सांप्रदायिक हिंसा: 2015
नेहा दाभाड़े
नफरत और ध्रुवीकरण का साल
सांप्रदायिक हिंसा, इससे जनित ध्रुवीकरण और विभिन्न समुदायों के बीच बढ़ती नफरत, सन 2015 में भारत के लिए
सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरी। इससे सांप्रदायिक सद्भाव में कमी आई और
प्रजातांत्रिक व्यवस्था द्वारा हमें दी गईं आज़ादियों पर बंदिशें लगीं। एक प्रश्न
के उत्तर में गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने संसद को बताया कि सन 2015 में अक्टूबर माह
तक सांप्रदायिक हिंसा की 650 घटनाएं हुईं, जिनमें 84 लोग मारे गए और 1979 घायल हुए। ‘द टाईम्स ऑफ इंडिया’ के अनुसार, अक्टूबर तक देश में सांप्रदायिक हिंसा की 630 घटनाएं हुईं।
अखबार के अनुसार, 2014 में ऐसी घटनाओं की संख्या 561 थी। सन 2014 में सांप्रदायिक
हिंसा में मरने वालों की संख्या 95 थी। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, देश में पिछले वर्ष
1227 सांप्रदायिक दंगे
हुए, अर्थात एनसीआरबी के
आंकड़े, केंद्रीय गृह
मंत्रालय के आंकड़ों से लगभग दोगुने हैं।
गृह मंत्रालय की रपट के अनुसार, सन 2015 में कोई ‘बड़ी’ सांप्रदायिक घटना
नहीं हुई परंतु दो ‘महत्वपूर्ण’ सांप्रदायिक घटनाएं हुईं। ये दो घटनाएं थीं अटाली में मस्जि़द के निर्माण
को लेकर हुई हिंसा और दादरी, उत्तरप्रदेश घर में गौमांस रखने के संदेह में एक व्यक्ति की पीट-पीटकर
हत्या। यह दिलचस्प है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय, सांप्रदायिक हिंसा
की घटनाओं को दो वर्गों में बांटता है: ‘बड़ी’ व ‘महत्वपूर्ण’। ‘बड़ी’ सांप्रदायिक हिंसा
की घटना उसे माना जाता है जिसमें पांच से अधिक व्यक्ति मारे गए हों या दस से अधिक
घायल हुए हों। ‘महत्वपूर्ण’ घटना वह है जिसमें
कम से कम एक व्यक्ति मारा गया हो या दस घायल हुए हों।
इन आंकड़ों को ध्यान से देखने पर इस साल हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं
की कुछ विशेषताएं उभरकर सामने आती हैं। पहली बात तो यह है कि इस साल मरने वालों और
घायल होने वालों की संख्या कम रही, यद्यपि पिछले साल की तुलना में घटनाओं की संख्या में मामूली वृद्धि हुई।
जहां 2014 में सांप्रदायिक
हिंसा में 90 लोग मारे गए थे, वहीं 2015 में मृतकों की
संख्या 84 थी। इस तथ्य से
हिंदू राष्ट्रवादियों के सत्ता में आने के बाद से, सांप्रदायिक हिंसा
की प्रकृति में हुए परिवर्तन का अंदाज़ा लगता है। अब सांप्रदायिक हिंसा इस तरह से
करवाई जाती है कि उससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तो हो परंतु मृतकों और घायलों की
संख्या कम रहे ताकि मीडिया का ध्यान उस ओर न जाए। इन दिनों हो रही सांप्रदायिक
हिंसा का मुख्य उद्देश्य, हाशिए पर पड़े वर्गों को आतंकित करना और उन्हें दोयम दर्जे के नागरिक का
दर्जा स्वीकार करने के लिए मजबूर करना है। कम तीव्रता की इस हिंसा के ज़रिए, हिंदू राष्ट्रवादी, समाज पर अपने नियम
थोपना चाहते हैं। उनकी अपेक्षा यह है कि हाशिए पर पड़े वर्ग, विशेषकर अल्पसंख्यक, जीवित तो रहें
परंतु बहुसंख्यकों की मेहरबानी पर।
अटाली (हरियाणा), हरशूल (महाराष्ट्र) व दादरी (उत्तरप्रदेश) में हुई सांप्रदायिक हिंसा की
घटनाओं में ऐसे समुदायों के बीच भिड़ंत हुई, जो अब तक शांतिपूर्वक
एक साथ रहते आए थे। अटाली के मुस्लिम रहवासियों के घर और दुकानें लूट ली गईं और
उन्हें आग के हवाले कर दिया गया। उनके वाहनों को जलाकर नष्ट कर दिया गया।
मुसलमानों को अपनी जान बचाने के लिए अपने घर छोड़कर भागना पड़ा। इस विस्थापन के
कारण उन्हें ढेर सारी परेशानियां झेलनी पड़ीं। सांप्रदायिक हिंसा के शोधकर्ता इस
तरह की हिंसा को ‘सबरडार’ हिंसा कहते हैं। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, केंद्रीय गृह
मंत्रालय ने सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को दो वर्गों में बांटा और हिंसा की
एक-एक घटना को इन दोनों वर्गों में रख दिया। यह, इन घटनाओं और देश
में व्याप्त सांप्रदायिक तनाव और हिंसा को कम करके दिखाने का प्रयास है।
इसके अतिरिक्त, 2015 में सांप्रदायिक हिंसा घटनाएं शहरी क्षेत्रों के
अलावा छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में भी हुईं। इसके पहले तक सांप्रदायिक हिंसा मुख्यतः शहरों
तक सीमित रहती थी परंतु आंकड़ों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि
सांप्रदायिकता का ज़हर हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में तेज़ी से फैलता जा रहा है।
पलवल, कन्नौज, पछोरा व शामली जैसे
छोटे शहरों में सन 2015 में सांप्रदायिक हिंसा हुई। ग्रामीण इलाकों में छोटे पैमाने पर अलग-अलग
बहानों से सांप्रदायिक हिंसा भड़काई गई। इस वर्ष सांप्रदायिक हिंसा के मुख्य
केन्द्र थे पश्चिमी उत्तरप्रदेश, बिहार और हरियाणा। इन राज्यों को सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए क्यों
चुना गया, यह पॉल ब्रास
द्वारा देश में बड़े सांप्रदायिक दंगों के अध्ययन के नतीजों से समझा जा सकता है।
ब्रास का कहना है कि भारत में संस्थागत दंगा प्रणाली (आईआरएस) विकसित हो चुकी है।
बिहार में 2015 में विधानसभा
चुनाव हुए और उत्तरप्रदेश में 2017 में होने हैं। जो राजनैतिक दल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से लाभांवित होते
हैं, वे चुनाव के पूर्व, आईआरएस का इस्तेमाल
कर दंगे भड़काते हैं ताकि पहचान से जुड़े मुद्दों को लेकर विभिन्न समुदायों के बीच
नफरत फैलाई जा सके और उनके वोट बटोरे जा सकें।
हमारे देश के जटिल जातिगत और धार्मिक समीकरणों के चलते, हिंदू राष्ट्रवादियों
के लिए अकेले यह काम करना संभव नहीं है। इसमें उन्हें उन राज्य सरकारों का अपरोक्ष
