ओमामा यात्रा के निहितार्थ
जावेद अनीस
इस बार गणतंत्र दिवस का रंग और मिजाज कुछ अलग सा रहा, पहली बार किसी अमरीका के राष्ट्रपति ने गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि
होने के तौर पर भागीदारी की
है, तो पहली ही बार एक प्रधानमंत्री गणतंत्र
दिवस के दौरान नेता कम “सेल्समैन”
के तौर पर ज्यादा नजर आये है। इस दौरान प्रधानमंत्री का 10 लाख का सूट,
मोदी-ओबामा की पर्सनल दोस्ती, अमरीकी
कारोबारियों के भारत में निवेश, भारत में कारोबार को सरल बनाने जैसे
मुद्दे ही केंद्र में रहे और इस बात पर चर्चा ना के बराबर हुई कि इस दिवस को क्यों मनाया जाता है। इस
बार भारत के उपराष्ट्रपति को उनके मजहब के नाम पर खुलेआम निशाना बनाते हुए
उनकी देशभक्ति पर भी सवाल उठाया गया है जबकि बाद में स्पस्ष्ट हुआ कि उपराष्ट्रपति
प्रोटोकॉल के मुताबिक सही थे। इन सारे हंगामों के बीच भारत और अमेरिका ने असैन्य परमाणु करार के क्रियान्वयन पर पिछले करीब सात साल से बने गतिरोध को दूर करते हुए इस दिशा में सहमति होने का भी एलान किया है। जानकार बता रहे है कि यह समझोता भारत की
जनता के “जानमाल” की कीमत पर हुआ है।
पिछले सात आठ महीनों के बीच मोदी सरकार द्वारा उठाये गये क़दमों और लिए गये
फैसलों से यह सवाल उठता है कि क्या एक राष्ट्र के तौर पर हम ने अपना रास्ता बदल
लिया है? दरअसल 2014 ने भारत को एक ऐसी सरकार दी है जो आर्थिक नीतियों के साथ साथ सामाजिक
मसलों में भी पूरी तरह से दक्षिणपंथी है।
आर्थिक क्षेत्र को देखें तो इसके कैप्टन खुद प्रधानमंत्री
हैं, उदारीकरण के दूसरे चरण की शुरवात हो चूकी है, सरकार का पूरा फोकस उदारवादी और
सरमायेदारों के फेवर वाली नीतियों को लागू करते हुए इसकी राह में आ रही अडचनों को
दूर करना है। प्रधानमंत्री पूरी दुनिया में सेल्समैन की तरह घूम-घूम कर निवेशकों
को “कम एंड मेक इन इंडिया” का आमंत्रण दे रहे हैं। वे भारत को
एक ऐसे बाज़ार के तौर पर पेश कर रहे हैं जहाँ सस्ते मजदूर और कौड़ियों
के दाम जमीन उपलब्ध है और
यह भरोसा दिलाया जा रहा है
कि “सुधार” की दिशा में आ रही सारी रुकावटों को दूर किया जाएगा। चंद महीनों में ही भूमि अधिग्रहण कानून और श्रम कानूनों में सुधार किया
जा चूका है। मनरेगा को सीमित करने और स्वस्थ्य
सेवाओं को बीमा के हवाले करने की तैयारी चल रही है।
सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो इसकी जिम्मेदारी
संघ परिवार और कुछ हद तक मंत्रियों के हवाले
है, इस दौरान हिन्दू राष्ट्र का जुमला उछालने
से लेकर लव जिहाद, घर वापसी जैसे प्रयोग किये गये है।
गणतंत्र दिवस के मौके पर जारी किये गये विज्ञापन में “समाजवाद” और “धर्म निरपेक्ष” जैसे शब्दों को शामिल ना करते हुए मोदी सरकार ने अपने इरादों को पूरी तरह
से जाहिर कर दिया है, कुल मिलाकर कर भारत को अमरीका और इजराईल
के मिश्रित माडल के तौर पर पेश करने की कोशिश की जा रही है। बराक ओबामा को गणतंत्र
दिवस का मुख्य अतिथि बनाया जाना इसी दिशा में बढाया गया एक
कदम है।
ओबामा और मोदी के
मिलन ने खूब सुर्खियाँ बटोरी है, मोदी ने हम भारतीयों को यह अहसास दिलाया कि उनका
प्रधानमंत्री महाबली अमरीका का इतना करीबी दोस्त हो गया है कि वह राष्ट्रपति को सावर्जनिक
रूप से बराक–बराक कह कर सम्बोधन कर रहा है,
ओबामा ने भी हम हिंदुस्तानियों को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, उन्होंने
तीन दिनों के अपने भारत प्रवास के दौरान ‘नमस्ते’, ‘जय हिन्द’, ‘बहुत
धन्यवाद’, जैसे शब्द बोले, ‘दिवाली’,
‘भांगडा’ की तारीफ की, ‘स्वामी
विवेकानंद’, ‘महात्मा गांधी’, ‘मिल्खा
सिंह, ‘मैरीकाम’, ‘कैलाश सत्यार्थी’,
‘शाहरूख खान’ जैसी हस्तियों का जिक्र किया और डीडीएलजी का मशहूर
