’’एक यायावर की आत्म कथा’’
स्वदेश कुमार सिन्हा
----------------
पुस्तकः जीवन प्रवाह में बहते हुए
लेखक -डा0 लाल बहादुर वर्मा
प्रकाशक -संवाद प्रकाशन आई 499
शास्त्री नगर मेरठ
पहला संस्करण 2015
मूल्य 200/- रू0
80 के दशक में
गोरखपुर तथा सम्पूर्ण उ0 प्र0 में शायद ही कोई सांस्कृतिक कर्मी रंग कर्मी तथा
साहित्यकार ऐसा हो जो लाल बहादुर वर्मा के नाम से अपरिचित हो। उन्होने रंग कर्म
संस्कृति कर्म तथा लेखन को आम आदमी की समस्याओं तथा संघर्षो से जोड़ा।
वे गोरखपुर
विश्वविद्यालय में इतिहास के लोकप्रिय शिक्षक थे। उन्होने रंग कर्म की नयी विधा
नुक्कड़ नाटको के माध्यम से जन समस्याओं के नाटको को थियेटरो से आम जन तक पहुचाया।
रंग कर्म के अलावा पर्चे, पुस्तिकाओें तथा अनेक पत्र पत्रिकाओं का
सम्पादन करते हुए उन्हें भी आम जन तथा
बौद्धिक समुदाय से जोड़ा। साहित्यिक पत्रिका भंगिमा , तथा वैचारिक
पत्रिका इतिहास बोध देश भर में चर्चित रही थी। क्रान्तिकारी वामपंथी आन्दोलन को
उनकी सबसे बड़ी भूमिका दिल्ली ,कलकत्ता तथा उ0 प्र0 के अनेक संस्कृतिक
कर्मियों तथा रंग कर्मियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चे का
गठन था। जिसकी विभिन्न इकाइयों के माध्यम से उन्होने सम्पूर्ण देश में वामपंथी
सांस्कृतिक आन्दोलन का प्रचार प्रसार करने का प्रयत्न किया। बहुत से वामपंथी
राजनीतिक कार्यकर्ता तथा सांस्कृतिक कर्मी इस संगठन से निकलकर आज भी देश के
विभिन्न वामपंथी संगठनों में सक्रिय हैं। एक समय में कट्टर माक्र्सवादी समझे जाने
वाले प्रो0 वर्मा के विचारों में एक दशक में काफी परिवर्तन आये हैं। पिछले दिनों
उनकी आत्म कथा ’’जीवन प्रवाह में बहते हुए’’ पढ़ते हुए एक नये
लाल बहादुर वर्मा सामने आते हैं । अपनी विचारधारा के बारे में वे लिखते हैं ’’ क्योकि मै दर असल
लाईन छोड़ रहा था , मुझे दुनिया बदलने के सभी प्रयोगों में कुछ
न कुछ अच्छा लगने लगा। मै और मेरी लाईन समन्वय की बनती गयी। जाहिर है मै बहुत से
पूर्व मित्रो के लिए पथ भ्रष्ट हो गया हूँ , ’’पूर्व मित्र इस
लिए लिखा ऐसे राजनीतिक मित्र उनसे असहमत होने वाले को पथ भ्रष्ट करार देकर उनसे
शत्रुवत ब्यवहार करने लगते हैं। (पृष्ठ
24)
लेखक की वर्तमान
राजनीतिक विचारो से आप की सहमति या असहमति हो सकती है लेकिन पुस्तक की प्रस्तावना
में लिखी इन बातों से किसी की असहमति नहीं हो सकती है। ’’हिन्दी क्षेत्र
के अभी -अभी शेष हुए या हो रहे एक काल खण्ड की धड़कने गूँज रही हैं । इसमें एक व्यक्ति का जीवन है, उसका अपना
विशिष्ट परिवेश यादे और इस सबसे मिलकर बनता है हमारा युग। सृजन और विचार जीवन और