समर्थन मिलता है जो दंगों को रोकने और दंगाइयों को सज़ा दिलवाने के लिए पर्याप्त
प्रयास नहीं करतीं। सांप्रदायिक राजनैतिक दल, लगातार तनाव बनाए
रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि समाज में अस्थिरता बनी रहे। मुजफ्फरनगर
दंगों के बाद हुए लोकसभा आमचुनाव में भाजपा ने उत्तरप्रदेश की अधिकांश सीटों पर
विजय प्राप्त की। उसे यह उम्मीद है कि इसी रणनीति को अपनाकर वह विभिन्न राज्यों-विशेषकर
उत्तरप्रदेश-में विधानसभा चुनाव में विजय प्राप्त कर सकेगी।
सांप्रदायिक हिंसा की चुनौती का मुकाबला करने में राज्य और आपराधिक न्याय
प्रणाली अक्षम साबित हुई। पुलिस ने दंगाइयों को सज़ा दिलवाने के लिए पर्याप्त
प्रयास नहीं किए। हरशूल में, जहां मुसलमानों के 40 मकानों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया था, हिंसा के पहले, कुछ संगठनों द्वारा
पर्चे बांटे गए थे जिनमें मुसलमानों को यह चेतावनी दी गई थी कि उन पर हमला हो सकता
है। इस कारण कई मुसलमान पहले ही वहां से भाग निकले। इन पर्चों के बंटने के बाद भी
पुलिस सावधान नहीं हुई। इसके पीछे पुलिस के गुप्तचर तंत्र की असफलता थी या
अल्पसंख्यकों की रक्षा करने की अनिच्छा, यह कहना मुश्किल है। अटाली में यद्यपि पुलिस ने
मुसलमानों को बल्लभगढ़ पुलिस थाने में दस दिन तक शरण दी तथापि मई 2015 की हिंसा कारित
करने वालों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करने के कारण, मुसलमानों पर जुलाई
में ऐसा ही दूसरा हमला हुआ। दादरी में तो पुलिस की भूमिका अत्यंत निंदनीय
रही। उसने मोहम्मद अख़लाक के घर से जब्त
मांस को फोरेन्सिक जांच के लिए भेजा ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह गौमांस तो
नहीं है। उपयुक्त कार्यवाही न करके राज्य ने, धर्म के स्वनियुक्त
ठेकेदारों को अपनी मनमर्जी करने की खुली
छूट दे दी है। उनकी हिम्मत बढ़ती जा रही है और वे देश के विभिन्न इलाकों
में मुसलमानों पर इसी तरह के हमले कर रहे हैं। पुलिस की जांच में कमी के कारण
दंगाई अक्सर न्यायालयों से बरी हो जाते हैं। हाशिमपुरा में मुसलमानों की गोली
मारकर हत्या करने वाले पीएसी के जवानों को दिल्ली की एक अदालत ने बरी कर दिया। यह
मानवाधिकारों और न्याय पर कुठाराघात था। जिन लोगों को गुजरात में सांप्रदायिक
हिंसा का दोषी पाया गया और सजा सुनाई गई, वे भी अब जेलों से बाहर हैं।
इसके अतिरिक्त, देशभर में पिछले वर्ष चर्चों पर हमले हुए। चर्चों में तोड़फोड़ की गई और
उन्हें अपवित्र किया गया। यह ईसाई समुदाय को निशाना बनाने का एक कुत्सित प्रयास और
संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत, सभी लोगों को अपने धर्म का पालन करने की आज़ादी पर हमला है। जब
मानवाधिकार संगठनों ने इसका विरोध किया और हमलावरों के विरूद्ध कार्यवाही की मांग
की, तो सरकार ने इन
हमलों को स्थानीय असामाजिक तत्वों की शरारत बताकर इनकी गंभीरता को कम करने का
प्रयास किया। इसके अतिरिक्त, ननों के साथ बलात्कार और छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों में ईसाई पादरियों को
डराने-धमकाने और उनके खिलाफ हिंसा से ईसाई समुदाय भयग्रस्त है और असुरक्षित महसूस
कर रहा है। कंधमाल के लोग शांति से क्रिसमस नहीं मना सके क्योंकि उसी दिन, हिंदू
राष्ट्रवादियों ने बंद का आह्वान किया, ईसाईयों पर हमले किए और जिले के कई इलाकों में
तनाव का वातावरण निर्मित किया।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में हुई
सांप्रदायिक घटनाओं में से 86 प्रतिषत 8 राज्यों- महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार,
उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और
केरल-में हुईं। अधिकांश मामलों में धार्मिक जुलूसों पर पत्थरबाजी, दोनों समुदायों के
व्यक्तियों के बीच निजी शत्रुता, धार्मिक स्थलों की ज़मीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद, कथित गौहत्या और
अंतर्धामिक प्रेम संबंध व विवाह सांप्रदायिक हिंसा की वजह बने।
हिंदू राष्ट्रवादियों ने ‘‘बेटी बचाओ, बहू लाओ’’ जैसे भड़काऊ नारे दिए। आरएसएस व बजरंग दल ने आगरा में ‘‘बेटी बचाओ, बहू लाओ’’ आंदोलन इतने बड़े
पैमाने पर चलाया कि उत्तरप्रदेश अल्पसंख्यक आयोग को उसका संज्ञान लेना पड़ा। बजरंग
दल के सदस्य लड़कियों के कालेजों में पर्चे बांट रहे हैं जिनमें हिंदू लड़कियों को
यह चेतावनी दी जा रही है वे मुस्लिम लड़कों से प्रेम न करें। यह नफरत फैलाने का
अभियान है, जिसका उद्देश्य
दूसरे समुदायों के प्रति भय पैदा करना है। यह व्यक्तियों के अपनी पसंद से विवाह
करने के अधिकार पर भी हमला है। हिंदू राष्ट्रवादी, हिंदू पुरूषों को
यह सलाह देते हैं कि वे मुस्लिम महिलाओं से विवाह करें और उन्हें हिंदू बनाएं।
इसके पहले, आगरा में घर वापसी
अभियान को लेकर सांप्रदायिक तनाव फैलाया गया था। सांप्रदायिक तनाव फैलाने का यह
सिलसिला केवल आगरा तक सीमित नहीं है। पूरे उत्तरप्रदेश में इस तरह की भड़काऊ और
उत्तेजक बातें कहकर तनाव फैलाया जा रहा है। पश्चिम बंगाल में हिंदू राष्ट्रवादियों
ने हिंदू लड़कियों और उनके परिवारों का यह आह्वान किया कि वे मुस्लिम लड़कियों से शादी
करें, उन्हें हिंदू बनाएं
और फिर अपनी ‘‘सुरक्षा’’ के लिए भाजपा के
सदस्य बनें।
जनगणना 2011 के चुनिंदा आंकड़ों का लीक किया जाना भी इसी तरह का षड़यंत्र था। ऐसा
बताया गया कि मुसलमानों का देश की आबादी में हिस्सा सन् 2001 में 13.40 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 14.20 प्रतिशत हो गया
है। इसके साथ-साथ यह भी कहा गया कि देश की हिन्दू आबादी में कमी आई है। यह भ्रम
