पंजाबः नशाखोरी के पीछे छिपी है ’हरित क्रान्ति’ की त्रासदी
स्वदेश कुमार सिन्हा
देशभर में
पंजाबियों के बारे में यह आम धारणा है कि, यह एक मेहनती और कर्मठ कौम है। आपने किसी पंजाबी को भीख मांगते
हुए नही देखा होगा। पिछले दिनों जब मै पंजाब में ’नशाखोरी की समस्या’ का अध्ययन करने
के लिए अमृतसर पहुॅचा वहां पर एक स्थानीय पत्रकार ने बतलाया कि उनका सामना सोलह ,सत्रह साल के एक
ऐसे नौजवान से हुआ जो अच्छे कपड़े पहनने के बावजूद अपने उम्र से काफी बड़ा दिख रहा
था। उसने उक्त पत्रकार से पचास रू0 माॅगे ताकि अपने गाॅव जाकर अपने मां से मिल सके। उसने यह
भी बतलाया कि वह एक जाट किसान है गाॅव में उसकी अच्छी खासी खेती है। पैसा न देने
पर वह गिड़गिड़ाने लगा उसने सच्चाई उगल दी। दरअसल वह एक नशेड़ी था और नशे की तलब
शान्त करने के लिए ए वी एल (फिनारा माईनमिलेट ) दवा की एक शीशी खरीदना चाहता था।
उक्त नौजवान की स्थिति वहां आज के युवा वर्ग की दयनीय स्थिति को बयां करती है।
पंजाब आज नशाखोरी
की गिरफ्त में कराह रहा है। शराब ,अफीम ,स्मैक ,हेरोईन ,सुल्फा व अन्य नशीली दवाओ की लत वहां के युवको पर मानो काल
बनकर आयी है। अभी हाल में ’अखिल भारतीय
आर्युविज्ञान संस्थान’ (एम्स) से जुडी
संस्था ’नेशनल ड्रग
कन्ट्रोल ’ की एक ताजा
रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में इस समय करीब पचहत्तर हजार करोड़ रूपये की ड्रग्स की
खपत हर वर्ष हो रही है। इसमें करीब एक लाख तेइस हजार करोड़ की केवल हेराईन की खपत
है। इन ड्रगो पर पंजाब में अकेले लोग बीस करोड़ रूपये प्रतिदिन खर्च करते हैं।
तकरीबन हर परिवार में आपको नशे का सेवन करने वाले मिल जायेंगें। आंकड़े तो यह भी
बताते हैं कि हर तीन कालेज छात्रो में एक नशे का आदी है। ग्रामीण क्षेत्रो में
स्थिति और भयावह है। स्थिति यह है कि पुलिस खुद अपने कर्मियों के लिए ’नशा मुक्ति कैम्प’ लगा रही है। पूरे
भारत में जप्त की गई गैरकानूनी दवाओ में से साठ प्रतिशत अकेले पंजाब में पकड़ी
जाती हैं। यहाँ के जेलो में तीस प्रतिशत कैदी ’नारकेाटिक्स ड्रग्स एक्ट ’ के तहत पकड़े गये हैं। जेलों के अन्दर खुलेआम
ड्रग्स की सप्लाई चलती है। सन् 2010 में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने यह कहकर बवाल मचा दिया था
कि जेलो के अन्दर ड्रग्स सप्लाई रोक पाना उनके बूते की बात नही है। सन् 2012 के विधान सभा
चुनाव के पहले भारी मात्रा में नशीली दवाइयां जप्त की गयी ।तो राजनीतिक पार्टियों
के ड्रग्स के धन्धे में लिप्त होने का खुलासा हुआ। कांग्रेस तथा अकालीदल दोनो ने
युवको को रिझाने के लिए खुलेआम नशीली दवाइयाँ बांटी। पंजाब में नशाखोरी मिटाने के
वादे के साथ सत्ता में आयी अकाली -भाजपा सरकार के एक कैबिनेट मंत्री विक्रम सिंह
