मध्यप्रदेश – भगवा मंसूबों की छलांगें

 जावेद अनीस





ध्यप्रदेश वह सूबा है जहाँ संघ परिवार अपने शुरुआती दौर में ही दबदबा बनाने में कामयाब रहा है, इस प्रयोगशाला में संघ ने सामाजिक स्तर पर अपनी गहरी पैठ बना चूका है और मौजूदा परिदृश्य में वे हर तरफ हावी है। पहले मालवा क्षेत्र उनका गढ़ माना जाता था अब इसका दायरा बढ़ चूका है और प्रदेश के दूसरे हिस्से भी उनका केंद्र बनकर उभर रहे हैं। इधर मध्यप्रदेश में भगवा खेमे के मंसूबे नए मुकाम तय कर रहें हैं, ताजा मामला आईएएस अधिकारी और बड़वानी के कलेक्टर अजय गंगवार का है जिन्हें फेसबुक पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तारीफ की वजह से शिवराज सरकार के कोप का सामना करना पड़ा और उनका ट्रांसफर  कर दिया गया. यही नहीं उन्हें 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ फ़ेसबुक पोस्ट लाइक करने को सर्विस कोड कंडक्ट का उल्लंघन बताते हुए नोटिस भी जारी किया गया है. सिंहस्थ अभी खत्म हुआ है जोकि पूरी तरह से एक धार्मिक आयोजन था लेकिन जिस तरह से इसके आयोजन में पूरी मध्यप्रदेश सरकार शामिल रही है वे कई सवाल खड़े करते हैं, इस दौरान समरसता स्नान और वैचारिक महाकुंभ के सहारे संघ परिवार  के राजनीति को फायदा पहुचाने की कोशिश की गयी  और इसे पूरी तरह से एक सियासी अनुष्ठान बना दिया गया.

पिछले महीनों में प्रदेश के कई हिस्सों में सिलसिलेवार तरीके से साम्प्रदायिक तनाव के मामले सामने आये हैं और कुछ ऐसी परिघटनाये भी हुई है जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपना ध्यान खींचा है. फिर वह चाहे खिरकिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में बीफ़ होने के शक में एक बुजर्ग मुस्लिम दंपत्ति की पिटाई का मामला हो या धार में भोजशाला विवाद काभले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने आप को नरमपंथी दिखाने का मौका ना चूकते हों लेकिन यह सब कुछ उनकी सरकार के संरक्षण में संघ परिवार के संगठनों द्वारा ही अंजाम दिया जा रहा है। इन सबके बीच एक और चौकाने वाली नई परिघटना भी सामने आई है, हिंदू महासभा के नेता द्वारा पैगम्बर के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में जिस तरह से भोपाल, इंदौर सहित जिले स्तर पर बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन हुए हैं और इनमें बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं वह एक अलग और खास तरह के धुर्वीक्रण की तरफ इशारा कर रहे हैं । हालांकि अभी तक यह साफ़ नहीं हो सका है कि एक साथ इतने बड़े स्तर पर हुए इन संगठित प्रदर्शनों की पीछे कोन सी ताकतें है, लेकिन इसको नजरअंदाज नहीं किया सकता है।

हाल के दिनों में मध्यप्रदेश  में कुछ ऐसे कानून और पाबंदियां भी लायी गयी हैं जो नागरिकों के संवेधानिक अधिकारों का हनन करते हैं।

अल्पसंख्यकों पर हमले 

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान दावा करते हैं कि जबसे उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला है तब से मध्यप्रदेश की धरती पर एक भी दंगा भी नहीं हुआ। लेकिन गृह मंत्रालय के के हालिया आंकड़े बताते हैं कि  देश में हुई सांप्रदायिक घटनाओं में से 86 प्रतिशत घटनायें 8 राज्यों,महाराष्ट्रगुजरातबिहार,उत्तरप्रदेशराजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटकऔर केरल-में हुईं हैं । 2012 और 2013 में दंगों के मामले में मप्र का तीसरा स्थान रहा है। जबकि 2014 में पांचवे स्थान पर था।

पिछले चंद महीनों में घटित सबसे चर्चित मामला  मध्य प्रदेश के हरदा जिले हा है जहाँ खिरकिया रेलवे स्टेशन ट्रेन पर एक मुस्लिम दंपति के साथ इसलिएमारपीट की गयी क्‍योंकि उनके बैग में बीफ होने का शक था। मार-पीट करने वाले लोग गौरक्षा समिति के सदस्य थे जो एकतरह से दादरी दोहराने की कोशिश कर रहे थे घटना 13 जनवरी 2016 की है,मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद किसी रिश्तेदार के के यहाँ से अपने घर हरदा लौट रहे थे इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौरक्षा समिति के कार्यकर्ताओं ने उनके बैग में गोमांस बताकर जांच करने लगे विरोध करने पर इस दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी गयी। इस दौरान दम्पति ने खिरकिया में अपने कुछ जानने वालों को फ़ोन कर दिया और वे लोग स्‍टेशन पर आ गये और उन्हें बचाया। इस तरह से कुशीनगर एक्सप्रेस के जनरल बोगी में एक बड़ी वारदात होते –होते रह गयी। खिरकिया में इससे पहले 19 सितम्बर 2013 को गौ हत्या के नाम पर दंगा हुआ हो चूका है जिसमें करीब 30 मुस्लिम परिवारों के घरों और सम्पतियों को आग के हवाले कर दिया गया था , कईलोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे, बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद यह दंगे हुए थे उसकी मौत पॉलिथीन खाने से हुई थीइस मामले में भी  मुख्य आरोपी गौ रक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत ही था। यह सब करने के बावजूद  सुरेन्द्र सिंह राजपूत कितना बैखौफ है इसका अंदाजा उस ऑडियो को सुन कर लगाया जा सकता है जिसमें वह हरदा के एसपी को फ़ोन पर धमकी देकर कह रहा है कि अगर मोहम्मद हुसैन दम्पति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं लिया गया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा इतना सब होने के बावजूद राजपूत अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर है। 

दूसरी बड़ी घटना धार जिले में स्थित मनावर की  है जो अपने “बाग प्रिंट” के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है  इस साल  6 से 9 जनवरी के बीच धार में साम्प्रदायिक झडपें हुई थीं, उस दौरान बाग प्रिंट में माहिर और मशहूर 40 सदस्यों वाले खत्री परिवार पर भी हमले हुए और उनके कारखाने में  आग लगा दी गई थीखत्री परिवार द्वारा इसकी शिकायत पुलिस में भी की गयी थी लेकिन इसपर  कोई कार्रवाई नहीं हुई, इन सब से तंग आकर यह परिवार जो बाग प्रिंट के लिए 8 नेशनल और 7 यूनेस्को अवॉर्ड जीत चुका है को यह कहना पड़ा कि उनको लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं, वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और डरे हुए हैं इसलिए अगर हालत नहीं सुधरे तो आने वाले कुछ महीनों वे देश छोड़कर अमेरिका में बसने को मजबूर हो जायेंगें । इस पूरे हंगामे को लेकर हाई कोर्ट में एक दायर जनहित याचिका भी दायर की गयी थी इस याचिका धार प्रशासन को अक्षम बताते हुए कहा गया था कि जिले में कानून व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है और प्रशासन अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासियों को सुरक्षा मुहैया कराने में असफल साबित हो रहा है, यहाँ तक कि बाग प्रिंट के जरिए विश्व में भारत को प्रसिद्धि दिलाने वाले मोहम्मद यूसुफ खत्री का परिवार भी असुरक्षित है। याचिका पर सुनवाई के बाद शासन से छह हफ्ते में जवाब देने को कहा था ।

