बिल्ली के गले में घन्टी कौन बांधेगा ?
जनसत्ता के 2 नवम्बर 2010 के के अकं में ‘‘ इन्दौर में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के पथ संचालन में हिस्सा ले रहे कार्यक्रताओं पर फूल बरसाते मुसलमान ’’ शीर्षक से एक फोटो छपा है। इस फोटो को देखकर शिकारी बिल्ली और चूहे की पुरानी कहानी याद आ गयी।
यह गौर तलब है कि मध्यप्रदेश का ‘‘मालवा क्षेत्र’’ संघ परिवार का पुराना गढ़ और साम्प्रदायिक रुप से संवेदनशील क्षेत्र रहा है। यह तथ्य है कि जहॉ भी संघ या इसके आनुवांशिक संगठनों का प्रभाव ज्यादा है वह क्षेत्र साम्प्रदायिक रुप से भी ज्यादा संवेदनशील रहे है।
वैसे तो आर.एस.एस. हमेशा से खुद को सांस्कृतिक संगठन तथा हिन्दुओं का स्वंयभू ठेकेदार कहता रहा है। परन्तु अपने मूल रुप में यह एक शुद्व राजनैतिक संगठन है जिसका एक राजनैतिक दर्शन है, जो कि ब्राहमणवाद के श्रोतग्रन्थ मनुस्मृति और हिटलर, मुसोलोनी के फॉसीवाद के दर्शन का घालमेल है।
इस तथाकथित संस्कर्तिक संगठन की सैकड़ो आनुवांशिक संगठनें है, जो चुनावी राजनीति से लेकर जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में सक्रिय है। यह संगठन कहने को तो स्वायत रुप से काम करते है परन्तु इनकी असली बागड़ोर नागपूर के हाथों में है। इसका ताजा उदाहरण भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद विवाद है, जिसमें आर.एस.एस. ने पहली बार खुले रुप से नितिन गड़करी को अध्यक्ष बनवाने के लिए हस्तक्षेप किया।
संविधान, लोकतंत्र, स्त्रीओं, ब्राहमणवाद, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदि मसलों पर समय-समय पर खुले या दबे जुबान से आर.एस.एस. में अपनी जो राय व्यक्त की है, वह किसी भी लोकतांत्रिक एवॅ आधुनिक राष्ट्र के चिन्ताजनक होनी चाहिए।
पिछले कुछ सालों से लगातार आर.एस.एस. से जुड़े लोगों की आतंकवादी घटनाओं में लिप्त होने की खबरें आ रही है। लेकिन यह कोई नई परिघटना नही है, 1948 में ही महात्मा गांधी की हत्या में आर.एस.एस. से जुड़े लोगों का नाम आ चुका है।
अभी तक देश में हुए ज्यादातर दंगों में आर.एस.एस. या उसके अनुवांषिक संगठनो की या उससे जुडे लोगों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका सामने आती रही है। मक्का मस्जिद और 2007 में अजमेर विस्फोट में आर.एस.एस. से जुड़े लोगों को आरोपी बनाया गया है तथा इसकी जांच चल रही है। अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में राजस्थान में आतंकवाद विरोधी दस्ते (ए.टी.एस.) द्वारा अभी तक पांच लोगों को गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
ज्ञात हो कि अजमेर दरगाह विस्फोट के मुख्य आरोपी, मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के दिवगंत प्रचारक सुनील जोशी है। अजमेर विस्फोट में उनका नाम आने के कुछ दिनों बाद ही देवास के पास सुनील जोशी की हत्या कर दी गई थी। जोशी की हत्या के बाद से ही उनके साथ रहने वाले चार कार्यकर्ता फरार है। इस घटना के कुछ दिनों बाद मध्यप्रदेश पुलिस ने जोशी के हत्या की फाइल बन्द कर दी थी।
नेशनल bUosLVhxs’ku एजेन्सी(एन.आई.ए.) ने जोशी के हत्या की जांच दोबारा शुरु की है। एन.आई.ए. सुनील जोशी की रहस्यमय हत्या के मामले की जांच तो कर ही रही है साथ ही साथ इस तथ्य की भी पड़ताल कर रही है कि अभी तक संध प्रचारक की हत्या का सुराग क्यों नही लगा है। उम्मीद है हकीकत जल्दी ही अपना मुहं खोलेगी और सच्चाई सामने आयेगी।
आर.एस.एस. अपने ऊपर लग रहे इन सारे आरोपो को खारिज करते हुए इसे हिन्दु विरोधी दुष्प्रचार बता रहा है। यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर किसी संगठन या उससे जुड़े लोगों का आतंकवाद जैसे गम्भीर घटना में नाम आता है और उस पर देश की एजेन्सीयॉ जांच करती हैं तो इसे हिन्दु विरोधी दुष्प्रचार कैसे कहा जा सकता है? कुछ साल पहले संघ परिवार के ही सबसे दुलारे पोस्टर बॉय और तथाकथित ‘‘विकास पुरुष नम्बर वन’’ ये कहते नही अघाते थे कि ‘‘सभी मुसलमान आतंकवादी नही होते पर सभी आतंकवादी मुसलमान होते हैं।’’
दुर्भाग्यवश अनेक कारणों से भारतीय समाज के बड़े हिस्से में आर.एस.एस. और उससे जुड़े संगठनों की गहरी पैठ है, इसकी जड़े भारतीय समाज के पिछड़ेपन में मौजुद है। जहॉ लोकतंत्र, समानता, आधुनिकता तथा धर्मनिरपेेक्षता के मूल्यों की कमी या इसकी आधी अधूरी समझ है।
संघ परिवार जिस विचारधारा को आगे बढ़ा रहा है। उसे हमें गहरायी से समझना होगा। यह सिर्फ अल्पसंख्यकों के ही विरुद्व नही है बल्कि समान रुप से लोकतंत्र, दलितों, स्त्रीयों, प्रगतिशील ताकतों, मेहनतकशो के लिए भी उतनी ही मात्रा में खतरनाक है।
यू.पी.ए. के सत्ता में आने तथा विगत कुछ सालों में इसके कार्यकताओं का आतंकवादी घटनाओं में नाम आने तथा उन पर जांच प्रक्रिया आगे बढ़ने की वजह से संघ परिवार बचाव की मुद्रा में दिखायी दे रही है। लेकिन कांग्रेस और अन्य चुनावी पार्टियों के पुराने इतिहास को देखते हुए यह नही लगता है कि वे इस मसले पर बहुत आगे तक जायेगें।
सतह पर दिख रही ‘‘शान्ति’’ धरातल में पसरे खतरे को कम नही बनाती है। संघ परिवार को खाद-पानी हमारे समाज से ही मिलता है और समाज के लोकतांत्रिकरण का मसला बहुत पेचीदा है। ऐसे में सवाल उठता है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा?
जावेद अनीस
thhik baat h
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