ओबामा की क्यूबा यात्रा


एल.एस. हरदेनिया



वर्ष 1958 में क्यूबा में कम्युनिस्ट क्रांति हुई थी। कम्युनिस्ट क्रांति फिडेल केस्ट्रो के नेतृत्व में हुई थी, परंतु पूरे 58 वर्ष बीतने के बाद अमरीका ने क्यूबा के अस्तित्व को स्वीकार किया है। जबकि क्यूबा और अमरीका के बीच में सिर्फ 90 मील की दूरी है। इसके पूर्व भी अमरीका ने कम्युनिस्ट देशों को मान्यता देने में अनेक वर्षों की देरी की थी। जैसे सोवियत क्रांति 1917 में हुई थी परंतु उसे मान्यता देने में लगभग 20 वर्ष से ज्यादा की देरी हुई। इसी तरह चीन में 1948 में क्रांति हुई थी परंतु उसे भी मान्यता देने में लगभग इतना ही समय लगा था। परंतु जो समय क्यूबा को मान्यता देने में लगा उसने पिछले सब रिकार्ड तोड़ दिये हैं ।

अमरीका ने इस दरम्यान क्यूबा में कम्युनिस्ट राज को तहसनहस करने के अनेक प्रयास किए। इसके अलावा फिडेल की हत्या कराने के भी अनेक प्रयास किए गए। फिडेल की अपने देश में अद्भुत लोकप्रियता है।

मुझे वर्ष 1971 में क्यूबा जाने का अवसर मिला था। क्यूबा की राजधानी हवाना में पत्रकारों का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। उस सम्मेलन में मैंने भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ का प्रतिनिधित्व किया था। उस समय भारत से क्यूबा जाने के लिए हवाई यात्रा की सुविधा नहीं थी। न सिर्फ भारत बल्कि यूरोप के भी अनेक देशों से क्यूबा जाने की सुविधा नहीं थी। इसलिए सारी दुनिया के पत्रकार प्रतिनिधि क्यूबा जाने के लिए मास्को में एकत्रित हुए थे। यहां तक कि क्यूबा के पड़ोसी देशों के भी पत्रकारों को मास्को आना पड़ा था।

मास्को से हम लोग रवाना हुए। पूरी यात्रा समुद्र के ऊपर हुई थी। क्यूबा की दूरी थोड़ी ही रह गई थी कि हमारे हवाईजहाज के चालक को यह महसूस हुआ कि हवाईजहाज का फ्यूल इतना कम हो गया है कि शायद उसके सहारे हवाना पहुंचना संभव न हो। फ्यूल में कमी आने का कारण ज़ोरदार तूफान आना था। जिससे हवाईजहाज की गति कम हो गई एवं निर्धारित फ्यूल होने के बावजूद उसमें कमी आ गई। चूंकि आसपास कोई देश नहीं था, इसलिए इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था कि समुद्र के किसी टापू पर उतर कर ही फ्यूल लिया जाए। पायलेट ने बरमूडा नाम के टापू पर उतरने की इजाज़त मांगी। उस समय बरमूडा, अमरीका और ब्रिटेन के एटामिक हथियारों का अड्डा था, इसलिए वहां उतरने की इजाज़त नहीं दी गई। हवाईजहाज के यात्रियों में सोवियत संघ के सबसे बड़े अखबार प्रावदा के संपादक भी थे। पायलेट ने उनसे अनुरोध किया कि वे सोवियत संघ के राष्ट्रपति से अनुरोध करें कि वे बरमूडा पर उतरने की इजाज़त दिलवाएं। उस समय ब्रेजनेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति थे। उनने अमरीकी राष्ट्रपति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से अनुरोध किया, इसके बाद बरमूडा में उतरने की इजाज़त मिली। यदि इजाज़त नहीं मिलती तो संभवतः हमारा हवाईजहाज समुद्र में डूब जाता।

इजाज़त तो मिल गई परंतु बरमूडा के अधिकारियों ने फ्यूल देने से इंकार कर दिया। वहां के अधिकारियों ने हवाईजहाज में प्रवेश किया और जिन लोगों के पास कैमरे थे उन्हें जब्त कर लिए। वहां हम लोगों को सात से आठ घंटे रूकना पड़ा। इस बीच उन्होंने हमें पीने तक के लिए पानी नहीं दिया। बड़ी मुश्किल से वहां के अधिकारियों ने हवाईजहाज का फ्यूल दिया और हमारी उड़ान हवाना की तरफ बढ़ी। जब हवाईजहाज हवाना के ऊपर उड़ रहा था तब हम लोगों ने देखा कि हवाई अड्डे पर एक विशाल भीड़ एकत्रित है। थोड़ी देरी में हमारा हवाईजहाज उतरा, तो हमें भीड़ द्वारा लगाए गए नारे सुनाई दिए। भीड़ नारे लगा रही थी ‘‘अमरीकी साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। थोड़ी देर में हमने देखा कि स्वयं फिडेल केस्ट्रो हवाई अड्डे पर आए हुए हैं। हवाई अड्डे के बाहर एक मंच बनाया गया, उस पर खड़े होकर फिडेल केस्ट्रो ने एक लंबा भाषण दिया और अमरीकी हरकतों की तीव्र शब्दों में निंदा की।