धार में ही कमाल मौला मस्जिद-भोजशाला विवाद ने महीनों तक पूरे मालवा इलाके में सम्प्रदायिक माहौल को नाजुक बनाये ये रखा, इस साल बसंत पंचमी शुक्रवार (12 फरवरी) के दिन पड़ने का संयोग था जिसकी वजह से हिन्दुतत्ववादी संगठनों द्वारा वहां माहौल एक बार फिर गरमाने का मौका गया, पूरे मालवा क्षेत्र में उन्माद का माहौल बनाने की पूरी कोशिश की गयी , इस तनाव को बढ़ाने में संघ परिवार से जुड़े संगठनों सहित स्थानीय भाजपा नेताओं की बड़ी भूमिका देखने को मिलीदरअसल धार स्थित भोजशाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में एक ऐसा स्मारक है जिसपर हिन्दू और मुसलमान दोनों अपना दावा जताते रहे हैं, एक इसे प्राचीन स्थान वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर मानता है, तो दूसरा  इसे अपनी कमाल मौला मस्जिद बताता है। इसी वजह से एएसआई की ओर यह  व्यवस्था की गयी है कि वहां हर मंगलवार को हिन्दू समुदाय के लोग पूजा करेंगें जबकि  हर जुम्मे (शुक्रवार) को मुस्लिमों समुदाय के लोग नमाज अदा कर सकेंगें. अपनी इसी स्थिति की वजह से भोजशाला - कमाल मौला मस्जिद विवाद को अयोध्या की तरह बनाने की कोशिश की गयी हैं, इस काम में कांग्रेस और भाजपा दोनो ही पार्टियाँ शामिल रही हैं, यह काँग्रेस की दिग्विजयसिंह सरकार ही थी जिसने केंद्र में तत्कालीन अटलबिहारी सरकार से विवादित इमारत को हर मंगलवार हिन्दुओं के लिए खोलने के लिए सिफारिश की थी. इस फैसले ने एक तरह से धार को बारूद के ढेर पर बैठा दिया है ,2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद पूरे शहर में हिंसा फैली गयी थी और इस दंगे से काफी नुक्सान हुआ था इसी तरह से 2013 में भी बसंत पंचमी और शुक्रवार पड़ा था उस दौरान भी माहौल बिगड़ गया। इधर कुछ सालों से वहां बसंत पंचमी के आलावा दुसरे त्यौहारों में भी हिंदूवादी संगठनों की तरफ से उग्र प्रदर्शन किये जाते हैं जिससे वहां माहौल बिगड़ जाता है

स साल धार में शुक्रवार के दिन पड़ने वाली बसंत पंचमी बिना किसी बड़ी हिंसा के बीत गयी है , प्रशासन यह कह कर अपनी पीठ थपथपा रहा है कि उसने नीति का अनुसरण करते हुए भोजशाला नमाज और पूजा करवा दी है लेकिन इससे पहले स्थानिय भाजपा नेताओं और संघ से जुड़े संगठनों द्वारा माहौल में जहर खोलने की पूरी कोशिश की गयी जिसमें वे कामयाब भी रहे । यह लोग बहुत ही उग्र तरीके से वसंत पंचमी पर पूरे दिन अखण्ड सरस्वती पूजा करने की मांग कर रहे थे इसके लिए महाराजा भोज उत्सव समिति द्वारा भाजपा  सांसद सावित्री ठाकुर के नेतृत्व में एक वाहन रैली निकाली गई, इस रैली में धार शहर के आलावा पूरे जिले से आये लोगों ने हिस्सा लिया, बताया जाता है कि धार के इतिहास में यह सब से बड़ी रैली थी जिसमें करीब १५ से २० हज़ार शामिल हुए ।  सवाल यह है कि वे कोन लोग है जो अगर बसंत पंचमी शुक्रवार एक साथ पड़ता है तो  दोनों समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न कराने के लिए कमर कस लेते हैं ? इन सब से किसे फायदा हो रहा है और ऐसा कब तक चलता रहेगा ? दरअसल हर  कोई इस मसले को सुलगाये रखना चाहता है जिससे जरूरत पड़ने पर इसे हवा दी जा सके