संघर्ष , सपने और यथार्थ ’’ लेखक ने यद्यपि अपनी आत्म कथा के पहले खण्ड में
अपने वाल्याकाल से लेकर डी0लिट करने के लिए फ्रांस जाने तथा वहां से लौटने तक का
वर्णन किया है। परन्तु इस बीच में इतिहास के एक बड़े काल खण्ड वर्तमान और भविष्य
की यात्रा भी करते रहते हैं तथा बार-बार वे वर्तमान में भी पहुचते रहते हैं । जो
उनकी कथा को सम्पूर्ण बनाती है।
प्रो0 वर्मा का जन्म
बिहार के छपरा जिले में हुआ था। यद्यपि वे गोरखपुर के रहने वाले थे। पूर्वी उ0प्र0
में स्थित यह शहर देश के सबसे पिछले अविकसित तथा पिछड़े उस समय भी था और आज भी है।
यहाँ पर अभी सामंती ब्यवस्था टूटी नही थी
नवोदित पूँजीवाद धीरे -धीरे जड़ जमा रहा था। संक्रमण का यह काल बहुत पीड़ाजनक और
कष्ट साध्य होता है। इसी परिवेश में एक निम्न मध्यवर्गीय कायस्थ परिवार में उनका
जन्म हुआ। वे अपनी अनेक बहनों में अकेले बेटे थे। घर -परिवार बहनों उनके विवाहो का
वर्णन करते हुए वे उस युग के सम्पूर्ण सामाजिक पारिवारिक ढांचे का चित्र खीचते हैं , मध्य वर्ग की
आकांक्षाओ उनकी क्षुद्रताओे तथा संघर्ष विशेषरूप से आनन्द नगर में रहते हुए वहां
के परिवेश सामाजिक विडम्बनाओं का चित्रण विशेष रूप से अपने विवाह का वर्णन यह सब
पढ़ना अपने में एक विरल अनुभव जैसा है। अपनी पत्नी रजनी वर्मा बेटे सत्यम तथा
पुत्री आॅसू के साथ अपने गैर जनवादी ब्यवहार को उन्होने पुस्तक में खुद स्वीकार
किया है।
इस संबंध में मेरी एक निजी धारणा है कि ज्यादातर भारतीय पुरूष चाहे वह
किसी वर्ग व जाति के हो पिता अथवा पति हो एक सामंती मन उनके भीतर बैठा होता हैं
तथा प्रजा होती है पत्नी तथा बच्चे ये चीजे उनके अन्दर परिवेश तथा परम्पराओ से आती
है। ढ़ंरो प्रगतिशील लोग भी बड़े संघर्ष से ही इससे छुटकारा पाते हैं । लेखक की
पत्नी व बच्चो से ब्यवहार की स्वीकरोक्ति इसका उदाहरण है। उनके पत्नी के संघर्षो
का वर्णन एकदम वास्तविक है जिसे मैने खुद अनेको बार अनुभव किया है। वे अपने मित्रो
विशेष रूप से निहाल की स्मृतियों को बहुत आदर के साथ याद करते हैं । जो उनके जीवन
संघर्ष में अटूट रूप से सदा उनके साथ रहे हैं । अपने दूसरे मित्र कैलाश नरायण मणि
त्रिपाठी की मानसिक बनावट तथा उनके ब्यक्तित्व का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है।
अपने शिक्षको विशेष रूप से गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रो. हरिशंकर श्रीवास्तव जो आज
92 वर्ष के हैंतथा उनके तथा उनकी पत्नी के
शोध शिक्षक भी रहे उन्होने उन्हे भी बड़ी भावुकता से याद किया।
लेखक ने अपनी
यात्रा खण्ड में विशेष रूप से फ्रांस ,जर्मनी , इग्लैण्ड तथा
अन्य यूरोपीय देशो यूनान तक की यात्राओ में वहां के समाज ,इतिहास , जनजीवन के चित्रण
