शराबबंदी की चुनौतियाँ


एल.एस. हरदेनिया



बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने अपने राज्य में शराबबंदी लागू कर दी है। ऐसा करके उन्होंने एक बड़ा खतरा मोल लिया है।बिहार एक ऐसा प्रदेश है जहां कायदे-कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। वह ऐसा प्रदेश है जहां ट्रेनों में आरक्षण का कोई अर्थ नहीं होता है। जहां बिना टिकिट ट्रेन यात्रा का प्रतिशत आज भी सबसे ज्यादा है। ऐसे राज्य में शराबबंदी पर अमल करवाना काफी कठिन होगा। यह शायद नीतीश कुमार की अग्नि परीक्षा होगी।

वैसे बिहार पहला ऐसा राज्य नहीं है जहां शराबबंदी लागू की गई है। पूर्व में अनेक राज्यों में शराबबंदी की गई है। एक जमाने में तमिलनाडु में शराबबंदी थी। तत्कालीन बंबई राज्य जिसमें आज के महाराष्ट्र और गुजरात राज्य शामिल थे मैं भी उस दौरान शराबबंदी लागू की गई थी जब मोरारजी देसाई उस राज्य में विभिन्न पदों पर रहे। पंडित द्वारिकाप्रसाद मिश्र के मुख्यमंत्री बनने के पहले मध्यप्रदेश में भी शराबबंदी थी। मिश्रजी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद शराबबंदी समाप्त कर दी। इस नीतिगत परिवर्तन के लिए केन्द्रीय नेतृत्व की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक था। मिश्रजी के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गई। मिश्रजी ने जैसे ही अपनी मांग पेश की तो मोरारजी भाई ने उसका विरोध किया। कार्यकारिणी में हुई बहस का विवरण मिश्रजी ने मुझे बताया था। जब मोरारजी अपनी राय पर अड़े रहे तो मिश्रजी ने उनसे कहा कि मैं आपकी पोल खोल दूंगा। मोरारजी ने कहा खोल दो, मुझे इसकी परवाह नहीं है। मिश्रजी ने कहा कि मोरारजी भाई आयुर्वेद के एक ऐेसे टानिक का सेवन करते हैं जिसमें अल्कोहल की मात्रा लगभग स्काॅच विस्की के बराबर है। मिश्रजी ने कहा कि गोल्ड आर्डर के दौरान मोरारजी भाई रायपुर आए हुए थे। उस समय उनकी जान को खतरा था इसलिए उनकी सुरक्षा का विशेष प्रबंध किया गया था। इसके अंतर्गत उनके सूटकेस की चाबी रायपुर के संभागायुक्त के पास रहती थी। उस समय श्री आरसीव्हीपी नरोन्हा रायपुर संभाग के आयुक्त थे। एक दिन उन्होंने मोरारजीभाई के सूटकेस में रखी यह दवाई पी। नरोन्हा जी ने बाद में बताया कि उनपर इस दवाई का प्रभाव लगभग वैसा ही हुआ जैसा विस्की का होता है। यह विवरण सुनने के बाद मोरारजी भाई का विरोध ठंडा पड़ गया और अंततः मिश्रजी को शराबबंदी समाप्त करने की अनुमति मिल गई। मिश्रजी का तर्क यह था कि शराबबंदी लागू करना बहुत कठिन काम है।

उस जमाने में शराबबंदी लागू करवाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते थे। कवि सम्मेलन और मुशायरे भी होते थे। कुछ कवि और शायर शराब पीकर शराबबंदी के गुण गाते थे। शराबबंदी के कारण बड़े पैमाने पर लुक-छिपकर अवैध शराब बनाई जाती थी। इस अवैध शराब के सेवन से अकाल मौतें होती थीं। एक तरफ शराबबंदी लागू करने में शासन का पैसा खर्च होता था वहीं दूसरी ओर शराब की बिक्री से होने वाली आय से भी शासन वंचित रह जाता था।

कुछ वर्षों पहले एन. टी. रामाराव आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने भी शराबबंदी लागू की थी। उस दौरान आंध्रप्रदेश से लगे हुए महाराष्ट्र के हिस्से में शराब की बड़ी-बड़ी दुकानें और बार खुल गए थे। आंध्र की सीमा के करीब स्थित रेल्वे स्टेशनों पर शराब वैसे ही बिकती थी जैसे चाय बिकती है। अंततः आंध्र में शराबबंदी समाप्त करनी पड़ी। ऐसे ही अनुभव अन्य राज्यों के हैं।

