गौरक्षा के नाम पर देश को बांटने का खेल
एल.एस. हरदेनिया
गौरक्षा का नारा
आज़ादी के बाद देश को बांटने वाला सबसे खतरनाक नारा है। इस नारे ने देश की लगभग
पचास प्रतिशत जनता को एक खेमे में खड़ा कर दिया है। यह नारा मुख्यतः राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ एवं उनसे जुड़े अन्य संगठनों ने दिया है।
यह दुःख की बात
है कि 1947 के बाद राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ ने जितने भी नारे उठाए हैं वे सभी देश को बांटने वाले हैं। आज़ादी के
तुरंत बाद देश को आधुनिक बनाने के अनेक प्रयास किए गए थे। इस तरह के सभी प्रयासों
पर संघ ने अड़ंगा लगाया। हिन्दू समाज में सुधार लाने के लिए सबसे बड़ा कदम उस समय
उठाया गया जब हिन्दू कोड बिल संसद में पेश किया गया। हिन्दू कोड बिल का मुख्य
उद्देश्य समाज की पचास प्रतिशत आबादी (महिलाओं) का सशक्तिकरण था। जिस तरह आज भी
इस्लाम के मानने वालों को एक से अधिक विवाह करने का अधिकार है उसी तरह का अधिकार
हिन्दुओं को भी है। हिन्दू समाज के अनेक लोग एक से ज़्यादा पत्नियां रखते थे।
हिन्दू कोड बिल के माध्यम से इस घिनौनी हरकत पर रोक लगी, इसके साथ ही
महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिया गया। उन्हें यह भी अधिकार दिया गया कि यदि वे
चाहें तो अपने पति से संबंध विच्छेद कर सकती हैं। यदि पति तलाक देता है तो उसे
तलाकशुदा पत्नि को गुज़ारा भत्ता देना पड़ेगा। इसका प्रावधान कानून में कर दिया गया
है।
जब हिन्दू समाज
में सुधार का यह ज़ोरदार कदम उठाया गया तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उसका विरोध
किया। नेहरू और अम्बेडकर पर यह आरोप लगाया गया कि वे हिन्दू समाज की जड़ों को खोखला
करना चाहते हैं। नेहरू जी को आधा अंग्रेज़ और आधा मुसलमान बताया गया और अम्बेडकर के
बारे में यह कहा गया कि एक चमार को हिन्दू समाज में फूट डालने का अधिकार नहीं है।
परंतु यह प्रसन्नता की बात थी कि आम हिन्दू ने संघ को समर्थन नहीं दिया और वे
हिन्दू समाज में फूट डालने में असफल रहे।
इसके बाद दूसरा
बड़ा प्रयास उस समय किया गया जब ‘‘मंदिर वहीं बनेगा’’ का नारा दिया गया। अयोध्या में स्थित बाबरी मस्ज़िद को भारत
पर एक हमला निरूपित किया गया। जिस दिन बाबरी मस्ज़िद ध्वंस की गई संघ परिवार ने उसे
मुस्लिम आक्रमण को परास्त करने वाली घटना बताया। उस दरम्यान यह नारा भी लगाया गया
कि जो ‘‘राम द्रोही है वह
देशद्रोही है’’। संघ को लगा कि
इस नारे के सहारे हिन्दुओं को एक मज़बूत एकता के सूत्र में बांध दिया जाएगा परंतु
ऐसा नहीं हुआ और उनका प्रयास असफल हुआ। बाबरी मस्ज़िद की घटना के बाद अनेक राज्यों
में जो चुनाव हुए उसमें संघ की राजनीतिक शाखा भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त का
सामना करना पड़ा।
अब संघ ने गौ
माता की पूंछ पकड़कर सत्ता हासिल करने का षड़यंत्र रचा है। वर्ष 1952 में मध्यप्रदेश
के विधानसभा के एक क्षेत्र से जनसंघ (भाजपा का पूर्व अवतार) का एक उम्मीदवार गौ
रक्षा के नारे पर चुना गया। उसके विरूद्ध चुनाव याचिका लगाई गई और हाईकोर्ट ने
उनके चुनाव को निरस्त कर दिया। इन्दौर हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश एच.एस.
