जनगणना में मुखिया

जनगणना में मुखिया
    भारत मे वर्ष २०११ के लिये चल रही जनगणना के सन्दर्भ  मे                              
                                                                              -चन्दन यादव 

परिवार को अगर सरकार मानें तो उसके मुखिया को प्रधानमंत्री कहा जा सकता है। पर यह सरकार की तरह से चुना गया ना होकर स्वयंभू होता है, और तानाशाह भी। ऑनर किलिंग के मामलों में हम इस मुखिया की तानाशाही देखते रहे हैं। पर यहाँ पर मैं इस मुखिया का उल्लेख ऑनर किलिंग के कारण नहीं, जनगणना के कालम में इसकी उपस्थिति के कारण कर रहा हूँ।

दरअसल जनगणना के लिये भरे जाने वाले प्रपत्र में परिवार के मुखिया का नाम और परिवार के बाकी लोगों के साथ मुखिया के सम्बंध/ रिश्ते की जानकारी भरनी होती है। ये कालम सरकार द्वारा मान्य कुछ बातें पक्की तौर पर बताते हैं। एक यह कि हर परिवार का एक मुखिया होता है, होना चाहिये। इसी में यह भी निहित है कि ज्यादातर मामलों में मुखिया कोई पुरुष होगा। चूंकि यह मुखिया है इसलिये परिवार के बाकी लोग इसके अधीन होंगे। यह अधीनता भावनात्मक जुड़ाव के चलते भी हो सकती है और मुखिया पर निर्भरता के चलते भी। सभी जानते हैं कि जाति हमारे समाज का सबसे मजबूत तत्व है। परिवार इस तरह के किसी भी कदम का पुरजोर विरोध करते हैं जो जातिव्यवस्था को कमजोर करने वाला हो। इस तरह का एक कदम अन्तर्जातीय विवाह करना है। जिसके दण्डस्वरूप समाज के मुखिया अपनी ही संतानों को सरेआम फांसी पर भी लटकाते रहे हैं। तो क्या हम जनगणना के कालम में मुखिया की मौजूदगी को इस रूप में देखें कि सरकार अन्दर से जर्जर हो रहे परिवार को औपचारिक रूप से बनाये रखने के लिये सहमत है। अगर जनगणना में मुखिया नहीं होता, तब भी देश के लोगों की गिनती पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।   

मुखिया को जनगणना का हीरो बनाकर परिवार के अन्दर बदलाव के लिये बैचैन नई पीढ़ी को क्या हम यह जताना चाहते हैं कि उनको ये मान लेना चाहिये कि परिवार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्था है। बावजूद इसके कि उसमें महिलाओं के साथ गैरबराबरी और पदानुक्रम जैसे समता विरोधी तत्व कूट कूट कर भरे हुए हैं। 

किसी परिवार के लोगों की गणना में इस बात को शामिल करना कि उसके मुखिया से क्या सम्बंध है, नागरिकों की स्वतंत्र, व्यक्तिगत पहचान का भी हनन है। इस बात को ऐसे भी देखा जा सकता है कि शासित रहने के लिये अनुकूलित होकर परिवार से निकले लोग सरकार के लिये आदर्श नागरिक हो सकते हैं। इसलिये परिवार और उसमें एक मुखिया की मौजूदगी को जब तक संभव हो बने रहने देना चाहिये। 

हमारे देशमें पारम्परिक परिवार के अलावा, सीमित संख्या में ही सही ऐसे परिवार भी हैं जो ‘समलैंगिक विवाह’ और ‘लिविंग टुगेदर’ की बुनियाद पर बने हैं। ऐसे परिवार के लोगों में से कइयों ने तो शायद ही कभी यह सोचा होगा कि इस परिवार का एक मुखिया भी है। दरअसल मुखिया को सरकारी मान्यता देकर एक तरह से हम जाति व्यवस्था और परिवारों को इसी रूप में बने रहने का ही समर्थन कर रहे हैं। 
क्या 2021 की जनगणना इससे मुक्त हो सकेगी ?

सम्पर्क- चन्दन यादव, एकलव्य, ई-10, शंकर नगर, बी. डी. ए. कालोनी, भोपाल
email- chandansamvad@gmail.com 

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