कूड़ा: पूंजीवाद की अंधेरी गुफा


                                                                               स्वदेश कुमार सिन्हा



कूड़े को शायद दुनिया की सबसे गन्दी वस्तु माना जाता है, परन्तु पूँजीवाद की यह विशेषता है कि , वह हर वस्तु को लाभ-हानि के गणित में बदल देता है , कूड़ा भी इसी तरह का एक उत्पाद है। अमेरिकी हास्य अभिनेता ’’जार्ज कार्लिन’’ ने लिखा था पूरी जिन्दगी का मकसद अपनी चीजो के लिए जगह तलाशने की कोशिश कार्लिन ने 1986 के अपने एक स्केच द स्टफ’ (सामान) में दिखाया है कि कैसे हम बहुत सा सामान भौतिक उपयोग की वस्तुऐ इकट्ठा करते हैं ओैर ऐसा करते हुए हम उन वस्तुओ को रखने की जगह को लेकर बेचैन रहते हैं । यहाँ तक कि हमारा घर , घर न होकर सामान रखने की जगह है। एक रखा नही कि तब तक जाकर हम घर भरने के लिए कुछ और सामान लेकर आ जाते हैं । जो चीज कार्लिनहमें इस स्केच में नही बतलाते हैं, वह यह है कि यह घर में नही अट सका सारा सामान अनुपयोगी फेकें रद्दी कूड़े में बदलता है। कूड़ा ऐसी चीज है जो आधुनिक इन्सानी जिन्दगी की पहचान है, पर उसे ऐसा ही माना जाता है। कूड़ा पूंजीवाद की एक अंधेरी गुफा है उसका सह उत्पाद है। हम इस सच्चाई को भुलाते हैं, औैर ऐसा दिखाते हैं कि मानो इसका अस्तित्व ही नही।

सत्ता में आने के तुरन्त बाद कारपोरेट लूटके हिमायती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में कथित स्वच्छता अभियान’’ की शुरूआत किये मानो कूड़ा और गन्दगी फैलाना हम भारतीयों की फितरत है। अकेले दिल्ली महानगर में लाखो टन कूड़ा प्रतिदिन निकलता है। आप कल्पना करें दिल्ली के जन्तर मन्तर इलाके लक्ष्मीनगर से गाजीपुर सब्जीमण्डी तक का इलाका जो देश के सबसे घरे बसे इलाके में से एक है उस इलाके में  ही करीब 15 से 20 लाख लोग रहते हैं। अगर इसी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 1 ग्राम के हिसाब से कूड़ा उत्सर्जन करें तो कुल कितना कूड़ा अकेले इस इलाके में ही निकलता होगा इसका पूर्ण निस्तारण लगभग असंभव है।

सुबह-सुबह नंगे पैर फटे पुराने कपड़े पहने छोटे-छोटे बच्चो को कूड़े में कुछ खोजते हुए देखना हमारे लिए स्वाभाविक चीज बन गयी है। देश भर में लाखो छोटे बच्चे तथा स्त्री पुरूष कूड़ो के ढेंर से रद्दी प्लास्टिक कागज के गत्ते तथा धातुओ के टुकड़े तलाशते हैं , इनको कबाड़ खरीदने वाले व्यापारी बहुत सस्ते में खरीद लेते हैं जो बाद में पुर्न प्रयोग (रिसाईकिलिंग) करके नये उत्पाद में बदल दिये जाते हैं, उन बच्चो तथा स्त्री पुरूष के भविष्य के बारे में शायद ही किसी को चिन्ता करने का समय हो। एक सर्वेक्षण के अनुसार कूड़े के गन्दगी से ज्यादातर ऐसे लोग कम उम्र में ही गम्भीर रोगो से ग्रस्त हो जाते हैं, करीब 60 प्रतिशत की मौत कम उम्र में ही हो जाती हे। कुछ लोगो को इन पर ’’गर्व’’ भी हो सकता है, कि ये बच्चे कूड़े से उपयोगी वस्तु खोजकर एक ओर तो हमारा कूड़ा कम कर रहे हैं तो दूसरी ओर देश की जी0डी0पी बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। शायद यह भी ’’ गर्व  का विषय’’ हो कि सैकड़ो एकड़ क्षेत्र में फैले कूड़ा डम्पिंग स्थल यानी कूड़े के उपर ही यह बच्चे और उनके परिवार भयंकर गन्दगी और दुर्गन्ध में सूअर तथा अन्य गन्दगी खाने वाले जानवरो के साथ रहते भी हैं। दिल्ली के गाजीपुर सब्जीमण्डी इलाके में  कूड़े के डम्पिंग स्थल पर इतने ऊॅचे ढ़ेर बन गये हैं कि वे दूर से ही पहाड़ जैसे दिखते हैं, सरकारी अधिकारी का कहना है कि इन्हे पर्यटक स्थल में विकसित किया जायेगा। फिलहाल इस विशाल थोक मण्डी में इसकी बदबू से खड़े रहना भी मुश्किल रहता है। कमोवेश यही स्थिति हर नगरो तथा महानगरो की है। इन सब चीजो से शायद यह भ्रम पैदा होता हो कि भारतीय उपभोक्ता वर्ग सबसे ज्यादा कूड़ा उत्सर्जन करता है, पर हमारी यह जानकारी अधूरी है, आबादी में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश होने के बावजूद अभी भी इस मामले में विकसित देशो से काफी पीछे है।