से लेकर वहां के संग्राहलयों कला विथिकाओें , पुस्तकालयों ,मूर्तिकला , चित्रकला तथा
नाटको तथ सिनेमा का जिस तरह वर्णन किया है वह आत्म कथा न होकर विविध विषयों की
रोचक पाठ पुस्तक बन जाती है।
यूनान , एथेन्स की यात्रा
के दौरान वे एक जगह लिखते है ’’जिस समय हमारे साथी पुरानी गलियों में स्मृति
चिन्ह खरीद रहे थे , मैने उस जगह जाकर सिर झुकाया जहाँ खड़े होकर सुकरात कभी जनता को सम्बोधित करता था और जहाँ
उसे विद्रोह फैलाने के अपराध स्वरूप
दण्डित किया गया था और उसने खुशी-खुशी जहर का प्याला पी लिया था। (पृष्ठ 269) फ्रांस में अपने असाधारण विचारक तथा शिक्षक
रेमो आरो जो महान विचारक ज्यापाल सात्र्र के मित्र भी थे। उनको याद करते हुए वे
लिखते हैं ’’रेमो आरो ने पहला शोध इतिहास दर्शन पर किया थ। फिर वे मूलतः समाजशास्त्री बन
गये। पर अन्तर्राष्ट्रीय संबंध और राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र में उनकी विद्वता
प्राधिकार असाधारण है। उनके निर्देशन में 9 विद्यार्थी शोध कर रहे थे कोई इतिहास , कोई समाज शास्त्र
तो कोई दर्शन। एक व्यक्ति तो चण्डीगढ की
वास्तुकला पर शोध कर रहा था उनके विद्यार्थी अमेरिका लैटिन अमेरिका और भारत जैसे
विभिन्न सामाजो के लोग थे। हम लोग सात-आठ बार ही उनसे मिले होंगे पर वे जीवन के
दुर्लभ क्षण़ थे। (पृष्ठ 232)
क्या ऐसा असाधारण
शिक्षक ,विचारक फ्रान्स के अलावा दुनिया में कही और मिल सकता है प्रो0 वर्मा ने इन्ही
के निर्देशन में इतिहास दर्शन पर शोध भी किया। उनकी आत्म कथा के अनेको विभिन्न
आयाम हैं विशेष रूप से भारतीय इतिहास लेखन का तुलनात्मक अध्ययन से लेकर (इतिहास
तथा ऐतिहासिक गल्प ) जैसे विविध विषय जिसे आधार बनाकर उन्होने दो उपन्यास उत्तर
पूर्व तथा पेरिस 1968 भी लिखा। वे भारतीय शिक्षा ब्यवस्था के श्रम से संबंध , यूरोपीय शिक्षा
ब्यवस्था वहां के शिक्षको तथा हमारे यहाँ के शिक्षको की सामाजिक ,शैखिक स्थिति का
अध्ययन भारतीय मध्य वर्ग की इच्छाओं एवं आकांक्षाओ का चित्रण इस आत्म कथा को
महत्वपूर्ण बना देता है।
एक जगह वह लिखते हैं
उनके ब्यक्तित्व निर्माण में मार्क्स , राहुल सांस्कृत्यायन ,सुकरात
का बड़ा योगदान रहा है। उनको पढ़ते हुए बार-बार यह बात उभर कर सामने आती है ।
एक मार्क्सवादी
संगठन के दस्तावेज के ये लाइने मुझे बहुत प्रिय है ’’मार्क्सवादी
मुल्लाओं के खुदा नही होते , वे इन्सान होते हैं , इसलिए उनमें भी वे सारी अच्छाइयाँ , बुराइयां तथा कमियां
होती हैं जो आम इन्सानो में पायी जाती हैं।
’’इन वाक्यों को
ध्यान में रखकर अगर आप इस आत्म कथा को पढेंगें तो आपको उपयोगी लगेगी।
No comments: