मुस्लिम महिलाओं की करवट से परेशान कठमुल्ले
रामप्रकाश त्रिपाठी
यह सच है कि मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ में जितनी सुरक्षायें, सुविधायें और स्वतंत्रतायें महिलाओं को दी गई हैं, उतनी अन्यंत्र एक साथ कहीं नहीं हैं, लेकिन इसके ठीक विपरीत कडवी सच्चई यह भी है कि विश्व स्तर पर मुस्लिम समाज की महिलायें जितनी प्रताडनायें, ज्यादतियां और जुल्म झेल रही हैं उतनी दुरावस्था दीगर किसी धर्म-समाज में नहीं है। कट्टरपंथी मुस्लिम तंजीमों का सुधारवाद जैसे औरतों पर पावंदियों पर आकर ठहर गया है। अफगानिस्तार, पाकिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और संयुक्त अरब अमीरात सभी जगह की कहानी यही है। तालिबानी आंदोलन ने मुस्लिम महिलाओं पर जितने अत्याचार किये हैं, उसकी कहानी से सभी परिचित हैं।
जुल्म बढ़ता है तो उसकी प्रतिक्रिया में प्रतिकार की कतारें भी लामबंद होती हैं। मुस्लिम महिलायें अब अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते रहने के लिए तैयार नहीं हैं। वे करवट बदल रही हैं। अपने अधिकारों और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उनमें चेतना आ रही है। इसकी रफ्तार भले ही धीमी, मगर बहुत ठोस और तर्क आधारित है। दिलचस्प यह है कि उनके तर्क धर्मविरोधी न होकर धर्म आधारित हैं। वे कुरानशरीफ को केन्द्र में रखकर ही हक-हुकूकों की मांग कर रही हैं। पुरूष-वर्चस्ववादी समाज की जकडबंदियों से घिरे इमामों-मुफ्तियों-मुल्लाओं से वे सवाल कर रही हैं कि आखिर मेहर से तलाक तक के अधिसंख्य फैसले मर्दों के हक में क्यों होते हैं।
पढ़ी लिखी औरतें आगे आ रही हैं। लंबे समय तक मुस्लिम समाज (वृहत्तर रूप से सारे ही धर्म-समाज) स्त्री शिक्षा विरोधी रहे हैं क्योंकि शिक्षा इंसान के अंदर की मजबूती प्रदान करती है और डर के किले को ध्वस्त करती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ, शरियत सभी संबंधित फैसलों पर सवाल उठाये जा रहे हैं। सवाल बदनीयती और गलत व्याख्याओं पर हैं जिनके जबाब पुरूष वर्चस्ववादी कठमुल्लाओं से देते नहीं बन रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा इंस्टटयूट ऑफ माइनॉरिटी वूमेन की काजियत की मौजूदगी में आयोजित जन सुनवाई में नजर आया। हालांकि वायदा करने के बावजूद शहर काजी सुनवाई में नहीं आये और तीखे सवालों का सामना करने की उन्हें नौबत नहीं आई। अलबत्ता इस्लाम के जानकार विद्धान, अदबी हैसियत के लोग, प्रोफेसरान वगैरह वहां हाजिर थे। सामने थी हालात की मारी मजबूर, गरीब, परेशान हाल औरतें, उनकी अन्यायपूर्वक तलाक दिए जाने, मेहर की रकम अदा न करने के बावजूद काजी द्वारा तलाक को मंजूरी दिए जाने जैसी तमाम समस्यायें थीं। जिनकी मध्यस्यथता के लिए कई वकीलों ने अपनी ओर से पहल का वादा किया।
