वैश्विक चिंता का सबब बनती धार्मिक असहिष्णुता
जावेद अनीस
भारत में धार्मिक असहिष्णुता वैश्विक चिंता का
सबब बनती जा रही है, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक ही पखवाड़े के दौरान
सावर्जनिक रूप से दो बार भारत में बढ़ रही धार्मिक असहिष्णुता का जिक्र किया है,
जिसमें एक दफा तो उन्होंने गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर भारत के जमीन पर
ही भारतीयों को चेतावनी देते हुए कहा था कि उन्हें साम्प्रदायिकता या अन्य आधार पर
बांटने के प्रयासों के खिलाफ सतर्क होना होगा और भारत तभी सफल रहेगा जब तक वह
धार्मिक या अन्य किसी आधार पर नहीं बंटेगा। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 25 का बाकायदा उल्लेख करते हुए यह भी याद दिलाया कि सभी लोगों को अपनी पसंद
के धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। दूसरी बार अमरीका में नेशनल
प्रेयर-ब्रेकफास्ट कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘भरपूर सौंदर्य लिए इस अद्भुत देश में जबरदस्त विविधता है लेकिन पिछले कुछ
सालों के दौरान यहां हर धर्म के मानने वालों को दूसरे धर्मों की असहिष्णुता का
शिकार बनना पड़ा है, उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि ‘भारत में धार्मिक असहिष्णुता
जिस स्तर पर पहुंच चुकी है, उसे देख कर राष्ट्रपिता महात्मा
गांधी स्तब्ध हो गए होते।’
गांधीजी को तो हमने पिछले 65 सालों में बार–बार स्तब्ध किया है लेकिन असली
स्तब्धता तो नरेंद्र मोदी को हुई होगी, दरअसल ओबामा ने मोदी की
दुखती रग पर हाथ रख दिया है, नए-नए लंगोटिया यार
बने "बराक" बार-बार उनके और उनके "संघ परिवार" की कमजोरी पर
हमला किये जा रहे हैं।शायद "महाबली"
ने कमजोर नस को पकड़ लिया है और यह इस बात का इशारा है कि अमरीका अपने हितों के हिसाब से समय-समय पर इस
कमजोर नस को दबाता रहेगा।
इसी कड़ी में अमेरिका के नामी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी अपने एक संपादकीय में देश की रूलिंग पार्टी बीजीपी की संस्था आर.एस.एस. और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों के घर वापसी जैसे कार्यक्रमों,चर्च पर हो रहे हमले पर सवाल उठाते हुए इसे ‘आग से खेलना’ करार दिया है, अखबार ने लिखा है कि ‘इन ज्वलंत मुद्दों पर मोदी की चुप्पी से ऐसा लगता है कि या तो वह हिंदू कट्टरपंथियों को कंट्रोल करना नहीं चाहते या फिर ऐसा कर नहीं पा रहे हैं।' मशहूर चैनल अलजजीरा ने भी इन्हीं मुद्दों पर एक परिचर्चा का आयोजन किया।
ह्यूमन राइट्स
वॉच द्वारा जारी वर्ल्ड रिपोर्ट 2015 में भी मुजफ्फरनगर दंगों
में हिंसा भड़काने के आरोपी बी.जे.पी के संजीव बल्यान जैसे नेताओं को संसदीय चुनावों में
प्रत्याशी बनाये जाने
और केंद्र सरकार में मंत्री भी नियुक्त करने पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि ‘इससे
अल्पसंख्यक समुदायों में असुरक्षा की
भावना को ओर बल मिला है’। रिपोर्ट में जून 2014 में उग्र
हिंदू संगठनों द्वारा
पुणे के मोहसिन शेख की दुखद हत्या का भी जिक्र किया गया है।
शायद वर्ष 2002 के बाद यह पहला मौका है जब भारत में
अल्पसंख्यक समूहों की सुरक्षा और बहुसंख्यक दक्षिणपंथियों के उभार के खतरे को लेकर
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतनी गंभीरता के साथ चिंतायें सामने आई है, दिलचस्प तथ्य
यह है कि 2002 में देश के सत्ता की बागडोर भारतीय जनता
पार्टी के नेतृत्व में एन.डी.ए.के हाथों में थी, उस समय भी नरेंद्र मोदी गुजारत के
मुख्यमंत्री के तौर पर इस पूरी परिघटना में थे, उस समय के प्रधानमंत्री के तौर अटल
बिहारी वाजपेयी द्वारा मोदी को राजधर्म निभाने का सलाह खूब चर्चित हुआ था।
मई 2014 में निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी की नई सरकार आने के बाद से भारत में धार्मिक
अल्पसंख्यकों को आतंकित करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। संघ परिवार के नेताओं से
लेकर केंद्र सरकार और भाजपाशासित राज्यों
के मंत्रियों तक हिन्दू राष्ट्रवाद का राग अलापते हुए भडकाऊ भाषण दिए जा रहे हैं, लव जिहाद के नाम पर राजनीति, घर
वापसी और हिंदू महिलाओं से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने जैसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, नफरत भरे बयानों की बाढ़ सी आ
गयी है, महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे की शान में सरेआम कसीदे गढ़े जा रहे
हैं।
इस साल गणतंत्र दिवस के दौरान केंद्र सरकार
द्वारा जारी विज्ञापन में भारतीय संविधान की उद्देशिका में जुड़े ‘धर्मनिरपेक्ष‘
और ‘समाजवादी‘ शब्दों को शामिल नहीं किया गया था। केंद्र के एक मंत्री इस पर
बहस करते हुए विज्ञापन को सही ठहराते हए इसकी वकालत कर रहे थे। भाजपा की सहयोगी पार्टी
शिवसेना ने तो इन शब्दों को संविधान की उद्देशिका से हमेशा के लिए हटा देने की वकालत की है। भारत जैसे बहुलतावादी और विविधता से भरे देश में धर्मनिरपेक्षता सबको साथ लेने और जोड़ने
का काम करती है और यह भारतीय संविधान की आत्मा है।
इतना सब
होने के बावजूद भी प्रधानमंत्री की रहस्यमयी चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। शायद
इसलिए क्योंकि जो कुछ हो रहा है, बहुत
साफ़ तौर पर तस्वीर उभर कर सामने आती है कि विकास के नाम पर सत्ता में आई मोदी की सरकार के
दो ऐजेंडे हैं, पूर्ण बहुमत होने की वजह से इस बार भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस हिन्दू राष्ट्र एजेन्डे पर बारीकी से काम कर रहे हैं। संघ और उससे जुड़े संगठन यह बार -बार कह रहे हैं कि भारत एक हिंदू
राष्ट्र है और यहाँ रहने वाले सभी लोग हिन्दू हैं ।
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के
भारत में धार्मिक असहिष्णुता संबंधी चिंता जताने के बाद केंद्र सरकार को बयान देना
पड़ा है कि ‘भारत में सहिष्णुता का बहुत लंबा इतिहास है और अपवाद स्वरूप घटनाएं
भारत के इस इतिहास को नहीं बदल सकती हैं।’ अल्पसंख्यक समूहों और उनके इबादतगाहों
पर हो रहे हमलों के संबंध में भी यह आश्वासन दिया गया है कि जो लोग इस प्रकार की
गतिविधि में शामिल होंगे उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन सिर्फ
आश्वासन देने और बयान देने से काम नहीं चलेगा, प्रधानमंत्री
और उनकी सरकार को चाहिए कि वे नफरत भरे
बयानों और अपने मातृ संगठन और उससे जुड़े संगठनों के कारनामों पर लगाम कसें, आखिरकार सरकार में आने के लिए हिन्दू राष्ट्र का नहीं ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा दिया गया है। हमारी एकता ही हमारी अखंडता की बुनियाद है,सब को
साथ लेकर चलने में ही
देश की तरक्की संभव है और प्रधानमंत्री देश के नेता है इसलिए यह जिम्मेदारी उन्हीं
को निभानी है। उम्मीद है
कि देश में बढ़ रही धार्मिक असहिष्णुता को लेकर वैश्विक स्तर से आ रही चेतावनियां मोदी सरकार लिये आंखें खोलने का काम करेंगी। यह चेतावनियां सिर्फ मोदी के
लिए नहीं है, एक राष्ट्र के तौर पर हमें भी इन चिंताओं पर गौर करना होगा।
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