नरेन्द्र मोदी आधुनिक भारत के मोहम्मद तुगलक हैं
एल.एस. हरदेनिया
Photo Courtesy-bhopalsamachar |
आज़ादी के बाद महात्मा गांधी ने एक जंतर दिया था।
उन्होंने कहा था ‘‘जो सबसे गरीब और कमज़ोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो
और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए
कितना उपयोगी होगा। क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा। क्या उससे वह अपने ही जीवन पर
कुछ काबू कर सकेगा। यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को कुछ राहत मिलेगी जिनके पेट
भूखे हैं और आत्मा अतृप्त है’’। गांधी जी ने यह जंतर आज़ाद भारत के शासकों को इस उद्देश्य से दिया था कि
वे कोई भी नीति कार्यक्रम बनाने के पहले इस बात को निश्चित कर लें कि उससे देश के
गरीब व्यक्ति को क्या लाभ होगा।
नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी की नीति को यदि गांधीजी
की इस कसौटी पर कसें तो यह स्पष्ट महसूस होगा कि नोटबंदी ने यदि सबसे अधिक किसी का
नुकसान किया है तो वह वही व्यक्ति है जो गरीबी की रेखा के नीचे बनी पंक्ति में
सबसे आखिरी में खड़ा है। 8 नवंबर, 2016 के बाद यदि किसी को सर्वाधिक यंत्रणा नोटबंदी से पहुंची है तो वह
व्यक्ति है रोज़ कमाने-खाने वाला। जो रोज़ छोटे धंधों से अपना जीवनयापन करता है। फिर
चाहे वह खेत का मज़दूर हो, स्टेशन पर काम करने वाला कुली हो, हम्माल हो, चाय बेचने वाला हो, सब्ज़ी का ठेला
चलाता हो, दूसरों के जूते को
सिलाई करने वाला मोची हो, कपड़े सीने वाला दर्ज़ी हो, रिक्शाचालक हो आदि।
भोपाल में दिनांक 23 दिसंबर, 2016 को नोटबंदी के
प्रभाव पर विचार विमर्श का आयोजन किया गया था, जिसमें इस बात पर
विस्तृत चर्चा की गई थी कि नोटबंदी का समाज पर क्या असर हुआ। इसमें विशेषज्ञों के
अतिरिक्त रोज़ कमाने-खाने वाले व्यवसायों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया गया
था। सभी ने कहा कि हमारी दैनिक आमदनी एक तिहाई रह गई है। जैसे एक हम्माल ने बताया
कि 8 नवंबर के पहले वह
दिनभर में 800 से 900 रूपए कमा लेता था, अब वह घटकर 150 से 200 रूपए तक ही सिमट
गया है। एक चाय की गुमठी चलाने वाले ने बताया कि पहले वह 1000-1200 रूपए की आमदनी कर
लेता था अब वह 200-300 रूपए ही कमा पाता
है। इसी तरह का अनुभव अन्यों का था। सभी ने कहा कि आमदनी की इस कमी का प्रभाव सबसे
ज्यादा बच्चों पर पड़ा है। उनके जीवन को चाहे वह स्कूल का हो, चाहे स्कूल के बाहर
का हो, बहुत बुरी तरह से
प्रभावित हुआ है। बीमार होने पर इलाज कराने के लिए पैसे नहीं हैं। अनेक प्रायवेट
स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया है। पहले प्रतिदिन
दोनों टाईम खाते थे, अब एक टाईम ही खा पाते हैं। कुल मिलाकर जितना नुकसान नोटबंदी ने गरीबों
का किया है उतना पहले कभी नहीं हुआ।
इसी श्रेणी से आने वाले एक वक्ता ने यह प्रश्न पूछा
कि क्या नरेन्द्र मोदी सोचते थे कि काला धन सिर्फ गरीबों के पास है? इसलिए शायद हमको
सर्वाधिक यंत्रणा देकर हमसे काला धन निकालने का प्रयास किया गया है। विचार-विमर्श
में बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों के संगठन के प्रतिनिधि ने भी अपना अनुभव
बताया। उन्होंने कहा कि यह सत्य है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बैंक है। 8 नवंबर के बाद
बैंकों की व्यवस्था पूरी तरह से लड़खड़ा गई है। बैंकों का काम सिर्फ नोट बदलने तक
सीमित रह गया है। वर्ष के आखिरी दो महीने बैंकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, जब हम नए खाते खुलवाने
के लिए लोगों के दरवाजे खटखटाते हैं। रिकवरी की रफ्तार तेज़ करते हैं। अनेक कामों
के लिए उपभोक्ता लोन प्रदान करते हैं। यह सब काम ठप्प हो गए और इससे जो नुकसान हुआ
है उसकी पूर्ति अगले चार से पांच सालों में भी नहीं की जा सकती। दुःख की बात यह है
कि इस दरम्यान बैंकों और ग्राहकों के संबंध कटु हो गए हैं। नोटबंदी से हुई सारी
दिक्कतों का सामना बैंकों को करना पड़ रहा है। आम आदमी सोचता है कि हम ही असली
खलनायक हैं। इस दरम्यान बैंकों के लाखों कर्मचारियों को गंभीर तनाव के वातावरण में
काम करना पड़ रहा है। रात भर शाखाएं खुली रखना पड़ी हैं। महिला कर्मचारियों ने भी
रातें बैंक के कार्यालय में बिताई हैं। उत्पन्न तनाव के कारण 15-20 बैंक कर्मचारियों
की अकाल मौतें हो गईं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस दरम्यान प्रायवेट बैंकों
के साथ पक्षपात किया गया। सार्वजनिक बैंकों की अपेक्षा उन्हें ज्यादा नोट दिए गए।
गांवों में तो स्थिति अत्यधिक गंभीर थी। गांवों में दबंगों का राज चलता है, उनके डर के कारण
गांवों में बैंक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।
जहां तक उद्योगों का सवाल है, छोटे उद्योग लगभग
बंद हो गए हैं। बड़ी संख्या में उद्योगों में काम करने वाले कर्मचारी अपने गांव वापस
चले गए हैं। अस्पतालों का भी यही हाल है। दवाईयों की बिक्री भी एक तिहाई रह गई है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी इमेज को भारी धक्का
लगा है। इस तरह के अनिश्चित वातावरण में जब उपभोक्ता की खरीदने की ताकत एक तिहाई
रह गई हो तो कौन विदेशी हमारे देश में पूंजी लगाएगा? एक विदेशी अखबार, वैश्विक पत्रिका फ़ोर्ब्स
में प्रधान संपादक स्टीव फ़ोर्ब्स ने इस शीर्षक से लेख लिखा what India is done to its money is sickening and
immoral (भारत ने अपनी मुद्रा के साथ जो किया है वह बीमार बनाने वाला और अनैतिक
है)। स्टीव का तर्क है कि लोग अपनी मेहनत से उत्पादन करते हैं, उसका प्रतिनिधि
उसका पैसा है। व्यक्ति का अर्जन उसकी मुद्रा करंसी है। सरकार अर्जन नहीं करती, जनता करती है। पैसा
उसकी अर्जित प्रापर्टी है। इस तरह भारत में जो हुआ है वह जनता की प्रापर्टी पर डांका
है और ऐसा बेशर्मी से बिना किसी प्रोसेस की आड़ रखकर हुआ है, ऐसा देश में पहले
कभी नहीं हुआ। इसी तरह की टिप्पणी लंदन की वैश्विक पत्रिका ‘द इकोनोमिस्ट’ ने भी की है। उसने
लिखा है कि आर्थिकी के मुद्रा का प्रबंधन किसी भी सरकार का सर्वाधिक महत्वपूर्ण
काम होता है। यहां तक कि महान कम्युनिस्ट नेता लेनिन ने भी कहा था यदि किसी देश की
रीढ़ को तोड़ना है तो उसकी करंसी को कमज़ोर कर दो।