वाशिंगटन डी0सी0 की संस्था द इन्स्टीच्यूट फार लोकल सेल्फ रिलाईस की एक रपट के अनुसार 1990 से आगे 20 वर्षो में जब वालमार्ट ने अपना विशालकाय साम्राज्य स्थापित किया अमेरिकी परिवारो की खरीदारी की कुल मात्रा ओैसतन एक हजार गुना बढ़ गयी। सन् 2005 से 2010 के बीच वाल मार्ट के कूड़ा घटाने के कार्यक्रम शुरू करने के बाद भी खतरनाक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन चैदह फीसदी तक बढ़ गया। यह बड़े-बड़े स्टोर न सिर्फ उपभोग की क्षमता बढ़ाते हैं बल्कि उनके प्रकारो में भी बेतहाशा वृद्धि कर देते हैं , नतीजन भारी मात्रा में कूड़ा पैदा होता है। अमेरिकियों  द्वारा प्रतिवर्ष उत्पादित कूड़े की मात्रा 220 मिलियन ,, (22 करोड़ टन) है । 

जिसमें से अधिकांश कूड़ा एक बार इस्तेमाल की गई वस्तुओ का होता है। क्या आपने अमेरिका के एक हजार नौ सौ पैसठ एकड़ में फैले विशालकाय कूड़ा निस्तारण केन्द्र प्यूएंट हिलके बारे में सुना है ? एडवर्ड ह्यूम्स अपनी किताब ’’गार्गोलोजी’’    ’’आवर डर्टी लव अफेयर विद ट्रेस ’’ में बतलाते हैं प्यूएट हिलके कूड़ाघर को जमीन भरने का नाम नही दिया जा सकता है। क्योकि वहां की जमीन समतल हुए बहुत दिन हुए। अब तो हालत यह है कि कूड़ा सतह से पांच सौ फीट ऊपर तक इतनी जगह घेरे हुए है कि इसमें एक हजार पांच सौ लाख हाथी समा जायें। उनके मुताबिक एक हजार तीन सौ लाख टन कूड़े (जिसमें आधुनिक सभ्यता की एक और महत्वपूर्ण खोज इस्तेमाल के बाद फेक दिये जाने वाले तीस लाख टन डायपर है) से जहरीला रिसाव हो रहा है, और इसे भू-जल में पहुँच कर उसे जहरीला बनाने से रोकने के लिए बहुत बड़े प्रयास की आवश्यकता है। यह बहस चलती रहती है कि कूड़ा समस्या तीसरी दुनिया का मामला है, तथा इस दुनिया  के नागरिको ने इस विमर्श को स्वीकारते हुए मान लिया है कि वे एक गन्दी विकासशील दुनिया के वाशिन्दे हैं । वे सौभाग्यवश विकसित दुनिया की ’’स्वच्छता की कीमतसे अन्जान हैं । सोमालिया अपने समुद्री लुटेरो ,भुखमरी तथा गृह युद्ध के लिए दुनिया भर में जाना जाता है पर यह बात कम लोगो केो ही ज्ञात है कि दो दशको से भी ज्यादा वक्त से सोमालिया आणविक और औषधिये कूड़े सहित तमाम खतरनाक विषैले कूड़े का सस्ता निस्तारण स्थल है। पेरिस और न्यूयार्क की सड़के जगमगाती रहे तो कौन अभागा सोमालिया की तरफ देखेगा, जहाँ अपंग बच्चे पैदा हो  रहे हैं। विकसित तथा विकासशील देशो में एक बात समान है कि कूड़ा निस्तारण के इलाके वही हैं, जहाँ समाज का सबसे कमजोर और बहिस्कृत तबका रहता है। पश्चिमी दुनिया में जगह -जगह शहरो में कूड़ा हड़ताल ओैर कूड़े के इर्द गिर्द संघर्ष विकसित हो रहे हैं , ओैर कूड़े की समस्या एक राजनीतिक हथियार बन रही है।

कूड़ा निस्तारण केन्द्र खोलने के खिलाफ सन् 2000 से ही अमेरिका में संघर्ष चल रह हैं । अगर हम यह मानते हैं कि कूड़े की समस्या तार्किक योेजना प्रबन्धन और पुर्न प्रयोग के द्वारा हल हो जायेगी। तो यह कभी न पूरा हो सकने वाला सपना है। अमेरिका में दशको की पर्यावरण शिक्षा के बाद ही सिर्फ 24 प्रतिशत कूड़ा पुर्न प्रयोग के लिए जाता है। 70 फीसदी का वही हाल है उससे हर जगह जमीन ही भरी जाती है। 

