लघु कथा-समान अवसर


 लघु कथा
समान अवसर


छत्रपति साहूजी महाराज ने कोल्हापुर के अपने राज्य में जब गरीब,दलित और पिछड़ी जातियों के लिए नौकरियों में पचास प्रतिषत आरक्षण लागू करने का फरमान जारी किया तो महाराष्ट्र भर की ऊंची जातियां इसके विरोध में उठ खड़ी हुई। महाराज को मनाने के लिए बहुतों ने बहुविधि जतन किए पर महाराज की एक ही जिद्द, न माने तो नहीं ही माने। आखि़र उन्हें मनाने के लिए अपनी कुषाग्र बुद्वि और अकाट्य तर्क क्षमता के लिए प्रसिद्व महाराष्ट्र के सबसे बड़े वकील गणपतराव अभ्यंकर कोल्हापुर पहुंचे। अपने बेजोड़ तर्को से साहुजी महाराज के निर्णय को ध्वस्त करते हुए उन्होंने कहा ‘‘ महाराज, यह तो सरासर अनुचित हैं। देना हीहै तो सबके लिए लिखने,पढ़ने,आगे बढ़ने के समान अवसर दें। जो योग्य होगा, वह अपनी जगह खुद बना लेगा।’’

साहुजी वकील साहब की बात पर गंभीर हो गए।
‘‘ मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा महाराज?’’ गणपतराय ने पूछा ‘ आप जैसा विद्वान गलत कैसे बोल सकता है?’’ साहुजी ने कहा ‘‘ लेकिन..... कष्ट न हो जो आइए, जरा अस्तबल से घूम आते हैं’’ वकील साहब हैरान, भला घुड़साल से इस प्रष्न का क्या संबंध ? अस्तबल में घास और भीगे चने रख दिए गए। 
साहुजी ने कहा, ‘‘ सारे घोड़े एक साथ छोड़ दो।’’

वैसा ही हुआ। सारे घोड़े एक साथ छोड़ दिए गए। स्वस्थ तगड़े घोड़े भी और मरियल,बीमार, बूढ़े विकलांग भी। देखते-देखते सारी खाद्य सामग्री चट कर डाली स्वस्थ और सबल घोड़ों ने। मरियल,बीमार, बूढ़े विकलांग तो खाद्य सामग्री के पास तक भी न पहुंच पाए।

साहुजी ने गणपतराव अभ्यंकर से कहा ‘‘ अब क्या करें, वकील साहब हमने तो सबको समान अवसर ही दिए थे।’’
‘‘ बस महाराज, बस !’’ अभ्यंकर ने हाथ खड़े कर दिए।


 डा. गिरीश  कशिद  (साभार- हंस अगस्त 2007)

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