पूरी दुनिया में "वहाबियत" की मुखालफत

अख़लाक अहमद उस्मानी 


तीस जून, काहिरा। लाखों लोगों ने मिस्र के राष्ट्रपति मुहम्मद मुर्सी की वहाबी नीतियों पर देश को ठेलने का जोरदार विरोध किया।मुसलिम ब्रदरहुड के नेता मुर्सी ने देश की जरूरत को छोड़ मिस्र को सऊदी अरब और कतर के कट्टर वहाबी एजेंडे पर चलाने की कोशिश की। अगले तीन दिनों में मुर्सी की कुर्सी चली गई। वहाबी संगठन मुसलिम ब्रदरहुड के जलाए गए दफ्तर से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के अवाम में उनके प्रति कितना गुस्सा था 

तीस जून, फैजाबाद। भारत की लगभग सभी दरगाहों के प्रधान देश में चल रहे वहाबी एजेंडे के खिलाफ एक जाजम पर बैठे। पांच सौ से ज्यादा इस्लामी विद्वान, सूफी और दरगाह प्रधानों ने भारत सरकार के नाम आठ पन्नों का ज्ञापन तैयार किया। आॅल इंडिया उलेमा एंड मशाइख बोर्ड के बैनर तले और बोर्ड के महासचिव मौलाना सैयद मुहम्मद अशरफ किछौछवी की अगुआई में दरगाहों के मशाइख (दरगाह प्रधान) भारत के विभिन्न शहरों में लाखों सुन्नी मुसलमानों को साथ लेकर भारत में पसरती कट््टरवादी वहाबी विचारधारा के विरुद्ध पांच बड़ी रैलियां कर चुके हैं और दिसंबर में फिर दिल्ली में महारैली का कार्यक्रम है। भारत में सुन्नी वक्फ संपत्तियों पर वहाबी कब्जे और सऊदी अरब पोषित वहाबी उर्फ सलफी नीति से चलने वाले संस्थानों पर देश-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के आरोप लगाते हुए मशाइख बोर्ड ने सऊदी अरब के पेट्रोडॉलर पर चल रहे वहाबी मदरसों और जमातों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

बाईस जून, कातिफ, पूर्वी तटीय प्रांत, सऊदी अरब। उन्नीस साल के नौजवान अली हसन अल महरूस को सऊदी अरब की सेना ने कातिफ में उसके घर में घुस कर मार डाला। अल महरूस को देश के भ्रष्ट वहाबी सऊद राजपरिवार के विरुद्ध उस प्रदर्शन की सजा मिली जो 2011 के बाद से लगातार फारस की खाड़ी के तटीय शहर कातिफ में जारी हैं। वहाबी तानाशाही के विरुद्ध प्रदर्शन करने वालों में कातिफ में चुन-चुन कर मारा जाने वाला महरूस उन्नीसवां शिकार है। करीब चालीस हजार राजनीतिक बंदियों से सऊदी अरब की जेलें भरी हैं जिनमें ज्यादातर ने सऊद राजपरिवार के भ्रष्टाचार, अय्याशियों और दमन का ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में वहाबियत को भड़काने का भी विरोध किया है। इनमें उदार सुन्नियों और शियाओं की तादाद ज्यादा है।
अट्ठाईस मई से लगातार, इस्तांबुल और तुर्की के अन्य शहर। तुर्की में भ्रष्टाचार और प्रेस पर पाबंदी के अलावा इरदोगन सरकार का कथित इस्लामी एजेंडे की ओर झुकना देश के अवाम को खला। तुर्की के तमाम शहरों में अब भी व्यापक प्रदर्शन जारी हैं। आम तुर्की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के वहाबी नीति की ओर झुकाव को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। सीरिया के मुद््दे पर अमेरिका, इजराइल, सऊदी अरब और कतर से पोषित वहाबी उर्फ सलफी आतंकवादियों का आश्चर्यजनक रूप से मकसद एक ही है। सीरिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने में तुर्की सरकार की भूमिका से पूरा देश नाराज है। भारत की तरह तुर्की भी सूफी सुन्नियों का सबसे बड़ा घर है और इन सभी देशों के सुन्नियों की समस्या भी यकसां है।