साई समुदाय की बात करें तो अभी 14 जनवरी की एक घटना है जिसमें धार जिले के देहर गांव में धर्मांतरण के आरोप में एक दर्जन ईसाई समुदाय के लोगों को गिरफ्तार किया गया है गिरफ्तार किये गये लोगों में नेत्रहीन दंपति भी शामिल हैं इन आरोपियों का कहना है कि  उन्होंने किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवाया है औ रउनपर यह कार्रवाई हिन्दुतत्ववादी  संगठनों के इशारे की गयी है, उनका यह भी आरोप है कि पुलिस द्वारा उनके घर में घुसकर तोड़फोड़ और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गयी है। दरअसल मध्यप्रदेश में धर्मांतरण के नाम पर ईसाई समुदायभी लगातार  निशाने पर रहा है वर्ष 2013 में राज्यसरकार द्वारा  धर्मांतरण के खिलाफ क़ानून में संशोधन कर उसे और ज्‍यादा सख़्त बना दिया गया था जिसके बाद अगर कोई नागरिक अपना मजहब बदलना चाहे तो इसके लिए उसे सबसे पहले जिला मजिस्‍ट्रेट की अनुमति लेनी होगी। यदि धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा नहीं करता है तो वह दंड का भागीदार होगा । इसी तरह ने नए संसोधन के बादजबरन धर्म परिवर्तनपर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई हैंऔर कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है। हिन्दुतत्ववादी संगठनों द्वारा ईसाई समुदाय पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर प्रताड़ित किया जाता रहा है ,अब कानून में परिवर्तन के बाद से उनके लिए यह और आसन हो गया है इन सब के खिलाफ ईसाई समुदाय के तरफ से आवाज भी उठायी जाती रही है, पिछले दिनों ही आर्कबिशप लियो कॉरनेलियो ने कहा है कि मध्‍य प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून का गलत इस्‍तेमाल हो रहा है और ईसाईयों के खिलाफ जबरन धर्मांतरण के फर्जी केस थोपे जा रहे हैं ।

जाति उत्पीड़न की जड़ें

ध्यप्रदेश में सामंतवाद और जाति उत्पीड़न की जड़ें बहुत गहरी रही हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के हालिया आकड़ों पर नजर डालें तो 2013 और 2014 के दौरान मध्यप्रदेश दलित उत्पीड़न के दर्ज किये गए मामलों में चौथे स्थान पर था. लेकिन ये तो महज दर्ज मामले हैं. गैरसरकारी संगठन “सामाजिक न्याय एवं समानता केन्द्र” द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि प्रदेश में दलित उत्पीड़न के कुल मामलों में से 65 प्रतिशत मामलों के एफ.आई.आर ही नहीं दर्ज हो पाते हैं.

चाय की दुकानदार द्वारा चाय देने से पहले जाति पूछना और खुद को दलित बताने पर चाय देने से मना कर देना या अलग गिलास में चाय देना, नाई द्वारा बाल काटने से मना कर देना, अनुसूचित जाति , जनजाति से सम्बन्ध रखने वाले पंच/सरपंच को मारना पीटना,शादी में घोड़े पर बैठने पर रास्ता रोकना और मारपीट करना, मरे हुए मवेशियों को जबरदस्ती उठाने को मजबूर करना, मना करने पर सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार कर देना, सावर्जनिक नल से पानी भरने पर रोक लगा देना और स्कूलों में बच्चों के साथ भेदभाव जैसी घटनाऐं अभी भी यहां के अनुसूचित जाति के लोगों के आम बनी हुई हैं।

सा2014 में गैर-सरकारी संगठन “दलित अधिकार अभियान” द्वारा जारी रिपोर्ट जीने के अधिकार पर काबिज छुआछूतसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश में भेदभाव की जडें कितनी गहरी हैं. मध्यप्रदेश के 10 जिलों के 30 गांवों में किये गये सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि इन सभी गावों में लगभग सत्तर प्रकार के छुआछूत का प्रचलन है और भेदभाव के कारण लगभग 31 प्रतिशत दलित बच्चे स्कूल में अनुपस्थित रहते हैं. इसी तरह से अध्यन किये गये स्कूलों में 92 फीसदी दलित बच्चे खुद पानी लेकर नहीं पी सकते, क्योंकि उन्हें स्कूल के हैंडपंप ओर टंकी छूने की मनाही है जबकि 93 फीसदी अनुसूचित जाति के बच्चों को आगे की लाइन में बैठने नहीं दिया जाता है,42 फीसदी बच्चों को  शिक्षक जातिसूचक नामों से पुकारते हैं,44 फीसदी बच्चों के साथ गैर दलित बच्चे भेदभाव करते हैं,82 फीसदी बच्चों को मध्यान्ह भोजन के दौरान अलग लाइन में बिठाया जाता है.

