वहाॅ
अनिश्चितकालीन तालाबन्दी कर दी। नोटिस के अनुसार कर्मचारियो ने बिना सूचना दिये प्रदर्शन किया व जुलूस निकाला।
यह उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 6 (एस) प्रबन्धन को तालाबन्दी घोषित करने का
अधिकार देती है। इसकी मुख्य वजह यह थी कि उन्होने 15 दिसम्बर को वेतन वृद्धि ओैर वेतन विसंगति को
लेकर जिलाधिकारी को मांग पत्र सौपा था।
तालाबन्दी के खिलाफ कर्मचारी जिलाधिकारी से मिले उनका आरोप था कि कर्मचारियों को
बर्खास्त करने से पहले उन्हे नोटिस तक नही दी गयी। तब जिलाधिकारी ने तालाबन्दी तथा
बर्खास्तगी को गैरकानूनी बताया। 17 दिसम्बर 2014 को अनिश्चितकालीन तालाबन्दी के हटने के बाद बर्खास्त
कर्मचारियो को पुर्न बहाली का आदेश दिया गया। कर्मचारियों का आरोप है कि न्यूनतम वेतन के संबंध में जारी राजाज्ञा को
लेकर गीताप्रेस प्रबन्धन की ओर से स्थाई तथा अस्थई कर्मचारियों का शोषण किया जा
रहा है। गीता प्रेस में 400 से ज्यादा
अस्थाई कर्मचारी हैं जो पिछले 25वर्षो से कार्यरत है। इन्हे न तो न्यूनतम वेतन दिया जा रहा
है ओैर न ही श्रम कानूनो का पालन किया जा रहा है। 12 दिसम्बर को उप श्रमायुक्त कार्यालय पर
गीताप्रेस में कैण्टीन खोलने की सहमति बनी थी। इसके अलावा ओवर टाइम करने वाले
श्रमिको को दुगुने की दर से भुगतान किया जायेगा। श्रमिका के सेवा निवृत्ति आयु 58 वर्ष से 60 वर्ष तक करने
श्रमिक प्रतिनिधियों द्वारा स्थाई आदेश में संशोधन के लिए प्रार्थना पत्र दिया
जायेगा। एडहाक वेतन को मूल वेतन में समायोजित करने के संबंध में न्यूनतम वेतन के
संबंध में जारी राजाज्ञा वर्ष 2006 व 2014 के संबंध में
शासन से मार्ग दर्शन प्राप्त किया जायेगा। कर्मचारियों का आरोप है कि मूल वेतन में
सालाना वृद्धि न करके प्रबन्धन की ओर से एडहाक वेतन की वृद्धि की जा रही है।
कर्मचारी नेता रविन्द्र सिंह बताते है कि वेतन दो हिस्से में होता है मूल वेतन तथा
मॅहगाई भत्ता। गीताप्रेस में वेतन दो भागो में बाँट दिया गया हैं। मूल वेतन और
एडहाक प्रबन्धन इन्क्रीमेन्ट के पैसे मूल वेतन में न जोड़कर एडहाक में डाल देता
है। जबकि नियम के अनुसार इन्क्रीमेन्ट मूल वेतन में जुडता हैं। बाकी के पैसे की मॅहगाई
भत्ते की चोरी की जा रही है ।
इस बीच फरवरी में उस वक्त कर्मचारियों ने फिर
हंगामा शुरू कर दिया जब उनसे फार्म 12 के बजाय फार्म 18 भरने को कहा गया। कर्मचारियों के अनुसार उपश्रमायुक्त की
बैठक में फार्म 12 भरे जाने की
सहमत बनी थी। फार्म 12 स्थाई कर्मचारियों
की ओर से भरे जाने के लिए था। जबकि फार्म 18 ठेका
कर्मचारियों से भरा जाता है। मामला कर्मचारियों को स्थाई करने का था। लेकिन
प्रबन्धन ने ऐसा करने से मना कर दिया। मार्च में पुनः नयूनतम वेतन को लेकर हंगामा
हुआ। कर्मचारियों का आरोप था कि श्रमआयुक्त की जाॅच में कुछ 337 ठेका कर्मचारी
मौके पर काम करते पाये गये। जिसमें से प्रबन्ध तंत्र मात्र 100 कर्मचारियों को
ही न्यूनतम वेतन दे रहा था साथ ही गत दिसम्बर में डे़ढ़ दिन का वेतन ठेका
कर्मचारियों को नही दिया गया जबकि स्थाई कर्मचारियों को दे दिया गया। इन सब मुद्दो
को लेकर कर्मचारियो से बाते नही बनी आचिखर अगस्त 2015 में पुनः कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी तथा प्रबन्ध तंत्र प्रेस को