पांच फरवरी, शाहबाग चौक, ढाका। वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में युद्ध अपराधी घोषित किए गए कट्टर वहाबी संगठन जमात-ए-इस्लामी के बलात्कार और हत्या के आरोपी अब्दुल कदीर मुल्ला को कारावास के बजाय फांसी पर चढ़ाने की मांग को लेकर लाखों लोग जमा हो गए। युद्ध अपराधी घोषित किए गए पांच अन्य आरोपितों के लिए आम बांग्लादेशियों ने फांसी की सजा की मांग की और देश को वहाबी एजेंडे से बचाने की अपील की। जमात-ए-इस्लामी की मुसलिम समाज और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद को बढ़ावा देने का विरोध करने वाले ब्लॉगर अहमद राजिब हैदर को जमात-ए-इस्लामी के युवा संगठन जमात शिबिर के कार्यकर्ताओं ने दो मार्च को मार डाला। पूरे देश में वहाबी संगठन जमात-ए-इस्लामी और जमात शिबिर ने उदार बांग्लादेशियों पर हमले शुरू कर दिए। नियोजित वहाबी दंगों में अब तक साठ लोग मारे गए हैं।
चौदह जनवरी, इस्लामाबाद। सूफी विद्वान और राजनेता प्रोफेसर डॉ मुहम्मद ताहिर उल कादरी का इस्लामाबाद के मीनार-ए-पाकिस्तान पर ऐतिहासिक प्रदर्शन। देश में वहाबी आतंकवाद, भ्रष्टाचार और तानाशाही के विरोध के लिए स्वनिर्वासन में कनाडा जा चुके प्रो कादरी को पाकिस्तान लौटना पड़ा। चार दिन के महापड़ाव के बाद पाकिस्तान की जरदारी सरकार ने राजनीतिक समझौता किया। प्रो ताहिर के आतंकवाद के विरुद्ध व्यापक फतवे की इस्लामी प्रामाणिकता को विश्व भर के वहाबी ज्ञाता आज तक चुनौती नहीं दे सके हैं।

चौदह जनवरी, जंतर मंतर, दिल्ली। लगभग दस हजार लोगों की मौजूदगी में देश के करीब एक सौ पचास उलेमा ने मौलाना सैयद मुहम्मद अशरफ किछौछवी की अध्यक्षता में उसी दिन प्रदर्शन किया जिस समय पाकिस्तान के इस्लामाबाद में प्रोफेसर ताहिर उल कादरी भ्रष्टाचार और वहाबी आतंकवाद के विरुद्ध मीनार-ए-पाकिस्तान पर लांग मार्च कर रहे थे।जंतर मंतर की रैली में शामिल उदार सुन्नी समुदाय ने सऊदी अरब में पवित्र धार्मिक इस्लामी पुरातत्त्व को मिटाने के प्रति जोरदार रोष जताया। भारत को पाकिस्तान नहीं बनने देंगेका नारा लगा रहे दिल्ली और आसपास के सुन्नी अवाम ने भारत में चल रहे खतरनाक वहाबी मदरसों की जोरदार मजम्मत की। बाद में भारत सरकार और सऊदी अरब के दूतावास के नाम दो ज्ञापन भेजे गए।

