कविता- काफ़िर हूं सिरफिरा, मुझे मार दीजिये
पाकिस्तान के शायर "अमीर हसन " की एक नजम
काफ़िर हूँ , सिर फिरा हूँ मुझे मार दीजिये
मैं सोचने लगा हूँ मुझे
मार दीजिये
है एहतराम हज़रते-इंसान
मेरा दिन
बेदीन हो गया हूँ मुझे मार दीजिये
बेदीन हो गया हूँ मुझे मार दीजिये
मे पूछने लगा हूँ सबब
अपने क़तल का
मे हद से बड गया हूँ मुझे मार दीजिये
मे हद से बड गया हूँ मुझे मार दीजिये
करता हु मुल्लाओ से मे
ये सवाल
गुस्ताक हो गया हूँ मुझे मार दीजिये
गुस्ताक हो गया हूँ मुझे मार दीजिये
खशबु से मेरा रब्त है
जुगनू से मेरा काम
कितना भटक गया हु मुझे मार दीजिये
कितना भटक गया हु मुझे मार दीजिये
बे दीन हूँ मगर हैं
जमाने में जितने धर्म
मे सब को मानता हु मुझे
मार दीजिये
ये जुल्म है के जुल्म को
कहता हु सॉफ जुल्म
क्या जुल्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिये
क्या जुल्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिये
जिंदा रहा तो करता राहु
गा हमेशा प्यार
मे साफ कह रहा हूँ मुझे मार दीजिये
मे साफ कह रहा हूँ मुझे मार दीजिये
है अमन मेरी शरीयत तो
मुहब्बत मेरा जेहाद
बागी बहुत बड़ा हूँ मुझे मार दीजिये
बागी बहुत बड़ा हूँ मुझे मार दीजिये
बारूद का नही मेरा मसलक
दारुद है
मे खैर मानता हूँ मुझे मार दीजिये.
मे खैर मानता हूँ मुझे मार दीजिये.
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