सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न व शोषण के विरोध में

मध्य प्रदेश में दलितों के साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न व शोषण  के विरोध में धरना
दिनांक - 25 दिसंबर 2010 , प्रातः 11 बजे से शाम 5 बजे तक
स्थान - बोर्ड ऑफिस चौराहा, सांची कॉम्पलेक्स के पास, भोपाल, मध्यप्रदेश 

अन्य मामलों में मध्यप्रदेश को भले ही बीमारु राज्य कहा जाये, परन्तु दलितों व आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में इसका ऊॅचा मुकाम है। प्रदेश में सामाजिक उत्पीड़न की जड़ें आजादी के 60 वर्षों के बाद भी गहरी हैं। सरकारी आंकड़े बतातें हैं कि पूरे देश  में दलित उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश दुसरे स्थान पर है तथा आदिवासियों के उत्पीड़न में इसकों प्रथम स्थान प्राप्त है। प्रदेश  में दलित अत्याचार के 71 फीसदी मामलें लबिंत हैं। केवल 29 फीसद मामलें में ही सजा दिलायी जा सकी हैं।  

मध्य प्रदेश में दलितों के साथ भेदभाव की जड़ें कितनी गहरी हैं उसका अंदाजा सितम्बर 2010 में प्रदेश  के मुरैना जिले के मलीकपूर गॉव में हुई एक घटना से लगाया जा सकता है, जिसमें एक दलित महिला ने ऊॅची जाति के व्यक्ति के कुत्ते को रोटी खिला दी, जिस पर कुत्ते के मालिक का कहना था कि एक दलित द्वारा रोटी खिलाऐ जाने के कारण उसका कुत्ता अपवित्र हो गया है और गॉव की पंचायत ने दलित महिला को रु15000 दण्ड़ का फरमान सुना दिया है। हाल ही में छत्तरपुर जिले के बास्ता गॉव में दलितों को पीने का पानी लेने से रोका गया। दलित युवक द्वारा घोड़े पर बारात निकालने पर उच्च जाति के लोगों का दलितों पर हमला, दलित महिला सरपंच को पन्द्रह अगस्त पर झंडा फहराने से रोका गया, दबंगो द्वारा दलित महिलाओं के साथ बलात्कार, जाति प्रमाण पत्र न बन पाने के कारण दलितों के लिए जारी सरकारी सुविधाओं से दलित युवक व छात्र वंचित, नाई द्वारा बाल काटने को मना कर देना, मरे हुए मवेशियों को जबरदस्ती उठाने को मजबूर करना तथा मना करने पर सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार कर देना आदि जैसी घटनाऐं कुछ उदाहरण मात्र है। इस प्रकार की घटनायें मध्य प्रदेश में रोज घट रही हैं। दलितों के साथ भेदभाव व उत्पीड़न जहां गॉव में खुले रूप में जारी है वहीं शहरों में भी ढके-छुपें रूपों में जारी है। अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम 1989 के बावजूद स्थिति भयावह बनी हुई है, क्योकि इस कानून का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। 

अनुसूचित जाति-जनजाति को लोगों से जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सरकार 1950 का रिकार्ड मांगती जिसकी वजह से काफी बड़ी संख्या में लोग जाति प्रमाण पत्र से वंचित हैं। जाति प्रमाण पत्र न बन पाने के कारण दलित समुदाय के युवाओं व छात्रों को सरकार द्वारा दिए जा रहे आरक्षण व अन्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा हैं। हम सरकार से यह मांग करते हैं कि करते हैं कि 1950 का रिकार्ड मांगने के नियम को तत्काल समाप्त कर जाति प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया को सरल किया जाये तथा कोई भी व्यक्ति संबंधित अधिकारी के सामने शपथ पत्र देकर अपना जाति प्रमाण पत्र बनाने का प्रावधान किया जाए और शपथ पत्र गलत होने पर संबंधित व्यक्ति पर सजा का प्रावधान हो ताकि दलितों को मिले अधिाकर का कोई अन्य व्यक्ति दुरूपयोग न कर सके। 

दलितों के बच्चे गरीबी व तंगहाली में दम तोड़ रहें है व गंभीर कुपोषण का शिकार हैं। अधिकांश बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। शहरों में दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा झुग्गी-बस्तियों में रहने के लिए मजबूर है। शिक्षा के संस्थानों, सरकारी दफ्तर व संस्थानों, मीडिया आदि में उच्च ओहदों पर दलितों के उपस्थिति नगण्य है। 

दलित, गॉव में ज्यदातर भूमिहीन है क्योंकि आजादी के बाद किसी भी सरकार ने भूमि सुधार लागू नहीं किया। इसलिए आज भी खेती योग्य जमीन का ज्यादातर चंद मुठ्ठी भर लोगों के हाथों में है। ग्रामीण क्षेत्र में भूमि सुधार लागू कर अतिरिक्त जमीन दलितो व अन्य भूमिहीनो को वितरित किए बिना उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार संभव नहीं है। 

प्रदेश में लगातार इतने बड़े पैमाने पर दलितों पर अत्याचार के मामलों के सामने आने के बावजूद मध्यप्रदेश के समाज और राजनीति में दलित उत्पीड़न कोई मुददा नही बन पा रहा है। प्रदेश के तमाम राजनैतिक दलों के एजेन्ड़े में दलितों की सामाजिक-आर्थिक बराबरी का सवाल सिरे से ही गायब है। देश-प्रदेश के नेता-अफसर व पूंजीपति आकंठ भ्रष्टाचार में डुबे हुए हैं। मध्य प्रदेश की सरकार और उसके मुखिया जनता की खुन-पसीने की कमाई से ’गौरव दिवस’ मना रहे हैं। आखिर हम गौरव का अनुभव कैसे कर सकतें हैं जबकि समाज के एक बड़े हिस्से दलितों को सामाजिक सम्मान व आर्थिक बाराबरी हासिल नहीं हैं। 

हमारे देश के संविधान में प्रत्येक नागरिक को बराबरी का अधिकार प्राप्त है। कोई भी व्यक्ति चाहें वह किसी भी जाति/समुदाय व  धर्म का हो, सभी को देश का नागरिक होने के नाते समान अधिकार प्राप्त हैं लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी समाजिक-आर्थिक गैर बराबरी आज भी कायम है।

25दिसम्बर के दिन ऐतिहसिक महाड सत्याग्रह के दौरान बाबा साहेब अम्बेडकर के नेतृत्व में जाति व्यवस्था को जायज ठहराने वाली मनुस्मृति का सार्वजनिक दहन किया गया था लेकिन मनुस्मृति का विधान आज भी हमारे समाज में गहरे रचा बसा है। इसलिए हम 25 दिसम्बर के ऐतिहासिक दिन के अवसर पर दलित उत्पीड़न के खिलाफ हम राज्य स्तरीय धरने का आयोजन कर रहे है। आप सभी से अपील है कि इंसानी बराबरी कायम करने की हमरी इस मुहिम में शामिल हो। आइयें हम महात्मा ज्योतिबा फुले, शहीद भगतसिंह और बाबा साहेब अंबेडकर की संघर्ष की परम्परा के साथ जुड़े ताकि व्यक्ति की गरिमा पर आधारित शोषण और अन्याय से मुक्त समाज का निर्माण किया जा सके।
                                                                                                     इंकलाब जिंदाबाद

नागरिक अधिकार मंच, मध्य प्रदेश 
युवा संवाद 

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