सन्त रवि दास: सांझी संस्कृति के सन्त


स्वदेश कुमार सिन्हा


मध्ययुग में चले भक्ति आन्दोलन के निर्गुण शाखा की विशेषता थी इसमें शामिल ज्यादातर कवि सूफी सन्त श्रमजीवी वर्ग से आये थे तथा खुद श्रम करके जीविका कमाते थे। कबीर जुलाहे थे तथा कपड़ा बुनते थे। दादू मियाँ के तथा रविदास चर्मकार जो चमड़े की वस्तुएॅ बनाकर जीवन यापन करते थे। यही कारण था कि बड़े पैमाने पर समाज का निम्न तथा श्रमजीवी वर्ग इनसे जुड़ा। इस बात से कोई इन्कार नही करेगा कि भक्ति आन्दोलन नें पहली बार शूद्र अति शुद्र जातियों से सन्तो को आगे लाने का तथा जमीनी स्तर पर विभिन्न समुदायों के बीच आपसी साझेदारी की बात को रेखांकित किया। भक्ति आन्दोलन के सन्तो में एक चर्चित नाम रविदास का है। जो वाराणसी के ही शीरगोवद्र्वन ग्राम में एक दलित चर्मकार परिवार में जन्मे थे। गुरूनानक द्वारा रचित गुरू ग्रन्थ साहब में भी इनकी चालीस साखियां शामिल हैं। 

पंजाब उत्तर प्रदेश ही नही बल्कि महाराष्ट्र में भी इनका नाम चर्चित रहा है। सन्त रविदास के उपलब्ध साहित्य में 18 साखी और 101 पद ही मिलते हैं। ऐसा लगता है कि उनके साहित्य का बड़े पैमाने पर दस्तावेजीकरण नही हो सका हो। अपनी भक्ति में विद्रोही समझे जाने वाले रविदास के भक्ति भाव में हम जाति और जेण्डरगत सामाजिक विभाजनो को समतल बनाने की कोशिश देखते हैं , जो एकतामूलक भी है ,क्योकि वह उच्च अध्यात्मिक एकता के नाम पर संकीर्ण विभाजनो को लाॅघती दिखती है।

हिन्दु-मुसलमानो के आपसी सम्बन्धो पर या मन्दिर-मस्जिद के नाम पर होने वाले झगड़ो पर भी टिप्पणी करते हैं।

            मन्दिर -मस्जिद दोऊ एकं हैं, यह अन्तर नाही
            रहीमन राम रहमान का झगड़ा कोऊ नाहि।।

                                              (रविदास दर्शन 144 दोहा)  

ऊॅव-नीच सोपानक्रम पर टिकी सामाजिक व्यवस्था को दूर करते हुए उन्होने अपने पदो में एक ऐसे राज्य की कल्पना की है , जो दुखो तथा कष्टो से मुक्त हो। ऐसी मान्यता आती है कि महान भक्ति कवि मीराबाई भी उनसे मिलने आयी थी तथा उनके शिष्यों में से एक बन गयी थी। ऐसा कहा जाता है कि उनकी ख्याति सुनकर दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान सिकन्दर लोदी ने अपने दरबार में बुलाया था। परन्तु साझी संस्कृति में विश्वास करने वाले रविदास ने वहां जाने से इन्कार कर दिया। डा0 अम्बेडकर ने दलित वर्ग की चेतना जगाने में रविदास जैसे सन्तो का बहुत ही साकारात्मक मूल्यांकन किया है।


रविदास आजीवन श्रमजीवी जन के बीच ज्ञान तथा भक्ति का अलख जगाते रहे जहाँ उनका जन्म हुआ था तथा उन्ही के बीच उनका निर्वाण भी प्राप्त किया।

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