मजीठा हाल ही में ड्रग बाजार के सूत्राधार होने में पकड़े गये हैं । यहाँ पर गौर
करने वाली बात यह है कि पंजाब में नशाखोरी एक मात्र समस्या नही है। अगर नशाखोरी के
कारण यहाँ हर सप्ताह एक व्यक्ति की मौत हो रही है तो कर्ज के जाल में फॅस कर हर
रोज दो किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
दरअसल नशाखोरी की
समस्या हो या किसानो की आत्महत्याओं की, पंजाब की इन सभी समस्याओ के केन्द्र में वहां की कृषि का
मौजूदा संकट है। पंजाब के सामाजिक कार्यकर्ता डा0 जगजीत सिंह चीमा तथा अन्य अनेक सामाजिक
कार्यकर्ताओ तथा जानकरो की भी यह स्पष्ट राय है कि चाहे विगत वर्षो में चला
खालिस्तानी आन्दोलन हो या वर्तमान में पंजाब में नशाखोरी की समस्या। इन सभी के बीच
यही संकट मुख्य रूप से जिम्मेदार है। पंजाब सदियों से एक कृषि प्रधान राज्य रहा है, परन्तु हरित
क्रान्ति ने वहां की पारम्परिक खेती को पूरी तरह बदल दिया है। आज यहाँ खेती की
सफलता नगदी फसल गेहूॅ ,धान ,ज्वार के उन्नत
बीजो पर निर्भर है। यह बीज भी अधिक रायायनिक खाद तथा अधिक सिचाई के बाद ही ज्यादा
पैदावार देते हैं। ऐसी खेती में लागत काफी अधिक होती है। इसलिए किसान अधिक मात्रा
में कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं, इस प्रक्रिया में खेती की लागत बहुत बढ़ जाती है। रासायनिक
खादो और कीटनाशको के अन्धाधुन्ध प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता घटती जाती है, जिससे फसल की
उत्पादकता ठहर गयी है। पंजाब में किसानो की आमदनी पर यह पहली चोट है। दूसरी चोट
फसल की कीमतो में गिरावट है। कृषि उत्पादको की कीमत सम्पूर्ण विश्व में या तो ठहरी
हुयी है या गिर रही है। सीमान्त और छोटे किसानो पर इसकी मार सबसे ज्यादा है।
क्योकि खाद, बीज, कीटनाशक या सिचाई
के लिए अक्सर उन्हे कर्ज लेना पड़ता है। लागतो की बढ़ती कीमत और घटती आमदनी के
चक्रव्यूह में सीमान्त और छोटे किसानो के लिए खेती अब संभव नही रह गयी है। जिनकी
संख्या पंजाब में लगभग सत्तर प्रतिशत है। कर्ज के जाल में फॅसकर यह किसान दिवालिया
होते जा रहे है, इनमें कुछ
खुदकुशी को गले लगा ले रहे हैं । करीब 28 प्रतिशत किसान खेती छोड़कर मजदूरो में बदल गये हैं।
हरित क्रांति के
दूसरे चेहरे देखने के लिए पंजाब की धान की खेती पर नजर डाले। पंजाब में चावल नही खाया
जाता इसलिए यहाँ पहले धान की खेती नही होती थी। हरित क्रान्ति के दौरान सरकार ने
किसानो को अधिक मुनाफे का लालच देकर धान की खेती शुरू करवायी। 1970-71 में 3.9 लाख हेक्टेयर
जमीन पर धान की खेती हुयी। जो 2011 में बढ़कर 28.2 लाख हेक्टेयर हो गयी। पंजाब धान की खेती के लिए सर्वथा
अनुपयुक्त इलाका है वहां मात्र 27 प्रतिशत धरती नहरो द्वारा सिचिंत है, शेष 73 प्रतिशत की
सिचाई टयूबबेल से होती है। इसलिए भारी पैमाने पर की गयी धान की खेती ने वहां भूजल
