प्रार्थना के पाठ
-चन्दन यादव
अगर हम प्रार्थना के अर्थ की खोजबीन करें तो पाऐंगे कि यह एक तरह का निवेदन है, जो ईश्वर या खुद से ज्यादा सक्षम व्यक्ति से कुछ पाने के लिए किया जाता है। यह निवेदन अच्छा आचरण, ज्ञान या धन आदि कुछ भी पाने के लिए हो सकता है। प्रार्थना के इस मिजाज से यह जाहिर है कि हर व्यक्ति की ख्वाहिशें अलग हो सकती हैं। अगर उसे प्रार्थना में यकीन है तो वो अपनी मुराद पाने के लिए प्रार्थना का सहारा लेगा । प्रार्थनाओं में यकीन का मतलब यह भी है कि प्रार्थी को खुद की सामर्थ्य और कर्म पर भरोसा नहीं है। इसलिए किसी भी तरह की प्रार्थना का सामूहिक गायन, वाचन या प्रदर्शन प्रार्थना को जाहिर नहीं करता । बल्कि यह जाहिर करता है कि प्रार्थना कर रहे सभी लोग एकजुट हैं, और वे उस ईश्वर में भरोसा करते हैं जिसकी प्रार्थना की जा रही है। अगर प्रार्थना किसी एक खास धर्म के ईश्वर की हो तो जाहिर है कि उसमें उस धर्म को मानने वाले ही शामिल होंगे।
इसलिए इसे महज एक संयोग नहीं कहा जा सकता कि मध्यप्रदेश के राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा विकसित हिन्दी की किताब ‘भाषा भारती’ में कक्षा पहली से लेकर पांचवी तक हर पहला पाठ एक प्रार्थना है। अपेक्षा की गई है कि बच्चे रोज इन प्रार्थनाओं का सस्वर पाठ करें। मतलब सभी बच्चे रोज एक सी प्रार्थना करें। भले ही उनकी मुरादें अलग अलग हो। कल्पना करें कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चे ईश्वर से क्या मांगेंगे ? किसी की चप्पल टूटी होगी, किसी का बस्ता फटा होगा, संभव है किसी को भरपेट खाना नहीं मिला हो, किसी की मां या पिताजी बीमार होंगे। तो बच्चे जब प्रार्थनाओं पर यकीन करेंगे तो यही सब मांगेंगे। अर्थात उनकी प्रार्थनाएं, अगर वे सच्ची है, तो एक जैसी तो हरगिज नहीं होंगी।
पर सरकार का फरमान है कि स्कूल के सब बच्चे एक सी प्रार्थना करें। दरअसल इन प्रार्थनाओं का मकसद प्रार्थना करवाना भी नहीं है। इनका मकसद बच्चों को कुछ सिखाना है। बच्चों को सिखाने के लिए एकमात्र योग्यता उनसे उम्र में बड़ा होना है। हमारे समाज में हर कोई बच्चों को सिखाने के लिए बेताब रहता है। तो कक्षा पहली की प्रार्थना सिखाती है कि जिस ईश्वर ने सूरज चांद तारे और यह जगत बनाया है उसके गुण गाऐं। दूसरी की प्रार्थना में भगवान से ज्ञान, सेवा और विनम्रता मांगी गई है। कक्षा तीसरी की प्रार्थना में परोपकार, कर्तव्य की भावना, दीन दुखी और भूले भटकों को रास्ता दिखाने की शक्ति मांगी गई है। चौथी कक्षा की प्रार्थना में भारत में पैदा करने के लिए भगवान के प्रति आभार प्रकट किया गया है। उनसे अपनी मातृभूमि के लायक बनाने की गुजारिश की गई है। पांचवी की प्रार्थना ‘पुष्प की अभिलाषा’ है, जिसमें पुष्प कहता है ‘मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएं वीर अनेक।
इन प्रार्थनाओं का एक एक शब्द कहता है कि ये हिन्दुत्व और हिन्दूवादी राष्ट्रवाद की कविताएं हैं। ये उस भाषा की कविताएं भी हैं जिसने हिन्दी के साहित्य को बोलचाल की भाषा से दूर कर दिया। और यह सब उन सरकारी स्कूल के लिए है जिनमें सभी धर्मों को मानने वाले बच्चे एक साथ पढ़ते हैं। ये प्रार्थनाएं धर्मनिरपेक्षता के मूल्य का सरासर उल्लंघन हैं। पर इससे भी बुरी बात यह है कि ये बच्चों की जिज्ञासा, तर्क और विश्लेषण करने की क्षमता का पहली के पहले पाठ में ही दमन कर देती हैं। क्योंकि प्रार्थना कहती है कि चांद, तारे, सूरज, ये जगत सब ईश्वर ने बनाया है।
कक्षा पहली से पांचवी तक पसरी इन कविताओं का लब्बोलुआब यह है कि ज्ञान देना भगवान का काम है। ईश्वर और देश का दर्जा इंसान से बड़ा है। हमारा देश सबसे अच्छा है। और जो हमसे ज्यादा ताकतवर है, उसकी बात मानो और उसके आगे सिर झुकाओ। किसी भी बुरी सरकार के लिए इससे अच्छा क्या होगा कि उसके भावी नागरिक स्कूल की इन किताबों में दी प्रार्थना के अनुसार आचरण करने वाले बन जाएं।
गनीमत है कि बच्चे स्कूल में होने वाले निरर्थक क्रियाकलापों को जल्दी ही समझ जाते हैं। वे स्कूल के बाहर खुद की तरह रहते हैं, और स्कूल के बारे में समझ लेते हैं कि कुत्ते के मुंह में लकड़ी डालकर भौं भौं करवाने से चुप्पी भली।
-संपर्क मो. 9425608874
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