इस तरह प्रदूषण मुक्त नही होगी हमारी नदियाँ


 स्वदेश कुमार सिन्हा



गणेश उत्सव ,नवरात्रि से लेकर दीपावली तक हमारे देश में विशेष रूप से उत्तर भारत में उत्सवों का मोसम होता है। गणेश ,दुर्गा तथा लक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनका विधि विधान से पूजा कर उन्हे नदियो अथवा समुद्र में प्रवाहित करने की परम्परा हमारे देश में सैकड़ो वर्षो से चली आ रही हे।

पिछले वर्ष ही ’’राष्ट्रीय हरित अधिकरण  (एन0जी0टी0) तथा सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारो को यह निर्देश दिया कि प्रतिमाओ तथा अन्य पूजा सामग्रियों को नदी अथवा समुद्र में प्रवाहित न किया जाये तथा इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जायें । इसका कारण यह है कि मूर्तियों  के रंगो में मिलाया जाने वाला जहरीला रसायन जल में घुलकर न केवल पानी के प्रदूषण को बढ़ाता है , बल्कि मछलियों  तथा अन्य जल जन्तुओ के माध्यम से मनुष्य के शरीर मं पहुॅच जाता है। जो जीवन के लिए अत्यन्त घातक है। इस आदेश का अनुपालन जिस तरह से राजय सरकारो ने तथा उनकी नौकरशाही ने किया वह प्रदूषण के प्रति उनकी गैर जिम्मेदाराना कार्य प्रणाली को सामने लाता है। 

पहले नदियों में पानी की मात्रा जयादा होती थी उसमें नगरीय तथा औद्योगिक प्रदूषण इतना अधिक नही होता था। परन्तु अब परिस्थितियाँ बदल गयी है। करीब दो तीन दशको से जलवायु परिवर्तन तथा अनेक अन्य भौगोलिक कारणो से छोटी -छोटी नदियां तथा जल धारा सूख रही है। ग्लेशियर पीछे खिसक रहे है  तथा बड़ी नदियों  में पानी कम होता जा रहा है। बढ़ती हुयी आबादी के कारण नदियों  में हर तरह का प्रदूषण बढ़ रहा हैं। इन सब बातों का ब्यापक प्रचार प्रसार किये बिना राज्य सरकारो ने विशेषरूपा से उत्तर प्रदेश ने यह जिम्मेदारी नगर प्रशासनो को सौप दी, उन्होने बिना किसी पूर्व सूचना के लाखो रूपये खर्च करके मूर्तियों  के विसर्जन के लिए तालाब खुदवा दिये तथा दिखावे के लिए कुछ मूर्तियों  का विसर्जन  भी उसमें  करा दिया। बाकी हजारो मूर्तियों का विसर्जन पहले की तरह नदियों  में ही किया गया। यह गणेश उत्सव ,दुर्गा पूजा के पर्वो में करीब करीब हर शहरो और गाँवों में देखने को मिला। दीपावली के अवसर पर उत्तर भारत में ब्यापक तौर पर लक्ष्मी की प्रतिमा बनाकर उनका पूजन किया जाता है। यही कहानी फिर दुहरायी जायेगी। चूंकि  यह मामला लोगो की आस्था तथा विश्वास से जुड़ा है इस कारण सभी राजनीतिक दल तथा सामाजिक संगठन इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहते हैं ।

वास्तव में पर्यावरण तथा नदियों को बचाने की मुहिम ब्यापक रूप से आम जन में जनजागरण तथा जनचेतना फैलाये बिना नही हो सकती है । आमजन को विभिन्न प्रचार माध्यमो से इन बातो से अवगत कराना पड़ेगा कि जलीय प्रदूषण अन्त में उन्हे ही नुकसान पहुॅचायेगा। यह काम राज्य सरकारे तथा उनकी नौकरशाही नही कर सकती है। इसके लिए सामाजिक संगठनो तथा पर्यावरण संबंधी स्वयंसेवी संस्थाओ केा आगे आना पड़ेगा। यही संस्थाये लोगो में प्रदूषण के खिलाफ जन जागृति पैदा कर सकती है।

गंगा की स्वच्छता पर दसों  करोड़ खर्च करने के बावजूद उनके स्वच्छ न होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि बहुत सी छोटी नदियां  जो अन्त में  जाकर गंगा में  मिल जाती है बुरी तरह प्रदूषित है । उन्हे स्वच्छ किये बिना गंगा को स्वच्छ करना दूर की कौड़ी नजर आती है।


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