पंद्रह मार्च 2011 से जारी, संपूर्ण सीरिया। गृहयुद्ध के लिए जिम्मेवार सशस्त्र संगठनों के खतरों से आगाह सुन्नी समुदाय पूरे देश में प्रदर्शन कर रहा है। आमतौर पर बशर अलअसद की सरकार के समर्थक माने जाने वाले इन सुन्नी संगठनों के लिए अगर शिया तानाशाह बशर अलअसद समर्थन दे रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि शिया सरकार और उदार सुन्नी देश के लिए जहन्नम बन चुके वहाबी उर्फ सलफी आतंक से मुल्क को बचाना चाहते हैं। जहां-जहां वहाबियत स्थापित हुई है उसने मानवाधिकार, स्त्री अधिकार, सहअस्तित्व, धर्मनिरपेक्षता, कला, सभ्यता और बहुसंस्कृति को चौपट कर दिया है। अमेरिकी, इजराइली, सऊदी और कतरी हथियार, पैसा और नीति से लैस वहाबी आतंकवादियों ने चुन-चुन कर उदार सुन्नियों को मौत के घाट उतारा है। पैगंबर हजरत मुहम्मद के साथी हजरत हज्र इब्न अदी की दरगाह को तोड़ उनकी कब्र को खोद कर वहाबी आतंकवादी उनका शव ले भागे, सीरिया को प्रथम फ्रेंच उपनिवेश से आजाद करवाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी हजरत सलाउद्दीन अयूबी की दमिश्क की दरगाह को ध्वस्त कर डाला, हम्स में पैगंबर मुहम्मद के साथी खालिद बिन वलीद की दरगाह को क्षतिग्रस्त किया, खलीफा हजरत अली की बेटी हजरत जैनब की दरगाह पर वहाबी उर्फ सलफी आतंकवादियों ने मानव बम और रॉकेट से हमले किए।
उपरोक्त सात घटनाओं से पता चलता है कि सुन्नी वहाबी के विरुद्ध खुद बहुत बड़ी आवाज बन कर उभर रहा है। पूरी दुनिया के सुन्नी की मंशा है कि मुसलिम समुदाय के बाहर लोग अब मुसलमान को सिर्फ शिया और सुन्नी के तौर पर देखना बंद करें। मुसलमानों में प्रमुखत: तीन धड़े हैं। शिया, सुन्नी और वहाबी उर्फ सलफी। उपरोक्त वर्णित प्रदर्शन और आंदोलन भी सुन्नी चला रहे हैं। शिया आंदोलनों को शामिल कर लिया जाए तो वहाबी उर्फ सलफी आतंकवाद, बदनीयती और आक्रामकता के खिलाफ इस्लामी जगत में सतह के नीचे बहुत हलचल है। वहाबी उर्फ सलफी रणनीति ने इस बीच सुन्नी और शिया समुदाय को करीब लाने का काम किया है। पूरे विश्व में वहाबियत या सल्फियत का विरोध करने के अलावा शुद्ध सुन्नी मत प्रचार के लिए लगभग हर देश में आध्यात्मिक आंदोलन अलग से चल रहे हैं। वहाबियत उर्फ सल्फियत के खिलाफ वे उलेमा बेहतर काम कर पा रहे हैं जिनकी पहचान इस्लामी विद्वान की है और उनकी राजनीतिक समझ और बहुभाषा का ज्ञान उन्हें विभिन्न समुदायों और विदेशों में समांतर आंदोलनों के करीब लाता है। 
भारत से मौलाना मुहम्मद अशरफ किछौछवी और मौलाना हाशमी मियां अशरफी का इस जंग में बहुत बड़ा नाम है। मौलाना अशरफ किछौछवी अकेले ऐसे धर्मगुरु हैं जिन्होंने अफगानिस्तान की समस्या पर तुर्की में बुलाए गए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तालिबान और वहाबी और सलफी विचारधारा को मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। पांच भाषाओं के ज्ञाता मौलाना अशरफ साल भर देश-दुनिया घूमते हैं और वहाबियत और सल्फियत के विरुद्ध कमोबेश रोजाना किसी न किसी कार्यक्रम में व्यस्त रहते हैं। आइफोन, टैबलेट साथ लेकर चलने वाले मौलाना अशरफ किछौछवी साइबर मीडिया पर काफी सक्रिय हैं। उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, अरबी और फारसी जानने वाले मौलाना अशरफ भारत को वहाबियत और सल्फियत के खतरे से आगाह करने में मसरूफ हैं। भारत में वे अकेले ऐसे धर्मगुरु होंगे जिन्होंने वहाबियत उर्फ सल्फियत का व्यापक अध्ययन किया है और वे पीपीटी प्रजेंटेशन से मुसलिम, गैर-मुसलिम और निरपेक्ष समुदाय को इस जटिल विषय को समझने में मदद करते हैं। मौलाना अशरफ भारत में वहाबियत के प्रभाव पर शोध कर रहे हैं और जल्द ही उनकी किताब भी आने वाली है। 

अजमेर दरगाह के प्रमुख मेहदी मियां चिश्ती भी इसी बोर्ड के संरक्षक हैं जो मौलाना मुहम्मद अशरफ किछौछवी के नेतृत्व में चल रहा है। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद महमूद अशरफ किछौछा दरगाह के भी प्रमुख हैं। मौलाना महमूद दरगाह पर पूरी दुनिया से आने वाले सूफी श्रद्धालुओं को वहाबी उर्फ सलफी खतरों के प्रति आगाह करते रहते हैं। आॅल इंडिया उलेमा एंड मशाइख बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव और पेशे से इंटीरियर इंजीनियर सैयद बाबर अशरफ भारत में वहाबियत और सल्फियत के एजेंडे पर एनसाइक्लोपीडिया की तरह हैं। युवा बाबर अशरफ अत्याधुनिक शोध, परिचर्चा, सिम्पोजियम, प्रजेंटेशन और सांख्यिकीय गणना के आधार पर समझाने की कोशिश करते हैं कि देश में वक्फ संपत्तियों, नौकरशाही, राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर कब्जा करके किस तरह वहाबी उर्फ सलफी एजेंट देश के खिलाफ काम कर रहे हैं।


बाबर अशरफ हिंदू-मुसलिम एकता के बहुत बड़े समर्थक हैं और उनका कहना है कि देश में सामाजिक सहअस्तित्व को समाप्त करना सऊदी अरब से वित्तपोषित वहाबी उर्फ सलफी एजेंटों का प्राथमिक लक्ष्य है। बाबर का आरोप है कि इस साजिश में भारत के दो बड़े मदरसे, कई जमातें, मुसलिम राजनीतिक और धनपति सक्रिय हैं। उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया है और उनके भौगोलिक सर्वे के कई आंकड़े चौंकाने वाले हैं। मगर उन्हें यह बात निराश करती है कि देश की सुरक्षा के नाम पर भी तटस्थ घटकों का राजनीतिक उत्साह देखने को नहीं मिला। 

Courtesy- http://www.jansatta.com

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