हालिया चर्चित घटनाओं पर नजर डालें तो बीते 3 अप्रैल को मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में स्थित दुदलाई गांव में 13 साल के एक दलित बच्चे को इसलिए बुरी तरह से पीटा गया क्योंकि उसने तथाकथित ऊँची जाति के एक किसान के ट्यूबवेल से पानी पी लिया था, वहां फैक्ट फाइंडिंग के लिए गयी एक जांच दल के अनुसार बच्चे को इतना मारा गया कि उसके एक हाथ की हड्डी टूट गई.यही नहीं परिवार वाले जब इसकी रिपोर्ट लिखवाने गए तो थाने में उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी. कुछ दिनों बाद जब इस घटना की खबर अखबारों में छपी तब जाकर रिपोर्ट दर्ज हो हुई लेकिन इसके बाद दबंगों द्वारा गावं में रहने वाले अनुसूचित जाति के करीब 100 परिवारों  का बहिष्कार कर दिया गया. इस गावं के सरकारी स्कूल केवल अनुसूचित जाति के बच्चे ही पढ़ते हैं तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने सरकारी स्कूल का बहिष्कार कर अपने बच्चों के लिए प्रायवेट स्कूल खोल लिया है. इसी तरह से दमोह जिले के खमरिया कलां गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले 8 साल के बच्चे की बावड़ी में गिरने से मौत हो गयी, दरअसल जब बच्चे को  स्कूल के हैंडपंप से पानी लेने से रोका गया तो वह पास ही के एक कुएं पर पानी लेने चला गया जहां संतुलन बिगड़ने की वजह से कुएं में गिरकर उसकी मौत हो गई. पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में शिवपुरी जिले के कुंअरपुर गांव में एक दलित महिला अपने गांव की उप सरपंच चुनी गई थीं, जिन्हें गांव के सरपंच और कुछ दबंगों ने मिलकर उनके साथ मारपीट की और उनके मुंह में गोबर भर दिया. अनुसूचित जाति के लोग जब सदियों से चली आ रही अपमानजनक काम को जारी नहीं रखने का फैसला करते हैं तो उन्हें इसके लिए मजबूर किया जाता है इसी तरह की एक घटना 2009 की है जब अहिरवार समुदाय के लोगों ने  सामूहिक रूप से यह निर्णय लिया कि वे मरे हुए मवेशी नहीं उठायेंगें, क्योंकि इसकी वजह से उनके साथ छुआछूत व भेदभाव का बर्ताव किया जाता है. इसके जवाब में गाडरवारा तहसील के करीब आधा दर्जन गावों में दबंगों ने पूरे अहिरवार समुदाय पर सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया उनके साथ मार-पीट की गयी और उनके सार्वजनिक स्थलों के उपयोग जैसे सार्वजनिक नल, किराना की दुकान से सामान खरीदने, आटा चक्की से अनाज पिसाने, शौचालय जाने के रास्ते और अन्य दूसरी सुविधाओं के उपयोग पर जबर्दस्ती रोक लगा दी गई थी. उनके दहशत से कई परिवार गाँव छोड़ कर पलायन कर गये थे इसके बाद से उस क्षेत्र में लगातार इस तरह की घटनायें होती रही हैं. पिछले साल जून में भी इसी तरह की घटना हो चुकी है. तमाम प्रयासों के बावजूद इसे रोकने के लिये प्रसाशन की तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

त्पीड़न और भेदभाव की उपरोक्त घटनायें बहुत आम हैं लेकिन अब समुदाय में  चेतना बढ़ रही है और उनकी तरफ से इसकी सावर्जनिक अभिव्यक्ति भी हो रही है. लेकिन इधर दलित,अम्बेडकरवादी संघटनों द्वारा आयोजित सावर्जनिक कार्यक्रमों पर भी हमले की घटनायें सामने आ रही हैं. इसी साल फरवरी में ग्वालियर की एक घटना है जहाँ अंबेडकर विचार मंच द्वारा 'बाबा साहेब के सपनों का भारत” विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें जेएनयू के प्रो.विवेक कुमार भाषण देने के लिए आमंत्रित किये गये थे. इस कार्यक्रम में भाजयुमो, बजरंग दल, विहिप व एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने अंदर घुस कर हंगामा किया. इस दौरान  दौरान पथराव हुए और गोली भी चलायी गयी, इन सब में कई लोग  चोटिल हुए. आयोजकों का कहना है कि यह संगठन पहले से ही तैयारी कर रहे थे और सुबह से ही वे कार्यक्रम स्थल के आसपास जुटना शुरू हो गये थे.

