धर्म परिवर्तन एवं लवजिहाद के नाम पर सांप्रदायिक तनाव फैलाया जा रहा है
एल.
एस. हरदेनिया
उत्तरप्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी
सांप्रदायिक फिजा बिगाड़ने के योजनाबद्ध प्रयास जारी हैं। उत्तरप्रदेश की तरह
मध्यप्रदेश में भी तथाकथित लवजिहाद के मामले खोज-खोजकर निकाले जा रहे हैं। इसी तरह
धर्मांतरण की घटनाओं को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त पिछले कुछ
दिनों से मध्यप्रदेश में छुटपुट सांप्रदायिक घटनाएं जारी हैं। भोपाल के पड़ोस में
स्थित रायसेन शहर में सांप्रदायिक तनाव की कुछ घटनाएं हुईं और नतीजे में वहां
कफ्र्यू लगाना पड़ा। इसी तरह खंडवा में फेसबुक में जारी एक चित्र को लेकर वहां
तनाव की स्थिति पैदा हुई,
वहां भी कफ्र्यू लगाया गया।
सांप्रदायिक तनाव के चलते वहां दो युवकों की हत्यायें हुईं, जिनमें एक हिन्दू और दूसरा मुसलमान था।
दोनों नौजवान गरीब परिवार से थे। अभी पिछले दिनों ग्वालियर संभाग के शिवपुरी जिले के बुकर्रा गांव
में कुछ दलितों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। सबसे पहले तुलाराम नामक व्यक्ति ने
इस्लाम कबूल कर अपना नाम अब्दुल करीम रख लिया। करीम ने धर्म परिवर्तन करने के बाद
यह दावा किया कि उसके परिवार के अन्य सदस्य भी शीघ्र इस्लाम स्वीकार करेंगे। धर्म
परिवर्तन की इस घटना से सारे प्रदेश, विशेषकर
ग्वालियर संभाग, में भूचाल सा आ गया है। दर्जनों की
संख्या में मीडियाकर्मी, शिवपुरी मुख्यालय से 128 कि.मी. दूर इस गांव में पहुंच गये।
धर्मांतरण को लेकर दक्षिणपंथी हिन्दू संगठनों ने बहुत शोर मचाना प्रारंभ कर दिया।
उन्होंने इस धर्म परिवर्तन को हिन्दू समाज के ऊपर एक नियोजित हमला बताया।
किसी ने यह समझने की कोशिश नहीं की कि
आखिर वे क्या कारण थे जिनके चलते दलितों को अपना धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार करना
पड़ा। कुछ समाचारपत्रों के अनुसार धर्म परिवर्तन के लिए अनेक कारण जिम्मेदार हैं।
आरोप यह लगाया जा रहा है कि जोर-जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन कराया गया। जब इन पर
जोर-जबरदस्ती हो रही थी तब हिन्दू हितैषी संगठनों के प्रतिनिधियों ने हस्तक्षेप
क्यों नहीं किया? एक पत्रकार ने तुलाराम के पिता प्रीतम
से पूछा कि क्या वह और उसका परिवार भी धर्म परिवर्तन करेगा? तो उसने अत्यधिक भोलेपन के लहजे में
कहा ‘‘साहब जहां लड़का जाये वहीं हमें भी
जाना पड़े। घर में वही एक कमाने वाला है, और
हमारा बड़ा परिवार है।’’ उसने यह भी कहा कि ‘‘वैसे तो धर्म परिवर्तन से कोई विशेष
फर्क नहीं पड़ता है। परिवार की मुख्य समस्या रोजी-रोटी तो है ही, सम्मान भी है।’’ जब प्रीतम से बार-बार यह पूछा गया कि
क्या आपके लड़के ने दबाव में आकर धर्म परिवर्तन किया है? तो उसने कहा कि यह बात गलत है।
1000-1200 लोगों की आबादी वाले बुकर्रा गांव की
आर्थिक सामाजिक स्थिति जिले के दूसरे गांव की तरह है। सारा गांव खेती-मजदूरी पर
निर्भर है। गांव में सबसे ज्यादा आबादी जाटवों की है, तो दूसरे नंबर पर ब्राह्मण समुदाय के
लोग हैं। जाटवों का मोहल्ला हर गांव की तरह यहां भी अलग-थलग है। जब वहां के दलितों
से पूछा गया कि क्या कोई उन्हें मंदिर जाने से रोकता है तो उन्होंने कहा कि हम खुद
ही मंदिर नहीं जाते हैं।
जहां तक दलितों की आर्थिक स्थिति का
सवाल है उसे बदतर ही कहा जा सकता है। कौनसा ऐसा क्षेत्र है जिसमें उनके साथ भेदभाव
नहीं होता हो। चाहे मामला अतिवर्षा से मिलने वाले मुआवजे का हो, चाहे मिली हुई जमीन पर खेती करने का हो, चाहे रोजगार योजना के अंतर्गत काम
मिलने का मामला हो सभी मामलों में दलितों के साथ भेदभाव होता है।
दलितों द्वारा इस्लाम स्वीकार करने के
बाद हिन्दूवादी संगठन सक्रिय हो गये और इन संगठनों ने उन सब पर दबाव बनाया जिनने
इस्लाम स्वीकार कर लिया है या करने वाले हैं। जिले के प्रशासन ने उनके विरूद्ध
कानूनी कार्यवाही प्रारंभ कर दी जिनने धर्म परिवर्तन किया है। हमारे प्रदेश के
कानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति बिना शासन को सूचित किए धर्म परिवर्तन नहीं कर
सकता। चूंकि इन लोगों ने सूचना नहीं दी थी इसलिए वे अपराधी समझे गये। इसी बीच
हिन्दुवादी संगठनों के प्रतिनिधियों ने इन पर दबाव बनाया कि वे फिर से हिन्दू बन
जायें। समाचारपत्रों के अनुसार चन्द्रशेखर पुरोहित नाम के व्यक्ति ने इनके ऊपर
दबाव बनाया। मनोज शर्मा नाम का एक ओर व्यक्ति पुरोहित का सहयोग कर रहा है। यह
बताया गया कि ये दोनों संघ परिवार के किसी संगठन से जुड़े हुये हैं। इनने मीडिया
प्रतिनिधियों को बताया कि हमने इन लोगों को चेतावनी देदी है कि वे शीघ्र ही इस्लाम
धर्म को त्याग कर फिर से हिन्दू बन जायें। बताया गया है कि कासिम और उनके
सहयोगियों ने इस पर विचार करने के लिए समय मांगा है। इस सारे घटनाक्रम को लेकर इन
पंक्तियों के लेखक ने वहां के कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक से बात करने का
प्रयास किया। परंतु लगातार प्रयासों के बाद कलेक्टर से बात नहीं हो पाई, परंतु पुलिस अधीक्षक से बात अवश्य हुई।
उनसे इस लेखक ने जानना चाहा कि हिन्दू धर्म को त्यागकर इस्लाम स्वीकार करना अपराध
की श्रेणी में आता है तो उन्होंने जिन लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया है उन्हें अब
जोर-जबरदस्ती से फिर से हिन्दू बनाना, क्या
अपराध की श्रेणी में नहीं आता है? क्या
उन लोगों को दंडित नहीं किया जाना चाहिये जो उनके ऊपर फिर से हिन्दू धर्म में आने
का दबाव बना रहे हैं? लेखक ने उनसे यह भी कहा कि जहां हिन्दू
धर्म को त्यागकर इस्लाम धर्म को स्वीकार करने की प्रक्रिया का कोई सबूत नहीं है
वहीं जोर-जबरदस्ती से फिर से हिन्दू धर्म में वापिस आने की प्रक्रिया तो अनेक
लोगों के समक्ष हुई। इसके बावजूद उन लोगों के विरूद्ध क्यों कार्यवाही नहीं हुई जो
दबाव बनाकर, धमकी देकर उन्हें फिर से हिन्दू धर्म
में वापिस करने का प्रयास कर रहे हैं।
दिनांक 8 सितम्बर के ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में स्पष्ट रूप से छपा है कि अतिवादी
हिन्दू संगठनों की तरफ से दबाव बनाया जा रहा है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर में
का गया है ‘‘इस बीच दक्षिणपंथी कार्यकर्ता
