कही समाप्त न हो जाये “धान का कटोरा”
स्वदेश कुमार सिन्हा
ग्रीष्म आते ही उत्तर प्रदेश के अनेक इलाको में पेय जल की भारी
समस्या पैदा हेा जाती है। बुन्देलखण्ड जैसे सूखाग्रस्त इलाको में तो पानी के लिए हत्याये
तक की खबरे प्रतिवर्ष आती रहती है । परन्तु इस तथ्य पर शायद ही किसी को विश्वास हो
कि इसी प्रदेश का पूर्वान्चल जो कि एक दशक पहले तक सम्पूर्ण देश में पानी की भरपूर
उपलब्धता के कारण धान का कटोरा कहा जाता था, आज बढ़ते हुए प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन के कारण जल की भारी
समस्या से जूझ रहा है।
किस प्रकार मानवीय हस्ताक्षेप किसी जल संसाधन से भरपूर इलाके
को सूखाग्रस्त इलाके में बदल सकता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण प्रदेश का यह इलाका है। हिमालय नेपाल
की तराई में स्थित यह क्षेत्र एक दशक पूर्व तक जल संसाधनो से भरपूर था। हिमालय से निकलने
वाली कई बड़ी-बड़ी नदियाँ सैकड़ो की संख्या में छोटी नदियाँ तथा जल धाराये झीले इस
इलाके को जल समृद्ध बनाती थी। पहले यहाँ सबसे बड़ी समस्या हर साल आने वाली बाढ़़ ही
थी। परन्तु एक दशक से यहाँ पर वर्षा की मात्रा लगातार घटती गयी। हर वर्ष आने वाली बाढ़
यहाँ तबाही जरूर लाती थी। परन्तु बाढ़ के उपरान्त यहाँ की उपजाऊ जमीन में धान की करीब
20 से 25 किस्मे होती थीं।
जमीन
की सतह से दस फीट नीचे ही पानी उपलब्ध था। परन्तु आज यही पानी सतह से काफी नीचे चला
गया है तथा बुरी तरह से प्रदूषित हो गया है। जिससे पूरे इलाके के नगरीय तथा ग्रामीण
क्षेत्रो में पेयजल का भारी संकट पैदा हो गया है। पर्यावरणविद बताते हैं कि इसका सबसे
बड़ा कारण प्रकृति में मानव का बढ़ता हस्ताक्षेप है। नेपाल के हिमालयी क्षेत्र में
बड़े पेमाने पर सड़को का निर्माण तथा वनो के भारी कटान के कारण यहाँ पर जल श्रोत सूखने
लगे हैै। ग्लेशियरो के पीछे खिसकने तथा नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रो में वर्षा की भारी
कमी के कारण इनमें पानी की भारी कमी हो गयी
है। राप्ती, रोहिणी ,घाघरा ,गण्डक ,नरायणी जैसी बड़ी नदियों
में भी अब ग्रीष्म ऋतु में पानी न के बराबर ही रहता है। अनेक छोटी नदियाँ जैसे आमी, कुआनो ,कुण्डा,मनोरमा ,मनवर आदि जल की कमी के
कारण करीब -करीब सूख गयी है। इसके अलावा शहरी तथा औघेगिक प्रदूषण ने इन्हे इतना दूषित
कर दिया है कि इनके पानी में जल जीवन पूरी तरह समाप्त हो गया है। यह पानी कृषि योग्य
भी नही रह गया है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण आमी नदी है। जो इसी इलाके के सिद्धार्थ नगर
इलाके से निकलकर कई किलो मीटर सफर तय करके राप्ती नदी में मिल जाती है। आज प्रदूषण
के कारण यह नदी मानवीय स्वास्थ्य के लिए भारी खतरा बन गयी है। इसका सम्पूर्ण जल प्रदूषण
के कारण काला तथा जहरीला हो गया है। जिसने इस इलाके के सम्पूर्ण भूमिगत जल को दूषित
कर दिया है। जिससे यहाँ पर चर्म रोग तथा कैंसर जैसे रोग फैल रहे हैं ।
नदी के बढ़ते
प्रदूषण के खिलाफ इस इलाके के ग्रामीण लम्बे समय से आन्दोल चला रहे हैं । परन्तु इस
समस्रूा का कोई हल निकलता नही दिख रहा हैं। प्रदूषण तथा पानी की कमी के कारण यहाँ पर
जैव विविधता समाप्त हो गयी है तथा धान की अधिकांश किस्में लुप्त हो गयी हैं । अधिक उपज के लिए इस इलाके में
हाई ब्रीड धान की खेती हो रही है। जिसे अधिक पानी की जरूरत होती है। परन्तु पानी की
कमी के कारण इसकी उपज भी घटती जा रही है । यह इलाका प्राचीन बौद्ध सभ्यता का केन्द्र
रहा हे। इसी इलाके में कुशीनगर में गौतम बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ था। जिस मनोरमा नदी
के तट पर उनका अन्तिम संस्कार हुआ था वह आज विलुप्त हो गयी है। एक दशक पूर्व तक यह एक पतली धारा के रूप
में मौजूद थी।
राजेन्द्र सिंह जैसे मशहूर पर्यावरण विदो का मानना है कि अगर
नेपाल की हिमालयी क्षेत्रो में भारी मानवीय हस्ताक्षेप तथा नदियों में बढ़ते प्रदूषण
में शीध्र रोकथाम नही लगी तो इस इलाके में
बुन्देलखण्ड जैसा भारी जल संकट पैदा हो सकता है।
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