सी तरह की एक और घटना झाँसी की है जहाँ 31 जनवरी 2016 को बहुजन संघर्ष दल द्वारा रोहित वेंगुला को लेकर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था. इस सभा में  बहुजन संघर्ष दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व विधायक फूल सिंह बरैया ने जब यह कहा कि 1857 के संघर्ष का पूरा श्रेय अकेले रानी लक्ष्मीबाई को देकर उन्हें ही महिमामंडित किया जाता है जबकि झलकारी बाई को भी इसका श्रेय मिलना चाहिए. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इसे रानी झांसी का अपमान बताते हुए सभा पर हमला बोल दिया और सभा स्थल पर तोड़फोड़, मारपीट  की गयी और जमकर उपद्रव मचाया गया. ज्ञात हो जिन झलकारी बाई का जिक्र फूल सिंह बरैया कर रहे थे वे एक गरीब  कोली परिवार से थीं जो बाद में रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना की महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति बनीं.बताया जाता है कि वे रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं और दुश्मनों  धोखा देने के लिए वे रानी के वेष में भी युद्ध पर जाती थीं.रानी के वेश में युद्ध करते हुए ही वे अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं थीं उनकी वजह से रानी को किले से भाग निकलने का मौका मिला था. झलकारी बाई के बहादुरी की कहानी  आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनाई पड़ते हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में 15.6 प्रतिशत दलित आबादी है  इसके बावजूद राजनीति में वे ताकत नहीं बन पाए हैं. उत्तर प्रदेश की तरह यहाँ बहुजन समाज पार्टी अपना प्रभाव नहीं जमा पायी. आज भी सूबे पूरी राजनीति कांग्रेस और भाजपा के बीच सिमटी है. इन दोनों पार्टियों ने प्रदेश के दलित और  आदिवासी समुदाय में कभी राजनीतिक नेतृत्व उभरने ही नहीं दिया और अगर कुछ उभरे भी तो उन्हें आत्मसात कर लिया. एक समय फूल सिंह बरैया जरूर अपनी पहचान बना रहे थे लेकिन उनका प्रभाव लगातार कम हुआ है. ओबीसी समुदायों की भी कमोबेश यही स्थिति है यहाँ से सुभाष यादव, शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती जैसे नेता निकले जरूर. चौहान व भारती जैसे नेता सूबे की राजनीति में शीर्ष पर भी पहुचे हैं लेकिन यूपी और बिहार की तरह उनके उभार से पिछड़े वर्गों का सशक्तिकरण है .इस तरह से प्रदेश में आदिवासी, दलित और ओबीसी की बड़ी आबादी होने के बावजूद यहां की  राजनीति पर पर इन समुदायों का कोई ख़ास प्रभाव देखने को नहीं मिलता है. यही वजह है कि जाति उत्पीड़न की तमाम घटनाओं के बावजूद ये राजनीति के लिए कोई मुद्दा नहीं बन पाती हैं.

काला कानून और बंदिशें

ध्यप्रदेश  में कुछ ऐसे कानून और पाबंदियां लगायी गयी हैं जो नागरिकों के संवेधानिक अधिकारों का हनन करते हैं.पिछले साल जब व्यापम की वजह से मध्य प्रदेश की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही थी तो उस दौरान शिवराज सरकार द्वारा एक ऐसा विधेयक पास कराया गया जो  कोर्ट में याचिका लगाने पर बंदिशें लगाती है, इस विधयेक का नाम है तंग करने वाला मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक 2015”( Madhya Pradesh Vexatious Litigation (Prevention) Bill, 2015). मध्यप्रदेश सरकार ने इस विधेयक को विधानसभा में  बिना किसी बहस के ही पारित करवाया लिया था  और इसे कानून का रूप देने के लिए तुरत-फुरत अधिसूचना भी जारी की गई, अदालत का समय बचाने और फिजूल की याचिकाएं दायर होने के नाम पर लाया गया यह एक ऐसा कानून है जिसे विपक्षी दल और सामाजिक कार्यकर्ता संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ मानते हुए इसे  नागरिकों के जनहित याचिका लगाने के अधिकार को नियंत्रित करने वाला ऐसा कानून बताया  है जिसका मकसद सत्ताधारी नेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचार और गैरकानूनी कार्यों के खिलाफ नागरिको को कोर्ट जाने से रोकना है. उनका कहना है कि इस कानून के माध्यम से सरकार को यह अधिकार मिल गया है कि वह ऐसे लोगों को नियंत्रित करे जो जनहित में न्यायपालिका के सामने बार-बार याचिका लगाते हैं. प्रदेश के वकीलों  और संविधान  के जानकारों ने सरकार के इस कदम को तानाशाही करार दिया है. इस कानून के अनुसार अब न्यायपालिका राज्य सरकार के महाधिवक्ता के द्वारा दी गई राय के आधार पर तय करेगी कि किसी व्यक्ति को जनहित याचिका या अन्य मामले लगाने का अधिकार है या नहीं. यदि यह पाया जाता है कि कोई व्यक्ति बार-बार इस तरह की जनहित याचिका लगाता है तो उसकी इस प्रवृत्ति पर प्रतिबंध लगाया जा सकेगा। एक बार न्यायपालिका ने ऐसा प्रतिबंध लगा दिया तो उसे उस निर्णय के विरूद्ध अपील करने का अधिकार भी नहीं होगा. न्यायालय में मामला दायर करने के लिए पक्षकार को यह साबित करना अनिवार्य होगा कि उसने यह प्रकरण तंग या परेशान करने की भावना से नहीं लगाया है और उसके पास इस मामले से संबंधित पुख्ता दस्तावेज मौजूद हैं.

