महिलाओं की बुलंद आवाज थीं कामरेड नुसरत बानो रूही
-एल. एस. हरदेनिया
डॉ. नुसरत बानो रूही हमारे बीच में अब नहीं रहीं। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व
की धनी थीं। वे शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, वामपंथी विचारों की धनी, लेखक, चिंतक, महिलाओं के अधिकारों की चैम्पियन इन सभी गुणों से
संपन्न थीं। उनका पूरा जीवन संघर्षमय रहा।
मां के अतिरिक्त उनके परिवार में एक भाई और उन्हें मिलाकर चार बहनें थीं। सभी
को उन्होंने पढ़ाया-लिखाया। अपनी सबसे छोटी बहन अनवरी को उन्होंने मेडिकल की शिक्षा
दिलवाई। आज भी वे भोपाल में प्रायवेट प्रैक्टिस कर रही हैं और नुसरत जी की सबसे
लाड़ली बहन हैं। नुसरत जी की मृत्यु ने उन्हें मानसिक रूप से काफी झकझोर दिया है।
शिक्षण कार्य करते हुए उन्होंने पीएचडी भी हासिल की और बाद में डाॅ. नुसरत
बानो रूही कहलाईं। उन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान था। हिंदी अंग्रेज़ी के अतिरिक्त
फारसी और उर्दू पर भी उनका अधिकार था। शिक्षक होने के साथ-साथ वे सामाजिक और
राजनीतिक गतिविधियों में बढ़चढ़कर भाग लेती थीं।
प्रारंभ से उनका साम्यवादी विचारधारा के प्रति झुकाव था। वे कम्युनिस्ट पार्टी
की अपने जीवन के अंत तक मेम्बर रहीं। कम्युनिस्ट पार्टी में रहते हुए वे पार्टी के
विभिन्न पदों पर रहीं विशेषकर महिलाओं के सवालों से वे जीवनभर जुड़ी रहीं। जब
सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानों के मामले में मुस्लिम महिलाओं को अनेक अधिकार
प्रदान किए थे विशेषकर तलाक के बाद गुज़ाराभत्ता के मामले में, अत्यधिक उदारतापूर्वक निर्णय दिया था। इस निर्णय का अनेक मुस्लिम संगठनों ने
विरोध किया था। सर्वोच्च न्यायालय के विरोध में भोपाल में लगभग एक लाख पुरूषों ने
जुलूस निकाला था। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की तारीफ करते हुए उन्होंने उसे
मुस्लिम महिलाओं के हित में उठाया गया सबसे बड़ा कदम निरूपित करते हुए, समाचारपत्रों में लेख भी लिखे थे। इसकी मुस्लिम समाज के एक हिस्से में रोषपूर्ण
प्रतिक्रिया हुई थी और कुछ शरारती तत्वों
ने उनके मकान पर पत्थर भी फेंके थे। इसके बावजूद वे अपने रवैये से नहीं हटीं और जब
राजीव गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए एक कानून पारित करवाया
तो नुसरत जी ने उसकी भी निंदा की। यह अपने आप में एक अद्भुत साहसपूर्ण कदम था।
मुझे नुसरत जी के साथ काम करने का एक लंबा अनुभव रहा है। हम दोनों विश्व शांति
परिषद और अफ्रीकी एषियाई एकजुटता संगठन में महामंत्री के रूप में जुड़े हुए थे।
वर्ष 1972 में जब भोपाल में एक अखिल भारतीय सांप्रदायिकता विरोधी सम्मेलन हुआ था तब
उसकी आयोजन समिति में मेरे साथ वे भी महामंत्री थीं। इस सम्मेलन में देश के अनेक
लोग आए थे। इस सम्मेलन का आयोजन श्रीमती सुभद्रा जोषी के नेतृत्व में हुआ था जो
स्वयं एक धर्मनिरपेक्षता के प्रति समर्पित महान नेत्री थीं।
नूरमहल में नगमी साहब का घर था। नगमी साहब प्रोफेशन से एक टेलर थे और शायरी भी
करते थे। अपने निवास स्थान का एक हिस्सा नगमी साहब ने हमारी संस्थाओं के कार्यालय
स्थापित करने के लिए दे दिया था, उसका नाम हमने लिबर्टी हाउस रखा था। सेफिया कालेज
से अपना शिक्षण कार्य समाप्त कर नुसरत बानो सीधे लिबर्टी हाउस आ जाया करती थीं और
शाम के पांच-छः बजे तक सभी संस्थाओं से जुड़े मसलों पर कार्य करती थीं। दफ्तर में
उनकी सतत उपस्थिति हम लोगों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती थी।
नुसरत जी ने अनेकों किताबें लिखी हैं जिनमें ‘भोपाल के जंगे आज़ादी का
इतिहास’, एक उनकी अदभुत किताब है जिसका नाम ‘विद्यार्थियों के नाम पत्र’ है। कुरान शरीफ के अंतर्गत महिलाओं को क्या अधिकार प्राप्त हैं यह उन्होंने
किताब के रूप में प्रतिबद्ध किया था। उन्हें सभी धर्मों का ज्ञान था, उन्होंने अनेक विदेश यात्राएं कीं। एक बार सोवियत संघ की यात्रा के दौरान मैं
भी उनके साथ था। उन्हें डायबटीज़ की बीमारी ने काफी कमज़ोर कर दिया था। इसके कारण
पिछले कुछ वर्षों से उनका घर से निकलना भी संभव नहीं हो पा रहा था। अभी पिछले दो
तीन महीने से वे गंभीर रूप से बीमार थीं। अनेक बार उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया
गया। अभी कुछ दिन पहले उन्हें भोपाल मेमोरियल अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब
उन्हें भर्ती कराया गया था तब भी वे बेहोशी की हालत में थीं। भोपाल मेमोरियल
अस्पताल के डाक्टरों ने पुरज़ोर कोशिश की कि वे जीवित रहें परंतु उन्हें सफलता नहीं
मिली और अंततः 17 जुलाई को अपरान्ह अंतिम श्वास ली।
उन्होंने अपने जीवनकाल में एक बच्ची को गोद लिया। जो अंतिम समय तक अस्पताल में
उनके साथ थी। इसके अतिरिक्त डॉ. अनवरी और उनका भतीजा डॉ. नईम आगा ने दिन रात उनकी
सेवा की। वे अपने पीछे अपने परिवार के अंतर्गत अपने प्रषंसकों, अपने सहयोगियों का एक विशाल परिवार छोड़ गईं हैं, जिनके लिए वे सदा प्रेरणा की
स्रोत बनी रहेंगी।
No comments: