कविता - बस थोडा सा ज्यादा
मैं नौकरी नहीं
करना चाहता
कुछ अपने मन का काम करना चाहता हूँ ..
कुछ अपने मन का काम करना चाहता हूँ ..
और बस इतना
ज्यादा कमाना चाहता हूँ
कि किसी चकाचौंध मार्केट में
तमाम बड़े शोरूम के सामने
बैठी हर औरत कि
दौरी से
सूखी झरबेर खरीद सकूँ ...
कि किसी चकाचौंध मार्केट में
तमाम बड़े शोरूम के सामने
बैठी हर औरत कि
दौरी से
सूखी झरबेर खरीद सकूँ ...
प्रयाग स्टेशन
से
अपने घर तक कि दूरी
जो में दस रुपये में तय करता हूँ
उस रिक्शेवाले को
दस कि जगह बीस दे सकूँ ..
बस उतना ही इतना ज्यादा ....
अपने घर तक कि दूरी
जो में दस रुपये में तय करता हूँ
उस रिक्शेवाले को
दस कि जगह बीस दे सकूँ ..
बस उतना ही इतना ज्यादा ....
रिज़र्वेशन कम्पार्टमेंट में
टॉयलेट के ठीक सामने बैठे
उस बूढे को
जो मेरे हर सफ़र में
साथ ही रहता है
चाय और चना खिला सकूँ
कुड़कुड़ाती ठण्ड
में
शहर के किसी सेल से
दस बारह टोपियाँ खरीद सकूँ
और रात भर
टहलता रहूँ , सड़कों पे
ताकि किसी की एक अंश सर्दी को
गर्मी में तब्दील कर सकूँ
शहर के किसी सेल से
दस बारह टोपियाँ खरीद सकूँ
और रात भर
टहलता रहूँ , सड़कों पे
ताकि किसी की एक अंश सर्दी को
गर्मी में तब्दील कर सकूँ
पर शायद 'इतना ज्यादा'
'बहुत ज्यादा' होता है ..!
'बहुत ज्यादा' होता है ..!
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