उत्पन्न करने की कोशिश की गई कि मुस्लिम आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि उसके
कारण हिन्दुओं का बहुसंख्यक का दर्जा खतरे में पड़ जाने की संभावना है। जुनून को
और बढ़ाने के लिए साध्वी प्राची ने यह दावा किया कि मुसलमान लव जिहाद के जरिए ‘40 पिल्ले‘ पैदा करते हैं ताकि
वे ‘हिन्दुस्तान‘ को ‘दारूल इस्लाम‘ बना सकें। उन्होंने
हिन्दू महिलाओं से यह अपील की कि वे कम से कम चार बच्चे पैदा करें। ऐसी ही अपील
साक्षी महाराज ने भी की। दोनों भाजपा के सांसद हैं और उन्होंने संवैधानिक
सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करने की शपथ ली है।
इन दोनों मुद्दों के केन्द्र में है महिलाओं का शरीर और राष्ट्रवाद के
विमर्ष में उसका स्थान। महिलाओं को मुख्यतः बच्चे पैदा करने वाली मशीन माना जाता
जो कि राष्ट्र की आबादी बढ़ाएंगी-इस मामले में उन्हें हिन्दुओं की संख्या बढ़ाने
वाली मशीन के रूप में देखा जा रहा है। उनके अधिकारों पर डाका डाला जा रहा है और
उनकी बेहतरी के लिए किए जाने वाले प्रयासों को प्रभावी बनाने की कोई कोशिश नहीं हो
रही है। अटाली में जब हमने मुस्लिम और जाट महिलाओं से बात की तो हमें उनकी बातें
सुनकर बहुत धक्का लगा। मुस्लिम महिलाओं ने बताया कि किस तरह आसपास की वे जाट
महिलाएं, जिनके साथ खेलते-कूदते
वे बड़ी हुईं,
जिनके साथ उन्होंने
अपने दुःख और सुख सांझा किए, वे ही उनके घरों पर पत्थर फेंक रहीं थीं और आग लगा रहीं थीं। जाट महिलाओं
ने भी बिना किसी झिझक के कहा कि मुसलमानों को गांव में मस्जिद बनाने का अधिकार
नहीं है और उन्हें गांव में वापिस नहीं आने दिया जाना चाहिए। महिलाओं की हिंसा में
भागीदारी परेशान करने वाली है क्योंकि इससे समाज का वह वर्ग नफरत और हिंसा के
दुष्चक्र में फंस जाता है जिसे शांति की सबसे अधिक जरूरत है। जाट महिलाओं ने यह
आरोप भी लगाया कि मुस्लिम पुरूष, जाट लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं और वे गांव की सुरक्षा के
लिए खतरा हैं।
तथाकथित गौवध का इस्तेमाल भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ाने के लिए किया
गया। अकेले उत्तरप्रदेश में जून 2014 से लेकर अक्टूबर 2015 तक केवल गौवध के मुद्दे पर सांप्रदायिक हिंसा की 330 घटनाएं हुईं।
सहारनपुर में निर्दोष युवकों को केवल इस आधार पर जान से मार दिया गया कि वे वध के
लिए मवेशी ले जा रहे थे।
गुज़रे साल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को गहराने और दोनों समुदायों के बीच
नफरत बढ़ाने के लिए सामाजिक बहिष्कार का एक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया गया। अटाली
में उन मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार किया गया जो गांव लौट आए। उनमें से अधिकांश
मज़दूर थे। गांववालों ने उन्हें काम देना बंद कर दिया, उन्हें न तो सामान
बेचा जाता था और ना ही उनसे कोई चीज़ खरीदी जाती थी और यहां तक कि उनके बच्चों के
लिए दूध भी उन्हें उपलब्ध नहीं हो पाता था। इससे मुसलमान भूख और बदहाली के शिकार
हो गए। मुस्लिम समुदाय के सदस्यों द्वारा संपत्ति अर्जित करने से सामंती सामाजिक
यथास्थिति पर खतरा मंडराने लगता है और इसकी हिंसक प्रतिक्रिया होती है। मुसलमानों
की संपत्ति की बड़े पैमाने पर लूट और आगजनी का उद्देश्य उनकी आर्थिक रीढ़ तोड़ना
होता है। पुलिस और प्रशासन हिंसा का मूकदर्शक बना रहता है और उसे नज़रअंदाज करता
है।
घृणा फैलाने वाले भाषणों की
सांप्रदायिकीकरण और ध्रुवीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका है। इनके ज़रिए सांप्रदायिक
हिंसा को औचित्यपूर्ण ठहराने की कोशिश होती है। राज्यपाल, मुख्यमंत्री और
सांसद स्तर के लोग भी नफरत फैलाने वाली भाषणबाजी कर रहे हैं। यह सचमुच दुःखद है कि
उच्च पदों पर बैठे लोग, जिन्हें हमारे संविधान की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है, वे ही संवैधानिक
मूल्यों का मखौल बना रहे हैं। इससे असामाजिक और सांप्रदायिक तत्वों की हिम्मत
बढ़ती है और वे और खुलकर हाशिए पर पड़े वर्गों पर हिंसक हमले करने लगते हैं।
2015 में सबसे अधिक
संख्या में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं उत्तर भारत में र्हुइं। कुछ रपटों में तो
हिंदी पट्टी को भारत का विस्फोटक साम्प्रदायिक हिंसा वाला इलाका बताया गया। उत्तर
भारत, विशेषकर
उत्तरप्रदेश में साम्प्रदायिक हिंसा के कुछ विशिष्ट लक्षण देखे गए। ज्यादातर
मामलों में साम्प्रदायिक हिंसा के पहले सांसदों, विधायकों, राजनैतिक दलों के
नेताओं और यहां तक कि मंत्रियों द्वारा नफरत भरे भाषण दिए गए। ये भाषण आक्रामक
तत्वों के लिए संकेत थे कि वे बिना दण्ड के भय के हिंसा कर सकते हैं। शमशाबाद के
दंगों में सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और
वाट्सएप का गलत सूचनाएं एवं अफवाहें फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया
गया। ज्यादातर मामलों में साम्प्रदायिक हिंसा, पंचायत एवं संसदीय
चुनावों के ठीक पहले हुई। समाज के ध्रुवीकरण का यह नतीजा है कि छोटी-छोटी घटनाएं
गंभीर साम्प्रदायिक हिंसा का स्वरूप ले लेती हैं। जैसा कि उत्तरप्रदेश में भाजपा
के कार्यकर्ता कहते हैं, ‘‘अब हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ नहीं रह सकते‘‘। (द हिन्दू, 2015)
साम्प्रदायिक हिंसा: उत्तरप्रदेश
उत्तरप्रदेश, जहां 2017 में विधानसभा
चुनाव होने हैं,
में सन् 2015 के शुरूआती छः
महीनों में साम्प्रदायिक हिंसा की 68 घटनाएं हुईं। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा हिंसा हुई।
4 जनवरी, 2015 आगरा