गुजरात अथवा महाराष्ट्र ले जाने की बातें करने लगा। 7 अगस्त को
प्रबन्ध तंत्र तथा कर्मचारियो की बीच गरमा गरमी हो गयी। प्रबन्ध तंत्र ने मारपीट
के आरोप में एक दर्जन कर्मचारियों को निलंबित कर दिया।
गीताप्रेस के एक
भूतपूर्व ट्रस्टी बतलाते हैं कि प्रेस की स्थापना 1923 में एक
ब्यवसायी श्री जय दयाल गोयनंका ने की थी। वे एक धार्मिक प्रवृत्ति के ब्यक्ति व
लेखक थे। उन्होने इसकी स्थापना एक धार्मिक और चेरीटेबुल ट्रस्ट के रूप में की र्थी
जिसका उद्देश्य लाभ कमाना नही था। प्रारम्भ में ज्यादातर किताबो का सम्पादन और
लेखन उन्होने तथा हनुमान प्रसाद पोद्वार जी ने किया था। लेकिन आज इसकी स्थिति बदल
गयी है। इससे जुड़े ट्रस्टी और प्रबन्ध तंत्र के लोग इस संस्थान से अकूत मुनाफा कमा रहे हैं तथा उसे अपने व्यापार और
अन्य धन्धो में लगा रहे हैं । हिन्दू धार्मिक पुस्तक मुद्रण करने का यह एशिया में
सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। 2013 तक गीताप्रेस करीब 55 करोड़ 74 लाख धार्मिक पुस्तके छाप चुका है। हिन्दू ग्रन्थो के
मुद्रण के 90 प्रतिशत बाजार
पर गीता प्रेस का कब्जा है। गीता प्रेस प्रबन्धन का दावा है कि उनकी पुस्तकों के मूल्य इतने कम हैं कि उन्हे कोई मुनाफा नही होता इसके विपरीत उन्हे
अपना घाटा पूरा करने के लिए अन्य उपायों का सहारा लेना पड़ता है। परन्तु यह बात
सत्यता से परे है । यह सही है कि पुस्तको के मूल्य अपेक्षता कम होते हैं । परन्तु
अन्य पुस्तक प्रकाशको की तरह इनकी पुस्तकें थोक खरीद पर निर्भर नही है। पुस्तकालय
सीधे उन्हे आर्डर देते है तथा उन्हे यह न्यूनतम कमीशन देते हैं । गीता प्रेस के
देशभर में बिक्री केन्द्र है गोरखपुर के
केन्द्र से ही प्रतिदिन लाखो रू0 की बिक्री होती है। देश भर के सारे बड़े शहरो में तथा
रेलवे स्टेशनो पर इनके बिक्री केन्द्र हैं । बंगलौर , बम्बई , भुवनेश्वर तक में
ये स्थित है ।
हिन्दी के अलावा
बंगला ,मराठी ,गुजराती , तमिल ,कन्नड़, असमियाॅ ,उडि़या ,उर्दू ,तेलगू ,मलयालम ,पंजाबी और
अंग्रेजी में भी पुस्तके प्रकाशित होती हैं तथा इन भाषाओ में भी भारी बिक्री होती है। गीताप्रेस
के लगभग 1716 वर्तमान
प्रकाशनो में लगभग 816 संस्क्ृत तथा
हिन्दी के हैं । शेष प्रकाशन मुख्यतः गंुजराती ,मराठी , तेलगु, बंगला , उडि़या ,कन्नड़ अगे्रजी आदि भारतीय भाषाओ में है।
गीता प्रेस
द्वारा तीन मासिक धार्मिक पत्रिका कल्याण ,युग कल्याण, कल्याण कल्पतरू प्रकाशित किये जाते है। कल्याण कल्पतरू का
प्रकाशन अंग्रेजी में होता है। गीताप्रेस के प्रबन्धको का दावा है कि कल्याण
पत्रिका की वर्तमान समय में लगभग दो लाख पन्द्रह हजार प्रतिया हर माह छपती है । इस पत्रिका का वितरण देश भर के अलावा मारीशस ,सूरीनाम ,गुयाना ,यूरोप तथा
अमेरिका तक होता है । काफी दिन तक कल्याण पत्रिका का सम्पादन हनुमान प्रसाद
पोद्दार करते रहे जो धार्मिक विषयो के हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। इस स्थिति में
प्रबन्धतंत्र की यह बात कि संस्थान घाटे में चल रहा है किसी की भी गले नही उतरती
है।
करीब तीन दशक
पूर्व संस्थान के प्रबन्धको ने यह दावा किया कि संस्थान को पुस्तको की बिक्री से
लाभ नही हो पा रहा है। इसलिए घाटे की भरपाई के लिए गीताप्रेस वस्त्र विभाग खोला।
उनका दावा था कि इस विभाग में हैण्डलूम के हस्त निर्मित वस्त्र ही बिकेगे। धार्मिक