डायलाग, “सेनोरिटा, बड़े-बड़े देशों
में ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं’’ भी बोला। कहना मुश्किल है कि यह सब देख सुन कर हिन्दुस्तानी कितने खुश
हुए है लेकिन किरन बेदी जैसे बीजेपी की नेता दावा कर रहे है कि ओबामा के आने से पूरा
भारत उड़ रहा है।
इस दौरान धीरे से भारत-अमेरिका के साथ परमाणु करार में आ रही बाधाओं को भी दूर कर लिया गया
है, यह संकेत मिल रहे हैं कि करार में अमेरिकी ईंधन सप्लायर कंपनियों को यह सहूलियत दे दी गयी है कि उन्हें किसी दुर्घटना
की स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय
कानूनों के मुताबिक मुआवजा नहीं देना होगा और स्पष्ट शब्दों में कहें तो अमेरिकी कंपनियां भारतीय संसद द्वारा पारित परमाणु दायित्व कानून से मुक्त होंगी, जो उन्हें दुर्घटना की स्थिति में दंड का भागीदार बनाता है और
मुआवजा देने के लिए बाध्य करता है। इस कानून की धारा 17 के अनुसार परमाणु बिजली घरों में
लगाए गए रिएक्टरों में अगर खराबी के कारण दुर्घटना होती है तो इसके लिए सप्लायर
कंपनियां ही जिम्मेदार होंगी। इसके विकल्प के तौर पर 1500 करोड़ रुपए का इन्सोरेंस पुल बनाया जाना तय हुआ है जिसमें आधी भागीदारी सरकार की होगी। परंतु
हम भोपाल गैस कांड को कैसे भूल सकते है जिसकी हाल ही में तीसवी बरसी मनाई है लेकिन इस हादसे के शिकार लोग आज भी मुआवजे से वंचित हैं।
मोदी सरकार बहुत जोर शोर से यह
दावा कर रही है कि परमाणु करार के इस समझौते से भारत की ऊर्जा की जरुरतें पूरी
होंगी। लेकिन विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इन परियोजनाओं पर लागत ज्यादा आने वाली है और
बिजली महंगी होगी। आल इण्डिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन जैसे
संगठन ने केन्द्र सरकार से इस करार पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे काफी मंहगी
बिजली मिलेगी। इसी तरह से जानकार परमाणु बिजली घर को सुरक्षित भी नहीं मान रहे है। खुद अमेरिका में ही 1986 के बाद कोई परमाणु बिजली घर नहीं लगाया गया है, ऐसे में सरकार के दावे पर
सवाल उठाना लाजिमी है कि कैसे असुरक्षित और मंहगी बिजली उत्पादन का रास्ता जनता के
हित में है?
सहनशीलता,एक दूसरे के धर्म का आदर करना और साथ रहना असली भारतीयता है और हम यह सदियों
से करते आये हैं। लेकिन अगर गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के
तौर पर किसी दूसरे
राष्ट्र के प्रमुख को यह सबक हमें याद दिलाने की जरूरत पड़ रही है तो इसे एक खतरे की घंटी माना जाना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जाते
जाते यह सन्देश दे गये कि सांप्रदायिकता या
अन्य किसी बात के आधार पर बांटने के प्रयासों के खिलाफ हमें सतर्क होना होगा
और भारत तब तक सफल रहेगा जब तक वह धार्मिक या अन्य किसी आधार
पर नहीं बंटेगा। हिन्दू राष्ट्र, घर वापसी के कार्यक्रमों के
बीच उनका यह
कहना कि हर व्यक्ति को
उत्पीड़न, भय और भेदभाव के बिना अपनी पसंद की आस्था को अपनाने और उसका अनुसरण करने
का अधिकार है बहुत मायने रखता है और एक तरह से उनको अपना
निजी दोस्त बताने वाले मोदी और उनकी सरकार पर भी सवाल खड़े करता है। एक ऐसे समय जब
सरकार द्वारा ही संविधान के धर्मनिरपेक्ष शब्द को इगनोरे करने की कोशिश की जा रही
है, अमरीकी राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का बाकायदा उल्लेख करते हुए हमें याद दिलाया है कि सभी लोगों को अपनी
पसंद के धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। यह तो वक्त ही
बताएगा कि हम इस सबक को कैसे याद रखेंगें ।
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