कृष्णन ने अपने निर्णय में लिखा कि गाय की पूंछ पकड़ कर विधायक ने भले ही विधानसभा
में प्रवेश पा लिया हो परंतु मैं उन्हें विधानसभा में बैठने नहीं दूंगा।
गाय की रक्षा के
सवाल पर अनेक बार देश में आंदोलन हुए हैं और संसद का भी घेराव किया गया है। अब
पुनः पूरे ज़ोरशोर से गौ रक्षा का अभियान चालू है। गौ मांस पर अनेक राज्यों ने
प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध के बारे में अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए
दलितों के एक संगठन ने कहा है कि गौ मांस उनका मुख्य भोज्य पदार्थ है। लगभग सभी
दलित मांसाहारी होते हैं। उनका कहना है कि मटन और अन्य प्रकार के मांस उनकी पहुंच
के बाहर हैं, इसलिए उन्हें गौ
मांस का ही सहारा है।
संघ द्वारा गौ
रक्षा की बात करने का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों को चिढ़ाना है और कुछ वर्षों तक ऐसा
हुआ भी है। परंतु यह पहली बार है जब दलितों ने इस मुद्दे पर संगठित होकर अपना
विरोध प्रकट किया और यह संयोग की बात है कि इस तरह का संगठित विरोध नरेन्द्र मोदी
के किले, गुजरात में हुआ।
गुजरात में कुछ हरिजन मरी हुई गाय की चमड़ी निकाल रहे थे। इस बात के प्रमाण मिल
चुके हैं कि उस गाय की हत्या उन दलितों ने नहीं की थी जो गाय की चमड़ी निकाल रहे
थे।
आज से नहीं बल्कि
सदियों से दलित यह काम करते हैं। वास्तव में चमड़ी निकालकर बेचना दलितों की आय का
प्रमुख हिस्सा है। बाबा साहेब अम्बेडकर ने इस संबंध में बहुत दिलचस्प बात कही थी।
उन्होंने कहा था कि उच्च जाति के लोग कहते हैं कि पशुओं का अंतिम संस्कार दलितों
के लिए आमदनी का सबसे बड़ा ज़रिया है। इसलिए ही हमने यह काम दलितों को सौंपा है। इस
पर अम्बेडकर ने कहा था कि हमें इस तरह की आय नहीं चाहिए और यदि उच्च जाति के लोग
चाहें तो हम यह काम पूरी तरह से उन्हें ही सौंपने को तैयार हैं।
जब से केन्द्र
में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है तब से गौ रक्षकों के हौसले बुलंदी पर हैं।
गौ मांस से संबंधित सबसे गंभीर घटना उत्तरप्रदेश में घटी थी। जब एक मुस्लिम परिवार
पर गौ मांस खाने का आरोप लगाकर उस परिवार के मुखिया अख़लाक की हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद अनेक स्थानों पर उन लोगों पर हिंसक हमले किए गए जिनका मुख्य धंधा पशुओं
का व्यापार है। इस तरह की घटनाएं हरियाणा, झारखंड आदि राज्यों में हुईं। अभी हाल में मध्यप्रदेश के
मंदसौर में दो मुस्लिम महिलाओं की ठीक रेलवे स्टेशन पर पिटाई इस संदेह पर कर दी गई
कि उनके पास गौ मांस है।
गौ मांस या गौ
रक्षा के सवाल को लेकर मुसलमानों ने कोई संगठित विरोध नहीं किया परंतु दलितों ने
ऐसा किया है। पहली बार दलितों ने संगठित होकर गौ रक्षा को लेकर उनके ऊपर की गई
ज्यादतियों का विरोध किया है। सबसे ज़्यादा संगठित विरोध गुजरात में हुआ है जहां
कुछ दलितों पर गौ हत्या का तथाकथित आरोप लगाकर अपमानित किया गया। कुछ दलित जो मरी
हुई गाय की चमड़ी निकाल रहे थे उनका अपहरण किया गया, उन्हें एक बहुत ही मंहगी कार से बांधकर घसीटा
गया, उन्हें एक जगह ले
जाकर बुरी तरह पीटा गया। उनकी पिटाई के दृश्य विभिन्न चैनलों में देखने को मिले।
इस घटना ने दलितों को आक्रोशित किया और उन्होंने संगठित होकर उनके लोगों पर हुए
अत्याचार का विरोध किया।
गुजरात के सबसे
बड़े शहर अहमदाबाद में पहुंचकर उन्होंने प्रदर्शन किया, भाजपा, संघ, गुजरात के