चंद्रशेखर पुरोहित ने बताया कि हमने धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों के परिवारजनों
से कह दिया है कि वे जल्दी से जल्दी उन्हें पुनः हिन्दू समाज में लाने का प्रयास
करें। इनके परिवारजनों ने 10 दिन का समय मांगा है। हम 10 दिन तक इंतजार करेंगे और उसके बाद जो
भी उचित कार्यवाही होगी करंेगे। इसी खबर में यह भी बताया गया है कि दलित समाज के
कुछ लोगों को इकट्ठा कर उनको धर्म परिवर्तन की घटना के विरूद्ध भड़काया गया है। इस
तरह के दलितों की एक बैठक भी हुई और उसमें यह विचार किया गया कि जो दलित इस्लाम
स्वीकार करना चाहते हैं उनके विरूद्ध क्या कार्यवाही की जाये। इस कार्यवाही में
उनकी फसलों को जलाना, उनके ऊपर जुर्माना लगाना हो सकता है।’’ कुल मिलाकर इस तरह के संकेत मिल रहे
हैं कि इस मुद्दे को लेकर शायद गंभीर स्थिति निर्मित हो सकती है।
यहां एक ऐसा प्रश्न विचाराधीन है कि
क्या धर्म परिवर्तन एक नागरिक के मूलभूत अधिकारों में शामिल नहीं है। धर्म एक ऐसा
विचार है जिसका संबंध भौतिक स्थितियों से कम आध्यात्मिकता से ज्यादा है। किसी भी
धर्म का आधार उस धर्म से जुड़े दर्शन से होता है और वह दर्शन उस धर्म के पवित्र ग्रंथों
में शामिल रहता है। जैसे ईसाईयों का पवित्र ग्रन्थ बाईबिल, मुसलमानों का कुरान शरीफ, सिक्खों का गुरूग्रंथ साहिब और
हिन्दुओं के आत्यात्मिक मूल्य गीता, वेद, उपनिवेशदों में समाहित है।
वर्तमान में
साधारणतः प्रत्येक व्यक्ति का धर्म वह होता है जिस धर्म का पालन करने वाली मां की
कोख से उसका जन्म हुआ हो। किसी भी धर्म में इस बात की व्यवस्था नहीं है कि वयस्क
बनने पर उससे यह पूछा जाये कि वह किस धर्म को स्वीकार करना चाहेगा। जब 18 वर्ष की उम्र में मत देने का अधिकार
मिलता है, तो धार्मिक आस्था तो मत देने के अधिकार
से भी ज्यादा दुरूह है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति वयस्क होकर जिस धर्म में पैदा हुआ
है उसे त्यागकर किसी अन्य धर्म को स्वीकारना चाहता है तो इसके ऊपर किसी तरह का
बंधन नहीं होना चाहिए। इस पर विचारमंथन आवश्यक है। दुःख की बात यह है कि वर्तमान
में एक धर्म के ठेकेदार न सिर्फ अपने धर्म के प्रति लोगों की प्रतिबद्धता मनवाने
का प्रयास करते हैं, पर उनमें से अनेक दूसरे धर्म के प्रति
घृणा की भावना भी फैलाते हैं। ये धर्म के ठेकेदार प्रायः यह दावा करते हैं कि उनका
धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है। जबकि किसी भी धर्म ग्रंथ में यह दावा नहीं किया गया है कि
वह सर्वश्रेष्ठ धर्म का ग्रंथ है। कुरान शरीफ में भी कहा गया है कि पहले भी पैगंबर
आये थे। इंसानियत का भविष्य इसी में है कि सभी धर्मों के मानने वाले मिलजुल कर
रहें। स्वामी विवेकानंद ने तो कहा था कि भारत का भविष्य वेदान्तिक धर्म और इस्लाम
के सहअस्तित्व में ही है। इसलिए धर्म परिवर्तन कदापि अपराध की श्रेणी में नहीं रखा
जाना चाहिए। परंतु लगता है कि आने वाले समय में धर्म परिवर्तन और लवजिहाद के
मुद्दों को उठाकर मध्यप्रदेश समेत देश में पुनः धु्रवीकरण के प्रयास किये जायेंगे।
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