आगरा में उस समय तनाव व्याप्त हो गया जब ईद-ए-मिलादुन्नबी के जुलूस के
मार्ग की बाधाएं दूर करने के लिए मुस्लिम युवकों ने बाजार में बिजली के तार काट
दिए। दुकानदारों ने इस पर आपत्ति की एवं इसके बाद पथराव व दंगा हुआ (द हिन्दू, 2015 )।
16 जनवरी, 2015 बरेली
बरेली में 16 जनवरी को एक धार्मिक स्थल के बाहर एक पशु का शव मिला। पुलिस ने अज्ञात
व्यक्तियों के खिलाफ धार्मिक स्थल को अपवित्र करने का मुकदमा दर्ज किया। भाजपा के
स्थानीय नेताओं के खिलाफ पुलिस के कर्तव्यपालन में बाधा डालने के मामले दर्ज किए
गए। पीएसी की दो कंपनियों को तैनात किया गया। साम्प्रदायिक हिंसा में किसी की
मृत्यु होने या किसी के घायल होने की कोई सूचना नहीं मिली (द हिन्दू, 2015 )।
2 मई, 2015 शामली
तब्लीगी जमात के स्वयंसेवकों एवं जाट युवकों के बीच एक लोकल ट्रेन में
हुई मारपीट में 17 लोग घायल हुए। कथित तौर पर जाट युवकों ने तब्लीगी जमात के पांच सदस्यों
की पिटाई की। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग की (द
हिन्दू, 2015)।
29 मई 2015, लखनऊ
ठीक अजान के समय, एक मंदिर के लाऊडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच हुए विवाद ने
हिंसक मोड़ ले लिया। भीड़ ने पथराव किया, हालांकि इसमें कोई घायल नहीं हुआ। पुलिस के अनुसार, दोनों पक्षों के
बीच गोलीबारी भी हुई। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति पर नियंत्रण स्थापित किया
(द हिन्दू,
2015 )।
29 अगस्त 2015, मुजफ्फरनगर
यह विडंबना ही है कि मुजफ्फरनगर में सन् 2013 में हुए दंगों के
ठीक दो वर्ष बाद पुनः साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी। बजरंगदल ने 29 अगस्त को
मुजफ्फरनगर के लोकप्रिय धार्मिक नेता नजीर अहमद कादमी के वाहन पर हमला किया। इसके
बाद इस इलाके में अफवाहों का दौर शुरू हो गया। मुसलमानों ने बजरंग दल के
कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की मांग की। एक अन्य हिंसक घटना कुतबा गांव में हुई जब
सन् 2013 के दंगों के शिकार
कुछ मुस्लिम अपने खाली पड़े मकानों से ईटें लेने गांव में आए ताकि वे उन गांवों
में नए मकान बना सकें जिनमें वे बस गए थे। इन मुसलमानों पर गांव के जाटों ने हमला
किया और उनके साथ मारपीट की। मुसलमानों ने पुलिस से मदद की गुहार लगाई परंतु कोई
मदद न मिलने पर उन्होंने मुख्य मार्ग पर चक्का जाम कर दिया। इस चक्का जाम के कारण
मुसलमानों और जाटों के बीच दुबारा टकराव हुआ। इस हिंसा में कितने लोग घायल हुए, इसकी कोई जानकारी
नहीं है (द हिन्दू, 2015)।
4 सितंबर 2015, शमशाबाद
सितंबर माह के प्रारंभ में आगरा से 25 किलोमीटर दूर
स्थित शमशाबाद में साम्प्रदायिक हिंसा हुई। इस बार वजह बनी फेसबुक पर पैगम्बर
मोहम्मद के बारे में पोस्ट की गई आपत्तिजनक सामग्री। हिंसा आसपास के ग्रामीण
क्षेत्रों में भी फैल गई। आपत्तिजनक पोस्ट से क्रोधित भीड़ ने एक उपासना स्थल में
तोड़फोड़ की। उन्होंने जबरन दुकानें बंद करवाईं और आगजनी की। भीड़ ने कथित तौर पर
आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले दुकानदार गुप्ता को पकड़ लिया, उनके साथ मारपीट की
और उन्हें फांसी पर लटकाने का प्रयास किया। पुलिस ने भीड़ के विरूद्ध कानून
व्यवस्था भंग करने एवं गुप्ता के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां करने के लिए एफआईआर
दर्ज की। दोनों समुदायों के करीब 100 लोगों के विरूद्ध प्रकरण दर्ज किए गए (द हिन्दू, 2015)।
28 सितंबर, 2015 बिसाडा गांव, दादरी
इस गांव में वह घटना घटी जिसने पूरे देश को झकझोर दिया और हमारे समाज की
नैतिकता पर सवालिया निशान लगा दिए। यह घटना थी गौमांस खाने और रेफ्रिजिरेटर में
रखने की अफवाह फैलने पर 58 साल के मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर की गई हत्या। हत्या के
ठीक पहले, एक मंदिर में लगे
लाउडस्पीकर से वहां के पुजारी ने यह कहा कि अखलाक के परिवार ने गौमांस का सेवन
किया है। इसके बाद भीड़ अखलाक की हत्या के इरादे से उसके घर की ओर बढ़ी। इस हिंसा
में अखलाक की मृत्यु हो गई और उनका 21 साल का पुत्र दानिश गंभीर रूप से घायल हो गया।
पुलिस ने अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार करने के बजाए अखलाक के रेफ्रिजिरेटर में रखे
मांस को फोरेन्सिक जांच के लिए भेजने को प्राथमिकता दी ताकि यह पता चल सके कि क्या
यह वाकई गौमांस था। अंततः इस मामले में एक भाजपा नेता के पुत्र को गिरफ्तार किया
गया। जांच से यह सामने आया कि अखलाक के घर में गौमांस नहीं था।
4 अक्टूबर 2015, चितारा एवं कुडाखेड़ी
दादरी की घटना से उपजा तनाव नजदीक के दो गांवों -चितारा एवं कुदाखेड़ी-
में भी फैल गया। चितारा में एक बछड़े का कटा हुआ सिर मिला जिससे गौवध की अफवाह
फैली और तनाव उत्पन्न हुआ। इसी तरह कुडाखेड़ी में एक किसान के बछड़े की प्राकृतिक
कारणों से मौत हुई, जिसके बाद शरारती तत्वों ने अफवाहें फैलाकर घटना को साम्प्रदायिक रंग
देने की कोशिश की (द हिन्दू, 2015) ।
22 अक्टूबर 2015, फतेहपुर, जिला इलाहबाद
धार्मिक जुलूसों के दौरान साम्प्रदायिक हिंसा बहुत आम है। ऐसा ही
उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में हुआ। एक मूर्ति को ले जा रहा जुलूस निर्धारित
मार्ग से हटकर अलग रास्ते से ले जाया जा रहा था। बदले हुए रास्ते पर एक मस्जिद थी।
दोनों धर्मों के अनुयायियों ने एक-दूसरे पर पथराव किया। दो मकानों को आंशिक रूप से
नुकसान पहुंचा और दो साईकिलों और तीन मोटरसाईकिलों को आग के हवाले कर दिया गया।
यद्यपि किसी को गंभीर चोटें लगने की सूचना नहीं मिली। पीएसी और स्थानीय पुलिस बल
को तैनात किया गया और पुलिस का दावा था कि स्थिति पर नियंत्रण पा लिया गया है (द
इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
6 नवम्बर 2015, मैनपुरी
मैनपुरी में दंगे तब भड़के जब एक भीड़ ने चार मुसलमानों को पीट-पीटकर
अधमरा कर दिया। भीड़ का आरोप था कि इन मुसलमानों ने गाय का वध किया है और उसकी खाल
निकाली है। पुलिस की जांच में यह निष्कर्ष निकला कि गाय की मृत्यु के बाद उसके
मालिक ने गाय का शव इन चार व्यक्तियों को दे दिया था ताकि वे उसकी खाल निकालकर उसे
चमड़े के कारखाने में बेच सकें। उपद्रवी भीड़ ने मुसलमानों की एक दर्जन से अधिक
दुकानों में आग लगा दी। हिंसा में सात पुलिसकर्मी भी घायल हुए। पुलिस ने दो एफआईआर
दर्ज कीं-पहली गौहत्या की और दूसरी 500 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दंगा करने की, वह भी तब जब पंचायत
चुनाव के कारण धारा 144 लगी हुई थी। (द टाईम्स ऑफ इंडिया, 2015)। पुलिस की जांच से
ज्ञात हुआ कि साम्प्रदायिक घृणा फैलाने और भीड़ को इकट्ठा कर दंगे करवाने के पीछे
कुछ दक्षिणपंथी संगठनों का हाथ है (द टाईम्स ऑफ इंडिया, 2015)। कुल 30 व्यक्तियों को
गिरफ्तार किया गया और उनपर भादवि की कठोर धाराओं
के तहत प्रकरण पंजीबद्ध किए गए। जिन धाराओं के अंतर्गत प्रकरण दर्ज किए
उनमें शामिल हैं 307 (हत्या का प्रयास), 148 (घातक हथियार लेकर दंगा करना), 353 (हमला कर अथवा
आपराधिक बल का इस्तेमाल कर सरकारी कर्मचारी के कर्तव्यपालन में बाधा डालना), 353 (मकान आदि को नष्ट करने के उद्धेश्य से आग
लगाना या विस्फोटकों का इस्तेमाल करना)। यद्यपि पुलिस ने दक्षिणपंथी संगठनों के
नाम सार्वजनिक नहीं किए (द टाईम्स ऑफ इंडिया, 2015)।
14 नवम्बर 2015, अलीगढ़
यह अत्यंत चिंताजनक है कि हिन्दुत्ववादी शक्तियां, दलितों और
मुसलमानों के बीच नफरत की खाई खोदने का प्रयास कर रही हैं। पटाखे चलाने को लेकर
युवकों के दो समूहों के बीच हुए मामूली विवाद को भाजपा व विहिप द्वारा ‘‘दलितों और
मुसलमानों के बीच टकराव‘‘ के रूप में दर्शाने का प्रयास किया गया। अलीगढ़ में हुई इस घटना में गौरव
नामक एक 22 साल का दलित युवक
मारा गया। भाजपा और विहिप ने मांग की कि गौरव के परिवार को भी 40 लाख रूपये का
मुआवजा दिया जाए, जैसा कि मोहम्मद अखलाक के मामले में किया गया था (द हिन्दू, 2015)।
साम्प्रदायिक हिंसा: बिहार
बिहार में पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव हुए और चुनावों के पहले, साम्प्रदायिक
ध्रुवीकरण कर वोट बैंक मजबूत करने के उद्धेश्य से बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक
हिंसा भड़काई गई। ज्यादातर मामलों में हिंसा भड़काने के लिए जो चालें चली गईं वे
थीं- उपासना स्थलों में पशुओं के शव फेंकना, धार्मिक जुलूसों के
बहाने विवाद भड़काना, मूर्तियों को अपवित्र करना और जमीन के टुकड़ों को लेकर झगड़ा करना। सन् 2013 में भाजपा और जदयू
का गठबंधन टूटने के बाद, 18 जून,
2013
से लेकर 30 जून, 2015 की अवधि में
साम्प्रदायिक हिंसा की 445 घटनाएं हुईं। इसकी तुलना में 1 जनवरी 2010 से 18 जून 2013 की अवधि में कुल 92 घटनाएं हुईं थीं।
8 जनवरी, 2015, सासाराम, रोहतास़
एक कब्रिस्तान में पतंग गिरने के विवाद ने साम्प्रदायिक रूप ले लिया और
हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और 17 घायल हुए। कहा जाता है कि इस घटना की पृष्ठभूमि
में वह घटना थी,
जिसमें एक मुस्लिम
दुकानदार ने एक हिन्दू लड़के को उसकी दुकान के बाहर पेशाब करने पर डांटा था और
उनके बीच मारपीट हुई थी (द इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
19 जनवरी, 2015, अजीजपुर
अजीजपुर में हुए साम्प्रदायिक टकराव ने भीषण दंगों का रूप ले लिया।
भीलवाड़ा निवासी भारतेन्दु साहनी नामक व्यक्ति का शव अजीजपुर के वसी अहमद के खेत
में मिला। कथित तौर पर भारतेन्दु, वसी अहमद की पुत्री से प्यार करता था और इससे कुपित होकर उसके पुत्र ने
भारतेन्दु की हत्या कर उसका शव खेत में फेंक दिया। शव मिलने के बाद साहनी समुदाय
ने अजीजपुर में मुसलमानो के 40 मकानों को आग के हवाले कर दिया और पांच मुसलमानों की हत्या कर दी।
गांववालों का मानना है कि हिंसा का उद्धेश्य मुसलमानों को और अधिक अलगथलग करना था।
पुलिस ने 2000 लोगों के खिलाफ
मुकदमा दर्ज किया और उन 13 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनके विरूद्ध नामजद एफआईआर दर्ज कराई गई थी (द इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
26 अप्रैल, 2015 ग्राम फुलवारिया
अप्रैल माह में जमीन के एक टुकड़े को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच
टकराव हुआ। हिन्दू इस भूमि को पवित्र मानते हैं परंतु यह भूमि एक कब्रिस्तान के
बीचोंबीच स्थित है। (द इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
8 मई, 2015 ग्राम चंदौती, गया
बिहार में साम्प्रदायिक तनाव इस हद तक बढ़ा हुआ था कि दो स्थानीय टीमों
के बीच हुए एक क्रिकेट मैच के दौरान हुए एक छोटे से विवाद ने साम्प्रदायिक रूप
धारण कर लिया (द इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
17 मई, 2015 दाउदनगर, औरंगाबाद
इस गांव में उस वक्त साम्प्रदायिक हिंसा भड़की जब यह अफवाह फैलाई गई कि
एक गुमी हुई भैंस कुछ मुसलमानों के पास मिली है। साम्प्रदायिक हिंसा में आग्नेय
अस्त्रों का इस्तेमाल किया गया जिसमें एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई और 13 घायल हुए। गांव के
निवासियों ने बताया कि गांव में पिछले कई महीनों से तनाव व्याप्त था क्योंकि
मोहर्रम के जुलूस के दौरान हनुमान की एक प्रतिमा को कथित तौर पर अपवित्र किया गया
था (द इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