जन सुनवाई मे मुसलिम सुधारबादी आन्दोलन के प्रणेता डॉ. असगर अली इन्जिनियर, शीबा असलम फेहमी, शफीक दुर्रानी, डॉ नुरसत बानो रूही, जनाव हमीदउल्ला, समरीन खान उपस्थिती महत्वपूर्ण थी। महिलाओं ने जिस मजबूती से अपना पक्ष रखा उससे यह स्पष्ट हो गया कि लम्बे समय तक वे अन्याय वर्दास्त नही करेगीं उनके साथ किया जा रहा अन्याय शरियत के खिलाफ भी है और धर्म के आदेशो के विपरीत भी। मुस्लिम पर्सनल लॉ के कई प्रावधानों तक को उन्होने धर्म और इस्लाम के विपरीत बताया और उसके पक्ष मे मजबूत तर्क दिए। इस बीच बुनियाद परस्त किस्म के कुछ तालिबानी मिजाज के लोगों ने कुछ हुल्लड मचाने कि कोशिश की। चूँकि तर्क वे कर नही सकते थे इसलिये वे चाह रहे थे कि इस सुनवाई को ही न होने दिया जाए मगर वे सफल नहीं हो सके।
दो सत्रीय सुनवाई के वाद अन्तिम सत्र मे अखिल भारतीय सेकुलर फोर्म, फलक एज्यूकेशन सोसाइटी, भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन, महिला अधिकार सन्दर्भ केन्द्र, जनपहल, सम्वेदना, जनवादी लेखक सघं, प्रगतिशील लेखक संघ, एस एफ आई, भारत दास निहाल समिति, विश्वविधालय प्रध्यापक संघ, आदि के प्रतिनिधियों की मौजूदगी के एक वैकल्पिक मुस्लिम परिवार अधिनियम मुस्लिम फैमिली लॉ के प्रारूप पर गंभीर बातचीत हुई। प्रारूप मे काजी, निकाह, दारूल कदा, आर्वाटेशन कांउसिल, मेहर, तलाके-अहसान, तलाके हसन, तलाके तफ्वीद, तलाके मुबारत, खुला, हिवा की परिभाषिकताओं पर गंभीर विचार किया गया और उन्हें सुपरिभाषित करने की जरूरत पर जोर दिया गया।
बाद में मुस्लिम फैमिली लॉ का प्रारूप चर्चा के बाद पास किया गया। इसमें निकाह, निकाह का पंजीयन, वली, विवाह की उम्र, मेहर प्रोक्ट (मुआजल), निर्वाह भत्ता, तलाक, मौखिक तीन बार कहे गए तलाक, तलाक के प्रकार, पालीगेमी (बहुपत्नी विवाह) विरासत का अधिकार, बच्चों का अभिभावन जैसे जटिल मुद्दों पर विचार के बाद प्रारूप को स्वीकृति दी गई।
खरी न्यूज को डा. असगर इली इंजीनियर ने बताया कि यह ड्राफ्ट किसी टकराव के लिए नहीं है-इसे व्यवहारिकता के नजरिये से कुरान शरीफ की मूल मंशाओं के मद्देनजर तैयार किया गया। इसमें औरतों के साथ इंसाफ को वरीयता दी गई है। इसका मकसद सामाजिक समरसता बढ़ाना है। डा. इंजीनियर ने बताया कि इस पर भोपाल की तरह की तमाम दीगर शहरों में चर्चा करके सुझाव लिए जायेंगे। हमारी योजना इस प्रारूप पर प्रमुख धर्माचार्यों और लखनऊ जाकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से चर्चा करने की है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि समझदार मुस्लिम समुदाय का इस पहल को समर्थन मिलेगा।
डा. असगर अली ने कहा कि मुफ्ती और फतवा मांगने वाले का रिश्ता डाक्टर और मरीज का होना चाहिए। एक व्यक्ति का सीमित और परिस्थिति विशेष में मांगा गया फतवा कानून की तरह नहीं लिया जाना चाहिए।
मुस्लिम महिलाओं के हम-हकूकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय शीबा असलम फहमी ने भी इस आयोजन में अपनी महत्वपूर्ण सलाह और सुझाव दिए।
वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हरदेनिया ने कहा कि इस प्रारूप पर पहल का व्यापक प्रचार प्रसाद किया जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन सफिया अख्तर और जुलेखा जबीं ने किया।
http://www.kharinews.com -से साभार
स्वागत योगी शानदार पहल ! इसे अंजाम तक पाहुचाया जा सकेगा इस उम्मीद के साथ शुभकामनायें !
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