नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन है "मध्य प्रदेश तंग करने वाला मुकदमे बाजी निवारण विधेयक- 2015"
प्रेस विज्ञप्ति
भोपाल 03 अगस्त 2015। मध्यप्रदेश विधानसभा ने अपने मानसून सत्र में एक कानून
पारित किया है जिससे नागरिकों के मूलभूत अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस
कानून का नाम है मध्यप्रदेश तंग करने वाली मुकदमें बाजी (निवारण) कानून।
इस कानून के दूरगामी
प्रभाव पर विचार करने के लिए एक बैठक का आयोजन किया गया है। राष्ट्रीय सेक्युलर
मंच और कौमी एकता ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक बैठक में बड़ी संख्या
में बुद्धिजीवी, साहित्यकार, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, महिला संगठनों के प्रतिनिधि एवं पत्रकार शामिल थे।
राष्ट्रीय सेक्युलर मंच
के संयोजक एल.एस. हरदेनिया ने यहां जारी एक विज्ञप्ति में बताया कि कानून के
प्रावधानों पर विचार करने के बाद बैठक इस नतीजे पर पहुंची कि इस कानून से नागरिकों
की न्यायपालिका से राहत मांगने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कानून लाने
के उद्देश्य और कारणों के बारे में बताया गया है कि ‘‘यह देखा गया है कि लोगों में अन्य व्यक्तियों के विरूद्ध
ऐसे अन्य व्यक्तियों को कष्ट पहुंचाने, परेशान करने या चिढ़ाने के आशय से बिना किसी युक्ति आधार के
तंग करने वाले मुकदमे लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। सरकार ने इस मामले पर विचार
किया और यह विनिश्चय किया कि एक यथोचित विधायन अधिनियमित किया जाकर इस प्रवृत्ति
को रोका जाए।
वास्तव में यह कानून
नागरिकों के जनहित याचिका लगाने के अधिकार को नियंत्रित करता है। इस कानून के माध्यम
से सरकार ने ये अधिकार ले लिया है कि वह ऐसे लोगों को नियंत्रित करे जो जनहित में
न्यायपालिका के सामने बार-बार याचिका लगाते हैं। अब न्यायपालिका महाधिवक्ता के
द्वारा दी गई राय के आधार पर तय करेगी कि किसी व्यक्ति को जनहित याचिका या अन्य
मामले लगाने का अधिकार है या नहीं। यदि यह पाया जाता है कि कोई व्यक्ति बार-बार इस
तरह की जनहित याचिका लगाता है तो उसकी इस प्रवृत्ति पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।
एक बार न्यायपालिका ने
ऐसा प्रतिबंध लगा दिया तो उसे उस निर्णय के विरूद्ध अपील करने का अधिकार भी नहीं
होगा। बैठक में शामिल लोगों ने इसे काला कानून बताया और यह तय किया कि इसके
विरूद्ध जनमत तैयार किया जाए। इसके लिए सभी लोकतांत्रिक और संवैधानिक तरीकों को
अपनाया जाएगा।
सबसे दुःख की बात यह है
कि यह काला कानून बिना किसी बहस के चंद मिनटों में ही बिना किसी बहस के पारित हो गया था।
इसी माह भोपाल में
विरोध प्रकट करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। जिन प्रमुख लोगों ने इस
कानून पर चिंता प्रकट की वे हैं: साहित्यकार-कुमार अंबुज, सत्यप्रकाश सक्सेना (चिराग), शिवकुमार अवस्थी, रमाकांत श्रीवास्तव, महेन्द्र सिंह, डा.अली अब्बास ‘उम्मीद, शिक्षाविद-प्रो. विजय बहादुर सिंह, प्रो. रमेश दुबे,
एवं डा.उदय जैन, पी.सी. शर्मा, अध्यक्ष भोपाल जिला कांग्रेस कमेटी, मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता जे.पी. धनोपिया, सीपीएम के प्रमोद प्रधान एवं पूषण भट्टाचार्य, सीपीआई के शैलेन्द्र कुमार शैली एवं सीपीआईएमएल के विजय
कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता दीपक भट्ट, ए.एम. सिन्हा, डा. विनोद निगम. मोहम्मद फैजान, रघुराज सिंह, फेमिदा बेगम, जावेद अनीस, उपासना बेहार, ओबेज अरब, सुरेंद्र नेगी, पूर्व मंत्री सविता वाजपेयी,गांधीवादी दयाराम नामदेव एवं
पत्रकार पूर्णेन्दु शुक्ल, बालमुकुंद भारती, सिद्धार्थ गुप्ता आदि।
बैठक में मुंबई की
सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ एवं जावेद आनंद के विरूद्ध
योजनाबद्ध तरीके से की जाने वाली ज्यादतियों की भी भत्र्सना की गई।
-एल.एस.
हरदेनिया
मो. 09425301582
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