18 नवंबर, 2015 वैशाली
यहां नवंबर माह में हिंसा तब भड़की जब 19 वर्षीय मोहम्मद
इरफान अपनी पिकअप वेन पर नियंत्रण खो बैठा और उसका वाहन एक 60 साल के वृद्ध के
मकान में घुस गया। इस दुर्घटना में इस व्यक्ति और उसकी 8 माह की पौत्री की
मृत्यु हो गई। जब यह अफवाह फैली की पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद इरफान को छोड़
दिया है, तब दो समूहों के
बीच हिंसक झड़प हुई। पुलिस को गोलीचालन करना पड़ा और इसमें विकास कुमार नामक एक 17 वर्षीय युवक गंभीर
रूप से घायल हुआ, जिसकी बाद में मृत्यु हो गई (द
इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
साम्प्रदायिक हिंसा: हरियाणा
हरियाणा में हिंसा का लक्ष्य था प्रभावशाली जाट समुदाय का सामाजिक-राजनैतिक
दबदबा बढ़ाना ताकि तथाकथित मुस्लिम दबंगों को चुनौती दी जा सके और सामंती समाज में
यथास्थिति बनी रहे।
15 मार्च 2015, हिसार
हिसार के कामरी गांव में एक चर्च में तोड़फोड़ की गई और अनिल गोधरा नामक
व्यक्ति ने चर्च के पादरी को धमकाया। अनिल का आरोप था कि पादरी, गांव के लोगों का
धर्मपरिवर्तन कर उन्हें ईसाई बनाने का प्रयास कर रहा है। घटना के समय चर्च
निर्माणाधीन था और अनिल गोधरा ने अपने साथियों के साथ ईसा मसीह के क्रास को गिराकर
उसके स्थान पर हनुमान की प्रतिमा स्थापित कर दी। पुलिस ने 14 व्यक्तियों के विरूद्ध
प्रकरण दर्ज किया (द इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
25 मई और 1 जुलाई, 2015 अटारी
अटारी गांव में साम्प्रदायिक हिंसा की गंभीर घटना हुई। मुसलमानों और
जाटों के बीच एक मस्जिद के निर्माण को लेकर विवाद था। जिस भूमि पर एक कामचलाऊ
मस्जिद बनी हुई थी और गांव के मुसलमान जहां नमाज पढ़ते थे, उसके बारे में कई दशकों
से गांव के जाटों का दावा था कि यह भूमि पंचायत की संपत्ति है और इसी आधार पर वे
वहां मस्जिद बनाए जाने का विरोध करते आए थे। जिला अदालत ने मस्जिद के निर्माण के
पक्ष में निर्णय दिया। इसके बाद हिंसा के दो दौर हुए जिनमें एक व्यक्ति की मृत्यु
हुई और 19 घायल हो गए। पुलिस
द्वारा एफआईआर में नामजद व्यक्तियों को गिरफ्तारी करने में आगापीछा करने से जाट
युवकों की हिम्मत बढ़ गई और इसके नतीजे में मई के हिंसा के पहले दौर के बाद जुलाई
में पुनः हिंसा हुई। दंगों के बाद सबसे चिंताजनक स्थिति यह बनी कि सशक्त जाट
समुदाय ने मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया।
5 जुलाई 2015, पलवल
अटारी की हिंसा के कारण उत्पन्न तनाव का प्रभाव अटारी से 30 किलोमीटर दूर
स्थित पलवल के ब्राह्मण गांव में भी नजर आया। हालांकि यहां दंगा भड़कने का ठीक-ठीक
कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि दो युवकों के बीच हुई हुज्जत के बाद दंगा भड़का
जिसमें 17 लोग घायल हुए (द
इंडियन एक्सप्रेस, 2015)।
मध्यप्रदेश
गुज़रे साल राज्य में हिंदुत्व संगठनों की ताकत और दुस्साहस दोनों में
इजाफा हुआ। इन संगठनों द्वारा एक रणनीति के तहत हिंदू त्योहारों का इस्तेमाल शक्ति
प्रदर्शन के लिए किया जाने लगा। प्रदेश का मालवा क्षेत्र सांप्रदायिक ताकतों का
मुख्य केंद्र बनकर उभरा है। पुलिस की भूमिका पक्षपातपूर्ण रही, विशेषकर नीमच के
दंगों में, जब पुलिस
अधिकारियों ने मुसलमानों की एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया।
3 अप्रैल, नीमच :
हनुमान जयंती के पहले, बजरंग दल ने यह घोषणा कर दी कि वह शनिवार (जिस दिन हनुमान जयंती थी) के
स्थान पर शुक्रवार को जुलूस निकालेगा। यह जुलूस जब अठाना दरवाजा जामा मस्जि़द और
मोमिन मोहल्ला मस्जि़द के सामने से गुज़रा, जहां उस वक्त नमाज़
अदा की जा रही थी, तब जुलूस में शामिल लोगों ने मुसलमानों के विरूद्ध नारे लगाए। मस्जि़दों
के सामने ज़ोर-ज़ोर से गाना-बजाना भी किया गया। बजरंग दल के सदस्यों ने मुसलमानों
के घरों, दुकानों और वाहनों
को आग के हवाले कर दिया। पुलिस ने केवल मुस्लिम-बहुल इलाकों में कर्फ्यू लगाया और 30 मुसलमान युवकों को
हिरासत में ले लिया गया।
4 अप्रैल, अलीराजपुर :
जिला भाजपा अध्यक्ष के लड़के सुधांशु वर्मा और स्थानीय मुसलमानों के बीच
हनुमान जयंती के लिए सड़कों पर सजावट के मुद्दे को लेकर हाथापाई हुई। स्थिति को
नियंत्रण में लाने के लिए धारा-144 लगाई गई। कितने लोग घायल हुए, इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
22 अक्टूबर, खरगौन :
दशहरे के त्योहार के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़की। एक समुदाय के लोग जब
त्योहार मनाकर लौट रहे थे तब, पुलिस के अनुसार, दूसरे समुदाय के लोगों ने उन पर पत्थर फेंके। इसके बाद हुई हिंसा में चार
लोग घायल हुए। हिंसा को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू
गैस के गोले दागे। हिंसा के आरोप में करीब 100 लोगों को गिरफ्तार
किया गया।
झारखंड
झारखंड में हिंदुत्व संगठनों की गतिविधियों के चलते, पूरे साल तनाव का
वातावरण बना रहा। यह दिलचस्प है कि राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार, 2014 में, झारखंड में देश के
किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे अधिक (349) सांप्रदायिक
हिंसा की घटनाएं हुईं। झारखंड में सांप्रदायिक हिंसा, बिहार चुनाव को
प्रभावित करने के लिए की गई। जमशेदपुर में बड़ी संख्या में बिहारी प्रवासी रहते
हैं और वहां 1979 में एक बड़ा
सांप्रदायिक दंगा हुआ था।
4 जनवरी, गिरिडीह :
ईद.ए.मिलादुन्नबी के जुलूस के दौरान पत्थरबाजी के बाद हिंसा हुई। सात
मोटरसाईकिलों और दो कारों को आग लगा दी गई और दो मकानों को नुकसान पहुंचाया गया।
बच्चों और पुलिसकर्मियों सहित करीब दस लोगों को हल्की चोटें आईं। स्थिति को
