दलित उत्पीड़न में चैम्पियन -: मध्यप्रदेश

"होशंगाबाद  जिले के वनखेड़ी तहसील स्थित पुरैनारंधीर गॉव के दलित साथी कपूरा, सुदामा प्रसाद एवॅ अटर सिंह, 11 सितम्बर को  अपने साथ घट रही अत्याचार से थक हर कर भोपाल आये थे, भोपाल मैं संगठन के साथिओं के साथ मिल कर उन्होंने  राज्य मानव अधिकार योग तथा अनुसूचित जाति कल्याण मंडल में भी इसकी शिकायत दर्ज कराई गयी है  "



        न्य मामलों में मध्यप्रदेश  को भले ही बीमारु राज्य कहा जाये, परन्तु दलितों पर अत्याचार के मामले में इसका ऊचा मुकाम है। प्रदेश  में सामाजिक उत्पीड़न की जड़ें आजादी के 60 वर्षों के बाद भी गहरी है। 

प्रदेश  में जाति भेदभाव की जड़ें कितनी गहरी हैं उसका अंदाजा सितम्बर 2010 में प्रदेश  के मुरैना जिले के मलीकपूर गॉव में हुई एक घटना से लगाया जा सकता है। जिसमें एक दलित महिला ने ऊची जाति के व्यक्ति के कुत्ते को रोटी खिला दी। जिस पर कुत्ते के मालिक का कहना था कि एक दलित द्वारा रोटी खिलाऐ जाने के कारण उसका कुत्ता अपवित्र हो गया है। गॉव के पंचायत ने दलित महिला को उसके इस ‘‘जुर्म’’ के लिए 15000रु दण्ड़ का फरमान सुना दिया है। 

सरकारी आंकड़े ही बतातें हैं कि पूरे देश  में दलित उत्पीड़न को लेकर जो घटनाऐं होती हैं, उसमें मध्यप्रदेश  हमेशा   से ही टॉप थ्री  में रहा है। प्रदेश  सरकार आंकड़े बतातें हैं कि मध्यप्रदेश  कि वर्तमान में मध्यप्रदेश  अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों पर अत्याचार के मामले में तीसरे स्थान पर है। प्रदेश   में दलित अत्याचार के 71 फीसदी मामलें लबिंत हैं। केवल 29 फीसद मामलें में ही सजा दिलायी जा सकी हैं। 

आये दिन प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से दलितों पर अत्याचार की खबरें अखबारों के कोनों में अपनी मौजुदगी दर्ज कराती रहती हैं। लेकिन दलित अपने रोजमर्रा की जिंदगी में जिस अपमान, गैरबराबरी, शोषण, छुआछुत के दंश  के साथ जीने को मजबूर हैं उसको अखबारों का कोना भी नसीब नही हो पाता। 

नाई द्वारा बाल काटने को मना कर देना, चाय की दुकानदार द्वारा चाय देने से पहले जाति पुछना और खुद को दलित बताने पर चाय देने से मना कर देना या अलग गिलास में चाय देना, पुरुष पंच/सरपंच को मारने पीटने और महिला पंच/सरपंच के साथ बलात्कार, शादी में घोड़े पर बैठने पर रास्ता रोकना और मारपीट करना, मरे हुए मवेशियों को जबरदस्ती उठाने को मजबूर करना, मना करने पर सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार कर देना आदि जैसी घटनाऐं कुछ उदाहरण मात्र है जो दलितों के आम दिनचर्या का हिस्सा बन गये लगते हैं। 

होशंगाबाद  जिले के वनखेड़ी तहसील स्थित पुरैनारंधीर गॉव के दलित परिवारों की स्थिति भी कुछ अलग नही है। पुरैनारंधीर गॉव के निवासी कपूरा, सुदामा प्रसाद एवॅ अटर सिंह, दलित हैं। इनकी गॉव में खेती की कुछ जमीन है,उनके खेत के आसपास ही प्रेम कुमार काछी (पिछड़ा वर्ग) की खेती की जमीन है। काछी परिवार दबंग तथा पैसे वाला है। कपूरा तथा अन्य लोग अपने खेतों तक आने जाने के लिए प्रेम कुमार काछी के खेत के बीच बनी पुश्तेनी  सड़क  का उपयोग करते रहें है। परन्तु 30 सिंतम्बर 2010 से काछी परिवार ने इस रास्ते में गडढ़ा खोद कर रास्ते को बंद कर दिया। कपूरा तथा अन्य द्वारा काछी परिवार को ऐसा करने से रोकने पर उन्हें जातिसूचक अश्लील  गालियां देने लगे।

कपूरा बतातें है कि रास्ता रोकने का मकसद हमारे जमीन को औने पौने दाम में खरीदने के लिए दवाब बनाना है,  हम लोगों ने अपनी जमीन बेचने से मना कर दिया था। जिस पर हमारे खेत में आने जाने का एकमात्र पुश्तेनी रास्ता इन्होनें बंद कर दिया। रास्ता रोकने से मना करने पर प्रेम कुमार तथा सिमउआ काछी ने हम लोगों को मां/बहन की जातिगत गालियां  दीं तथा कहने लगे कि ‘‘ मादरचो........चमरे कब से खेती करने लगे। खेती चमारों के बस की बात नही है। तुम लोग तो मरे जानवरों का चमड़ा छिलो और अपनी 3.42 एकड़ जमीन दस बीस हजार रुपये लेकर हमें बेच दो।’’
कपूरा आगे बतातें है कि जब उन्होनें जमीन बेचने से मना किया तो उन्हें जान से मारने की धमकी देते हुए कहा कि ‘‘हम तुम्हें खेत में नही घूसने देगें, देखते है कैसे खेती करते हो।’’ 

गॉव की सरपंच दलित महिला है। जब कपूरा ने सरपंच के पास चल कर मामला सुलझाने की बात की तो काछी परिवार के लोगों द्वारा सरपंच को जातिसूचक गालियॉ देते हुए कहा गया कि ‘‘चमरो को बुलाकर पंचायत लगाओगे, हम खुद ही सरपंच है।’’ 

कपूरा, सुदामा प्रसाद एवॅ अटर सिंह हरिजन द्वारा इसकी शिकायत पुलिस थाना वनखेड़ी,हरिजन कल्याण थाना होशंगाबाद, तहसीलदार वनखेड़ी तथा जिला कलेक्टर होशंगाबाद के पास की जा चुकी है। लेकिन स्थानीय प्रशासन  द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नही की गई। दलित कल्याण थाना (जिसकी स्थापना दलितों पर अत्याचार के मामलों पर तुरन्त कार्यवाही के लिए हुई है।) से लेकर जिला कलेक्टर तक का इस मामले में उदासीन रवैया प्रदेश  सरकार एवं प्रशासन  का दलितों  के प्रति असंवेदनशीलता  को उजागर करता है। 

यह विड़बना है कि प्रदेश में लगातार इतने बड़े पैमाने पर दलितों पर अत्याचार के मामलों के सामने आने के बावजूद मध्यप्रदेश की राजनीति में दलित उत्पीड़न कोई राजनैतिक मुददा नही बन पा रहा हैं। प्रदेश के तमाम राजनैतिक दलों के एजेन्ड़े में दलितों के सवाल सिरे से ही गायब है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि कैसे दलित उत्पीड़न के अंतहीन सिलसिले को मध्य प्रदेश की राजनीति में एक मुददा बनाया जा सके ? 

जावेद अनीस  


[ युवा संवाद और नागरिक अधिकार मंच द्वारा  मध्य प्रदेश के गाडरवारा गाडरवारा मे मृत पशुओं का शव उठाने के ख़िलाफ़ लिये गये फ़ैसले के बाद सवर्ण द्वारा उत्पीडन पर की गयी  फ़ैक्ट फ़ाईंडिंग रिपोर्ट पढने के लिए निचे दिए लिंक पर क्लिक कीजिये   ]


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