मुख्यमंत्री एवं यहां तक कि नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध नारे लगाए। गुजरात में इतना
बड़ा विरोध भाजपा के लगातार सत्ता में रहने के बाद पहली बार हुआ है।
गौ रक्षा के नाम
पर पूरी तरह से गुंडागर्दी जारी है। पहले मुसलमान इसके शिकार थे, अब दलित भी हो गए
हैं। इस तरह की घटनाओं से देश विभाजन की कगार पर आ गया है। यदि इस तरह की घटनाओं
को नहीं रोका गया तो देश में बड़े पैमाने पर खूनखराबा हो सकता है। गुजरात के अनेक दलितों
ने घोषणा की है कि वे शीघ्र ही इस्लाम अपनाने वाले हैं। यह कहा नहीं जा सकता कि
इस्लाम अपनाने के बाद वे उच्च जातियों की ज्यादतियों से बच पाएंगे क्योंकि उच्च
जातियों के निशाने पर मुसलमान भी हैं।
दुःख की बात यह
है कि इतने बड़े पैमाने पर देश को तोड़ने वाली घटनाएं लगातार हो रही हैं फिर भी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मौन धारण किए हुए हैं।
जवाहरलाल नेहरू
और इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व के दौरान जब भी कहीं इस तरह की हिंसक घटनाएं
होती थीं, वे सार्वजनिक रूप
से उन घटनाओं की न सिर्फ भत्र्सना करते थे वरन ज्यादतियां करने वालों को सख्त भाषा
में चेतावनी भी देते थे। उनके प्रधानमंत्रित्व के दौरान जब भी कहीं मुसलमानों या
दलितों के ऊपर ज्यादतियां हुई हैं तो वे प्रायः उन स्थानों पर गए जहां इस तरह की
ज्यादतियां होती थीं।
बिहार के एक
बेलची नामक स्थान पर कुछ हरिजनों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी। उस समय इंदिरा
गांधी प्रधानमंत्री नहीं थीं। इसके बावजूद उन्होंने घोषणा की कि वे बेलची जाएंगी।
इस इरादे से वे बिहार पहुंच गईं। नदी को पार किए बिना बेलची पहुंचना संभव नहीं था।
नदी में भयंकर बाढ़ थी। सभी ने इंदिरा जी से कहा कि किसी भी हालत में नदी को पार
करना संभव नहीं है। परंतु उन्होंने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी। इस पर यह सुझाव आया कि
सिर्फ हाथी पर बैठकर नदी के उस पार जाया जा सकता है। इंदिरा जी हाथी पर बैठीं और
बेलची पहुंचकर उन परिवारों से मिलीं जिनके सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इंदिरा
जी के साहसिक कदम ने पूरे देश को एक विशेष संदेश दिया। क्या नरेन्द्र मोदी जी से
हम इस तरह की उपेक्षा कर सकते हैं कि वे अपने ही क्षेत्र गुजरात में जाकर उन
दलितों के आंसू पोंछे जिन्हें अपमानित किया गया है?
अतः आवश्यकता इस
बात की है कि इन तथाकथित गौ रक्षकों की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाए अन्यथा
ये देश में ऐसा फूट का बीज बोएंगे जिससे उभरना बहुत कठिन हो जाएगा।
इस बात के स्पष्ट
सबूत मिल रहे हैं कि संघ से जुड़े या संघ से आशीर्वाद प्राप्त लोग ही गौ रक्षा के
नाम पर हिंसक घटनाएं कर रहे हैं। अभी कल (31 जुलाई) ही तेलंगाना के गोशामहल (हैदराबाद) सीट से एक भाजपा
विधायक टी. राजा सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर डाले गए वीडियो के ज़रिए गुजरात में
दलितों की पिटाई को सही ठहराया है। विधायक ने कहा है कि जो भी दलित गौ मांस खाते
हैं और गायों को मारते हैं उनको इसी तरह पीटा और सबक सिखाया जाएगा। विधायक ने
बीएसपी सुप्रीमो मायावती का नाम लेते हुए कहा कि वो तो वोटों की भिखारी है, वह तो दलितों का
नाम खराब कर रही है। क्या नरेन्द्र मोदी, अमित शाह सहित भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस विधायक के विरूद्ध
कोई कार्यवाही करेगा?
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