आर.एस.एस. का असली इरादा भारत के वर्तमान स्वरूप को ध्वस्त करना है

-एल.एस. हरदेनिया



इस समय अनेक लोग यह मत प्रगट कर रहे हैं कि अगला चुनाव (लोकसभा) कांग्रेस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच होगा। जब ऐसा कहा जाता है तो इसका अर्थ यह होता है कि अगला चुनाव विचारधाराओं के बीच होगा। जब हम कांग्रेस की विचारधारा की बात करते हैं तो उसमें अकेले आज की कांग्रेस की विचारधारा शामिल नहीं है। उसमें वह विचारधारा शामिल है जो आजादी के पहले कांग्रेस की विचारधारा थी जिसमें लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शामिल हैं। इसके ठीक विपरीत यह जानना जरूरी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा क्या है।

यह एक स्वीकृत तथ्य है कि आज भी संघ की विचारधारा वही है जो उसकी स्थापना के समय थी या जिसे बाद में गुरू गोलवलकर ने विकसित किया। संघ की यह विचारधधरा उन सभी मूल्यों के विपरीत है जो आज के भारत की नींव हैं। आज के भारत का मुख्य आधार संसदीय प्रजातंत्र हैं-एक ऐसी राजसत्ता, जिसका आधार धर्म नहीं है। इसी विचारधारा के अन्तर्गत हमने देश को राज्यों का एक संघ बनाया है, जिसमें हमनें देश के नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार दिए हैं। हमने सभी प्रकार के अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा की गारंटी दी है। साथ ही, उन्हें अपना विकास करने का अवसर दिया है। संघ की विचारधारा इन सब बुनियादी मूल्यों के विपरीत है।

सर्वप्रथम संघ का उद्देश्य भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना है। संघ की ओर से बार-बार कहा जाता है कि भारतीय राष्ट्रीयता का आधार हिन्दुत्व है। यद्यपि संघ का दावा रहता है कि हिन्दुत्व जीवन पद्धति है धर्म नहीं। जहां एक ओर संघ यह कहता है कि राष्ट्र का आधार हिन्दुत्व होगा वहीं उसके उद्देश्यों में हिन्दुओं का विकास और उन्हें संगठित करना भी शामिल हैं। संघ द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिज्ञासा और समाधान) में हिन्दू को परिभाषित किया गया है। इस पुस्तिका में संघ के स्वयंसेवकों के लिए एक संकल्प भी प्रकाशित किया गया है। संकल्प इस प्रकार है हमारी प्रिय मातृभूमि भारत माता की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए और अपने पवित्र हिन्दू धर्म तथा संस्कृति के भ्रद्वास्पद प्रतीक गोमाता, मंदिर व माता बहिनों की रक्षा के लिए कटिबद्ध हूँ। प्रत्येक हिन्दू भाई-बहिन के धार्मिक संरक्षण के लिये मेरा प्रयास रहेगा। भगवान मेरे इस संकल्प को पूर्ण करने की शक्ति और भक्ति मुझे प्रदान करे। भारत माता की जय, हिन्दू धर्म की जय

इस संकल्प से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा स्वयंसेवक सिर्फ हिन्दू भाई-बहिनों की रक्षा की गारंटी देता है न कि प्रत्येक भारतीय नागरिक की।
गुरू गोलवलकर की एक महत्वपूर्ण किताब है। उस किताब का नाम है ‘‘^^Bunch of Thoughts**इस किताब में संघ के समग्र दर्शन की व्याख्या की गई है। इस किताब में गुरू जी ने विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर विचार प्रगट किए हैं। जो विचार किताब में संकलित हैं, यदि उन पर अमल किया जाता है तो हमारे देश का वर्तमान स्वरूप छिन्न-भिन्न हो जाएगा।

गुरू जी अपनी किताब में देश में एकात्मक अर्थात यूनीटरी स्वरूप की सिफारिश करते हैं। इसके अनुसार देश में राज्यों की सरकारें समाप्त हों जायेंगी और पूरे देश का शासन देश की राजधानी से संचालित होगा। भारतीय राष्ट्र का जो स्वरूप है उसमें एकात्मक सरकार की कल्पना की नहीं जा सकती। देश में अनेक भाषायें बोली जाती हैं। इस समय हमारे देश में अनेक राज्य भाषायी आधार पर गठित किए गए हैं। इन विभिन्न भाषा-भाषी राज्यों की संवेदनशीलता का सम्मान संघीय व्यवस्था में ही किया जा सकता है। गोलवलकर अपनी किताब में कहते हैं कि वर्तमान संघीय व्यवस्था में बांटने वाली ताकतों को प्रोत्साहन मिलता है। संघीय ढांचे से एक राष्ट्र की कल्पना प्रभावित होती है क्योंकि वह एक विभाजन वाली कल्पना है। इसका अंत आवश्यक है। इसका अंत करने के लिये संविधान में आवश्यक संशोधन किया जाना चाहिए। वर्तमान व्यवस्था को समाप्त कर एकात्मक शासन की स्थापना होनी चाहिए।’’ मेरी राय में ज्योंहि संघीय ढांचे को तोड़ा जाएगा उसके साथ ही हमारे देश के टुकड़े हो जाएंगे।