इस घटना से हमें महसूस हुआ कि क्यूबा और अमरीका के बीच संबंध कितने कटु हैं। यह स्थिति अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं बदली। अमरीका ने न सिर्फ क्यूबा को मान्यता नहीं दी वरन् क्यूबा का आर्थिक बहिष्कार भी घोषित कर दिया। इसके अनुसार अमरीका और उसके मित्र राष्ट्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया कि वे क्यूबा के साथ किसी भी प्रकार के संबंध नहीं रखेंगे। वे न तो क्यूबा को कोई चीज़ भेज सकेंगे और ना ही बुला सकेंगे। उस समय क्यूबा में दवाईयों का भारी अभाव रहता था, डाक्टरों की भी कमी थी।

एक पत्रकार वार्ता में जब फिडेल से पूछा गया कि आपके यहां कितने डाक्टर हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि हमारे देश के अनेक डाॅक्टर उनके धनी रोगियों के साथ क्यूबा छोड़कर चले गए हैं। उस समय सोवियत संघ अस्तित्व में था इसलिए उसकी सहायता से क्यूबा को अपने पैरों पर खड़े होने का काफी लंबा समय मिला। सोवियत संघ की समाप्ति के बाद यह आशंका थी कि अब क्यूबा में कम्युनिस्ट शासन ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा परंतु यह आशंका भी भ्रमपूर्ण साबित हुई। इसका मुख्य कारण यह था कि क्यूबा में न सिर्फ कम्युनिस्ट क्रांति हुई थी परंतु वहां के नागरिकों को भी कम्युनिज्म के सिद्धांतों पर अगाध आस्था थी। और उन्हें फिडेल केस्ट्रों पर पूरा भरोसा था।

वर्षों पूर्व प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता और सोवियत संघ के निर्माता लेनिन ने कहा था कि कम्युनिस्ट क्रांति का निर्यात नहीं किया जा सकता और ना ही कोई देश क्रांति को आयात कर सकता है। फिडेल केस्ट्रो इस सिद्धांत के हामी थे। इसलिए वहां सोवियत संघ की समाप्ति के बाद भी कम्युनिस्ट राज पुख्ता रूप से कायम रहा। न सिर्फ क्यूबा में बल्कि समाजवादी क्रांति की मशाल लातिन अमरीका के दूसरे देशों में भी पहुंची।

जब से ओबामा ने अमरीका के शासन की बागडोर संभाली उस समय से ही उन्होंने क्यूबा से नार्मल संबंध बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। कुछ दिन पहले क्यूबा ने अमरीका में अपना दूतावास स्थापित कर दिया और बरसों बाद अमरीकी राष्ट्रपति की हवाना यात्रा हुई। संबंध नार्मल होने की प्रक्रिया के पीछे सबसे बड़ा कारण आर्थिक बताया जाता है। क्योंकि क्यूबा में एक सशक्त बाज़ार तैयार हो गया है और वहां के निवासियों की खरीदने की शक्ति काफी हद तक बड़ गई है इसलिए अमरीका के व्यापारियों को यह महसूस हुआ कि क्यूबा से संबंध स्थापित किए जाएं। व्यापारियों और उद्योगपतियों की लॉबी ने ओबामा के ऊपर दबाव बनाया और उसके चलते ऐसी स्थिति निर्मित हो गई कि अमरीकी राष्ट्रपति को क्यूबा की यात्रा भी करनी पड़ी। परंतु अभी अनेक अड़चने कायम हैं जिन्हें दूर करने में काफी समय लग सकता है। जैसे अभी तक विधिवत रूप से दोनों देशों के बीच में व्यापारिक संबंध स्थापित नहीं हुए हैं।

ओबामा से मुलाकात के दौरान क्यूबा के वर्तमान राष्ट्रपति राल केस्ट्रो ने यह मांग की कि ग्वानटेनामों टापू उन्हें वापिस किया जाए। उसी तरह ओबामा ने अपेक्षा की है कि क्यूबा के निवासियों को असहमति का अधिकार दिया जाए। वैसे ओबामा ने क्यूबा में अपने भाषण के दौरान इस बात को स्वीकार किया कि व्यापारिक प्रतिबंध अब इतिहास का हिस्सा बन गया है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने देश की सभी पार्टियों से अपील की कि वे मेरे इस काम में सहयोग दें।

अपने भाषण में ओबामा ने कहा कि वैसे तो हवाना हमारे देश से सिर्फ 90 मील दूर है परंतु इस दूरी को पार करने में हमें 58 साल लगे। क्यूबा की जनता ने ओबामा का भव्य स्वागत किया और उनके भाषण के दौरान खूब तालियां बजाईं। 


वर्षों पूर्व सोवियत नेता निकिता क्रुश्चेव ने कहा था कि साम्यवाद और पूंजीवाद का सहअस्तित्व संभव है। लगता है ओबामा और राल केस्ट्रो इस सिद्धांत को अमलीजामा पहना पाएंगे।


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