नियंत्रित करने के लिए निषेधाज्ञा लागू की गई।
20 जुलाई, जमशेदपुर :
मुस्लिम इलाके में स्थित लड़कों की एक होस्टल के नज़दीक एक हिंदू लड़की
को छेड़े जाने की अफवाहों के बाद सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई। यह हिंसा ईद के एक
दिन बाद हुई। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने छेड़छाड़ करने
वालों के खिलाफ कार्यवाही की मांग को लेकर जुलूस निकाला और मुसलमानों की दुकानों
और वाहनों में आग लगाई। हिंसा में किसी के घायल होने या मारे जाने की खबर नहीं है।
पुलिस ने कुछ विहिप नेताओं सहित 133 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए
कर्फ्यू भी लगाया गया।
25 सितंबर, रांची :
काली मंदिर के बाहर एक जानवर की खाल पाए जाने के बाद सांप्रदायिक हिंसा
भड़क उठी। विहिप और बजरंग दल के सदस्यों ने एक जुलूस निकाला, जिसके दौरान इटरा
मस्जि़द पर पत्थर फेंके गए। लाठी लिए हुए युवकों के दल "जय श्रीराम" के
नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आए और उन्होंने दुकानदारों को अपनी दुकानें बंद करने
के लिए धमकाया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया। 65 लोग गिरफ्तार हुए
और निषेधाज्ञा लागू की गई।
24 अक्टूबर, हजारीबागः
पिछले वर्ष मोहर्रम और दुर्गापूजा एक ही दिन थे। इस दिन हुई हिंसा में एक
व्यक्ति मारा गया और कई घायल हुए। पुलिस ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए धारा 144 लगाई। उसी दिन
अन्य जिलों लातेदार, धनबाद और डाल्टनगंज में भी हिंसा हुई।
21 दिसंबर, रांची :
ओरमांझी में एक काली मंदिर और मस्जि़द के बाहर मांस मिलने के बाद
सांप्रदायिक दंगा हुआ। किसी के मरने की खबर नहीं है। पुलिस ने 45 लोगों को गिरफ्तार
किया, जिनमें से 25 हिंदुत्व संगठनों
के सदस्य व शेष मुसलमान थे।
राजस्थान
उपलब्ध मीडिया रपटों के अनुसार, राजस्थान में पिछले वर्ष सांप्रदायिक हिंसा की दो
घटनाएं हुईं।
23 अक्टूबर, श्री डुंगरगढ़ :
दो अलग.अलग धार्मिक जुलूसों के दौरान एक समूह द्वारा लाउडस्पीकरों के
इस्तेमाल के कारण हिंसा भड़की, ऐसा बताया जाता है। दूसरे समूह ने लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर आपत्ति की, जिसके बाद
पत्थरबाजी शुरू हो गई। कुछ दुकानों को लूटकर आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस ने
लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। लगभग 50 लोगों को गिरफ्तार
किया गया और अनिश्चित काल का कर्फ्यू लगाया गया।
24 अक्टूबर, भीलवाड़ाः
20 साल के
इस्लामुद्दीन की मौत के बाद दंगा हुआ। उसकी हत्या की गई थी। 24 अक्टूबर को लगभग 500 मुसलमानों की भीड़
ने पुलिस को इस्लामुद्दीन के शव को पोस्टमार्टम के लिए नहीं भिजवाने दिया। उनकी
मांग थी कि पहले संदेहियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। इस दंगे में किसी की मौत
नहीं हुई।
दिल्ली
दिल्ली में 2014 के आखरी महिनों में चर्चों पर हमले की अनेक घटनाएं हुईं जिनके नतीजे में
ईसाई समुदाय काफी भयाक्रांत हो गया। ये हमले जनवरी में भी जारी रहे परंतु दिल्ली
विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद बंद हो गए। इससे स्पष्ट हो गया कि इन हमलों का
उद्देश्य वोट बैंकों को मज़बूत करना था। पुलिस ने कहा कि ये हमले सुनियोजित नहीं
थे व इनके पीछे केवल स्थानीय समाजविरोधी तत्व थे।
14 जनवरी, विकासपुरी (दक्षिण दिल्ली) :
अवर लेडी ऑफ ग्रेसिस चर्च में चारों ओर से कांच से ढंकी मैरी की मूर्ति
को धक्का देकर गिरा दिया गया जिससे कांच टूट गए। अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ
आराधनास्थल को अपवित्र करने का मुकदमा दायर किया गया। किसी की गिरफ्तारी नहीं
हुई।
2 फरवरी, दक्षिण दिल्ली :
सेंट एलफोन्सा चर्च से "चैलिस" चुरा लिया गया और उसमें रखी
चीजें फर्श पर बिखरी पाई गईं। इस तोड़फोड के बाद पुलिस ने चोरी और आराधनास्थल को
अपवित्र करने का प्रकरण कायम किया। आरोपी अज्ञात थे और अब तक भी उनका पता नहीं चला
है।
जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार का शासन है। जम्मू-कश्मीर
में गुज़रे वर्ष राष्ट्रीय औसत से कम सांप्रदायिक हिंसा हुई, जो पिछले वर्षों
में राज्य में हुई हिंसा की घटनाओं से भी कम थी।
20 अगस्त, संबा (जम्मू) :
एक दुधारू पशु का सिर नाले में पाए जाने के बाद सांप्रदायिक दंगा शुरू
हुआ। स्थानीय युवकों ने विरोधस्वरूप पत्थरबाजी की। उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग पर
आते-जाते वाहनों को भी आग लगा दी। पुलिस ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले
फोड़े और गोलियां भी चलाईं। अंततः हिंसा को नियंत्रित करने के लिए सेना को बुलाया
गया। घटना में किसी के मारे जाने या घायल होने की खबर नहीं है।
गुजरात
भाजपा-शासित गुजरात में जनवरी और जून के मध्य सांप्रदायिक हिंसा की 25 घटनाएं हुईं, जिनमें 7 लोग मारे गए और 79 घायल हुए।
4 जनवरी, बड़ौदा :
हिंसा की शुरूआत तब हुई जब ईद-ए-मिलादुन्नबी के जुलूस के दौरान शहर के
अकोटा इलाके में दूसरे समुदाय के एक बोर्ड को कुछ नुकसान पहुंचा। इसके बाद टकराव
और पत्थरबाजी शुरू हो गई। दो महिलाओं सहित तीन लोग घायल हुए। पुलिस ने दंगाईयों को
नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया।
14 जनवरी, अम्भेटा व हंसोट :
अम्भेटा में सड़क निर्माण को लेकर दो समुदायों के सदस्यों के बीच विवाद
के बाद सांप्रदायिक हिंसा हुई। दोनों समूहों ने एक-दूसरे पर पत्थर फेंके। हिंसा
बाद में निकटवर्ती हंसोट कस्बे में फैल गई, जहां लोगों ने
पत्थर फेंके और दुकानों में आग लगा दी। इन घटनाओं में दो लोग मारे गए और चार घायल