इसी तरह गोलवलकर सारे देश के लिये एक ही भाषा पर जोर देते हैं। क्या भारत के सभी क्षेत्रों पर एक ही भाषा थोपी जा सकती है? जब भी ऐसा प्रयास होगा हमारा देश टूट जाएगा। क्या हम पाकिस्तान से सबक नहीं सीखेंगे, पाकिस्तान के शासकों ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगलादेश) पर उर्दू थोपने की कोशिश की नतीजे में पाकिस्तान ही टूट गया। पाकिस्तान में जो कुछ हुआ है, उससे यह सिद्ध होता है कि आम आदमी के लिए भाषा का स्थान धर्म से ऊपर है। यदि संघ और उसका राजनीतिक अवतार भाजपा सत्ता में आने पर पूरे देश पर एक ही भाषा लादने की कोशिश करेंगे तो वे देश के अनेक टुकड़े हो जाएगें।

संघ के दर्शन का एक सर्वाधिक दुःखद पहलू है अल्पसंख्यकों के प्रति उसका रवैया। संघ का पूरा रवैया मुस्लिम और ईसाई विरोधी है। इस संबंध में जो कुछ गुरू गोलवलकर ने कहा है वह संघ और भाजपा के लिए अटल और अंतिम सत्य है। गुरू गोलवलकर एक स्थान पर कहते हैं कि वैसे तो भारत हिन्दुओं का एक प्राचीन देश है। इस देश में पारसी और यहूदी मेहमान की तरह रहे हैं परन्तु ईसाई और मुसलमान आक्रामक बन कर रह रहे हैं। मुसलमान और ईसाई भारत में रह सकते हैं परन्तु उन्हें हिन्दू राष्ट्र के प्रति पूरे समर्पण के साथ रहना पड़ेगा लगता है संघ और भाजपा इस  मामले में भी पाकिस्तान से सबक सीखना नहीं चाहते हैं। पाकिस्तान में वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों (हिन्दू आदि) को योजनाबद्ध तरीके से भगाया गया है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा का भाव पैदा किया गया है। अल्पसंख्यकों के प्रति इस तरह के रवैये के चलते एक मोड़ ऐसा भी आया जब बहुसंख्यक सुन्नी देश पाकिस्तान में शियाओं के साथ वैसा ही व्यवहार किया जाने लगा है। इस साल के प्रारंभ में मैं पाकिस्तान में था। वहां शिया-सुन्नी विवाद इतना बढ़ गया है कि अब वहां के शिया असुरक्षित तो महसूस करते ही हैं वे अब मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी अल्पसंख्यकों का कानूनन दर्जा दिया जाए। संघ को समझना चाहिए कि पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमानों के रवैये से वहां की शांति स्थायी रूप से समाप्त हो गई है।

संघ वर्षों से प्रयासरत है कि उसकी कल्पना का भारत बने। उनका प्रयास है कि भारत एक धर्म आधारित देश बने। संघ और भाजपा को लगता है कि नरेन्द्र मोदी शायद उनके इस सपने को पूरा करेंगे।


इस संबंध में “हिन्दू” समाचारपत्र के प्रतिनिधि की नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में हुई चर्चा का उल्लेख करना चाहूंगा। इस पत्रकार ने यह जानना चाहा कि संघ ने किन कारणों से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद का उम्मीदवार घोषित किया है, इस पर संघ प्रवक्ता ने दावा किया कि नरेन्द्र मोदी व्यवस्था को बदल देगें। इस पर संवाददाता ने पूछा यह कैसे होगा, इस पर प्रवक्ता कहते हैं,वर्तमान व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाना है। परन्तु मोदी के सत्ता में आते ही तुष्टीकरण की इस नीति की इतिश्री हो जाएगी। देखिए गुजरात में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है। ऐसा ही देश में होगा।

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