कुल मिलाकर नरेन्द्र मोदी ने अपने ही हाथ से अपने ही
देश पर कुल्हाड़ी पटकी है। इस कुल्हाड़ी ने जो घाव किया है वह कब भरेगा इसका कोई
अंदाजा़ नहीं लगाया जा सकता। हमारे देश के अनेक अर्थविशेषज्ञों ने मोदी के इस कदम
की सख्त शब्दों में निंदा की है। इस तरह के लोगों में रिजर्व बैंक के तीन पूर्व
डिप्टी गवर्नर,
विश्व के तीन नोबल
लोरेट शामिल हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अगर सरकार ने अगले एक-डेढ़
महीने से लेकर चार महीने में अर्थ व्यवस्था से निकाली गई नकदी की भरपाई नहीं की तो
नोटबंदी की मार से अगले वित्तीय वर्ष की विकास दर भी प्रभावित हो सकती है।
नोटबंदी के संदर्भ में आमतौर से इंदिरा जी द्वारा
लगाए गए आपातकाल को याद किया जा रहा है। जब इन पंक्तियों के लेखक ने भारतीय जनता
पार्टी के एक बड़े नेता से पूछा कि क्या आज की स्थिति की तुलना आपातकाल से की जा
सकती है तो उनका कहना था कि दोनों में बहुत अंतर है। आपातकाल में नेताओं को सताया
गया था, नोटबंदी के काल में
गरीब जनता को सताया जा रहा है। इंदिरा जी के आपातकाल में आमजनता का बाल बांका भी
नहीं हुआ था सिर्फ नेता ही जेल गए थे और हम तो इंदिरा जी के आभारी हैं कि हमें जेल
जाने के एबज़ में जिंदगी भर के लिए मीसाबंदी वज़ीफा मिला है (जिन लोगों को राजनैतिक
कारणों से आपातकाल में गिरफ्तार किया गया था उन्हें अनेक भाजपा सरकारों ने
प्रत्येक माह दस से पंद्रह हज़ार रूपए दिए हैं, ठीक वैसे ही जैसे
स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को मिलते हैं)।
नोटबंदी को लागू हुए 50 दिन हो गये हैं।
नोटबंदी के बाद नरेन्द्र मोदी ने बार-बार कहा है कि यदि 50 दिनों में स्थिति
नहीं सुधरी तो देश मुझे दंडित कर सकता है। तो देश को यह पूछने का हक है कि क्या वह
समय आ गया है जब नरेन्द्र मोदी को दंडित किया जाना चाहिए।
आज़ादी के बाद देश पर अनेक विपत्तियां आईं। तीन-तीन
युद्धों का सामना हमने किया, परंतु कभी देश की अर्थव्यवस्था इस हद तक नहीं लड़खड़ाई जैसी कि 8 नवंबर, 2016 के बाद से लड़खड़ाई
है। एक समाचारपत्र ने सही लिखा है कि वर्ष 2016 भारत का मूर्खता
का इतिहास है। इस वर्ष में जो कुल्हाड़ी नरेन्द्र मोदी ने देश पर ठोकी है वह शायद
भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा। जो नरेन्द्र मोदी ने किया है वह
हमारे देश के लंबे इतिहास में सिर्फ मोहम्मद तुगलक ने किया था। एक अन्य अखबार ने
लिखा कि इतिहास में यह लिखा जाएगा कि भारत दुनिया का वह अनोखा देश है जहां मध्यकाल
में मोहम्मद तुगलक नाम का राजा था तो आधुनिक काल में नरेन्द्र मोदी नाम का
प्रधानमंत्री बना। दोनों ने देश की करंसी खत्म कर जनता के अर्जित पैसों को लूटा, बर्बादी कराई, दौड़ रहे देश को
बैठा दिया, करंसी में अमूल्य
नाजुक विश्वास को तोड़कर। क्या इसी तरह के सुख के दिन का सपना नरेन्द्र मोदी ने
दिखाया था। यह प्रश्न भारत का बच्चा भी पूछ रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व धर्मनिरपेक्षता के प्रति
प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं)
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