की समस्या को विस्फोटक स्थिति में पहुंचा दिया हालत यह है कि सदियो से संचित
भूगर्भीय जल से पंजाब में धान पैदा किया जा रहा है तथा यह जल तेजी से समाप्त हो
रहा है। आने वाले पीढ़ीयों को पीने का पानी कहाँ से मिलेगा इसके बारे में आज कोई
नही सोच रहा है। इतना ही नही इस मुनाफे की
खेती के कारण पंजाब आज देश में सबसे ज्यादा कीटनाशक (प्रतिवर्ष 6900 टन से ज्यादा)
का इस्तेमाल करता है। अत्यधिक रासायनिक खाद के कारण मिट्टी ,पानी और पर्यावरण
तथा मनुष्य के स्वास्थ्य को अपूरणनीय क्षति हो रही है। कपास पैदा करने वाला मालवा
का इलाका आज इसी के कारण कैंसर के प्रकोप को झेल रहा है। स्थिति इतनी चिन्ताजनक हो
चुकी है कि हरित क्रान्ति की शुरूआत करने वाले संगठन फिलिपीन्स स्थित
अन्तर्राष्ट्रीय चावल शोध संस्थान और विश्व बैंक तक ने अब पंजाब में खेती के
ढ़र्रे को बदलने का सुझाव दिया है।
हरित क्रान्ति ने
पंजाब में किसानो के एक छोटे हिस्से को धनी और पूँजीपति तो बनाया पर सम्पूर्ण समाज
में गैर बराबरी और असन्तोष के बीज बो दिये। इस दौरान जब पानी की जरूरत बहुत बढ़
गयी तब सीमावर्ती राज्यों हरियाणा और हिमांचल प्रदेश से जेल के बॅटवारे को लेकर अनेको विवाद तथा आन्दोलन
हुए। लोगो के बढ़ते असन्तोष ने वहां अलगाववाद को जन्म दिया। भिण्डरवाले जैसे
धार्मिक कट्टरवादियों ने लोगो की भावनाओ का भरपूर फायदा उठाया। एक और समस्या अलगाव
वाद को खाद पानी दे रही थी। हरित क्रान्ति का मशीनीकरण पर बहुत जोर था। इसके लागू
होने से नयी पीढ़ी के नौजवानो के लिए खेती में कोई काम नही रह गया इन बेरोजगारो को
खपाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नही थी। इसलिए आश्चर्य नही कि खलिस्तानी
आतंकवाद में शामिल लोगो में अस्सी प्रतिशत बेरोजगार नौजवान थे। खेती की जिस समस्या
की कोख से यह आतंकवाद जन्मा वह समस्या वहां आज भी ज्यो की त्यो है। बल्कि नशे की
समस्या इसे और गहरा और जटिल बना दिया है। आज अधिकांश बेराजगार नौजवान जो नशे की
गिरफ्त में हैं उनमें से एक बड़ा तबका खुद इस अवैध व्यापार से जुड़ गया है जिसमें
अकूत मुनाफा है। क्योकि हेरोईन चावल से दस गुना ज्यादा मुनाफा देती हे। पाकिस्तान
से सटे सीमावर्ती राज्य होने के कारण नशीले पदार्थो की उपलब्धता भी आसान है। पिछले
दिनो पठानकोट एयरबेस सहित पंजाब में हुयी सभी आतंकवादी घटनाओ में ड्रग माफिया
नेटवर्क की संलग्नता की बातें सामने आ चुकी है।अनेक बी0एस0एफ0 के जवानो के भी
इस अवैध धन्धे में शामिल होने की खबरे आती रहती है ।
हरित क्रान्ति की
इस त्रासदी ने आज समूचे पंजाब को ऐसे दलदल मेंढकेल दिया है जिससे उबरने का रास्ता
फिलहाल वर्तमान ढाॅचे में नही निकलता दिखायी पड़ता है।
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