;द हिडेन लाईफ आफ गार्बेजकी लेखक हीथर रोजर्स’  लिखती है घरो से पैदा हुआ कूड़ा, कूड़े की कुल मात्रा का अत्यन्त छोटा हिस्सा होता है, बड़ा हिस्सा होता है औद्योगिक संस्थानो का। वे दिखती है कि कारपोरेटो ओैर बड़ी व्यवसायिक इकाइयों ने इसलिए पुर्नप्रयोग (रिसाइकिलिंग) का मंत्र और हरित पूंजीवादअपना लिया है , क्योकि उनके मुनाफे के लिए यह सबसे कम खतरनाक रास्ता है। तो ऐसे में यह होना ही है कि उत्पादन और कूड़े का उत्पादन दोनो बढ़े हैं ओैर महत्वपूर्ण बात यह है कि हरेपनके इस कारपोरेटी अभियानके चलते पर्यावरण शुद्धता का पूरा भार कारपोरेटो से हट जाता है और उत्तरदायी हो जाते हैं हम -आप।

जर्मनी अपने 70 प्रतिशत कूड़े का पुर्नप्रयोग कर रहा है पर इसमें भी झोल है। 1350 लाख डालर से बना जर्मनी का दुनिया का सबसे बेहतरीन कूड़ा निस्तारण संयंत्रक्रोर्लन सेन्ट्रल वेस्ट ट्रीटमेन्ट प्लान्ट अपने नियमित काम काज ओैर कूड़ा मुनाफा कमाने के लिए इटली के कूड़े को सुरक्षित रखने के अपराध  का आरोपी है। अब आप समझ सकते हैं कि कूड़ा -मुक्तअर्थव्यवस्था के दामन से कितने छेद है। अंततः कूड़े की समस्या तब तक पूरी तरह समझ में नही आ सकती जब तक आप पूँजीवाद की गति को न समझे। पूँजीवाद वस्तुओं का लगातार उत्पादन करता चला जाता है, वह ऐसी नीतियां बनाता है जिसके चलते वस्तुओं का जीवन कम से कम हो, तथा नया माल हमेशा बिकता रहे, पूँजीवाद ने एक मुहावरा पैदा किया है , यूज एण्ड थ्रो’ (इस्तेमाल करो और फेंक दो)। एरिजोना विश्वविद्यालय के विद्वान सारा मूरइस पर टिप्पणी करते हुए लिखा आधुनिक नागरिक चाहते हैं उनके रहने ,खेलने काम करने और शिक्षा हासिल करने की जगह कूड़ा मुक्त ,साफ और व्यवस्थित हो। यह असंभव प्राय है। क्योकि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से ये सुविधाएॅ पैदा हुयी है ओैर उसी से यह विराट कूड़ा भी पैदा हुआ है। 1960 से 80 के बीच अमेरिका में ठोस कूड़े की मात्रा में चार गुनी भी वृद्वि हुई। पूरी दुनिया के लिहाज से यह कूड़ा बहुत ज्यादा है , जिसके नाते प्रशांत महासागर में प्लास्टिक के कण फैल गये ओर जलीय जन्तुओें से 6 गुना ज्यादा हो गये। विडम्बना यह है कि कूड़े की बढ़ोत्तरी कूड़ा निस्तारणका अरबो करोड़ डालर का व्यवसाय बनाती है और इसमें माफिया का प्रवेश होता है जैसा इटली में  हुआ।

अपने देश में इसके खिलाफ कोई जन आन्दोलन न होने के कारण स्थिति और खराब और बिगड़ सकती है। स्वच्छता के नारो की सारी लफ्फाजी से उपर अगर उठकर देखे तेा हमारा देश भी दुनिया भर के कूड़े का डम्पिंग स्थलबनता जा रहा है। आखिरकार दुनिया भर के पुराने तथा उम्र समाप्त कर चुके समुद्री जलयानो को तोड़ने का सबसे खतरनाक उद्योग हमारे देश में ही फल-फूल रहा है। जो पूंजीपतियों को तो अकूत मुनाफा दे रहा है पर प्रतिवर्ष इनके मलबे में मौजूद जहरीले पदार्थो, रेडिऐशन के विकिरण  तथा दुर्घटनाओं में से कितने गंभीर रूप बीमार पड़ते हैं , मौत के शिकार हो जाते हैं अथवा जीवन भर के लिए अपंग हो जाते हैं । इनके आकड़ों के बारे में किसी को कोई जानकारी कभी नही मिलती है और यह हो रहा है ’’स्वच्छता अभियान के नायक’’ प्रधान मंत्री के अपने गृह राज्य गुजरात में ।


वास्तव में कूड़े का साम्राज्य एक राजनैतिक समस्या है और उसका निस्तारण भी राजनीति में ही छुपा हुआ है। 

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