ध्यप्रदेश में लोकतान्त्रिक ढंग से होने वाले प्रदर्शनों पर भी रोक लगाने की कोशिशें हो रही हैं  राजधानी भोपाल में धरनास्थल की जगह निश्चित कर दी गयी है और अब धरना बंद पार्कों में ही किया जा सकता है, पूरे प्रदेश में जलूस निकालने, धरना देने, प्रदर्शन , आमसभाएं में भांति भांति की अड़चने पैदा करने को कोशिश की जा रही हैं,  इस तरह की एक घटना  सिंगरौली की है जहाँ बीते 18 जनवरी को माकपा के जिला सचिव द्वारा जब सूखा राहत में गड़बड़ी, बिजली बिलों की जबरिया वसूली, एक उद्योग के लिए जमीन अधिग्रहित करने के मामले में किये गए फर्जीवाड़े जैसे  विषयों को लेकर जिलाधीश कार्यालय पर प्रदर्शन करके ज्ञापन सौंपने की सूचना के साथ धीमी आवाज में लाउड स्पीकर के उपयोग की अनुमति माँगी गयी  तो इसके जवाब में कलेक्टर ने उन्हें सीआरपीसी की धारा 133 के अंतर्गत कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया । इसमें नोटिस में कलेक्टर द्वारा प्रदर्शन, से कार्यालयीन कार्यों तथा जनता के जीवन में न्यूसेंसउत्पन्न होने की आशंका जताकर माकपा नेता को  को 14 जनवरी के दिन अदालत में हाजिर को आदेश दे दिया और उपस्थित न होने की स्थिति में एकपक्षीय कार्यवाही की चेतावनी भी दी गयी . इसी तरह की एक और घटना ग्वालियर की है जहाँ माकपा जिलासचिव ने जब धरना  के लिए अनुमति माँगा तो कलेक्टर ने उनके सामने कुछ शर्तों की सूची पेश कर दी जिसमें   प्रदर्शन में  शामिल होने वालों की संख्या, उनमे हर 10 या 20 भागीदारों के ऊपर एक वालंटियर का नाम और मोबाइल नंबर, वे जिन जिन गाँवों से या बस्तियों से आएंगे उनके थानों में पूर्व सूचना, लगाए जाने वाले नारों की सूची पहले से दिए जाने जैसे प्रावधान तक शामिल हैं ।उपरोक्त दोनों घटनाओं में यह बर्ताब एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी के साथ हुआ है ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि प्रदेश में अन्य संगठनो, नागरिकों से कैसा बर्ताब किया जाता होगा.

ध्यप्रदेश में दलितों , आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर हमलों और उनकी आवाज दबाने का दायरा बढ़ा है ,विरोध एवं असहमति दर्ज कराने के रास्ते बंद किये जा रहे हैं और संविधान के बुनियादी अधिकारों को कानून व प्रशासनिक आदेशों के जरिये छीना जा रहा है ।यह सब कुछ बहुत व्यवस्थित और संस्थागत तरीके से हो रहा है.


No comments: