30 जनवरी को किसको याद करें ?

गांधी के नेतृत्व में लड़ी गई आजादी की लड़ाई का

या फिर
ब्रिटिश राज का साथ देनेवाली राष्ट्र-विरोधी ताकतों का

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह खां की शहादत का
भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद,राजगुरु व सुखदेव द्वारा साम्राज्यवाद को खत्म करने
और समाजवादी धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए दी गई शहादत का

या फिर
राष्ट्रपिता गांधी पर कायराना हमला करनेवाले कातिल गोडसे का

उदार हिंदू दर्शन के खिलाफ संकीर्ण हिंदू राष्ट्र” थोपने की साजिश का
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संविधान के मूल्यों पर आधारित विविधतापूर्ण भारत के निर्माण में जुटी देशभक्त जनता का

या फिर
कट्टरवादी धर्मांध व देशी-विदेशी कारपोरेट पूंजी के गुलाम साजिशकर्ताओं का


यह सर्वविदित है कि साम्प्रदायिक और फासीवादी ताकतें अनेक मोर्चे पर अपना बदसूरत सिर उठा रही हैं। ये ताकतें अपने इस कुत्सित इरादों को पूरा करने के लिये सरकारी मशीनरी का उपयोग कर रही हैं। अपने इसी इरादों से इन ताकतों ने अनेक राष्ट्रीय दिवसों का अर्थ और शकल बदल दी है। जैसे शिक्षक दिवस (पांच सितंबर) को प्रधानमंत्री दिवस बना दिया गया। उसी तरह गांधीजी की जयंती को ‘‘स्वच्छता दिवस” बना दिया गया। उस दिन जानीमानी प्रसिद्ध हस्तियों ने झाड़ू सम्हालकर खूब फोटो उतरवायीं। इसी तरह क्रिसमस दिवस को गुड गर्वनेंस में परिवर्तित कर दिया गया। मोदी सरकार की इस रणनीति की  पूरे देश में भत्र्सना की गई।

भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं साक्षी महाराज। इन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को सच्चा देशभक्त बताया। उनके इस कथन की सारे देश में भत्र्सना की गयी। बात यहीं तक सीमित नहीं रही। कुछ संगठनों ने यह घोषणा की है कि वे शहीद दिवस 30 जनवरी 2015 को नाथूराम गोडसे की मूर्ति की स्थापना करेंगे और 30 जनवरी को शौर्यदिवस के रूप में मनायेंगे। साधारणतः किसी भी हत्यारे का महिमामंडन नहीं होना चाहिये परंतु ऐसे हत्यारे का तो कदापि नहीं जिसने इंसानियत के महान प्रतीक महात्मा गांधी की हत्या की हो। गांधी की महानता का वर्णन करते हुये विश्व विख्यात वैज्ञानिक डा. अलबर्ट आइंसटाईन ने कहा था कि आने वाली पीढि़यां कदापि विश्वास नहीं करेंगी कि हाड़मांस वाला ऐसा इंसान कभी धरती पर पैदा हुआ था।

30 जनवरी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस दिन हम उन सब को याद करते हैं जिन्होंने इस देश को आजाद करने में अपना योगदान दिया था, ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध हुये संघर्ष में भाग लिया था। ऐसे महान लोग सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों से थे। उन्होंने एक ऐसे भारत के निर्माण के लिये जिसमें किसी के साथ धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा, विकलांगता या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। हमें 30 जनवरी को पूरी ताकत से एकत्रित होकर शहीदों को याद करना चाहिये। हमें चाहिये कि हम उन ताकतों के इरादे सफल न होने दें जो न सिर्फ आजादी के आंदोलन से दूर रहे वरन् जिन्होने आंदोलन को दबाने में अंग्रेज सरकार की पूरी मदद की।

आज ये ताकतें हिंदू राष्ट्र की बात करती हैं। हिंदू राष्ट्र की कल्पना उन सभी मूल्यों के विपरीत हैं जो आजादी के आंदोलन से धरोहर के रूप में मिले हैं और जिनके आधार पर हमने डा. बाबासाहेब आंबेडकर के दूरदर्शी नेतृत्व में अपना संविधान बनाया है। ये कट्टरवादी ताकतें अल्पसंख्यक विरोधी होने के साथ-साथ दलित-विरोधी व आदिवासी-विरोधी भी हैं। ये महिलाओं को भी समान अधिकार नहीं देना चाहती।

ये कट्टरवादी तत्व देश-विदेश की शोषणकारी पूंजीवादी ताकतों, कारपोरेट घरानों की पिछलग्गू हैं और भूमंडलीकरण के प्रतिनिधि विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषक एजेंसियों आदि की जन-विरोधी और कारपोरेट-पक्षी नीतियों की भी समर्थक हैं। ये देश पर ऐसी महंगी मुनाफाखोर शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था लादना चाहते हैं जो सिर्फ नव-धनाढ्यों व ऊंची जातियों को उपलब्ध हो। ये ताकतें देश की मूलभूत संवैधानिक नीतियों की विरोधी हैं। जैसे ये सीमित परिवार की नीति के विरोधी हैं और हिंदुओं से अपील कर रही हैं कि वे कम से कम दस  बच्चे पैदा करें। उनकी यह अपील महिलाओं को भी उनके समान अधिकारों से वंचित करने की साजिश है। ये तत्व देश में धर्मांधता का कट्टरवादी जुनून पैदा कर रहे हैं ताकि केंद्रीय सरकार की देश को कारपोरेट पूंजी के हवाले करके भारत की संप्रभुता खत्म करने वाली खतरनाक नीतियों व भूमि अधिग्रहण संशोधन अधिनियम जैसे किसान-विरोधी, दलित-विरोधी व आदिवासी-विरोधी कानूनों पर पर्दा डाला जा सके। इसलिये ये धर्मपरिवर्तन या घर-वापसी का फरेब खड़ा करके कातिलों का महिमा मंडन करके, देशवासियों को परदेशी बताकर,शिक्षा संस्थाओं व अस्पतालों को पूंजीपतियों को बेचकर, देश की रक्षा व्यवस्था, बीमा क्षेत्र व बैंकों को विदेशी पूंजी को सौंपकर और मीडिया पर पूरा नियंत्रण स्थापित करके देश को कमजोर करने के अपने कुत्सित इरादे को पूरा करने पर उतारू हैं।

अतः आप से अपील है कि महात्मा गांधी और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले भगतसिंह व चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अन्य शहीदों के बलिदान और आज़ाद भारत के उनके सपनों को याद करने व प्रेरणा लेने के लिये दिनांक 30 जनवरी 2015 को मोती मस्जिद के बगल में इकबाल मैदान,भोपाल के किनारे प्रातः 10:30 बजे एकत्रित हों। इस अवसर पर विभिन्न वक्ता गांधीजी व अन्य शहीदों के विचारों पर प्रकाश डालेंगे।

हम हैं  (अपीलकर्तागण )


राष्ट्रीय सेक्युलर मंच, शिक्षा अधिकार मंच, गांधी भवन न्यास, आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, सेंट्रल इंडिया ट्रेड यूनियन (सीटू), प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, कलमकार परिषद, मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी, जनवादी महिला समिति, शहादत-ए-हक़ ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट, नागरिक अधिकार मंच, आॅल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन, स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया और भोपाल के सभी प्रगितिशील नागिरिक और संगठन  ।

संपर्क: मो. 09425301582
 


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