संस्थान से जुड़े होने के कारण उन्हे आय कर बिक्रीकर में भारी छूट मिलने लगी। आज स्थिति यह है कि यह वस्त्र
संस्थान प्रेस के बगल में ही एक विशाल भवन में ही स्थित है। इसमें सभी बड़े बड़े
देशी विदेशी ब्राण्डेड कपड़े बिकते हैं । संस्थान केवल इसी की बिक्री से लाखो
रूपये का मुनाफा प्रतिदिन कमाता हैं। इसके अलावा संस्थान के पास करोड़ो की अचल
सम्पत्ति भी है कोलकाता ऋशिकेश की सम्पत्ति को अगर छोड़ भी दिया जाये तो अकेले
गोरखपुर में इनके पास करोड़ो की सम्पत्ति
है जिसमें दुकाने तथा बड़े बड़े
काम्पलेक्स है। जिससे लाखो का किराया हर
माह मिलता है। ऋषिकेश में यह आयुर्वेदिक दवाये बनाते हैं जो देश भर में बिकती है।
15 सितम्बर 2015 को गीताप्रेस के
कर्मचारी यूनियन ने अपना 38 दिन पुराना
आन्दोलन बिना किसी शर्त के प्रबन्धको के आश्वासन पर समाप्त कर दिया। ज्यादातर
अस्थायी कर्मचारी को संस्थान से निकाल दिया गया। प्रबन्धन स्थाई तथा अस्थाई
कर्मचारियों के बीच मतभेद पैदा करने में
सफल हो गया है दिखता है क्योकि ज्यादा तर स्थाई कर्मचारी अस्थाई कर्मचारियों के
निलंबन पर कुछ कहने को तैयार नही कर्मचारी नेता रमन कुमार श्रीवास्तव बतलाते हैं कि
जिलाधिकारी , मेयर ,सांसद तथा
स्थानीय विधयक के इन आश्वासनों के बाद
उन्होने आन्दोलन समाप्त किया है कि न्यूनतम वेतन तथा 900/- रू0 बढ़ोत्तरी के
बारे में वे शीघ्र ही विचार किया जायेगा
तथा अस्थाई कर्मचारियों का भी समायोजन किया जायेगा।
गोरखपुर के चर्चित
सांसद योगी आदित्यनाथ जो इस समय ’’हिन्दू हितो के सबसे बड़े रक्षक’’ तथा ’’पैरोकार’’ होकर उभरे हैं । उनकी निजी सेना ’हिन्दू युवा वाहिनी’ हर हिन्दू विरोधी
कार्यवाहियों का सीधे प्रतिकार करने के
लिए तैयार रहती है। परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थो को प्रकाशित करने वाले एक संस्थान
के कर्मचारियों के शोषण पर वे चुप्पी लगाये रहते हैं अथवा प्रबन्धको के पक्ष में खड़े हो जाते हैं ।
वास्तव में देश में
राजनीतिक अपराधी माफिया नोैकरशाह ओैर मिल मालिको के गठजोड़ की शुरूआत सबसे पहले
पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही शुरू हुयी। आज यहाँ इस में एक धार्मिक तत्व भी जुड गया है। विगत में
इस इलाके में जितने भी मजदूर आन्दोलन हुए वे बिना कोई मांग माने बिना समाप्त कर दिये गये। मजदूर नेताओ को गुण्डा
एक्ट एवं गैगेस्टर जैसी संगीन धाराओ को लगाकर जेल में डाल दिया गया या शहर से
निष्कासित कर दिया गया। एटक ,सी टू ,इन्टक,भारतीय मजदूर संघ जैसे मजदूर संगठन तथा राजनैतिक दल इनके
प्रति चुप्पी साधे रहते हैं अथवा छिटपुट कानूनी अथवा रस्मी कार्यवाही करते रहते हैं
। कुछ छोटे संगठन बिगुल मजदूर दस्ता ,नौजवान भारत सभा ,शिक्षक संगठन अथवा सी0पी0आई एम0एल के मजदूर
संगठन को छोड़कर कोई भी संगठन कर्मचारियों के आन्दोलन के साथ नही खड़ा हुआ।
गीताप्रेस
गोरखपुर की ओर से प्रकाशित ओैर देश भर में प्रकाशित होने वाली श्रीमदभगवत गीता के
अध्याय दो का सैतालिसवा श्लोक है जिसका अर्थ है -तेरा कर्म में ही अधिकार है उसके
फलो में ही नही।
शायद गीता प्रेस
के प्रबन्ध तंत्र के कर्मचारियों को यही सन्देश है तू कर्म कर वेतन की चिन्ता छोड़
दे ।
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