प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी भाई ने सभी शासकीय पार्टियों में शराब पेश करने पर रोक लगा दी। इससे अनेक आयोजनों में शराब परोसा जाना बंद हो गया जो विदेशी मेहमानों के सम्मान में आयोजित होते थे। इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि ऐसे आयोजनों में पारस्परिक चर्चा से जो समस्याएं और मतभेद सुलझाए जाते थे उनपर विपरीत प्रभाव पड़ा।

वर्तमान में गुजरात ही एकमात्र राज्य है जहां वर्षों से शराबबंदी लागू है। परंतु इस शराबबंदी के कारण गुजरात में अपराधों में कई गुनी वृद्धि हुई। गुजरात में अवैध शराब बनाने के बड़े-बड़े कारखाने हैं। अवैध शराब बनाने का धंधा दिन दूना रात चैगुना फल-फूल रहा है। गुजरात में अवैध शराब बेचने वाले हिन्दुओं और मुसलमानों के गिरोह हैं जिनके बीच आए दिन विवाद होते हैं जो अक्सर हिंसक रूप ले लेते हैं। गुजरात में मेडीकल आधार पर शराब पीने की इजाजत मिल जाती है। इस प्रावधान के कारण वहां डाक्टरों की पौ बारह है। गुजरात से लोग केवल शराब पीने के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जाते हैं।

अभी तक का अनुभव बताता है कि शराबबंदी की नीति किसी भी राज्य में पूर्णतः सफल नहीं हुई है। पाकिस्तान में भी शराबबंदी है परंतु सिर्फ मुसलमानों के लिए। मैं तीन वर्ष पहले पाकिस्तान गया था। वहां आमतौर पर यह यह कहा जाता है कि यदि कोई चीज सबसे आसनी से उपलब्ध है तो वह है शराब। वहां मंहगी होटलों में तो शराब बिना किसी रोकटोक के उपलब्ध रहती है।

वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि शराब की लत बहुत घातक होती है। इससे शराबी के स्वास्थ्य पर तो विपरीत प्रभाव पड़ता ही है, परिवार में अशांति होती है, निम्न वर्ग की आय का एक बड़ा हिस्सा शराब की भेंट चढ़ जाता है, सड़क दुर्घटनाएं होती हैं और शराबी नशे में कई ऐसे अपराध करते हैं जो शायद होशोहवास में वे न करें।

आवश्यकता है इस बारे में राष्ट्रीय नीति बनाने की। यदि शराबबंदी करनी ही है तो पूरे देश में एकसाथ लागू होनी चाहिए। प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे शीघ्रातिशीघ्र मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर इस विषय पर राष्ट्रीय सहमति कायम करके निर्णय लें। इसके पूर्व संसद में इस मुद्दे पर विचार हो। मेरी राय में शराबबंदी से ज्यादा आवश्यक यह है कि किसी एक व्यक्ति द्वारा पी जाने वाली शराब की मात्रा सीमित हो। सीमित मात्रा में शराब का सेवन उतना नुकसानदायक नहीं है जितना असीमित मात्रा में पीना है।

रूस में जब कम्युनिस्ट व्यवस्था थी तब वहां नागरिकों को सीमित मात्रा में शराब खरीदने का अधिकार था दूसरे शब्दों में वहां शराब पर राशन व्यवस्था लागू थी। वहां शराब की लत के मामले कम ही देखने को मिलते थे।

एक विचारणीय प्रश्न यह भी है कि क्या शराब ही एकमात्र नशीला पदार्थ है? शराब के अतिरिक्त अन्य कई पदार्थ हैं जिनसे नशा होता है। अफीम,भांग और नशीली दवाईयों (ड्रग्स) भी तो नशेले पदार्थ हैं। पंजाब में लगभग आधी आबादी ड्रग्स की लत से पीडि़त है। ड्रग्स का धंधा वहां का सबसे बड़ा काला धंधा है। इस धंधे में वहां के बड़े-बड़े राजनेता, जिनमें सत्ताधारी पार्टी के राजनेता भी हैं शामिल हैं। अभी हाल में मुझे पंजाब जाने का अवसर मिला। इस धंधे में शामिन नेताओं के नाम वहां के आम लोगों की जुबान पर हैं।


अंत में यह कहना उचित होगा कि आवश्यकता इस बात की है कि हर प्रकार के नशीले पदार्थों के  सेवन की मात्रा नियंत्रित की जाए। क्यूंकि अधिक मात्रा में इनके सेवन का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और इन पदार्थों का अवैध कारोबार विभिन्न प्रकार के माफियाओं को जन्म देता है।   


   

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