हुए।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में जनवरी से लेकर जून तक सांप्रदायिक हिंसा की 59 घटनाएं हुईं, जिनमें 4 लोग मारे गए और 196 घायल हुए। सन 2014 के विधानसभा चुनाव
में जीत हासिल करने के बाद, शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार राज्य में शासन कर रही है। इस सरकार ने राज्य
में बीफ पर प्रतिबंध लगा दिया है। आम लोगों की सोच और उनके दृष्टिकोण के
सांप्रदायिकीकरण से समाज में तनाव और टकराव बढ़ रहा है।
4 जनवरी, मुंबई :
मुंबई के लालबाग इलाके में अलग-अलग समुदायों के युवकों के दो समूहों के
बीच विवाद हो गया। लालबाग के भीड़ भरे बाज़ार में एक मोटरसाईकिल वाला एक महिला के
बहुत करीब से गुज़रा। यह मोटरसाईकिल मिलादुन्नबी के जुलूस में शामिल थी। इस घटना
के बाद भीड़ इकट्ठा हो गई और जितने भी ऐसे मोटरसाईकिल वाले वहां से गुज़रे
जिन्होंने टोपी पहन रखी थी या जिनकी गाडि़यों में झंडे लगे थे, उन सब की पिटाई की
गई। पुलिस को सोशल मीडिया के जरिए लोगों से अफवाहों में विश्वास न करने की अपील
करनी पड़ी। कोई व्यक्ति घायल नहीं हुआ।
15 जनवरी, पचैरा :
साप्ताहिक बाज़ार में मुस्लिम और हिंदू लड़कों के बीच लड़ाई हुई। पहले एक
मुसलमान लड़के को पीटा गया और बाद में एक हिंदू को। इसके बाद दोनों समुदायों के
लोग आपस में भिड़ गए। छः लोग घायल हुए, एक कार और कुछ दोपहिया वाहनों को आग लगा दी गई।
कुल मिलाकर चार-पांच लाख रूपए की संपत्ति नष्ट हो गई। पुलिस ने दोनों समुदायों के 50 लोगों को हिरासत
में लिया।
14 जुलाई, हरशूल :
हरशूल में हुआ दंगा मुख्यतः आदिवासियों व गैर-आदिवासियों के बीच टकराव का
नतीजा था। यद्यपि हरशूल में आदिवासियों का बहुमत है तथापि सत्ता उनके हाथों में
नहीं है। दूसरे समुदाय उनका शोषण करते हैं। आदिवासियों के खिलाफ अपराधों के मामलों
में पुलिस विशेष रूचि नहीं लेती। 7 जुलाई को भागीरथ चौधरी नामक एक आदिवासी युवक का शव, रिज़वान अख्तर के
कुएं में पाया गया। पुलिस ने न केवल शव को कुएं से निकालने से इंकार कर दिया वरन
एफआईआर भी दर्ज नहीं की। पुलिस द्वारा कार्यवाही न करने से क्रोधित आदिवासियों ने
एक रैली निकाली। इस रैली के दौरान ही हिंसा शुरू हो गई। रैली में शामिल लोगों ने
चुन-चुनकर मुसलमानों के घरों और दुकानों पर हमले करना शुरू कर दिए। कम से कम 20 दुकानों को लूटा
गया और उनमें तोड़फोड़ की गई। यह दिलचस्प है कि कुछ समृद्ध मुसलमानों को पहले से
ही यह पता था कि शहर में हिंसा होने वाली है और इसलिए वे वहां से भाग निकले थे।
कुछ पर्चे भी बांटे गए थे। इससे साफ है कि हिंसा सुनियोजित थी। स्थिति को नियंत्रण
में लाने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिनसे एक व्यक्ति मारा गया। कुल मिलाकर 38 पुलिसकर्मी घायल
हुए।
कर्नाटक
दक्षिण के राज्यों में कर्नाटक, सांप्रदायिक दृष्टि से सबसे संवेदनशील बन गया है।
आंकड़े इस तथ्य की गवाही देते हैं। कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में जनवरी से लेकर
अक्टूबर तक सांप्रदायिक हिंसा की कम से कम 153 घटनाएं हुईं। 36 घटनाएं तो जनवरी
से जून तक के छः महीनों में ही हुईं, जिनमें दो लोग मारे गए और 123 घायल हुए। बजरंग
दल और विहिप तनाव को हवा देने में जुटे हुए थे। पुलिस हिंसा को रोकने और लोगों को
सुरक्षा प्रदान करने की अपनी जि़म्मेदारी को पूरा नहीं कर पाई।
23 सितंबर, मुधौल :
जनता कालोनी में गणेश पूजा जुलूस के दौरान हिंसा हुई। इस जुलूस का
नेतृत्व श्रीराम सेने कर रही थी। एक हफ्ते पहले सेने ने जुलूस के बारे में पोस्टर
एक मस्जि़द के बाहर चिपका दिया था। प्रतिक्रिया स्वरूप, मुसलमानों ने टीपू
सुल्तान का पोस्टर लगा दिया। जब जुलूस एक मस्जिद के पास पहुंचा तो वहां पर्याप्त
संख्या में पुलिसकर्मी उपस्थित नहीं थे। इसके बाद पत्थरबाजी, लूटमार और आगजनी
शुरू हो गई। मुसलमानों के करीब 20 दुकानों/मकानों को नुकसान पहुंचाया गया। हिंसा पूर्वनियोजित थी यह इससे
स्पष्ट है कि इसमें पेट्रोल बमों और जलते हुए टायरों का इस्तेमाल किया गया। पुलिस
ने करीब 90 लोगों को गिरफ्तार
किया, जिनमें से 30 श्रीराम सेने के
थे। इसी माह चिकोड़ी, सुरपुर, धारवाड़ और कोजालागी में भी हिंसा हुई।
27 अक्टूबर, नेलियाड़ी :
मैंगलोर के पास स्थित इस गांव में हिंसा तब शुरू हुई जब एक मुसलमान नाई
ने मंगलवार को अपनी दुकान बंद रखने से इंकार कर दिया। बजरंग दल के नेता रवि बाल्या
सलमान की दुकान पर पहुंचे और उनसे कहा कि उन्हें अपनी दुकान मंगलवार को बंद रखनी
चाहिए क्योंकि हिंदू उस दिन अपने बाल नहीं कटवाते। सलमान ने यह कहते हुए इंकार कर
दिया कि जिसे आना हो आए वह अपनी दुकान खुली रखेगा। इसके बाद रवि बाल्या के नेतृत्व
में एक भीड़ ने जुम्मा मस्जिद काम्पलेक्स में स्थित सलमान व अन्य मुसलमानों की
दुकानों पर हमला कर दिया। मुसलमानों की ओर से पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया नामक संगठन
के असामाजिक तत्वों ने आगजनी और तोड़फोड़ की। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए
पुलिस ने कर्फ्यू लगाया और दोनों समुदायों के 9 लोगों को गिरफ्तार
किया। कई लोग घायल हुए और लाखों की संपत्ति नष्ट हो गई।
10 नवंबर, बैंगलोर :
हिंसा तब शुरू हुई जब एक मुस्लिम संगठन ने
टीपू सुल्तान की जंयती पर जुलूस निकाला, जिसका हिंदुत्व कार्यकर्ताओं ने विरोध किया।
पत्थरबाजी में एक विहिप कार्यकर्ता को गंभीर चोटें आईं और बाद में वह मर गया।
पुलिस ने लाठीचार्ज कर भीड़ को तितरबितर किया।
(मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा
अनुदित)
No comments: